tag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post442691875529133513..comments2024-01-18T18:37:01.064+05:30Comments on शब्दों का सफर: हे भीष्म पितामह, हम ब्लॉगर नहीं, पर वहां थे…अजित वडनेरकरhttp://www.blogger.com/profile/11364804684091635102noreply@blogger.comBlogger65125tag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-5429881960572263792009-10-29T18:24:23.748+05:302009-10-29T18:24:23.748+05:30बाप रे !बाप रे !Asha Joglekarhttps://www.blogger.com/profile/05351082141819705264noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-38939983101101641362009-10-29T14:30:54.010+05:302009-10-29T14:30:54.010+05:30लगता है उपसंहार हो गया ! बहुत राहत हुयी !
ई स्वाम...लगता है उपसंहार हो गया ! बहुत राहत हुयी ! <br />ई स्वामी जी ,छोटा हो या बडा विद्वान् का सम्मान हमारी सुनहली परम्परा है <br />आप के लिखे पर मैं मुग्ध होता रहा हूँ मगर आपने नामवर के लिए थोडा जरूर असंयम <br />दिखा दिया है और लोगों को तो जैसे ऐसे ही मौकों की तलाश रहती है ! <br />आपके पिता/ तुल्य हैं वे -मैं भी उनसे असहमत हूँ कई मुद्दों पर ,पर जानता हूँ अभी <br />उनके सामने बच्चा ही हूँ ! <br />पुनः कहूँगा की उन्होंने चिट्ठाकारी की दुनिया संगोष्ठी का उदघाटन किया केवल <br />किसी ब्लॉगर मीट का नहीं ! और साहित्यकार बनाम ब्लॉगर की बहस में उनका मुख्य अतिथि होना <br />ठीक ही था -एक बार पुनर्विचार कर लें -ऐसा भी क्या की एक बार जो कह दिए कह दिए -अगर ऐसा है तब तो <br />आप खुद नामवर ही हो गये ! आप ई स्वामी हैं मैं तो कदापि भी आपको एक और नामवर नहीं मानूगा .<br />यहाँ जवाब की दरकार नहीं है बहुत TRP मिल गयी है आपके ब्लॉग पर आना चाहूंगा !Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-85173629249732194432009-10-29T14:11:15.495+05:302009-10-29T14:11:15.495+05:30अनूप जी, अब सम्हालिए... सेमिनार तय हो गया!!
पि...अनूप जी, अब सम्हालिए... सेमिनार तय हो गया!!<br /><br /> <br /><br />पिछली पोस्ट में मैने जिस सेमिनार के न हो पाने की बात बतायी थी उसके आयोजन की तैयारी में आदरणीय अनूप शुक्ल जी ने बहुत समय खर्च किया था। जाने कितने चिठ्ठाकारों से चर्चा में लगे रहे। इन्होंने जाने कितने आदि, अनादि, अनामय, अविचल, अविनाशी चिठ्ठाकार भाइयों, बहनों और दोस्तों को इस राष्ट्रीय सेमिनार के स्वरूप के बारे में बताया होगा। अनेक प्रतिष्ठित और ‘स्टार’ ब्लॉगर जन को न्यौता भी इन्होंने ही दिया था। मैं तो सिर्फ़ इनका पता जानता था सो सारी बातें इन्हीं को बता देता था।<br /><br />जब अचानक कार्यक्रम टलने की बात प्रकट हुई तो मुझे सबसे बड़ी कठिनाई यह समाचार फुरसतिया जी को बताने में हुई। अपने से अधिक निराश मैने इन्हें पाया था। करीब दो सप्ताह का उत्साह दो मिनट में ठण्डा पड़ गया था। उधर मेरे बड़े भाई डॉ. अरविन्द मिश्र जी ने मुझे पहले ही आगाह किया था कि जब तक सब प्रकार से बात पक्की न हो जाय और बजट की व्यवस्था सुनिश्चित न हो जाय तबतक हाथ न डलियो। इसलिए जब उन्होंने स्थगन का समाचार सुना था तो थोड़े दुखी तो जरूर हुए लेकिन अपनी भविष्यवाणी के सच होने पर उनके मन में एक स्थितिप्रज्ञ का सन्तोष भाव भी जरूर था।<br /><br />लेकिन अब तो कहानी बदल गयी है। अब “बीती ताहि बिसारि दे आगे की सुधि लेहु...” की पॉलिसी पर चलना है।