tag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post4297387509992019175..comments2024-01-18T18:37:01.064+05:30Comments on शब्दों का सफर: बेजी की दुनिया में बदलाव...[बकलमखुद-36]अजित वडनेरकरhttp://www.blogger.com/profile/11364804684091635102noreply@blogger.comBlogger28125tag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-57279690242559547672008-05-22T09:46:00.000+05:302008-05-22T09:46:00.000+05:30हम्म कॉलेज से भी ट्रांसफर ।हम्म कॉलेज से भी ट्रांसफर ।Yunus Khanhttps://www.blogger.com/profile/12193351231431541587noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-43039563281545804432008-05-21T12:00:00.000+05:302008-05-21T12:00:00.000+05:30beji ham to padhte jaa rahe hai.n aur murid hue ja...beji ham to padhte jaa rahe hai.n aur murid hue jaa rahe hai.n..itani saafgoi se apni baat kahana ... kya baat hai...! bahut kuchh sikhnae ko mil raha hai... thanksकंचन सिंह चौहानhttps://www.blogger.com/profile/12391291933380719702noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-78831988575068033762008-05-18T07:35:00.000+05:302008-05-18T07:35:00.000+05:30कितनी सहजता से सब कुछ कह दिया. बेजी बहुत अच्छा लिख...कितनी सहजता से सब कुछ कह दिया. बेजी बहुत अच्छा लिखा है. अजित जी आभार के साथ.रजनी भार्गवhttps://www.blogger.com/profile/08154642819162396396noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-44100935755337354812008-05-17T13:37:00.000+05:302008-05-17T13:37:00.000+05:30आत्मकथ्य पढ़कर 'लबबन्द' नाम का एक मीठा पकवान याद आ ...आत्मकथ्य पढ़कर 'लबबन्द' नाम का एक मीठा पकवान याद आ रहा है जिसमें सेवैयाँ खूब ज़्यादा चाशनी में पकाई जातीं. रमादान के दिनों में आज़मगढ़ का मित्र परिवार इफ़्तार पर बुलाते तो लबबन्द ज़रूर बनाते जिसे खाकर लब बन्द हो जाते ..यही हाल यहाँ हो रहा है.मीनाक्षीhttps://www.blogger.com/profile/06278779055250811255noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-24390676553228012862008-05-17T10:42:00.000+05:302008-05-17T10:42:00.000+05:30बेहद खूबसूरत और रोमांस से भरा हुआ पहली कडियाँ भी स...बेहद खूबसूरत और रोमांस से भरा हुआ पहली कडियाँ भी सुंदर पर िसका तो जवाब नही । अजित जी का आभार ।Asha Joglekarhttps://www.blogger.com/profile/05351082141819705264noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-11753799230837145672008-05-17T07:30:00.000+05:302008-05-17T07:30:00.000+05:30अद्भुत। इसके अलावा और कुछ सूझ नहीं रहा है टिपियाने...अद्भुत। इसके अलावा और कुछ सूझ नहीं रहा है टिपियाने को।अनूप शुक्लhttps://www.blogger.com/profile/07001026538357885879noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-23202117093282137002008-05-17T00:35:00.000+05:302008-05-17T00:35:00.000+05:30बेजी,आपकी इतना अच्छा लिखती हैं,जैसे जो आप लिख रहीं...बेजी,<BR/>आपकी इतना अच्छा लिखती हैं,जैसे जो आप लिख रहीं हैं वो चित्र बनकर नज़रों के सामने घूम रहा हो जैसे.... कमाल है आपका...और अजित जी आपकी ये श्रंखला तो गज़ब ढा रही है...आभार अगली कड़ी का बेसब्री से इंतज़ार है...VIMAL VERMAhttps://www.blogger.com/profile/13683741615028253101noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-5250886868689456002008-05-16T23:33:00.000+05:302008-05-16T23:33:00.000+05:30पिछले भागों जैसा ही सजीव आत्मकथ्य !पिछले भागों जैसा ही सजीव आत्मकथ्य !Manish Kumarhttps://www.blogger.com/profile/10739848141759842115noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-56697492588998624442008-05-16T17:53:00.000+05:302008-05-16T17:53:00.000+05:30बेजी जी आज आप के बारे में और जान कर अच्छा लगा। वैस...बेजी जी आज आप के बारे में और जान कर अच्छा लगा। वैसे आप की हिम्मत को शत शत प्रणाम तो करना ही है। बकलम खुद लिखने के वक्त हम अपने यौवन की आहटों के बारे में लिखने से हिचक गये थे और कई छलागें लगा कर आज में पहुंच गये थे। आप की शैली के तो पहले ही कायल हो गये थे आज आप के बेबाकपन के कायल हो लिए। अगली कड़ी का इंतजार, और समीर जी की बात से हम भी सहमत्।