tag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post253350442628533517..comments2024-01-18T18:37:01.064+05:30Comments on शब्दों का सफर: चारागर का चालचलन [हकीम-2]अजित वडनेरकरhttp://www.blogger.com/profile/11364804684091635102noreply@blogger.comBlogger15125tag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-38461426518922886842009-10-08T01:53:25.792+05:302009-10-08T01:53:25.792+05:30मन्दमति 'चारागर' पर से भैंसवार की माफिक सा...मन्दमति 'चारागर' पर से भैंसवार की माफिक सामने देखते ही गुजर गया था। शुरुआत में ही नहीं देखा, अरे सामने ही तो था - चारागर माने हकीम।गिरिजेश रावhttp://girijeshrao.wordpress.com/noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-24847354590996542682009-10-08T01:51:37.221+05:302009-10-08T01:51:37.221+05:30क्या कह रहे हैं गिरिजेश भाई,
चारागर से ही तो शुरू...क्या कह रहे हैं गिरिजेश भाई, <br />चारागर से ही तो शुरू हुई है ये पोस्ट। ......अर्थात जो महानुभाव चारा यानि निदान प्रदान करें वे चारागर हैं। इसीलिए इलाज के अर्थ में चारागरी प्रचलित हुआ... <br />इन पंक्तियों पर से आप शायद सरपट गुजर गए। <br />आपका जो सुझाव है, उसके बारे में मैं खुद कई बार सोचता हूं। कई फुटकर विषय होते हैं जिनपर विचार आते हैं। मगर शब्दों का सफर दरअसल एक मुहिम जैसा है। मैं दस हजार आम बोलचाल के हिन्दी शब्दों के कोश पर काम कर रहा हूं। अगर इससे भटक गया तो इस काम में वक्त लग जाएगा। फिलहाल एक सूत्री कार्यक्रम की तरह इसी में जुटे रहना चाहता हूं। यूं भी कई नावों की सवारी मैं नहीं कर सकता। <br />स्नेह बनाए रखें।अजित वडनेरकरhttps://www.blogger.com/profile/11364804684091635102noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-55861695856262548632009-10-08T00:50:41.124+05:302009-10-08T00:50:41.124+05:30चारा का भी नया मतलब पता चला !चारा का भी नया मतलब पता चला !Abhishek Ojhahttps://www.blogger.com/profile/12513762898738044716noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-25594439115538064102009-10-07T21:46:22.139+05:302009-10-07T21:46:22.139+05:30माठा में से 'रहिए' गायब !
अरे, चारागर का अ...माठा में से 'रहिए' गायब !<br />अरे, चारागर का अर्थ तो बता देते !!<br />..शब्द तो बहुत हो गए अब वाक्यों की ओर भी दृष्टि डालें। ब्लॉगजगत को आप विविध लेखन से भी समृद्ध कर सकते हैं। सप्ताह में एक दिन ही सही या हर पूर्णमासी - कुछ ललित लिखिए न।गिरिजेश राव, Girijesh Raohttps://www.blogger.com/profile/16654262548719423445noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-73625547570280519522009-10-07T21:28:02.624+05:302009-10-07T21:28:02.624+05:30charan sparsh का कोई sambandh kahiin chaturvarn vy...charan sparsh का कोई sambandh kahiin chaturvarn vyavastha से तो nahii है?<br />charan से shoodra janme...isliye pair हुआ sharii का shoodra..और samman के लिए hamane आपके charan choye..yaani sabase ''adham'' chiiz..<br />मुझे kisii ने bataayaa ही था और usake बाद से choonaa chulana दोनों बंद....( bhashaa का यह रूप aapake bakse की kirpa से)Ashok Kumar pandeyhttps://www.blogger.com/profile/12221654927695297650noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-42057051273971709712009-10-07T19:04:01.495+05:302009-10-07T19:04:01.495+05:30ajit bhai
main apki post mein dekhta hun ki kisi s...ajit bhai<br />main apki post mein dekhta hun ki kisi shabda ke kisi auchuye pahalu ko khojun par mujhe nirasha hath lagti hai.<br />rakesh narayan dwivedishabdarnavhttps://www.blogger.com/profile/08656176969723504440noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-14972486678507931742009-10-07T13:39:08.701+05:302009-10-07T13:39:08.701+05:30@ईस्वामी
स्वामीजी, जब ईश्वर का आविष्कार हो चुका थ...@ईस्वामी<br />स्वामीजी, जब ईश्वर का आविष्कार हो चुका था। महिमामंडन भी हो चुका था, क्या उस वक्त पैर छूने की परम्परा शुरू हुई? याद रखें जिस इतिहास की आप बात कर रहे हैं उस दौर में मानव ने हर नजर से तरक्की हासिल कर ली थी जबकि शब्दों का सफर मानव की विकास यात्रा के साथ चलता है। समाज की सोच के साथ शब्दों का बर्ताव बदलता है औऱ वह नए रूप में ढलता है।<br /> <br />ईश्वर तो कहीं चलते-फिरते नहीं, फिर उनके पैरों की धुलाई क्यों होती है? पैर सिर्फ इसलिए धोए जाते हैं क्योंकि उन पर धुलिकण लग जाते हैं।