<br /><br />अब अनूप जी को अपना पहले का किया श्रम व्यर्थ नहीं लगना चाहिए। कार्यक्रम की रूपरेखा जो हमने तब तय की थी कमोबेश वही रहने वाली है। शीघ्र ही महात्मागांधी अन्तर राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के अधिकारियों के साथ इलाहाबाद में बैठकर हम कार्यक्रम को अन्तिम रूप देंगे। अतिथियों की सूची भी वहीं तय हो पाएगी, लेकिन हिन्दी ब्लॉगजगत का सच्चा प्रतिनिधित्व कराने का पूरा प्रयास होगा। आदरणीय अनूप जी, अरविन्दजी, ज्ञानदत्तजी, आदि ने सदैव मेरे प्रति जो स्नेह का भाव रखा है उसी की ऊर्जा से मैं यह आयोजन करा पाने का आत्मविश्वास सजो पा रहा हूँ।<br /><br />हिन्दुस्तानी एकेडेमी द्वारा इस अवसर पर एक महत्वाकांक्षी योजना बनायी गयी है। आप सभी इसमें सक्रिय सहयोग दें। एक अनूठी कृति आकार लेने वाली है। निस्संकोच होकर अपना योगदान सुनिश्चित करें। एकेडेमी के सचिव डॉ.एस.के. पाण्डेय जी ने उस अनुपम प्रकाशन का लोकार्पण २३ अक्टूबर के उद्घाटन सत्र में कराने का निश्चय अभी कर लिया है, जबकि प्रकाश्य सामग्री का एक भी शब्द अभी तय नहीं हुआ है। लेकिन हमें पूरा विश्वास है कि एक जोरदार पुस्तक उस तिथि तक आपके सामने होगी। बस आप अपनी प्रविष्टियाँ तत्काल भेंज दीजिए। कहाँ और कैसे? यह जानने के लिए एकेडेमी के ब्लॉग पृष्ठ पर पधारें।<br /><br />अस्तु, हे अनूप जी! आगे का जिम्मा आपै सम्हारौ। हम त चलै माता रानी का आशीष बटोरै... अरविन्द जी यदि चुनाव कराने में नहीं लगाये गये तो बाकी सब काम उनके लिए बहुत सरल हो जाएगा।<br /><br />वैष्णो देवी धाम से लौटकर जब मैं वापस आऊंगा तो एकेडेमी के मेल-बॉक्स में सैकड़ों प्रविष्टियाँ आ चुकी होंगी। उनको छाँटने-बीनने के बाद संपादक मण्डल किताब को अन्तिम रूप देने में अधिकतम सात दिन लेगा और मुद्रक किताब बनाकर देने में सात दिन और लेगा। बस तबतक ब्लॉगिंग का महाकुम्भ भी आ ही जाएगा। किताब का लोकार्पण भी लगे हाथों हो जाएगा।<br /><br />अब तो हम यह पोस्ट ठेलकर ट्रेन में बैठ जाएंगे। एक सप्ताह बाद लौटकर जुट जाएंगे इस महामेला की तैयारी में। तबतक अनूप जी अपने तरीके से तैयारी पूरी ही कर डालेंगे। बस मौजा ही मौजा... :)अब असली संचालक कौन था इसका पता तो इस पोस्ट को पढ़ कर लग ही जायेगाhttp://satyarthmitra.blogspot.com/2009/09/blog-post_27.htmlnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-14359818329304383342009-10-29T13:49:02.078+05:302009-10-29T13:49:02.078+05:30यहां तो नई महाभारत छिड गई!!मसला कश्मीर-समस्या की त...यहां तो नई महाभारत छिड गई!!मसला कश्मीर-समस्या की तरह हो गया..नामवर जी जैसे वरिष्ठ आलोचक की इतनी आलोचना? यदि नामवर जी ने गलत जानकारी दी भी तो उनके भाषण के बाद संगोष्ठी में मौजूद कोई भी जानकार ब्लॉगर इसमें संशोधन कर सकता था, और सही जानकारी दे सकता था. ऐसा नहीं किया गया तो केवल इसलिये कि लोगों ने नामवर जी की वरिष्ठता का लिहाज किया होगा, या फिर इस मुद्दे को इतना महत्वपूर्ण नहीं समझा होगा, जितना कि अपने -अपने कम्प्यूटर के ज़रिये घर में बैठे-बैठे ही सबने समझा. क्या "आलोक" जिन्होंने ब्लॉग को चिट्ठा शब्द दिया, उनकी एक भी आपत्ति आई? इस मसले को लेकर कितनी एकता दिखाई दे रही है!!!बेचारे जो संगोष्ठी में भाग लेने गये थे, सब अपराधी हो गये...<br />कुछ भी हो, डा.