Anita kumarhttps://www.blogger.com/profile/02829772451053595246noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-82782663691105618792008-05-16T16:14:00.000+05:302008-05-16T16:14:00.000+05:30बेजी तो बेजी ही हैं, उनकी बातें उनको पिछले दो बार ...बेजी तो बेजी ही हैं, उनकी बातें उनको पिछले दो बार से पढ़ रही हूं पर पता नहीं क्यों कमेंट नहीं कर पा रही थी। किनती ईमानदारी से अपनी जिन्दगी की किताब खोल कर बयान कर दी, सचमुच बहुत हिम्मत चाहिए। हैट्स आफ टू हर। <BR/>अजीत जी बेजी से यह सब कहलवाने के लिए आपको भी बधाई।नीलिमा सुखीजा अरोड़ाhttps://www.blogger.com/profile/14754898614595529685noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-34794917196609784582008-05-16T15:37:00.000+05:302008-05-16T15:37:00.000+05:30जिए गए जीवन के बारे में सच कहना बहुत मुश्किल काम ह...जिए गए जीवन के बारे में सच कहना बहुत मुश्किल काम है . ऐसे में सच को एक छंद का सहारा चाहिए होता है . वह छंद बेजी के पास है .<BR/><BR/>गुजरात के एक बड़े -- बहुत बड़े -- सपूत ने सत्य के कुछ प्रयोग हमारे सामने एकदम खरे और खड़े गद्य में रखे थे . गुजरात रिटर्न बेजी में भी सच के प्रति उसी आग्रह की झलक है ,अलबत्ता थोड़ी काव्यात्मक झलक . <BR/><BR/>पुरुष की अपेक्षा एक स्त्री के लिए सच कहना और भी जोखिम भरा है . बेजी का आत्मकथ्य नई/उभरती लेखिकाओं के लिए एक 'मॉडल' हो सकता है .Priyankarhttps://www.blogger.com/profile/13984252244243621337noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-22519939648857214472008-05-16T15:06:00.000+05:302008-05-16T15:06:00.000+05:30बेजी जी को जितना जानती हूँ यह लेख उसके बिल्कुल अनु...बेजी जी को जितना जानती हूँ यह लेख उसके बिल्कुल अनुरूप है। ठीक जीवन की तरह लेखन में भी एक बहाव है। बस बहते ही जाना है सा भाव है। <BR/>घुघूती बासूतीghughutibasutihttps://www.blogger.com/profile/06098260346298529829noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-80454980513947271412008-05-16T13:13:00.000+05:302008-05-16T13:13:00.000+05:30बहुत ही शानदार!लंबा होना अखरा नही बस शब्दों के साथ...बहुत ही शानदार!<BR/>लंबा होना अखरा नही बस शब्दों के साथ बहते चले गए हम!Sanjeet Tripathihttps://www.blogger.com/profile/18362995980060168287noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-87872927600785081742008-05-16T13:05:00.000+05:302008-05-16T13:05:00.000+05:30बहुत खूबसूरत.बहुत खूबसूरत.Ghost Busterhttps://www.blogger.com/profile/02298445921360730184noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-21930578476849057342008-05-16T11:20:00.000+05:302008-05-16T11:20:00.000+05:30शुरुआत में लगा की आज का आलेख कुछ बड़ा है, पर बिना ...शुरुआत में लगा की आज का आलेख कुछ बड़ा है, पर बिना रुके एक ही बार में समाप्त... बहुत रोचक .Abhishek Ojhahttps://www.blogger.com/profile/12513762898738044716noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-72542813981004032932008-05-16T11:10:00.000+05:302008-05-16T11:10:00.000+05:30चश्मेबद्दू.. क्या कहने आपके आत्मकथ्य को.. एक नया आ...चश्मेबद्दू.. क्या कहने आपके आत्मकथ्य को.. एक नया आसमान खड़ा कर दिया है आपने.. मैं समीर जी कि बातो से सहमत हूं.. पहली बार ब्लौग जगत में कुछ संजो कर रखने को जी चाह रहा है.. नहीं तो सोचता था की सभी कुछ तो नेट पर है ही, भला क्यों सुरक्षित करूं..PDhttps://www.blogger.com/profile/17633631138207427889noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-59188061235342734892008-05-16T11:05:00.000+05:302008-05-16T11:05:00.000+05:30अजित जी ,बस एक ही लफ़्ज़ मिला - 'ख़्वाहिश'उसे होना थ...अजित जी ,<BR/>बस एक ही लफ़्ज़ मिला - 'ख़्वाहिश'उसे होना था!Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-85279798572076651902008-05-16T10:54:00.000+05:302008-05-16T10:54:00.000+05:30बेजी के बारे में जानकर अच्छा लगा। भाषा की गत्यात्म...बेजी के बारे में जानकर अच्छा लगा। भाषा की गत्यात्मकता उम्र के पडाव और बदलती विचारधारा व भावनाऒं की गति को गति प्रदान कर रही है। बहुत ही अच्छा लिखा है।