Wednesday, February 17, 2010

कथा-पुराण यानी पुरानी कहानी

tp3548[18] संस्कृत में पुराण का अर्थ है प्राचीन, पूर्वकाल संबंधी। इसके अलावा इसमें अतीत की घटना या वृत्तांत या उपाख्यान अथवा पुरातनकालीन, सांस्कृतिक, धार्मिक संहितामूलक इतिहास भी होता है।
पु राना शब्द का इस्तेमाल रोजमर्रा की भाषा में खूब होता है। इसमें ग़ज़ब की लाक्षणिकता है जिसकी वजह से इसमें सकारात्मक और नकारात्मक दोनों तरह के भाव समाए हैं। पुराने के अर्थ में जहां इसमें नवीन से हीन या कमतर होने की व्यंजना समाई है वहीं नवीन से प्राचीन या बहुत पहले से उसका अस्तित्व होने की ठसक भी पुरानेपन को महत्वपूर्ण बनाती है। पुराना यानी जो पहले से है, जिसका अस्तित्व अतीत से चला आ रहा है, जो प्राचीन है, जो अच्छी दशा में न हो, जो क्षीण हो चुका हो आदि। इसके उलट पुराना का मुहावरेदार प्रयोग किसी वस्तु के टिकाऊ होने, मज़बूत होने, पक्का या अनुभवी होने के अर्थ में भी होता है। पुराना चावल या पुरानी शराब हमेशा ही ज़ायकेदार होती है। पुराना आदमी का अर्थ अनुभवी व्यक्ति होता है। पुराने लोग, पुरानी बातें जैसे पद में बीते युग के अनुभवी लोगों और कालजयी यथार्थ का ही भाव है।
पुराना शब्द बना है संस्कृत के पुराण शब्द से जिसे आमतौर पर हम प्राचीन धर्म-संस्कृति की जानकारी देनेवाले ग्रंथ के रूप में जानते हैं। पुराण से पुराना के अर्थ में मराठी में पुराणा, असमी में पुरणा, बंगाली में पुरान, उड़िया में पुरुणा, सिंधी, राजस्थानी में पुराणों, नेपाली में पुरानु और गुजराती में पुराणूं रूपांतर प्रचलित हैं। संस्कृत में पुराण का अर्थ है प्राचीन, पूर्वकाल संबंधी। इसके अलावा इसमें अतीत की घटना या वृत्तांत या उपाख्यान अथवा पुरातनकालीन, सांस्कृतिक, धार्मिक संहितामूलक इतिहास भी होता है। इसमें वयोवृद्ध, क्षीण, घिसा हुआ जैसे भाव भी हैं। डॉ राजबली पाण्डेय के हिन्दूधर्म कोश में ऋषि सायण के हवाले से लिखा है कि पुराण वह है जो विश्वसृष्टि की आदिम दशा का वर्णन करता है। पुराण की एक अन्य परिभाषा लक्षणों के आधार पर हैं। पुराण में पांच लक्षण होना आवश्यक हैं-सर्गश्च प्रतिसर्गश्च वंशो मन्वन्तराणि च। वंशानुचरितं ज्ञेयं पुराणं पञ्चलक्षणम्।। अर्थात सर्ग व  सृष्टि का विज्ञान, प्रतिसर्ग यानी सृष्टि का विस्तार, मन्वंतर यानि मनुओं का काल और फिर वंशानुचरित यानी सूर्य और चंद्रवंशी राजाओं का वर्णन यही पांच लक्षण पुराणों के हैं। महर्षि वेदव्यास पुराण संहिता के रचयिता माने जाते हैं। भारतीय धर्मशास्त्र में अठारह पुराण माने जाते हैं। पुराण मुहावरे के तौर पर भी इस्तेमाल होता है। जब कोई व्यक्ति हरवक्त अपने दुखदर्द की एक सी कहानी बताता है उसे भी पुराण शुरू करना कहते हैं।