नामवर सिंह जानी मानी हस्ती हैं, उम्रदराज़ हैं, हमारे वरिष्ठ हैं, उनके लिये अपशब्द इस्तेमाल नहीं किये जाने चाहिये. हर बात में विवाद की आदत कब छूटेगी हमारी? अनूप जी ने कितने साफ़ और शालीन शब्दों में इस बात को कहा था, कि आलोक के शब्द का अपहरण हो गया....तब भी आरोपों के घेरे में हैं...क्या किया जाये?वन्दना अवस्थी दुबेhttps://www.blogger.com/profile/13048830323802336861noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-53245745321819791422009-10-29T12:46:37.782+05:302009-10-29T12:46:37.782+05:30इलाहाबाद सेमिनार के संदर्भ में यह मेरी पहली पोस्ट ...इलाहाबाद सेमिनार के संदर्भ में यह मेरी पहली पोस्ट थी। मुझे सायास इस विषय पर कुछ नहीं लिखना था, मैं कभी इस किस्म के विवादों में नहीं पड़ता, आप सब जानते हैं। इस बार अगर नहीं लिखता तो इसे समझदारी नहीं कहा जाता। कुछ लोगों के साथ लगातार अन्याय हो रहा था। <br /><br />बहरहाल, शब्दों का सफर अल्पविराम के बाद फिर जारी है। हम तो यायावर है। चलते जाएंगे। आंखें जब कुछ देखेंगी, तब जुबां भी कुछ कुछ बोलेगी। मुझसे सहमति जताने के लिए आप सबका आभार। शरद भाई ने मराठी कवि वामन निबाळकर की गहन अर्थवत्ता वाली पंक्तियां " शब्दांनीच जुळतात घरे / शब्दांनीच तुटतात घरे / शब्दांनीच जुळतात माणसं ? शब्दांनीच तुटतात माणसं " उद्धरित की हैं। शब्दशः अनुवाद की जगह मैं सिर्फ इतना ही कहना चाहूंगा कि कवि ने शब्दशक्ति को रेखांकित किया है। शब्दों के संतुलित सही इस्तेमाल में ऊर्जा और जुड़ाव का जो असीम भाव है, वही यहां बताया गया है। शब्दों के गारे से अगर स्नेह का संसार रचा जाता है तो शब्दों के हथोड़े से ही वह भरभराकर गिर भी सकता है। शब्दों के धागों से अगर इन्सान एक दूसरे से बंधते हैं तो शब्दों के जख्मों से ही कलेजा भी छलनी होता है।अजित वडनेरकरhttps://www.blogger.com/profile/11364804684091635102noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-44477079196557067142009-10-29T05:58:27.710+05:302009-10-29T05:58:27.710+05:30बाप रे बाप इतनी लम्बी बहस .. ऐसा लग रहा है कि सब आ...बाप रे बाप इतनी लम्बी बहस .. ऐसा लग रहा है कि सब आपस में लड़ रहे हैं ..लेकिन ऐसा नहीं है । यह सब प्यार की बाते हैं । मै तो बस याद कर रहा हूँ " दुश्मनों को चिठ्ठियाँ लिखो.. दुश्मनों को चिठ्ठियाँ लिखो... दोस्त खैरख्वाह हो गये " लेकिन मुझे यह चिठ्ठी की जगह चिठ्ठा क्यो सुनाई दे रहा है? कुछ भी हो अब समझ में आया कि " अजित वडनेरकर को गुस्सा क्यों आता है ?" इन सब बातों के बाद मै क्या कहूँ बस यही कि यह गुस्सा जायज है । और मेरे लिये ज़्यादा ज्ञान बघारने की अब न जगह है न ज़रूरत सो चुपचाप अपना काम कर रहा हूँ .. जिन्हे पता नहीं है उनसे निवेदन है कृपया एक बार .सिर्फ एक बार मेरे ब्लॉग "आलोचक" पर जायें । पता है http://sharadkokaas.blogspot.com | यह ब्लॉग बनाया ही इसलिये गया है कि यहाँ आलोचना और आलोचकों पर बात हो । और यह होती ही रहेगी जब तक यह ब्लॉग है । बाकी संगोष्ठी पर बात आज नहीं तो कल थम ही जाना है । वामन निबाळकर की एक कविता " शब्दांनीच जुळतात घरे / शब्दांनीच तुटतात घरे / शब्दांनीच जुळतात माणसं ? शब्दांनीच तुटतात माणसं " अजित भाई शब्दों का सफर वाले ,ज़रा अवाम को इसका अर्थ बता देना । धन्यवाद ।शरद कोकासhttps://www.blogger.com/profile/09435360513561915427noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-70986423180494400582009-10-29T03:06:09.722+05:302009-10-29T03:06:09.722+05:30संजय करीर said...
