tag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post256914415767348100..comments2024-01-18T18:37:01.064+05:30Comments on शब्दों का सफर: ज़रूरी है नापजोख और मापतौल...अजित वडनेरकरhttp://www.blogger.com/profile/11364804684091635102noreply@blogger.comBlogger18125tag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-60828850559935604772008-08-24T07:03:00.000+05:302008-08-24T07:03:00.000+05:30मेरी नज़र में संस्कृत शब्द ही अपमे आप में म से न मे...मेरी नज़र में <B>संस्कृत</B> शब्द ही अपमे आप में म से न में बदलने का एक आम उदाहरण है. संस्कार, संस्कृति आदि अनेक ऐसे उदाहरण मौजूद हैं हिन्दी में.: <B>samskrt -> sanskrt</B>Smart Indianhttps://www.blogger.com/profile/11400222466406727149noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-70285284678402486332008-08-23T12:18:00.000+05:302008-08-23T12:18:00.000+05:30कात्यायनजी,हमेशा की तरह हमारी सोच, व्याख्या और जान...कात्यायनजी,<BR/>हमेशा की तरह हमारी सोच, व्याख्या और जानकारी को और समृद्ध करती आपकी टिप्पणी की प्रतीक्षा कर ही रहा था। <BR/>-मैं ज्ञा में समाहित परीक्षण जैसे भावों समेत जानने, समझने की सम्यक प्रक्रिया को मैं पैमाइश से जोड़ कर देख रहा हूं और इसी लिए यही व्युत्पत्ति मुझे तार्किक लग रही है, समझ में आने वाली भी। माप से नाप अर्थ साम्य की दृष्टि से भी समझने में आसान है मगर म के न में बदलने की वजह ? भाषा के मामले में भी जीभ ने कठिन से सरल रास्ता अपनाया मगर माप में तो कुछ क्लिष्टता नहीं है सो जीभ ने उसे नाप क्यों बनाया ? वह भी आदि अक्षर में ही बदलाव ?<BR/>-प्रतिमा शब्द में सादृश्यता तो उसी से तौली जाएगी जिसके सादृश्य उसे बनाया गया है। <BR/><BR/>शब्दों के सफर में आप जैसे प्रबुद्ध, भाषा-संस्कृति के जानकारों को हमराही के रूप में पाकर हमें बहत खुशी है। यूं ही बने रहिये, साझा करते चलिये। हम सब लाभान्वित होगें। यकीन मानिये, मैं स्वयं को विद्वानों की पांत में नहीं रखता । सचमुच, कच्चेपन को भरने-पूरने में ही जीवन बीत जाएगा।अजित वडनेरकरhttps://www.blogger.com/profile/11364804684091635102noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-25473054766605680042008-08-23T08:38:00.000+05:302008-08-23T08:38:00.000+05:30शब्द-काल के साथ यात्रा करते हुए अपनें अर्थ बदलते ह...शब्द-काल के साथ यात्रा करते हुए अपनें अर्थ बदलते हैं,यह रुपान्तारण कभी सार्थक होता है तो कभी-कभी अनर्थकारी भी। जहाँ तक माप या नाप शब्द का समबन्ध है, माप शब्द जहाँ " माङ् " धातु से उत्पन्न है वहीं नाप,माप का भ्रष्ट रुपान्तरित हुआ रुढ़ शब्द है। वेद एवं वैदिक दर्शन में-प्रमा(जिसे मापा जाये),प्रमाण(जिससे मापा जाए),प्रमाता(जो मापे) और प्रमिति( मापनें का ज्ञान), यह चार शब्द मिलते हैं। इन सभी शब्दों में ’प्र’ उपसर्ग है जिसका अर्थ होता है प्रकृष्ट या जो पहले से है,जैसे प्र+कृति=प्रकृति-अर्थात पहले से जो था अर्थात ब्रह्म,उसकी कृति है यह प्रकृति अर्थात जगत। सांख्य में इसे पुरुष और प्रकृति कहते हैं। ‘ज्ञ’ से माप का अर्थ कुछ खींच तान भरा लगता