Saturday, January 1, 2011

छह साल से लिया है शब्दों से पंगा

baljeet-basi_thumb6_thumb... सफ़र के पाठक बलजीत बासी को सिर्फ़ एक साथी के तौर पर जानते हैं। बासी जी मूलतः पंजाबी के कोशकार हैं। पंजाब विश्वविद्यालय के अंतर्गत पंजाबी-अंग्रेजी कोश की एक बड़ी परियोजना से दो दशकों तक जुड़े रहे। ज़ाहिर है शब्द व्युत्पत्ति में उनकी गहन रुचि है।बाद में वह प्रोजेक्ट पूरा हो जाने पर वे अमेरिका के मिशिगन स्टेट में जा बसे। अब कभी कभार ही इधर आना होता है। वहाँ भी वे अपना शौक बरक़रार रखे हैं। अमेरिका में खासी तादाद में पंजाबीभाषी बसे हैं और इसीलिए वहाँ कई अख़बार, मैग़ज़ीन आदि इस भाषा में निकलते हैं। इनमें से एक है शिकागो, न्यूयॉर्क और सैनफ्रान्सिस्को से प्रकाशित होने वाला साप्ताहिक पंजाब टाइम्स, जिसमें वे नियमित स्तम्भ लिखते हैं। बासी जी ने इसके ताज़ा अंक में सफ़र के पुस्तकाकार आने के संदर्भ में एक परिचयात्मक आलेख लिखा है जिसका गुरुमुखी से देवनागरी में किया मशीनी अनुवाद खुद उन्होंने हमें भेजा है। उन्होंने ताक़ीद किया है कि इसमें से हम जो चाहें काट सकते हैं, सिवाय उन अल्फ़ाज़ के जो उन्होंने हमारी तारीफ़ में कहे हैं। हम पूरा आलेख दो किस्तों में छाप रहे हैं। आप समझ ही गए होंगे क्यों। अब सेल्फ प्रमोशन और मार्केटिंग का ज़माना है, सो हम भी पूरी बेशर्मी से अपने ही ब्लॉग पर मियाँ मिट्ठू बनने की हिमाक़त दिखा रहे हैं। पिछली कड़ी आपने पढ़ी-अमेरिकी पंजाबी पत्रिका में शब्दों का सफ़र अब अगली कड़ी पेशे ख़िदमत है।