बड़े भाई,
पहले सोच रहा थ...संजय करीर said...<br /><br /> बड़े भाई,<br /> पहले सोच रहा था कि कमेंट करूं पर लगा कि यह जरूरी नहीं है तो यहां बात करने चला आया। पोस्ट को पढ़कर अंत में बस किंकर्तव्यविमूढ़ था कि इसकी जरूरत क्यों थी... पहले कहीं पढ़ा था कि आपने दिल्ली जाने के कारण इस कार्यक्रम में नहीं जाने का निर्णय किया था फिर आप चले गए।<br /> मेरा मानना है कि शायद दूसरे ब्लॉगरों से मिलने की उत्सुकता के अलावा इसके पीछे कोई और प्रयोजन नहीं था। लेकिन आपने इस कार्यक्रम को लेकर हो रही अर्थहीन बहसों में खुद को क्यों शामिल कर लिया। बुरा लगा यह देखकर कि जहां एक अच्छी पोस्ट होनी थी वहां यह सब है। चिकने घड़ों पर पानी डालने से क्या होगा बड़े भाई।<br /><br /> मुझे ईस्वामी की भाषा और नामवर के प्रति उनका अशिष्ट उद्बोधन नागवार लगा लेकिन उसने जो एक बात कही वह सोलह आने सही है कि ऐसे आयोजनों का क्या फायदा है। इनमें न कोई एजेंडा होता है न सार्थक विमर्श.. शायद इलाहाबाद में भी कुछ नहीं हुआ।<br /><br /> सच कहूं तो बड़े भाई मीडिया में दलितों को लेकर हुई घटिया बहस, फिर इंटरनेट पर हिंदी को लेकर सीरिज शुरू करते ही मेरी जैसी लानत सलामत हुई तो मुझे ब्लागिंग से घृणा हो गई। इसलिए चुपचाप इसे बंद ही कर दिया। अंत में यही पाया कि यह मीडिया व्यस्क होने में कई दशक लगेंगे। यहां आत्मरति, आत्म प्रलाप, परनिंदा, प्रवंचना, गर्वोक्तियों और कुठित सुरों से उपज रहा प्रदूषण बहुत ज्यादा है।<br /><br /> छोटे मुंह बड़ी बात क्या कहूं,आप तो सफर में लगे रहें ... आपके प्रशंसक बहुत हैं। ऐसे विवादों में आपको कूदते देख कर मुझे पता नहीं क्यों अच्छा नहीं लगता। बमुश्किल खुद को जब्त कर पाया वरना एक बार तो कुछ लिखने को उद्यत हो ही गया था। फिर लगा कि अभी पुरानी चीजों की पुनरावृत्ति होगी सो मन को समझा कर आ गया।<br /><br /> http://www.dailyhindinews.com<br /> http://sagar.dailyhindinews.comसंजय करीरhttp://www.dailyhindinews.comnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-61958153665358694472009-10-29T01:23:54.648+05:302009-10-29T01:23:54.648+05:30अच्छी बातें छाँट कर लिए जा रहे हैं।
कल फिर मिलेंगे...अच्छी बातें छाँट कर लिए जा रहे हैं।<br />कल फिर मिलेंगे।<br /><br /><a href="http://www.google.com/profiles/bspabla" rel="nofollow"> बी एस पाबला</a>Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-44635645464080553862009-10-29T00:39:25.692+05:302009-10-29T00:39:25.692+05:30कई पोस्टों और टिप्पणियों से गुजरकर यहां तक पहुंचते...कई पोस्टों और टिप्पणियों से गुजरकर यहां तक पहुंचते-पहुंचते ऐसा लगने लगा है कि यह सारी तर्कबाजी सिर्फ़ अहमन्यता की लडाई बनकर रह गई है ।अर्कजेशhttps://www.blogger.com/profile/11173182509440667769noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-51294970260642078402009-10-29T00:31:32.364+05:302009-10-29T00:31:32.364+05:30:)जय हो:)जय होSanjay Kareerhttp://www.sanjayuvach.dailyhindinews.comnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-35137473573416196202009-10-28T23:46:10.939+05:302009-10-28T23:46:10.939+05:30बहुत मज़ा आया पढ़ कर अजीत जी. आशा है अब तक गुस्सा खा...