tag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post1363919091201878849..comments2024-01-18T18:37:01.064+05:30Comments on शब्दों का सफर: ज़र्रा ए नाचीज़ का ‘कुछ तो भी’ बयान...अजित वडनेरकरhttp://www.blogger.com/profile/11364804684091635102noreply@blogger.comBlogger8125tag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-64081735809257761402010-05-28T18:39:52.973+05:302010-05-28T18:39:52.973+05:30गुरबानी में 'किंचित' और 'किछु' दोन...गुरबानी में 'किंचित' और 'किछु' दोनों रूप सुरक्षत हैं:<br />खिनु किंचित क्रिपा करी जगदीसरि तब हरि हरि हरि जसु धिआइओ.-राम दास <br /><br /> जब लगु दुनीआ रहीऐ नानक किछु सुणीऐ किछु कहीऐ - नानक <br />(जब तक इस दुनिया में रहना है हमें दूसरों से संवाद रखना चाहिए )<br />गुरु नानक की यह बात आज के ज़माने में कितनी उपयुक्त है.<br /><br /><br /><br />॥Baljit Basihttps://www.blogger.com/profile/11378291148982269202noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-76407383280104333152010-05-28T13:55:22.151+05:302010-05-28T13:55:22.151+05:30अजित भाई
आपकी वो पोस्ट मैने देखी मुझे हैरत भी यही...अजित भाई <br />आपकी वो पोस्ट मैने देखी मुझे हैरत भी यही है कि 'अरबिक ज़र्रा' स्त्री को तुच्छ कहता है और 'संस्कृत जरा' भी निर्बल / अशक्त के लिये प्रयुक्त है उसपर तुर्रा ये कि रक्ष कुल की स्त्री के लिये ! कहने का आशय ये कि भाषायें / काल / स्थान ( और उच्चारण भी किंचित ) भले ही भिन्न हों पर दोनों शब्द स्त्रियों के प्रति एक ही भाव रखते हैं :)उम्मतेंhttps://www.blogger.com/profile/11664798385096309812noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-70803755323766358912010-05-28T12:43:19.903+05:302010-05-28T12:43:19.903+05:30@अली, वाणीगीत
बहुत शुक्रिया। आप जिस 'जरा' ...@अली, वाणीगीत<br />बहुत शुक्रिया। आप जिस 'जरा' का उल्लेख कर रहे हैं वह संस्कृत का है। इस पर अलग से पोस्ट लिखी जा चुकी है। कृपया देखें- <a href="http://shabdavali.blogspot.com/2009/01/1_18.html" rel="nofollow">गधे पंजीरी खा रहे हैं...</a>अजित वडनेरकरhttps://www.blogger.com/profile/11364804684091635102noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-58543177558841197182010-05-28T11:07:11.335+05:302010-05-28T11:07:11.335+05:30@अजित भाई
सुन्दर प्रविष्टि ...ये तो ज़र्रा ही है...@अजित भाई <br />सुन्दर प्रविष्टि ...ये तो ज़र्रा ही है जो अपनी दम पे , विनम्रता / लघुता और ईश्वरत्व ( ... अरबी पुरुषों के अहंकार को भी ) को अभिव्यक्त करने की ताब रखता है ! ज़र्रे के बिना अखिल ब्रम्हाण्ड की कल्पना भी दूभर है :)<br />अजित भाई ना जाने क्यों जरासंघ को जोड्नें वाली राक्षसी का ख्याल आ रहा है हालांकि ज़र्रा और जरा ( अरबिक मूल के शब्द और महाभारत कालीन शब्द / नाम ) का अंतर स्पष्ट है फिर भी एक तो ध्वनि साम्य और दूसरा राक्षस कुलीन स्त्री को हीन / तुच्छ मानकर किया गया नामकरण क्या अरबी पुरुष की द्विभार्या सम्बोधन / मानसिकता से समानता का संकेत नही करता ? क्या जर्जर / जर्जरा शब्द भी इससे कोई सम्बन्ध रखता है ?<br /><br />@ मंसूर अली साहब <br />आपकी ज़रा ज़रा सी दोनों टिप्पणियां पसन्द आई !उम्मतेंhttps://www.blogger.com/profile/11664798385096309812noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-44178992416698353112010-05-28T09:32:55.436+05:302010-05-28T09:32:55.436+05:30ज़रा पर दो शेर हाज़िर है, ज़र्रे की तलाश जारी है:-...ज़रा पर दो शेर हाज़िर है, ज़र्रे की तलाश जारी है:-<br /><br /># इक ज़रा ज़ौके तजस्सुस में बढ़ाया था क़दम,<br /> निकहते गुल* को फिर आगोशे गुलिस्ताँ न मिला.<br /> [*फूल की खूशबू]<br /><br />-रविश सिद्दीकी.<br /><br /># ज़रा सी देर में वो जाने क्या से क्या कर दे ,<br /> किसे चिराग़ बना दे किसे हवा कर दे .<br /><br />-तारा बानो लखनवी.Mansoor ali Hashmihttps://www.blogger.com/profile/09018351936262646974noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-77864030501212864712010-05-28T07:26:31.789+05:302010-05-28T07:26:31.789+05:30जरा ...रोग भी कहलाता है ...!!(??)जरा ...रोग भी कहलाता है ...!!(??)वाणी गीतhttps://www.blogger.com/profile/01846470925557893834noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-49428203261613388012010-05-28T07:18:16.534+05:302010-05-28T07:18:16.534+05:30जरा सी टिप्पणी कर देता हूँ...:)जरा सी टिप्पणी कर देता हूँ...:)Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-19341820036830591912010-05-28T02:33:08.995+05:302010-05-28T02:33:08.995+05:30पंजाबी में कुछ के लिए कुछ तो है ही, कुश, कुस, और ...पंजाबी में कुछ के लिए कुछ तो है ही, कुश, कुस, और कुझ भी है. लेकिन यह 'कुछ' और संकुचत होकर केवल 'कु' भी रह गया है आम तौर पर बोला जाता है 'ज़रा कु' अर्थात थोडा सा यह हिंदी 'सा' या 'सी' का अर्थ देता है. 'सा' या 'सी' का भी बताना कैसे बने होंगे.Baljit Basihttps://www.blogger.com/profile/11378291148982269202noreply@blogger.com