शब्दों का मुसाफ़िर-2/बलजीत बासी
जीव-विकास सिद्धांत के अनुसार आदिकाल में सारी मानवजाति की एक ही भाषा होनी चाहिए। निरुक्त विषय ही ऐसा है, इसका साधक एक समय-स्थान पर स्थिर हो गया, समझो गया। वडनेरकर जाति का ब्राह्मण है और उसका मानना है कि ब्राह्मणों का असली काम ज्ञान ढूँढना और आम लोगों में बाँटना है। वह रात एक बजे ड्यूटी से फ़ारिग होते सीधे घर पहुंचता है जहाँ मेज़ पर खुले दो दरजन कोश और ढेर सारी और पुस्तकें उसका इन्तज़ार रही होती हैं। वह पाँच बजे तक लिखता है और फिर सफ़र की ताज़ा कड़ी ब्लॉग के हवाले करता है। फिर दस-ग्यारह बजे उठकर पोस्टिंग की कमियाँ दूर करता है। बस, इस के बाद घंटा डेढ़ घंटा और सो कर परिवार के साथ खाना खाता और फिर दफ़्तर दौड़ जाता है। टुकड़ों में बँटी नींद कभी पूरी नहीं होती। 'शहर सूता, ब्रह्म जागे' वाली नाथों-जोगियों वाली कहावत उस पर लागू होती है।
डनेरकर ने शब्दों का यह पंगा कोई छह साल से लिया हुआ है जब से दैनिक भास्कर में उस का यह कालम लगातार छप रहा है। उस का कहना है-
" शौक तो पच्चीस साल पुराना है। अपने करम ही हमें मारते हैं, उन्हें ही भुगतना है। बस, गलत नहीं कर रहा, ये सुकून है। जो लिया-सीखा, उसे सबको लौटाना भी चाहिए, इसीलिए इतनी मेहनत। बदले माहौल में पहाड़ पर जाकर सन्यासी तो बन नहीं सकता। धन-सपत्ति है नहीं जो उसके जरिये लोगों का भला कर सकेूं। जन्म से ब्राह्मण, कर्म से ब्राह्मण....यही कर सकता हूँ"
ब्दों को ही परनाये इस शख्स ने दोस्तों-मित्रों को मिलने-जुलने और ज़िंदगी के ओर झमेलों से एक तरह सन्यास लिया हुआ है। उस के इस जुनून बारे में किसी ने कटाक्ष किया था कि 26 नवंबर, 2008 को बम्बई में दहशतगर्दों के हमले दौरान जब सभी भारत में हाहाकार मच मच गई थी तब भी उसने मेज़ से उठकर अपना चिट्ठा लिखना न छोड़ा। वह त्रिकाल और समूचे ब्रह्माण्ड के दर्शन शब्दों से ही कर लेता है। अपनी भाषा के प्रति इतनी लगन और प्रतिबद्धता कम ही देखने को मिलती है। शब्द-निरुक्ति का ऐसा शैदायी मुझे अपने पूर्व सहकर्मी जी.एस. रयाल में देखने को मिला था, जिसने इस काम में मेरी भी रुचि जगाई थी। रयाल साहब का अधिक ज्ञान कोशों तक ही सीमित थी जब कि वडनेरकर ने इसको मौलिक अध्ययन के साथ समृद्ध बनाया है। कई बार तो इस तरह लगता है कि एक ही शब्द को गहराई में समझने के लिए उसे कई किताबें और संदर्भ टटोलने पड़े होंगे।
पंजाब के शहर कसूर के नाम बारे प्रचलित धारणा है कि यह राम के बेटे कुछ से बना है। punjab timesपरन्तु वडनेरकर की दलील है कि इसका शुरू अरबी का धातू कस्र है, जिस का मतलब काटना, छिलना तराशना होता है, इसी से विकसित ढिंढोरे अर्थ खुंटे बनाने की तरफ चले गया है। यह बात मानने योग्यहै, कसूर में 12 बड़े गढ़ हैं जो यहाँ के शासकों ने अफगान हमलों से रोकनो के लिए बनाऐ। इतिहास में और भी कई कसूर आते हैं। सिक्खों को यह जानके अचंभा होगा कि जिस कारसेवा को वह अपने धर्म की विशेषता समझते हैं, वह करसेवा के रूप में महाराष्ट्र के मन्दिरों में पुराने समय से चल रही है। कारसेवा से भाव कारजसेवा या सरोवर में से कअर (अरबी शब्द, भाव कीचड़) निकालने की सेवा नहीं जैसा कि कोशकर्ता बताते हैं, बल्कि हाथों (कर = हाथ) की सेवा है। शब्दों के अतीत से यह बात भली भाँति दृढ़ हो जाती है कि शब्द सही मायनों में मानव जाति की एकता उजागर करते हैं। इन की पेशकदमी के आगे देश, धर्म, भाषा की हदे रुकावट नहीं। वडनेरकर के चिट्ठों में असंख्य मिसालें मौजूद हैं जो शब्दों की यायावरी सिफ़त और उनकी गहराई बताती हैं। मुझे यह लिखने में कोई हिचकिचाहट नहीं कि मैं अपने लेखों में उस की लिखतें से भी सहायता लेता हूँ।
ह लेख लिखने का संयोग इस लिए बना क्योंकि पढ़ने वालों की सुविधा के लिए वडनेरकर ने बहुत से आलेखों को संकलित करके पुस्तक रूप में प्रकाशित कर दिया है। उस की यह प्राप्ति सिर्फ़ हिंदी के लिए ही लाभपरक नहीं बल्कि भारत की सभी हिंद-आर्यायी भाषायों के लिए है क्योंकि प्रत्येक की प्राथमिक शब्दावली एक है। वैसे भी उसके लेखों में जगह जगह पर कई ठुक्कदार, आम पंजाबी शब्दों की भी व्याख्या मिलती है। भारत में अंग्रेज़ विद्वान मोनियर विलियमज़ ने संस्कृत शब्दों का एक विस्तृत निरुक्त तैयार किया था परन्तु हमारे किसी देसी विद्वान ने इस तरफ़ ध्यान कम ही ध्यान दिया है। पंजाबी में तो बहुत ही मामूली काम हुआ है। वडनेरकर के इस ग्रंथ में कोई 1500 शब्दों की निरुक्ति उपलब्ध हैं। उस की योजना दस खण्डों में दस हज़ार शब्दों की व्युत्पत्ति और विवेचना की है जिस के लिए दो खंड अभी तैयार पड़े हैं। राजकमल प्रकाशन द्वारा प्रकाशित इस पुस्तक की कीमत 600 रुपए होने के बावजूद विमोचन समारोह के दौरान रखी सभी किताबें हाथों-हाथ बिक गईं।