है। ज्ञापक अर्थ में,ज्ञापनएवं विज्ञापन शब्द में जो पन है वह प्रकाशन के,ज्योतित,द्योतित,निवेदित,विवेचित करनें के अर्थ मे है न कि मापन या नापन के। जोख का अर्थ पैमाइश या तौल नहीं हो सकता क्योंकि आप स्वयं बता रहे हैं कि जुष् का अर्थ चिंतन,मनन,परीक्षण आदि। आप दर्जी को पैन्ट बनानें के लिए कपड़ा देते हैं और कहते हैं कि भाई ठीक से माप ले लो,कपड़ा महँगा है खराब न कर देना अर्थात ठीक से माप लो और सोंच समझ कर काटना जिससे फिटिंग सही बैठे और कपड़ा व्यर्थ न जाये। प्रतिमा शब्द की व्याख्या में एक अन्य शब्द मूर्ति का भी सादृश्य दिखाया गया है।शिव की प्रतिमा, राम की प्रतिमा या कृष्ण की प्रतिमा (प्रति+मा) में सादृश्य कहाँ? प्रति तो उपसर्ग हुआ किन्तु मा का क्या अर्थ हुआ? प्रति+मूर्ति=प्रतिमूर्ति में तो फिर भी सादृश्य है। यज्ञ के ज्ञ में वस्तुतः ज़+ञ की ही सन्धि हुयी हुई है एवं इसका उच्चारण ज्याँ की भांति ही होगा।यही शुद्ध भी है। यह आर्य समाज की शुद्धतावसात् नहीं वरन् ऋगवेद की माध्यन्दिन शाखा की ऋषिगम्य परम्परा है। वास्तव में यज्ञ का अर्थ होता यज़न करना अर्थात टु क्रिऎट। पुरुष सूक्त की ऋचा है ‘यज्ञेन यज्ञम् यजन्त देवास्तानि धर्माणि प्रथमान्यासन्’-देवताओं नें यत्न से यत्नपूर्वक यज्ञ किया जिससे सबसे पहले धर्म(शाश्वत नियम) प्रकट हुआ। दो अथवा दो से अधिक यज्ञों के द्वारा जो यज्ञ पदार्थ बनता है वह वैदिक विज्ञान में विराट कहा जाता है,इसे ही सूक्ष्म ब्रह्माण्ड भी कहा गया है,यह सूक्ष्म विराट आधुनिक विज्ञान की भाषा में ‘माइक्रोकाँस्म’ कहा जा सकता है। ऎसे अनेकानेक यज्ञों की बृहद् से बृहद्तर होती क्रम-क्रमशःश्रंखला की यह यज्ञ प्रक्रिया जब अपनें चरम पर पहुँच कर पर्यवसित होती है तो यही अन्तिम सीमा ‘ईश्वर’ के नाम से संज्ञायित होती है और वैदिकी में वह महाविराट और आधुनिक विज्ञान की भाषा में मैक्रोकाँस्म’ कहा जाएगा। यजुषं-के जुषं और ग (ग+या+न) के गम् धातु दोनों में गत्यात्मकता है,अतः ज्ञान (ज़+ञ) की ऊहापोह में जहाँ मानसिक गत्यात्मकता है वहीं यज्ञं (य+ज+ञ+ँ) में भूत भौतिक गत्यात्मकता तो प्रत्यक्ष ही है। स्वामी का साईं होना समुचित प्रतीत नहीं होता हाँ स्वामिन का साईं हुआ हो सकता है। संयुक्त,संरक्षण,संशय में यदि ध्यान दें तो यह स्पष्ट है कि यहाँ (सम) म का उच्चारण मूर्धन्य है न कि दन्तव्य।यहाँ सम शब्द का प्रयोग सम्यक के अर्थ में है। एक अन्य शब्द है संभ्रान्त अब यदि अर्थ करेंगे-सम+भ्रान्त=सम्यक रुपेण भ्रान्तः इति सम्भ्रान्तः। उक्त सभी शब्दों में सम्यक (बैलेन्सड्) अर्थ ही बनता है। कुछ भी हो उक्त उदाहरणों से म का न में परिवर्तित होना सम्यक प्रतीत नहीं होता। क्षमा करें,विद्वानों के मध्य कतिपय अनाधिकार चेष्टा कर रहा हूँ।Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-83702751053487530482008-08-22T19:51:00.000+05:302008-08-22T19:51:00.000+05:30अजित भाई,प्लैट्स जी के कोश के बारे में आप विस्तार ...