पुराण बना है संस्कृत धातु पुर् से जिसमें पूर्वकाल का, प्राचीन जैसे भाव हैं। इससे बने पुरा शब्द का प्राचीन, विगत, ऐतिहासिक या प्राच्य के अर्थ में उपसर्ग की तरह हिन्दी में प्रयोग होता है जिससे कई शब्द बने हैं जैसे पुरालेख यानी पुराने दस्तावेज, पुरालिपि यानी प्राचीन लिपि, पुरावशेष यानी अत्यंत प्राचीन काल के जैविक या स्थावर रचनाओं के चिह्न, पुरातत्व यानी अत्यंत प्राचीनकाल में हुई बातों के बारे में साक्ष्य व प्रमाण सहित शास्त्रीय अध्ययन करना। पुराकथा यानी प्राचीन पौराणिक आख्यान, पुराविद् या पुरातत्विद् यानी अतीत की घटनाओं को जानने और उनका विश्लेषण करनेवाला विद्वान। पुरा शब्द के दायरे में वर्तमानकाल तक चले mahabharata_warआए किसी भी काल का समावेश है यानी सबसे पहले, उसके बाद से लेकर अब तक का समय। अतीत की कहानी भी पुरा में समायी है। इस तरह देखें तो कथा-पुराण और पुरानी कहानी एक ही है मगर दोनों के अर्थ काफी अलग हो जाते हैं।
पुराना के अर्थ में जूना शब्द भी हिन्दी की कुछ शैलियों व अन्य भाषाओं में प्रचलित है। मराठी, मालवी, गुजराती आदि में जूना के रूपांतर प्रचलित हैं। शब्द खूब प्रचलित है। जीर्णः से बने जूना शब्द का प्रयोग कई बार जुनापुराणा के रूप में भी मालवी, राजस्थानी में होता है। जीर्ण का वैदिक रूप जूर्ण था। प्राकृत रूप जुण्ण हुआ जिससे विभिन्न भाषाओं में अलग अलग रूपांतर हुए जैसे हिन्दी में जूना, मराठी में जुना, सिंधी में जुणु और गुजराती में जुनूं आदि। जूना अखाड़ा यानी प्राचीन अखाड़ा। इंदौर में एक किस्म के रिहाइशी इलाके को बाखल कहते हैं। वहां जूनीबाखल नाम से एक इलाका है। पूर्वी शैली में बखरी या बाखर भी प्रचलित है जिसका अर्थ है कई कोष्ठ-प्रकोष्ठोंवाला कच्चा मकान। जूना शब्द बना है संस्कृत के जीर्णः शब्द से जिसमें कमजोर, क्षीण या दुर्बल, कच्चेपन का भाव है। यह बना है संस्कृत धातु जृ से जिसमें क्षरण, घटना, कमजोरआ दि भाव हैं जिनसे हिन्दी के जरा(अवस्था), जीर्ण, जर्जर जैसे कई शब्द बने हैं। खराब दशा के लिए जीर्ण-शीर्ण, जीर्णावस्था शब्द इसी मूल से उपजे है। वृद्धावस्था के लिए जरा शब्द भी जृ धातु से ही बना है जिसका अर्थ निर्बल, टूटा-फूटा, विभक्त, अशक्त, बुढ़ापा आदि होता है। वयोवृद्ध, अशक्त, निर्बल अथवा खंडहर के लिए जराजीर्ण या जरावस्था शब्द भी प्रचलित है। जीर्ण से बना जून या जूना शब्द में पुरातन, प्राचीन या पुरानेपन का भाव है क्योंकि पुरानी होने के साथ ज्यादातर चीजें कमजोर होती जाती हैं।