बहुत मज़ा आया पढ़ कर अजीत जी. आशा है अब तक गुस्सा खासा कम हो गया होगा.अगर समय मिले तो यहाँ भी आएँ एक पल को..<br /><br />http://meenukhare.blogspot.com/2009/10/blog-post_28.htmlMeenu Kharehttps://www.blogger.com/profile/12551759946025269086noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-59808922336073141882009-10-28T23:40:36.702+05:302009-10-28T23:40:36.702+05:30रात गई सो बात गई |मै तो हैरान हूँ इतनी चर्चा पढ...रात गई सो बात गई |मै तो हैरान हूँ इतनी चर्चा पढ़कर ,सिर्फ एक शब्द के अर्थ के लिए |शोभना चौरेhttps://www.blogger.com/profile/03043712108344046108noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-36796904663877061242009-10-28T23:29:37.440+05:302009-10-28T23:29:37.440+05:30अजीत भाई आपका लिखा पसंद आया मेरा पूरा समर्थन आपको ...अजीत भाई आपका लिखा पसंद आया मेरा पूरा समर्थन आपको है ,दर असल इस मुद्दे को कुक लोग साम्प्रदायिक रंग देने की कोशिश कर रहे थे और जब मुद्दे ने दम तोड़ दिया तो चिटठा और नामवर के ककारे पर आकर अटक गए ..जवाब तो आना ही था आपने विस्तार से और धैर्य दिखाया आपका ये अंदाज़ पसंद आया ....चिट्ठा जगत जिंदाबादVIMAL VERMAhttps://www.blogger.com/profile/13683741615028253101noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-30280761273563050632009-10-28T23:28:57.159+05:302009-10-28T23:28:57.159+05:30हम जानते थे कि अन्ततः सब हिसाब बराबर हो जाएगा। तभी...हम जानते थे कि अन्ततः सब हिसाब बराबर हो जाएगा। तभी तो चुपचाप केवल पढ़ रहे थे। :)सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठीhttps://www.blogger.com/profile/04825484506335597800noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-46671261768826792402009-10-28T22:43:08.074+05:302009-10-28T22:43:08.074+05:30@कुश अगर यही तुम्हारा कमेन्ट करने की शैली है तो बध...@कुश <br>अगर यही तुम्हारा कमेन्ट करने की शैली है तो बधाई स्वीकार करिए .....:)............<br>मुझे किसी के ब्लॉग पर जाने की जरूरत नहीं है .....चचा पहले तो किसी के बारे में ससुर नहीं लिखता था और अब तुम्हारे बारे में ही लिखता कभी और किसी के बारे में तो नहीं लिखा है .... और हा <b>मुकदमा कब कहाँ और किस पर किया जाता है ये हमें पता है.<br></b>जल्दी जाकर मुकदमा दर्ज करवा दीजिये<b> .......रक्त चाप किसका बढा है </b>पूरा ब्लॉग जगत जानता है<b> ..........चचा हमारे ही नहीं ....</b><b>पुरे ब्लागजगत के फेवरेट है....</b><b> <br></b>Mishra Pankajhttps://www.blogger.com/profile/02489400087086893339noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-72381872066162114752009-10-28T22:04:33.885+05:302009-10-28T22:04:33.885+05:30खाम खा ही चिट्ठाकार शब्द के पेटेंट के लिए लड़ाई हो...खाम खा ही चिट्ठाकार शब्द के पेटेंट के लिए लड़ाई हो रही है...चिट्ठाकार शब्द के बारे में अजित जी अपने शब्दों के सफर में जरूर बताएंगे....