अजित भाई,<BR/><BR/>प्लैट्स जी के कोश के बारे में आप विस्तार से लिखें.. हो सके तो मैं भी हासिल करता हूँ.. और रसाल जी का कोश मैं आप को लिए जुगाड़ने का प्रयत्न करता हूँ.. <BR/>अगर आप को महाराष्ट्र का नहीं मानूँगा तो लोग मुझे यू पी का नहीं मानेंगे जब कि अभी मैं अपनी जड़े वहाँ तक देखता हूँ.. जो जहाँ रहे सिर्फ़ वहीं का हो कर रहे और पीछे का सांस्कृतिक इतिहास मिटा दे.. ये तो फिर राज ठाकरे के चिन्तन को समर्थन में खड़े हो जाना हो जाएगा.. इसलिए वो बात सिर्फ़ जडो के सन्दर्भ में थी.. नहीं तो भौतिक अर्थ में तो सचमुच महाराष्ट्र आप से अधिक माझा आहे.. <BR/>म और न की ध्वनियों के बारे में मैंने शायद कुछ अधिक ही कैज़ुअल तरीक़े से लिख दिया.. और आप जानते हैं कि मैं आप की तरह भाषा में डूबा हुआ भी नहीं हूँ.. आप के समर्पण और लगन के लिए मेरे पास ढेर सारी प्रशंसा है और काफ़ी सारी ईर्ष्या भी..। <BR/>म के न में बदलने के कुछ सहज उदाहरण स्वामी के साईं में(स्वामी-सामी-साईं.. आखिर में न की ध्वनि है).. संयुक्त( सम+ युक्त) के सन्युक्त में.. संरक्षण (सम+रक्षण) के सनरक्षण में.. संशय (सम+शय) के सन्शय में मिलते हैं.. और ठोस उदाहरण न तो कोई रसाल जी देते हैं न ही किसी दूसरे स्रोत के सरसरी दर्शन पर मैं पा सका.. बाकी आगे कुछ मिलेगा तो निश्चित आप से चर्चा करूँगा.. <BR/>आप को कई कच्ची चुनौतियाँ देना मैं ऊपरी वाहवाही करने से बेहतर मानता हूँ.. ऐसी मेरी सोच है.. अपने चिट्ठे पर भी मुझे ऐसी ही प्रतिक्रिया अच्छी लगती हैं जो वास्तव में प्रति+क्रिया हों.. <BR/><BR/>आपका ही <BR/><BR/>अभय तिवारीअभय तिवारीhttps://www.blogger.com/profile/05954884020242766837noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-2033219582041277142008-08-22T05:31:00.000+05:302008-08-22T05:31:00.000+05:30बहुत खूब जानकारी मिल रही है - जारी रखें.आपकी दोनों...बहुत खूब जानकारी मिल रही है - जारी रखें.<BR/>आपकी दोनों ही व्युत्पत्तियाँ सटीक हैं:<BR/>१. क्ष से ख तो हिन्दी में हर तरफ़ हुआ है विशेषकर उत्तर प्रदेश के ग्रामीण अंचल में. गन्ने को ईख और पल को खन कहना इसके दो बहुत आम उदाहरण हैं. <BR/>२. ज्ञाप में ध्वनिलोप के बाद नाप का बचना समझ में आता है चाहे ज् की ध्वनि किसी अंचल में ग् या द् भी हुई हो<BR/>३. मैं महाराष्ट्र के बिल्कुल देहाती इलाके में रहा हूँ और यह सही है कि वहाँ ज्ञ को द्+न्+य जैसा पुकारा जाता है. मैंने अपने ब्लॉग की दूसरी पोस्ट <A HREF="http://pittpat.blogspot.com/2008_06_01_archive.html" REL="nofollow"><STRONG>अ से ज्ञ तक</STRONG></A> में इसी विषय में लिखा था.Smart Indianhttps://www.blogger.com/profile/11400222466406727149noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-67104450315858624962008-08-21T23:24:00.000+05:302008-08-21T23:24:00.000+05:30@अभय भाई, आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए हमेशा की तरह म...@अभय भाई,<BR/> आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए हमेशा की तरह मेरे लिए बहुत उपयोगी है।