tag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post6144220146645433713..comments2024-01-18T18:37:01.064+05:30Comments on शब्दों का सफर: आर्कमिडीज और शिवकुमार मिश्र ! [बकलमखुद-21]अजित वडनेरकरhttp://www.blogger.com/profile/11364804684091635102noreply@blogger.comBlogger19125tag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-21617911825469780872008-04-28T16:20:00.000+05:302008-04-28T16:20:00.000+05:30वाह क्या जिंदगी जी है आपने भी...इंटरव्हियु में तो ...वाह क्या जिंदगी जी है आपने भी...इंटरव्हियु में तो कमाल ही कर दिया आपने... हमने तो यही सुना था कि लोग १९ का पहाडा पूछा करते थे, आपसे ये आउट ऑफ़ सिलाबस सवाल पूछ लिया गया था... :D<BR/><BR/>ये दोनाली बंदूक से आम तोड़ने वाली बात तो हमारे बचपन से मिलती है ... बस धाकड़ लोगों का साथ नहीं मिल पाया नहीं तो शायद हम भी कल्कत्ताचले गए होते :-)Abhishek Ojhahttps://www.blogger.com/profile/12513762898738044716noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-80082168477658838402008-04-28T16:03:00.000+05:302008-04-28T16:03:00.000+05:30हमारे उत्तर प्रदेश में आर्कमिडीज की वजह से कितने ब...हमारे उत्तर प्रदेश में आर्कमिडीज की वजह से कितने बच्चों की शादी हुई होगी.<BR/>शिव बंधू , ये बताईये की कमबख्त आर्कमिडीज की वजह से कितने बच्चों की शादी नहीं हुई होगी. अब आर्कमिडीज का सिधांत आप की तरह सब को थोड़े ही रटा रहता है. ऐसा कठिन सिधांत बनाया है की एक आध बार पढने से तो भेजे में घुसता ही नहीं. <BR/>आप की कथा पढ़ के लग रहा है की आप बचपन से ही बहुत पहुँची हुई हस्ती थे. बचपन में बंदूक से आम तोड़ते थे और जवानी में...????" लड़का कमाल ये तो.... अंखियों से गोली मारे..."<BR/>बहुत खूब. मजा आ रहा है. अजित भाई को कोटिश धन्यवाद जिन्होंने आप की असलियत से रूबरू करवाया.<BR/>नीरजनीरज गोस्वामीhttps://www.blogger.com/profile/07783169049273015154noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-49972968697429469792008-04-28T09:21:00.000+05:302008-04-28T09:21:00.000+05:30@ लावण्या जी,ये दुनाली बंदूक हमारे घर में सालों से...@ लावण्या जी,<BR/><BR/>ये दुनाली बंदूक हमारे घर में सालों से थी. इसका लाईसेंस है. असल में उनदिनों हमारे इलाके में डकैत बड़े सक्रिय थे. लिहाजा घर में किसी हथियार का होना आवश्यक समझा जाता था. <BR/><BR/>----शिवShivhttps://www.blogger.com/profile/05417015864879214280noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-20053839660069177802008-04-28T00:38:00.000+05:302008-04-28T00:38:00.000+05:30शिव भाई साहब , आपके किस्से बडे चाव से , मुस्कुराते...शिव भाई साहब ,<BR/> आपके किस्से बडे चाव से , मुस्कुराते हुए :)<BR/>पढ रहे हैँ हम भी!<BR/>ये बाताइये कि,<BR/> दोनाली बँदूक आपके पास <BR/>आई कैसे ? <BR/>क्या वो ,पूज्य दादा जी की थी ? <BR/>भारत मेँ ऐसा भी होता है ? <BR/><BR/>- लावण्यालावण्यम्` ~ अन्तर्मन्`https://www.blogger.com/profile/15843792169513153049noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-79662421293996645272008-04-27T23:32:00.000+05:302008-04-27T23:32:00.000+05:30बन्दूक से निशाना?वो भी उस उम्र में? भाई कमाल है......बन्दूक से निशाना?वो भी उस उम्र में? भाई कमाल है...बचपन तो आपका ज़बर्दस्त रहा होगा पढ़ कर लगता है...VIMAL VERMAhttps://www.blogger.com/profile/13683741615028253101noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-89575684302934031562008-04-27T22:04:00.000+05:302008-04-27T22:04:00.000+05:30बंदूक से आम तोड़े। ओर ऎसे दोस्त जिन्हे पुलिस भी सला...बंदूक से आम तोड़े। ओर ऎसे दोस्त जिन्हे पुलिस भी सलाम करती हो,आप उन सब के दोस्त हे तो भाई आप का अति सुन्दर लेख पढा हे तो टिपाण्णी भी जरुर देगे डर के मारे,राज भाटिय़ाhttps://www.blogger.com/profile/10550068457332160511noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-63286542849669557262008-04-27T21:52:00.000+05:302008-04-27T21:52:00.000+05:30अपने से बड़े 'छात्रों' के साथ क्लास बंक करके घूमना...