वैसे राजस्थानी में चिट्ठाकार या चिटठा लेखक मुंशी,मोहर्रिर या लिपिकार को कहा जाता था जो खर्रा,खसरा,लेखा जोखा अथवा हिसाब किताब रखते थे.पर हिंदी ब्लॉग्गिंग को चिटठा और हिंदी ब्लॉगर को चिट्ठाकार कहकर शायद हिंदी लेखन का हिसाब चुकता कर फरगति रसीद लेने की इच्छा की जा रही है.मैं तो चिटठा शब्द को ब्लॉग्गिंग के लिए अनुपयुक्त मानता हूँ.ब्लॉगर को चिट्ठाकार कहा जाता है तो फिर हिसाब ही चुकता होंगे.वैसे ब्लॉग का उद्भव भी ब्ला-ब्ला-ब्ला-ब्ला-से हुआ है.ये तो कथित बुद्धिजीवियों और साहित्यकारों ने इसमें आकर अतिक्रमण किया है जिसपर तत्काल बुलडोजर चलाने की आवश्यकता है.लगता है ब्लॉग जगत में अंत में दो तरह के लोगों की हुकूमत बचेगी---<br />१.हिसाब चुकता करने वाले<br />२.ब्ला-ब्ला-ब्ला-ब्ला-ब्ला-ब्ला-ब्ला-ब्ला-ब्ला-ब्ला-..करने वाले.<br /><br />तो ब्लॉग जगत के आने वाले शहंशाहों के लिए सिंहासन खाली किये जाएं.<br /><br />ऐ खाक नशीनों उठ बैठो <br />वो वक्त करीब अब आ पहुंचा<br />जब तख्त गिराए जाएंगें <br />और ताज उछाले जाएंगे <br />अजित जी आपको सार्थक पोस्ट लिखने के लिए धन्यवाद और आभार.प्रकाश पाखीhttps://www.blogger.com/profile/09425652140872422717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-89992830365068969432009-10-28T21:46:20.776+05:302009-10-28T21:46:20.776+05:30@पंकज बाबु
मुकदमा कब कहाँ और किस पर किया जाता है य...@पंकज बाबु<br />मुकदमा कब कहाँ और किस पर किया जाता है ये हमें पता है.. पूर्वाग्रहों को खूँटी पे टांग कर पढोगे तो देखोगे कि मैंने कहा है किसी ब्लॉग पर ब्लोगिंग की पहली शोले शब्द था.. ब्लॉग पर तो पहले हम ही लाये थे ना बाबु.. ??? ब्लोगिंग की मियां.. ब्लोगिंग की.. बात कर रहे है.. और वैसे भी जिन शब्दों को आपने बोल्ड करके लिखा है.. उसको पढ़कर कोई बेवकूफ ही होगा जो ये समझेगा कि मैंने किसी के ऐसा करने पर आपत्ति जताई है.. मियां मैंने आपत्ति नहीं जताई है.. वो ही तो कह रहा हूँ... आप खामख्वाह अपना रक्त चाप बढा रहे है...<br /><br />बाकी जिस ससुर शब्द को आप हटाने की बात कर रहे है.. तो शायद आपके फेवरेट चचा के ब्लॉग पर नज़र डालिए.. गैरत बाकि हो तो कुछ एडिट्स वहां पर भी करवाईयेगा.. नहीं भी करवाए तो कोई फर्क नहीं पड़ता.. वैसे भी मालामाल वीकली फिल्म के डायलोग तो आपको याद ही है.. एक डायलोग था उस फिल्म का "हाथी चले बाज़ार कुत्ते भोंके हज़ार.. " याद आया ?कुशhttps://www.blogger.com/profile/04654390193678034280noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-90848602389464181492009-10-28T21:45:03.300+05:302009-10-28T21:45:03.300+05:30अब ससुर, कुश के लिखे ससुर पर ससुर एकु नवा सफर शुरु...<i><br />अब ससुर, कुश के लिखे ससुर पर ससुर एकु नवा सफर शुरु हुई गवा ।<br />विचार किया जाय कि प्रपँच ससुर केवल कुश के कॉपीराइट ससुर काहे होय गये, जईसे एकु ब्लॉगर केर ससुर, वईसने सकल ब्लॉगरन के ससुर ! <br />एकु नारा सुना रहा कि ’ ब्लॉगर ब्लॉगर भाई भाई, तौन रिश्ते से प्रपँच ससुर हम सबन के ससुर हुई गे ! <br />माफ़ी दिहौ पँकज जी, जौन ससुर न होत त ब्लॉगिंग में टाइम झोंके ख़ातिर केहिकै बिटिया हमका चाय बनाय के देत । <br />चाय डकार के हम ससुर का ससुरौ न कही, ई त बड़ा गड़बड़ है, फ़िलिम वालन का " हमरा ससुरा बड़ा पईसे वाला " हिट होय गवा, त ब्लॉगरन का प्रपँच ससुर इत्तौ गवा-बीता नहीं हैं कि उनकेर नामौ लीन गुनाह हुई जाय ।