<BR/>ज्ञ में ज और ञ का मेल है , सही है। इस ञ के उच्चारण में आपको हल्की सी भी अनुनासिकता का आभास होता है या नहीं ? आर्यसमाजी शुद्धता के चक्कर में ज्ञान का जो उच्चार करते हैं वह जांन सुऩाई पड़ता है। इसे आप यज्ञ के यजन या यज्न उच्चारण से भी समझ सकते हैं। महाराष्ट्र में इसे यद्न्य कहा जाएगा। मराठीभाषी न्यान नहीं द्न्यान उच्चारते हैं अर्थात द+न+य की मिश्रित ध्वनि। वे प्रज्ञा को प्रद्न्या उच्चारते हैं। ज्ञान से नाप की पैरवी नहीं कर रहा हूं बल्कि ज्ञापन वाले ज्ञाप् से ग् या ज , जो भी समझें , की ध्वनिलोप से जो न ध्वनि शेष बच रही है उससे नाप बनने को सही मान रहा हूं। मराठी में भी तो अनुनासिकता शेष है । मेरे गुरुवर और भाषा विज्ञान के विद्वान डॉ सुरेश वर्मा अक्सर कहते हैं कि व्युत्पत्ति में अंतिम कुछ नहीं होता। नयी व्युत्पत्ति सामने न आ जाए , तब तक पहले वाली को सही माना जाए। कई बार दो दो व्युत्पत्तियां भी सामने रहती हैं। अब प्लैट्स महोदय और रसाल जी दोनों को ही चुनौती देने की क्षमता मुझमें नहीं है। मुझे किसी एक के साथ तो जाना ही है।<BR/>वैसे रसालजी का कोश मेरे पास नहीं है। अर्से से उसे पाने का प्रयास कर रहा हूं। रसाल जी ने म ध्वनि के न में बदलने के कुछ उदाहरण दिए हों तो मुझे ज़रूर बताएं, समझने में और आसानी होगी।<BR/>हां, महाराष्ट्र मेरा नहीं , सबका है। अलबत्ता सूचनार्थ, मेरा महाराष्ट्र से कोई जीवंत संपर्क नहीं है और आयु के चालीसवें वर्ष में पहली बार महाराषट्र एक शूटिंग के लिए जाना हुआ।अजित वडनेरकरhttps://www.blogger.com/profile/11364804684091635102noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-32914113795556961322008-08-21T12:06:00.000+05:302008-08-21T12:06:00.000+05:30बढ़िया हैं दादा,मैंने यह दोनों शब्द पहली बार ही सु...बढ़िया हैं दादा,मैंने यह दोनों शब्द पहली बार ही सुने,अच्छा लगा नवीन शब्दों के बारे में जानकरRadhika Budhkarhttps://www.blogger.com/profile/11776018648214285308noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-84331729707304308822008-08-21T07:16:00.000+05:302008-08-21T07:16:00.000+05:30१)ज्ञ में ज और ञ का मेल है.. वह भ्रष्ट होकर ग्य पु...१)ज्ञ में ज और ञ का मेल है.. वह भ्रष्ट होकर ग्य पुकारा जाता है.. वो भी सब जगह नहीं.. आप के महाराष्ट्र में ग्यान को न्यान बोलते हैं.. इस ग्यान से नाप कैसे निकला होगा.. मैं चकित हूँ.. <BR/>२) व्यवहार में अक्सर म की ध्वनि न में बदलती है.. और न की म में.. मापन का नापन हो जाना एक सरल प्रक्रिया में सम्भव है.. और रसाल जी इसे ही सही मानते हैं..अभय तिवारीhttps://www.blogger.com/profile/05954884020242766837noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-80871733317453889142008-08-20T19:21:00.000+05:302008-08-20T19:21:00.000+05:30तो पैमाना शब्द भी यहीं से आया. और फिर अतुलनीय भी ज...तो पैमाना शब्द भी यहीं से आया. और फिर अतुलनीय भी जैसा आपका ब्लॉग है !Abhishek Ojhahttps://www.blogger.com/profile/12513762898738044716noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-77230467502721091902008-08-20T13:26:00.000+05:302008-08-20T13:26:00.000+05:30नाप तौल कर लिख गये......नाप तौल कर लिख गये......डॉ .अनुरागhttps://www.blogger.com/profile/02191025429540788272noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-84361050316444225772008-08-20T10:33:00.000+05:302008-08-20T10:33:00.000+05:30अजित जी,आपके पास शब्द संसार के नाप-जोख-माप-मान के ...