अपने से बड़े 'छात्रों' के साथ क्लास बंक करके घूमना, क़स्बे के स्टेशन पर बैठे रहना, कालेज की तथाकथित राजनीति में हिस्सा लेना और पढाई न करके क़स्बे के टीन के छप्पर वाले छोटे से सिनेमाघर में सिनेमा देखना, ये सारे काम शुरू हो चुके थे. लिहाजा पढ़ाई बैकसीट पर चली गई. लोकल राजनीति में दिलचस्पी लेना शुरू हो चुका था. स्थानीय स्कूल और कालेज में पास वाले गांवों के 'धाकड़' छात्रों के बर्चस्व की लड़ाई देखना और समय-समय पर किसी ग्रुप के साथ दिखना, ये सारा कुछ जीवन में प्रवेश कर चुका था. ऐसे ग्रुप में कुछ छात्र तो इतने प्रतिभावान थे कि उन्हें बराबर पुलिस तलाश करती रहती. मैं ऐसे छात्रों के साथ भी अक्सर रहता.<BR/>----------<BR/><BR/>बस गाँव की जगह शहर कर दीजिये वो भी शाहजहांपुर, फिर आपकी और मेरी कहानी एक ही है |<BR/><BR/>बस बचपन में हमारे लिए रिश्ते नहीं आए, पिताजी परेशान हैं कि अभी भी नहीं आ रहे हैं | घर पर एक महीने कि छुट्टी में गए थे तो पिताजी ने सोचा लड़के वाले हैं , हमारे यहाँ तो लड़कियों वाले अपने आप आ जायेंगे | पिताजी अभी भी ३० साल पहले का सोच रहे थे, हम मंद मंद मुस्कुरा रहे थे कि बस इसी गलतफहमी में ३० दिन निकल जाएं | ३० दिन गुजर भी गए और कोई ख़बर लेने नहीं आया होनहार लड़के की :-)<BR/><BR/>अब सुना है कि पिताजी ने इधर उधर ख़बर फैलानी शुरू कर दी है :-)Neeraj Rohillahttps://www.blogger.com/profile/09102995063546810043noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-32062167240564798782008-04-27T19:19:00.000+05:302008-04-27T19:19:00.000+05:30कुछ चित्र भी शामिल करें तो और अच्छा रहे. लेखनी तो ...कुछ चित्र भी शामिल करें तो और अच्छा रहे. लेखनी तो जबरदस्त है ही मिश्र जी की.Ghost Busterhttps://www.blogger.com/profile/02298445921360730184noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-12211151327616381352008-04-27T17:36:00.000+05:302008-04-27T17:36:00.000+05:30बढ़िया विवरण। आनंद आया पढ़ करबढ़िया विवरण। आनंद आया पढ़ करManish Kumarhttps://www.blogger.com/profile/10739848141759842115noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-4360098743200044552008-04-27T10:44:00.000+05:302008-04-27T10:44:00.000+05:30सातंवी क्लास से इतने सारे रिश्ते और ये शादी का इंट...सातंवी क्लास से इतने सारे रिश्ते और ये शादी का इंटरवियु था या नौकरी का। बहुत ही सजीव चित्रण, हम आज भी आप को गांव के स्टेशन पर कान खुजाते राजनीति पर चर्चा करते आम के पेड़ के नीचे वो चाय की दुकान पर देख सकते हैं , कुछ पत्ता वत्ता भी खेले की नाहीं। चलो अच्छा हुआ बंदूक से सिर्फ़ आम ही तोड़े। <BR/>हमें भी लगता है कि पोस्ट जरा छोटी है जी थोड़ा और विस्तार से बताइए इतने मजेदार किस्सेAnita kumarhttps://www.blogger.com/profile/02829772451053595246noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-29152113439452635002008-04-27T10:38:00.000+05:302008-04-27T10:38:00.000+05:30ह्म्म्म्म, बचपन तो आपई ने जिया है हजूर, ऐसे कितने ...ह्म्म्म्म, बचपन तो आपई ने जिया है हजूर, ऐसे कितने बचपन होंगे जो बंदूक से आम तोड़ना तो दूर उसे छू या देख भी पाते होंगे।<BR/><BR/>इसके अलावा सातवीं कक्षा से ही डिमांड मे आ गए आप, वाह-वाह क्या कहने।<BR/><BR/>जारी रखें आनंद आ रहा है।Sanjeet Tripathihttps://www.blogger.com/profile/18362995980060168287noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-60027862461752484412008-04-27T09:47:00.000+05:302008-04-27T09:47:00.000+05:30मिसिर जी,आर्किमिडीज के जल प्लावन के सिद्धांत की सह...मिसिर जी,<BR/>आर्किमिडीज के जल प्लावन के सिद्धांत की <BR/>सही व सटीक परिभाषा बताकर<BR/>आप कभी यूरेका !!.... यूरेका ...!!!<BR/>कहकर भागे या नहीं ... भई ये तो आपने <BR/>बताया ही नहीं !