<br />काहे से कि प्रपँच अउर विवादै त हम ब्लॉगरन के ज़िन्दा कौम होय का सबूत है, बोले तो अईसने त हम बनबै लोकतँत्र का चौथा खँभा । <br />विनती है कि टॉपिकश्रेष्ठ श्री प्रपँच जी का हमार ससुर पद से पदच्युत न किया जाय । बदले मॉ आपौ लेयो एक ईस्माइली :)<br /></i>डा० अमर कुमारhttps://www.blogger.com/profile/09556018337158653778noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-84995398379210314732009-10-28T20:35:54.945+05:302009-10-28T20:35:54.945+05:30@ कुश यु तो हमने भी ब्लोगिंग में एक पिक्चर बनायीं ...@ कुश<br><br><b> यु तो हमने भी ब्लोगिंग में एक पिक्चर बनायीं थी शोले.. उसके बाद किसी ब्लॉग पर लिखा गया ब्लॉग जगत की पहली शोले.. पर हमने तो बवाल नहीं बचाया.. यदि कोई क्रेडिट लेकर खुश हो जाये तो होने दो.. जो रो रहा है उसको रोने दो.. यही मूल फंडा है..</b><br><br>आपके साथ तो मामला कापी राईट का बनता है. आप सबसे पहले तो ताऊ और उससे भी पहले जी.पी. सिप्पी साहब पर मुकदमा ठोक दो। और काफ़ी विद कुश की नकल के लिये कर्ण जोहर पर मुकदमा लगा दो। आखिर इन लोगों की हिम्मत कैसे हुई कि कुश के मौलिक लेखन की कापी करके शोले बना डाली और कर्ण जोहर ने काफ़ी विथ कर्ण सीरियल बना डाला।<br><br><b>ससुर इन प्रपंचो में फँसना इस नोट ब्लोगिंग</b>.. इस तरह की असंसदीय भाषा लिखना बुरी बात है.. श्रीमान मौलिक साहब।<br><br>मैं ब्लाग मालिक से अनुरोध करुंगा कि इस टिप्पणी मे से <b>ससुर</b> शब्द हटाया जाना चाहिये।<br><br><br><br><br>Mishra Pankajhttps://www.blogger.com/profile/02489400087086893339noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-35474723915939518102009-10-28T20:13:14.653+05:302009-10-28T20:13:14.653+05:30सब पढ़ लिये..सब पढ़ लिये..PDhttps://www.blogger.com/profile/17633631138207427889noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-14304217247314424652009-10-28T19:57:53.564+05:302009-10-28T19:57:53.564+05:30वैसे किसी से पूर्ण सहमति हो तो मतलब होता है कि कम ...वैसे किसी से पूर्ण सहमति हो तो मतलब होता है कि कम से कम एक ही चिन्तक है .दूसरा अनुयायी ,या मूरख . फिर भी ......<br />दिनेश द्विवेदी जी और कुश से सहमत हूँ (लेकिन सोच समझ कर :)).<br />मुझे भी व्यक्तिगत रूप से भी सूचना मिली थी ,निमंत्रण भी , सिद्धार्थ जी से ,पर उसी रात न्यूयार्क की उडान थी, मुंबई से ,पूर्व निर्धारित , इसलिए मन मसोस कर रह गया ,न आ सका . तमन्ना बस ये थी कि सभी आनेवाले ब्लोगरों से मुलाकात होगी .और हिन्दी ब्लॉग (?) परिवार से मिल कर आनंद .शास्त्रीय चिंतन मनन अभिप्राय भी न था ( विभिन्न रिपोर्टिंग और टिप्पणियों पढ़ कर वह बिना आये ही हो गया ).<br />बहरहाल आगे बाधा बिना बढा जाये और खामियां अगर रही हों तो आगे दोहराई न जाएँ .सब मिलें ,इतना ही कम है ? (भले सरकारी खर्च या व्यक्तिगत आनंद से ही )<br />आगे भी मिलें . हाँ इलाहबाद इस संगम समागम के लिए सही चुनाव था .<br />निराला की तर्ज़ पर कहूं ?