अजित जी,<BR/>आपके पास शब्द संसार के <BR/>नाप-जोख-माप-मान के <BR/>गहन ज्ञान का<BR/>अनोखा ख़जाना है.<BR/>यहाँ आना यानी हर बार <BR/>बहुत कुछ पाना है.<BR/>=================<BR/>आभार <BR/>डा.चन्द्रकुमार जैनDr. Chandra Kumar Jainhttps://www.blogger.com/profile/02585134472703241090noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-89203776148873729952008-08-20T09:24:00.000+05:302008-08-20T09:24:00.000+05:30नपी तुली शब्दों की सुंदर पोस्ट ..आपके द्वारा मिले...नपी तुली शब्दों की सुंदर पोस्ट ..आपके द्वारा मिले इस ज्ञान से अब मैं हर शब्द को विस्तार से समझाने लगी हूँ ...:) शुक्रिया ..कभी कभी नाम जो रखे जाते हैं वो बहुत ही सुंदर और अनेक अर्थ देते हैं जैसे लावण्या , बेजी .उस तरह के नामों पर भी चर्चा करे ..रंजू भाटियाhttps://www.blogger.com/profile/07700299203001955054noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-82001524829688234822008-08-20T08:33:00.000+05:302008-08-20T08:33:00.000+05:30अभय भाई की टिप्पणी से ही आज के आलेख की गंगा प्रसवि...अभय भाई की टिप्पणी से ही आज के आलेख की गंगा प्रसवित हुई प्रतीत होती है।दिनेशराय द्विवेदीhttps://www.blogger.com/profile/00350808140545937113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-8121722577961626712008-08-20T07:31:00.000+05:302008-08-20T07:31:00.000+05:30बड़ी नाप तौल के लिखी गयी पोस्ट है.. मैं वही सोच रह...बड़ी नाप तौल के लिखी गयी पोस्ट है.. मैं वही सोच रहा था की आप इधर नज़र नही आए इन दिनो..कुशhttps://www.blogger.com/profile/04654390193678034280noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-18253236104578529132008-08-20T07:28:00.000+05:302008-08-20T07:28:00.000+05:30जय हो और ज्ञान गंगा बहती रहे ऐसे ही अविरल..यही काम...जय हो और ज्ञान गंगा बहती रहे ऐसे ही अविरल..यही कामना है महानुभाव!!Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-55343328934042864332008-08-20T07:01:00.000+05:302008-08-20T07:01:00.000+05:30अजित भाई आपका बहोत सा शुक्रिया कितने शब्द आपस मेँ ...अजित भाई <BR/>आपका बहोत सा शुक्रिया <BR/>कितने शब्द आपस मेँ गुँथे हुए हैँ !<BR/>जिनके बारे मेँ जानकर अच्छा लगता है - <BR/>यात्रा कैसी रही ?<BR/>- लावण्यालावण्यम्` ~ अन्तर्मन्`https://www.blogger.com/profile/15843792169513153049noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-53348332723996383832008-08-20T04:58:00.000+05:302008-08-20T04:58:00.000+05:30keep it,keep it,Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-6795985743274849282008-08-20T02:58:00.000+05:302008-08-20T02:58:00.000+05:30ऐसी ज्ञानचर्चा में हम तो सिर्फ ज्ञान ले सकते हैं स...ऐसी ज्ञानचर्चा में हम तो सिर्फ ज्ञान ले सकते हैं सो ले रहे हैं. इसी को हमारी प्रतिक्रिया मानेRamashankarhttps://www.blogger.com/profile/09873866884519903643noreply@blogger.com