<br />मनुष्य ने ईश्वर को खुद से अलग भी माना मगर उसे हमेशा मानवीकृत संस्कारो में ढाला। आस्था, श्रद्धा के आईने में देखें तब चरणामृत का अर्थ कुछ निकलता है वर्ना क्या सामान्य मनुष्य के पादप्रक्षालन वाला पानी क्या चरणामृत कहे जाने और पीने योग्य है? मनुष्य पानी से नहाता है और ईश्वर को हम दूध, घी से नहलाते हैं। साफ-सुथरे ईश्वर के शरीर पर लगा दूध-घी व्यर्थ क्यों जाए, सो चरणामृत बन गया। क्या कोई भी सामान्य व्यक्ति इन पदार्थों से नहाकर स्वस्थ रह सकता है? आस्था ही ईश्वर के साथ वही सारे संस्कार कराती है, सामान्य मनुष्य जिन्हें नित्य करता है मगर आडम्बर और तामझाम के साथ नहीं। <br /><br />विष्णु, अंगूठा, ऊर्जा ये सब बहुत बाद के दौर की बातें हैं। यूं आप भी धारणा शब्द का प्रयोग कर रहे हैं। मैने भी विवेचना का प्रयास ही किया है।अजित वडनेरकरhttps://www.blogger.com/profile/11364804684091635102noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-30110106663258904592009-10-07T12:33:07.417+05:302009-10-07T12:33:07.417+05:30घुमक्कड़ी वही नही है जो बाहर होती है। एक यात्रा मन...घुमक्कड़ी वही नही है जो बाहर होती है। एक यात्रा मन की होती है जिसे चिंतन कहते हैं। चिंतन-मनन के दौरान ही विचार उत्पन्न होते है <br />चारागर का सफर तो ज्ञानवर्धक है ही |कितु मुझे इन पंक्तियों ने आकर्षित किया |<br />आभारशोभना चौरेhttps://www.blogger.com/profile/03043712108344046108noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-37603833679326811672009-10-07T11:40:34.855+05:302009-10-07T11:40:34.855+05:30आज वाली पोस्ट के कुछ हिस्से हजम नही हुए.
चरणस्पर...आज वाली पोस्ट के कुछ हिस्से हजम नही हुए.<br /> <br />चरणस्पर्श करने का कारण जो मुझे पता है वो यह धारणा की आध्यात्मिक ऊर्जा पैर के अंगूठों से बहती/निकलती है अत: उन्हे छूने वाला स्वयं पर आध्यात्मिक शक्तिपात/आशीर्वाद दिये जाने की प्रार्थना कर रहा होता है. इसका ज्ञान से अधिक आशीर्वाद पाने से संबंध है. <br /><br />भगवान विष्णू के पैरों की पूजा भी इसी लिये की जाती है की वे मूल रचनाकार हैं, जिनकी इच्छा से सब जन्मा, अत: आध्यात्मिक ऊर्जा के स्त्रोत हैं.eSwamihttps://www.blogger.com/profile/04980783743177314217noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-29830333170193410692009-10-07T11:19:28.332+05:302009-10-07T11:19:28.332+05:30एक' चारागर' की तलाश थी...मिल गया...एक' चारागर' की तलाश थी...मिल गया...kshamahttps://www.blogger.com/profile/14115656986166219821noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-40590296001654577672009-10-07T10:09:29.455+05:302009-10-07T10:09:29.455+05:30तँत्रोक्त मँत्रों में भी बीज रूप से ’ च ’ को सतत स...<i><br />तँत्रोक्त मँत्रों में भी बीज रूप से ’ च ’ को सतत स्फुरण एवँ परिचालन के सँदर्भ में प्रयोग किया गया है ।<br />आपका आलेख रोमाँचित कर देता है । <br /></i>डा० अमर कुमारhttps://www.blogger.com/profile/09556018337158653778noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-11882964461101638482009-10-07T09:21:32.257+05:302009-10-07T09:21:32.257+05:30वडनेकर जी!
हन भी तो चारागर की ही तलाश में थे।
अहोभ...वडनेकर जी!<br />हन भी तो चारागर की ही तलाश में थे।<br />अहोभाग्य कि आपने ये इस तलाश को खंगाल दिया।डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'https://www.blogger.com/profile/09313147050002054907noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-83162636632381094012009-10-07T08:29:37.744+05:302009-10-07T08:29:37.744+05:30महत्वपूर्ण कड़ी है यह। विचार का चारा पसंद आया। बेच...महत्वपूर्ण कड़ी है यह। विचार का चारा पसंद आया। बेचारा बुद्धिजीवी!दिनेशराय द्विवेदीhttps://www.blogger.com/profile/00350808140545937113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-69204444365132677202009-10-07T08:07:47.959+05:302009-10-07T08:07:47.959+05:30इसका मतलब हम सबके अनुचर हो रहे हैं ब्लोग्गिंग में....इसका मतलब हम सबके अनुचर हो रहे हैं ब्लोग्गिंग में...ये बढिया है अजित जी फ़ौलोवर से तो ..शब्द संपदा हमारी भी बढ रही है आपको पढ पढ के..अजय कुमार झाhttps://www.blogger.com/profile/16451273945870935357noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-28988286886041832052009-10-07T07:03:43.093+05:302009-10-07T07:03:43.093+05:30फालोवर की जगह टहलुआ कहा जाए तो कैसा लगेगा . आप हिं...फालोवर की जगह टहलुआ कहा जाए तो कैसा लगेगा . आप हिंदी के परिचर हो और हम आपके अनुचरdhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह }https://www.blogger.com/profile/06395171177281547201noreply@blogger.com