<br />'मैंने उसे (?) देखा इलाहबाद के पथ पर ,कूटते ब्लोगर '.<br />शायद आगे भी इसी तरह के सम्मलेन हों . मिलना मिलाना तो होता रहे . वैसे किसका नहीं है मठ , और कौन नहीं होना चाहता है मठाधीश ? मैं भी . दुर्भाग्य यह है कि फ़िलहाल मैं ही गुरु मैं ही चेला :):)<br />अजीत जी आपका लिखना दिनेश जी की तरह मुझे भी अच्छा लगा .आपके 'शब्द वेधों ' से कम नहीं था .<br />धन्यवाद लें .RAJ SINHhttps://www.blogger.com/profile/01159692936125427653noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-14480328975101176462009-10-28T19:35:25.331+05:302009-10-28T19:35:25.331+05:30इलाहाबाद सम्मेलन का सबसे बड़ा फायदा यह हुआ इस पर ल...इलाहाबाद सम्मेलन का सबसे बड़ा फायदा यह हुआ इस पर लिखो और ढेर सारी टिप्पणियाँ प्राप्त करो . <br />वैसे हम कौन अपने माँ बाप का नाम रोशन करने आये है यहाँ . खुद लिखते है और अपने जैसे लिखने वालो को पढ़वा देते है .हम अपनी दुनिया में मस्त है . बाहरी दुनिया का तो शायद ही पढता होगा हमारे चिट्ठे को .dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह }https://www.blogger.com/profile/06395171177281547201noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-78539787799546445592009-10-28T19:05:13.330+05:302009-10-28T19:05:13.330+05:30समीरजी, हमारा आदेश कोई नहीं है। अनुरोध है। कृपया द...समीरजी, हमारा आदेश कोई नहीं है। अनुरोध है। कृपया देखियेगा ईस्वामी की पोस्ट को और विचार कीजियेगा कि क्या वे तेवर सलाम करने वाले हैं? ये क्या सृजित कर रहे हैं हम लोग। पूरी पोस्ट देखियेगा मालिक।<br /><br />यह तो हमको सोचना होगी भाईजी कि गलत बात का विरोध भले न कर सकें (कुछ मजबूरियों के चलते) लेकिन गलत बात का सलामी समर्थन करने से तो बचा ही जा सकता है। किसी को कोई गाली दे रहा है और हम उस पर लिख रहे हैं वाह बहुत खूब! क्या कहा है। तो कहीं न कहीं उसका समर्थन ही तो कर रहे हैं। हम कितने भी शातिर क्यों न हों भाई जान! लेकिन दुनिया को हमारी असलियत पता चल ही जायेगी। हमारे अंदर कुंठा होगी तो उसको हम बहुत दिन तक छिपा नहीं सकते। असलियत का सतह पर आना उसकी नियति है।<br /> <br />कुछ ज्यादा कह गया हूं तो एक बार फ़िर अफ़सोस व्यक्त कर रहा हूं!अनूप शुक्लhttp://hindini.com/fursatiyanoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-69404183966713568242009-10-28T18:41:07.675+05:302009-10-28T18:41:07.675+05:30पता नहीं क्यूं पोस्ट नहीं हो रही
अजित भाई सच में...पता नहीं क्यूं पोस्ट नहीं हो रही<br /> <br />अजित भाई सच में पढके लगा कि जैसे यह मुझे ही लिखना चाहिये था।<br />आपसे सौ फ़ीसदी सहमत… इसी विषय पर बोधि भाई के ब्लाग पर विस्तृत प्रतिक्रिया दे चुका हूं।<br />-- <br />अशोक कुमार पाण्डेयअशोक कुमार पाण्डेयnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-65099342515555777352009-10-28T18:30:04.189+05:302009-10-28T18:30:04.189+05:30अनूप जी, आपका आदेश सर आँखों पर. आपने अफसोस जाहिर क...अनूप जी, आपका आदेश सर आँखों पर.<b> आपने अफसोस जाहिर कर दिया,</b> बस बात खत्म.Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.com