<BR/>..... या फिर प्रश्न करने वाले ही आपको देखकर <BR/>यूरेका ! हो गये हों .....?????.......?????<BR/>======================================<BR/>आपकी यह सजीव ,आत्मीय और चुहल -चुटकियों के साथ <BR/>पाठकीय सहभागिता सुनिश्चित करने वाली शैली <BR/>सचमुच बहुत लुभा रही है. बधाई !<BR/>......... और आभार अजित जी .<BR/>आपका<BR/>डा.चंद्रकुमार जैनDr. Chandra Kumar Jainhttps://www.blogger.com/profile/02585134472703241090noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-48692820861839195062008-04-27T09:18:00.000+05:302008-04-27T09:18:00.000+05:30सही डाट पडी आपको,ये सिरे से गलत बात है कि आप आम को...सही डाट पडी आपको,ये सिरे से गलत बात है कि आप आम को गोली चलाकर तोडॆ, वो खाने काबिल नही रह जायेगा ना . इसीलिये हमने जब भी आम तोडे हमेशा पेड पर चढकर और वही बैठ कर खाये ,(नीचे उतर कर दूसरो को भी देने पडते ना मीठे वाला माल) :)Arun Arorahttps://www.blogger.com/profile/14008981410776905608noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-30995639007543934952008-04-27T08:02:00.000+05:302008-04-27T08:02:00.000+05:30बन्दूक की गोली से आम तोड़ो, और कलकत्ते पहुँचो। बड़...बन्दूक की गोली से आम तोड़ो, और कलकत्ते पहुँचो। बड़ा कामयाब फारमूला अपनाया। आप की इस कथा में नवरस होने चाहिए। कुछ कम पड़ रहे हैं।दिनेशराय द्विवेदीhttps://www.blogger.com/profile/00350808140545937113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-60468628293352754742008-04-27T07:06:00.000+05:302008-04-27T07:06:00.000+05:30@ अजित वडनेरकर :कोई बात नहीं अगर प्रणव प्रियदर्शी ...<B>@ अजित वडनेरकर :</B>कोई बात नहीं अगर प्रणव प्रियदर्शी आपने लिख दिया है तो इसे प्रशांत प्रियदर्शी बना दीजिये.. वैसे भी क्या फर्क परता है.. अगर नाम के साथ ब्लौग्वा का लिंक दिए होते तो १०-१५ लोगों का ट्रैफिक मिलता.. यही सोच कर की ये प्रनाववा कौन है.. प्रशांत देख कर तो कोई आता नहीं.. :)PDhttps://www.blogger.com/profile/17633631138207427889noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-32909887845520878442008-04-27T07:03:00.000+05:302008-04-27T07:03:00.000+05:30हम सब कुछ समझ गए.. यहाँ ये सब इसलिए लिखा जा रहा है...हम सब कुछ समझ गए.. यहाँ ये सब इसलिए लिखा जा रहा है की आगे से शिव भैया को कोई ना चिढाये.. तभी तो गोली बंदूक की बाते हो रही है,.. अगले अंक में हम तो तोप की डिमांड करते हैं.. की कैसे शिव भैया तोप से अंगूर तोडे.. :)PDhttps://www.blogger.com/profile/17633631138207427889noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-87274261968790010242008-04-27T06:21:00.000+05:302008-04-27T06:21:00.000+05:30ये जो गाना है न अंखियों से गोली मारे उ शायद उसके ब...ये जो गाना है न अंखियों से गोली मारे उ शायद उसके बाद ही बना है जब आप बन्दूक से आम तोड़ रहे थे। मजा आ रहा है। लेकिन प्राब्लम ई है कि लेख ससुरा शुरू होते ही खतम हो जाता है। मुन्ना भाई का कमरा हो गया।अनूप शुक्लhttps://www.blogger.com/profile/07001026538357885879noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-90705075098072807422008-04-27T05:30:00.000+05:302008-04-27T05:30:00.000+05:30मजा आ रहा है. जारी रहे.आप तो बहुत "धाकड़" निकले.मजा आ रहा है. जारी रहे.आप तो बहुत "धाकड़" निकले.काकेशhttps://www.blogger.com/profile/12211852020131151179noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-20038001941111615122008-04-27T02:57:00.000+05:302008-04-27T02:57:00.000+05:30क्या बचपन जिया है आपने। मजा आ गया पढकर। यदि बचपन म...क्या बचपन जिया है आपने। मजा आ गया पढकर। यदि बचपन मे इतनी सारी बाते हो तो जीवन भर का सबक मिल जाता है। <BR/><BR/>बन्दूक से आम तोडना- अब तो आप उस बन्दूक का चित्र जरुर लगाइये अपने ब्लाग पर। ;)Pankaj Oudhiahttps://www.blogger.com/profile/06607743834954038331noreply@blogger.com