tag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post402959076324604882..comments2024-01-18T18:37:01.064+05:30Comments on शब्दों का सफर: गुनिया की गुनियाई...[सयाना-3]अजित वडनेरकरhttp://www.blogger.com/profile/11364804684091635102noreply@blogger.comBlogger6125tag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-55615157781274044552008-11-05T15:40:00.000+05:302008-11-05T15:40:00.000+05:30अजित भाई ,मैं आपका ब्लॉग रोज़ पड़ता हूँ. शब्दों क...अजित भाई ,<BR/>मैं आपका ब्लॉग रोज़ पड़ता हूँ. शब्दों के साथ समय की गांठें भी खुलती हैं. <BR/>इधर कुछ दिनों से मैं स्वयं भी अपनी भाषा के कुछ शब्दों को जासूस नज़र से देख रहा हूँ. शायद आपको बचकाना लगे ,सीमान्त मारवाड़ी मैं मुंह के अन्दर वाले हिस्से को बाका कहते हैं और शरीर विज्ञान में buccal cavity <BR/>शब्द है ही , बताएं की क्या स्थानीय भाषाओं में ये शब्द बरास्ता संस्कृत ही आया है?<BR/>संजय व्यासsanjay vyashttps://www.blogger.com/profile/12907579198332052765noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-71605839052760607682008-11-05T00:42:00.000+05:302008-11-05T00:42:00.000+05:30अजित जी शानदार, अनवरत रहें....पाठकों की संख्या की ...अजित जी शानदार, अनवरत रहें....पाठकों की संख्या की चिंता कतई न करें, हाँ उनकी प्रतिक्रिया पर चिंतन जरुर कर लिया करें.समीर यादवhttps://www.blogger.com/profile/07228489907932952843noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-56820305183456840342008-11-04T22:58:00.000+05:302008-11-04T22:58:00.000+05:30यह भी खूब है.================डॉ.चन्द्रकुमार जैनयह भी खूब है.<BR/>================<BR/>डॉ.चन्द्रकुमार जैनDr. Chandra Kumar Jainhttps://www.blogger.com/profile/02585134472703241090noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-40531649852636685252008-11-04T22:32:00.000+05:302008-11-04T22:32:00.000+05:30औझा और गुनिया में फर्क है। गुनिया तो सगुन देखने का...औझा और गुनिया में फर्क है। गुनिया तो सगुन देखने का काम अधिक करता है। वह हर तरह के मुहूर्त निकालता है। जब कि ओझा शब्द का झाड़ फूंक करने वाले के साथ रुढ़ हो गया है। <BR/><BR/>पुनः <BR/>अजित जी, चक्कर यह भी है कि केवल लिखने वाला बक्सा खुला हुआ है। दूसरा गायब है। वह पॉपअप में खुल रहा है। आज टिप्पणी करने में शायद इसी लिए परेशानी आ रही है।दिनेशराय द्विवेदीhttps://www.blogger.com/profile/00350808140545937113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-16878134831142174892008-11-04T17:53:00.000+05:302008-11-04T17:53:00.000+05:30ओझाई, गुनियाई का प्रयोग एक साथ भी तो होता है... सा...ओझाई, गुनियाई का प्रयोग एक साथ भी तो होता है... साधारणतया अंधविश्वास के लिए जैसे: 'ओझाई-गुनियाई के चक्कर में ना ही पडो तो अच्छा है' <BR/>--<BR/>और आपको लेखन के स्तर की चिंता करने की जरुरत नहीं ये एक ओझा का कहना है :-)Abhishek Ojhahttps://www.blogger.com/profile/12513762898738044716noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-77230198872602934602008-11-04T17:15:00.000+05:302008-11-04T17:15:00.000+05:30अभिषेक भाई,शुक्रिया ...मैने एक बार सुबह मेल चेक की...अभिषेक भाई,<BR/>शुक्रिया ...मैने एक बार सुबह मेल चेक की थी । कुछ आश्चर्य हुआ कि एक भी साथी की प्रतिक्रिया नहीं थी। सोचा , कि शायद लेखन का स्तर गिरता जा रहा है...कोई कमेंट क्यों करे। मन में ठान लिया कि कुछ और मेहनत की जाएगी। स्वांन्तः सुखाय ही सही , आखिर है तो सार्वजनिक स्पेस का मामला। लोगों का समय नष्ट नहीं होना चाहिए...वगैरह वगैरह<BR/>अभी शाम को आपकी पोस्ट देखी तो चक्कर समझ में आया। अंकित बाबू को बताया तब उन्होने कुछ राह निकाली।अजित वडनेरकरhttps://www.blogger.com/profile/11364804684091635102noreply@blogger.com