anuradha srivastavhttps://www.blogger.com/profile/15152294502770313523noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-739384247157664292008-05-16T10:31:00.000+05:302008-05-16T10:31:00.000+05:30लगा जैसे आपका बीता हुआ एक युग हमारे सामने आ गया.सं...लगा जैसे आपका बीता हुआ एक युग <BR/>हमारे सामने आ गया.<BR/>संदेशों को खोजता,अंदेशों को ढूँढते कैशोर्य <BR/>और भावनाओं-संभावनाओं से आपूरित <BR/>आपके अतीत के सारे शेड्स<BR/>इतनी स्वाभाविक,अचंचल और निष्कंप रीति से <BR/>हमारे मानस में रंग भर गये कि लगता है<BR/>भरी गर्मी में बारिश की बूँदों के नूर को जी लिया.<BR/>=================================<BR/>यादगारों की पोटली कोई खोले तो इस तरह !<BR/>=================================<BR/>वरना विकल मन का कल न तो आज को <BR/>जीने देता है, न कल के सपने बुनने देता है.<BR/>आपकी कहानी स्वप्न और सच के बीच<BR/>झूलते आनंद की बस्ती में<BR/>अपने लिए अच्छी,सुंदर और <BR/>मनचाही ज़गह बना लेने,उम्र के हर पड़ाव के <BR/>इशारों और दरारों को पढ़ लेने के <BR/>अचूक कौशल का बेजोड़ शायराना बयान है.<BR/>यक़ीन मानिए एक साँस में पढ़कर,दूसरी साँस में <BR/>इतना(अधिक)सब कुछ कह गया.<BR/>===================================<BR/>बधाई बेजी-बोल के लिए ! <BR/>आभार अजित-रोल के लिए !!<BR/>सदा सफ़र के साथ...<BR/>डा. चंद्रकुमार जैनDr. Chandra Kumar Jainhttps://www.blogger.com/profile/02585134472703241090noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-86868594430595812242008-05-16T10:06:00.000+05:302008-05-16T10:06:00.000+05:30अद्भुत शैली है लिखने की...लगता है जैसे जीवन के हर ...अद्भुत शैली है लिखने की...लगता है जैसे जीवन के हर पल का वर्णन है.<BR/>आगे की कड़ियों का इंतजार है.Shivhttps://www.blogger.com/profile/05417015864879214280noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-15611566065703173072008-05-16T09:09:00.000+05:302008-05-16T09:09:00.000+05:30अरे , पिछले अंक मिस हो गये । अभी सहेज कर पढने बैठत...अरे , पिछले अंक मिस हो गये । अभी सहेज कर पढने बैठती हूँ ।<BR/><BR/>बेजी का लेख कितना आनन्ददायी होता है ।सुजाताhttps://www.blogger.com/profile/12373406106529122059noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-40961110861204514572008-05-16T07:37:00.000+05:302008-05-16T07:37:00.000+05:30बहुत ही सहज और स्वाभाविक ढंग से लिखे गये इस आत्मकथ...बहुत ही सहज और स्वाभाविक ढंग से लिखे गये इस आत्मकथ्य को पढवाने के लिये आभार. पिछ्ले काफ़ी समय से लगातार पढ रहा हूं. एक खास तरह की सह्जता सभी में है.विजय गौड़https://www.blogger.com/profile/01260101554265134489noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-43134026663301100672008-05-16T07:19:00.000+05:302008-05-16T07:19:00.000+05:30क्या कहने हैं बेजी जी के. सभी भाग एक से बढ़कर एक.शु...क्या कहने हैं बेजी जी के. सभी भाग एक से बढ़कर एक.शुक्रिया.काकेशhttps://www.blogger.com/profile/12211852020131151179noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-62008430449595797352008-05-16T07:09:00.000+05:302008-05-16T07:09:00.000+05:30बहुत कम पढ़ा हूँ साहित्य के मामले में-मगर जितना भी ...बहुत कम पढ़ा हूँ साहित्य के मामले में-मगर जितना भी पढ़ा है उस आधार पर यह कह सकता हूँ कि ऐसा आत्म कथ्य अब तक नहीं पढ़ा. हद है उचांईयों की कथनी की. <BR/><BR/>बेजी के बाद इस स्तंभ को बंद कर दिजियेगा-आगे ऐसा लिखा जाना संभव नहीं. यह हॉल ऑफ फेम का बेंच मार्क आलेख है..बेजी को अनेकों शुभकामनाऐं एवं बधाई.<BR/><BR/>और अजित भाई, आपको तो बधाई है ही!!<BR/><BR/>बहुत ही उम्दा.Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-48378215834821257332008-05-16T06:41:00.000+05:302008-05-16T06:41:00.000+05:30कहते हैं, भोज के राज्य में सभी कवि थे। संवेदनशीलता...कहते हैं, भोज के राज्य में सभी कवि थे। <BR/>संवेदनशीलता ही कवित्व उत्पन्न करती है। जीवन से अनुराग,और उसे उस की हर शै में जीना। यही है वह चीज जो उस इंन्सान की हर रचना को कविता बनाता है, चाहे वह किसी घाव को दुरूस्त करना हो या फिर घर में रोटी बेलना। बेजी, आप पूरे वक्ती कवि हैं।दिनेशराय द्विवेदीhttps://www.blogger.com/profile/00350808140545937113noreply@blogger.com