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7 कमेंट्स:

Asha Lata Saxena said...

नव वर्ष शुभ और मंगलमय हो आपको सपरिवार |
आशा

Khushdeep Sehgal said...

सुदूर खूबसूरत लालिमा ने आकाशगंगा को ढक लिया है,
यह हमारी आकाशगंगा है,
सारे सितारे हैरत से पूछ रहे हैं,
कहां से आ रही है आखिर यह खूबसूरत रोशनी,
आकाशगंगा में हर कोई पूछ रहा है,
किसने बिखरी ये रोशनी, कौन है वह,
मेरे मित्रो, मैं जानता हूं उसे,
आकाशगंगा के मेरे मित्रो, मैं सूर्य हूं,
मेरी परिधि में आठ ग्रह लगा रहे हैं चक्कर,
उनमें से एक है पृथ्वी,
जिसमें रहते हैं छह अरब मनुष्य सैकड़ों देशों में,
इन्हीं में एक है महान सभ्यता,
भारत 2020 की ओर बढ़ते हुए,
मना रहा है एक महान राष्ट्र के उदय का उत्सव,
भारत से आकाशगंगा तक पहुंच रहा है रोशनी का उत्सव,
एक ऐसा राष्ट्र, जिसमें नहीं होगा प्रदूषण,
नहीं होगी गरीबी, होगा समृद्धि का विस्तार,
शांति होगी, नहीं होगा युद्ध का कोई भय,
यही वह जगह है, जहां बरसेंगी खुशियां...
-डॉ एपीजे अब्दुल कलाम

नववर्ष आपको बहुत बहुत शुभ हो...

जय हिंद...

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } said...

नया साल आपको मुबारक हो .

वन्दना अवस्थी दुबे said...

नये वर्ष की असीम-अनन्त शुभकामनाएं. इस उम्मीद के साथ, कि शब्दों का ये सफ़र साल दर साल आगे बढता रहेगा.

shyam gupta said...

----१ सन्स्क्रत के यास्काचार्य द्वारा रचित निरुक्त, जिस के कारण ही निरुक्त कोन निरुक्त कहा गया..
----२-आचार्य किशोरी दास बाजपयी द्वारा रचित ’हिन्दी निरुक्त’
..........क्या ये दोनों निरुक्तों का किसी को ध्यान नहीं है...

प्रवीण पाण्डेय said...

25 वर्षों का शब्द-मंथन, निष्कर्ष यह पुस्तक।

राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर said...

नववर्ष की शुभकामनायें
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सपने जो अधूरे रहे,
पूरे हों वो नववर्ष में.
सुख, समृद्धि, सफलता मिले,
जीवन गुजरे उमंग, हर्ष में.

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जय हिन्द, जय बुन्देलखण्ड

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