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12 कमेंट्स:

Arvind Mishra said...

चित्र का लीजेंड दें -क्या आप पूरी आश्वस्तता के साथ कह सकते है इस पोस्ट के साथ दिए चित्र का पुराण सभी को पता है -अतः क्या आप नीचे कोई शीर्षक देना उचित नहीं समझते ?

Baljit Basi said...

आप ने बाखल, बखरी या बाखर की व्युत्पति नहीं सुझाई. बाखल एक ऐसा घरों का समूह है जिसमें कई छोटी इकायों वाले घर होते हैं इनका पितर एक होता है. जब परिवार बड़ने लगता है तो अलग अलग घर बनने लगते हैं, लेकिन यह सबी एक ही द्वार के अंतर्गत रहने लगते हैं, भीतर अलग अलग परिवारों के अलग अलग कमरे बन जाते हैं . ऐसा सुरक्षा की दृष्टि से भी होता है. आम तौर पर यह बाखल एक पितर के नाम से ही जाने जाते थे/हैं. इस तरह हो सकता है 'जूनीबाखल' किसी जूनी नाम के पुरखे से जाना जाता हो.

Khushdeep Sehgal said...

ओल्ड इज़ गोल्ड...

जय हिंद...

Udan Tashtari said...

हमारे शहर के राजा ...या शहर सेठ कह लें..सेठ गोविन्द दास..राजा गोकुल दास...उनके महल को भी बाबू की बखरी कहते हैं..तो कच्चा मकान वाली बात कुछ फिट नहीं बैठती दिखती इस तथ्य से.

दिनेशराय द्विवेदी said...

पुरा से जरा तक अच्छा सफर।

उम्मतें said...

अजित भाई
मुझे लगा था कि विष्णु पुराण को...'पुराना' के बजाये 'पूर्ण' ( ईश्वर / दैवत्व / धर्म की पूर्णता ) से जोड़ना शायद उचित हो ! जिसमें समस्त काल , सर्वगुण, समस्त कलायें , सर्व अवतार,सर्व साहित्य ,सर्व सृजन , सारे लोक शामिल हैं , फिर मैंने इसे विष्णु के पुर से जोड़ा ....और पुर की आन /अणु से जोड़ा ...लेकिन ये सब मेरी कल्पना के घोड़े थे जो लम्बी दूरी तक दौड़े नहीं ! उसपे तुर्रा ये कि द्विवेदी जी नें सुबह सुबह सुन्दर सी टिप्पणी देकर इन घोड़ो की नालबंदी कर दी ...इसलिए अब मुझे वो स्वीकार्य है जो मानक ग्रंथों में है ...जो आपने कहा है : )

निर्मला कपिला said...

सभी पुरानी चीज़ें कहाँ अजित भाई कहते हैं शराब जितनी पुरानी उतनी ही अच्छी[मगर मुझे तज़ुर्बा नही मज़ाक मे कह रही हूँ} बहुत अच्छी जानकारी है धन्यवाद्

किरण राजपुरोहित नितिला said...

बढ़िया जानकारी.
बाखल की तरह ही राजस्थान के गावो में और शहरो के पुराने हिस्सों में भी पोळ होती है .जिसमे एक बहुत बड़े द्वार और परकोटे के भीतर एक ही वंश के कई परिवार या एक जाति के परिवार रहते है. पोळ के भीतर के खुले हिस्से को गुआरा या गवाडी भी कहते है.ऐसा सुरक्षा के लिहाज से होता होगा. रात में पोळ के द्वार बंद हो जाते थे और प्रहरी सुरक्षा करता था. अलग अलग नाम से यह देश के हर कोने में होता ही होगा.

संजय भास्‍कर said...

बढ़िया जानकारी.

Gyan Dutt Pandey said...

जित्ते भी पुर हैं - जोधपुर, पालन पुर --- सब में पुरानापन हैं! नयापुरा में भी!

बवाल said...

हो भी सकता है।

Himanshu Pandey said...

बहुत ही मूल्यवान प्रविष्टि ! कुछेक सन्दर्भों के लिये जरूरी ! आभार ।

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