tag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post6479489578464708099..comments2024-01-18T18:37:01.064+05:30Comments on शब्दों का सफर: दो महिनों में सत्रह फिल्में!!![बकलमखुद-96]अजित वडनेरकरhttp://www.blogger.com/profile/11364804684091635102noreply@blogger.comBlogger25125tag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-40799932864528999042009-08-14T23:15:22.368+05:302009-08-14T23:15:22.368+05:30सबसे बढिया बात ये कि यहाँ हिन्दी में टाइप करने की ...सबसे बढिया बात ये कि यहाँ हिन्दी में टाइप करने की सुविधा बहुत ही बढिया है.<br /> <br />ये इस देश का कुसंस्कार है कि होशियार कहलवाए जाने के लिए अंग्रेजी बढिया होने का प्रमाण पत्र पास में हो.<br /> <br />कितने ही लोग शिक्षण, चिकित्सा और अभियांत्रिकी में अपना डंका बहा रहे होते अगर इस म्लेच्छ भाषा की गुलामी नहीं होती.Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/13199219119636372821noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-72022080859007259162009-08-12T23:06:41.807+05:302009-08-12T23:06:41.807+05:30अंग्रेजी पढ़े लिखे कईयों को बढिया नौकरी और पेशा भी...अंग्रेजी पढ़े लिखे कईयों को बढिया नौकरी और पेशा भी मिला - हिन्दी को भारतीय सरकार और लोग अगर सन्मान नहीं देंगें , तब आगे क्या होगा ? <br />ये कड़ी भी पसंद आयी <br />स्नेह, <br />- लावण्यालावण्यम्` ~ अन्तर्मन्`https://www.blogger.com/profile/15843792169513153049noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-44056234800246853042009-08-12T10:02:36.019+05:302009-08-12T10:02:36.019+05:30मैं अंग्रेजी और हिन्दी को एक दूसरे का पूरक मानता ह...मैं अंग्रेजी और हिन्दी को एक दूसरे का पूरक मानता हूँ। भाषाएँ नहीं भाषाई पूर्वग्रह समस्या उत्पन्न करते हैं।<br /><br /> अंग्रेजीदाँ लोग जब कॉम्प्लेक्स वाली बातें करते हैं तो मैं हिन्दी, वह भी चालू किस्म की हिन्दी में शुरू हो जाता हूँ। कोई भोजपुरिया पास हो तो बल्ले बल्ले।<br /><br />मेरे इलाके के कभी सी बी आर आई के निदेशक हुआ करते थे। जब मिलें तो चाचा कहीं भी भोजपुरी में ऐसे शुरू होते थे कि आस पास के लोग चौंक जाते थे। विडम्बना ! उनके लड़के भोजपुरी नहीं बोल पाते। <br /><br />बहुत जटिल मामला है। लेकिन यदि हिन्दी वाले पूर्वग्रह से मुक्त हों तो अंग्रेजी से हिन्दी को समृद्ध किया जा सकता है। काम चल ही रहा है।गिरिजेश राव, Girijesh Raohttps://www.blogger.com/profile/16654262548719423445noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-65234817123959752152009-08-12T07:35:35.910+05:302009-08-12T07:35:35.910+05:3017 फिल्में, अंग्रेजी का भूत, पहले साल की असफलता!
य...17 फिल्में, अंग्रेजी का भूत, पहले साल की असफलता!<br />यह तो लगता है कि आप मेरी ही बात कर गए :-)<br /><br />वैसे अंग्रेजी के समाचार पत्रों से शब्द ज्ञान तो अवश्य बढ़ता है। उस समय के हिंदी समाचारपत्रों के साथ भी यही बात थी, आजकल नहीं है :-(Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-19252217176000597232009-08-12T01:16:24.177+05:302009-08-12T01:16:24.177+05:30@प्रकाश पाखी
तारीफ़ का शुक्रिया हुजूर। सफ़र दिलचस्...@प्रकाश पाखी<br />तारीफ़ का शुक्रिया हुजूर। सफ़र दिलचस्प न हो तो सारा वक्त खराब हो जाता है इसलिए शब्दों के सफर को बेहतर बनाने की लगातार कोशिश रहती है। बने रहें साथ....अजित वडनेरकरhttps://www.blogger.com/profile/11364804684091635102noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-54068512999739049812009-08-11T22:54:28.533+05:302009-08-11T22:54:28.533+05:30वाह जी वाह उस समय तो सरे रिकार्ड टूट गए होंगे १७ प...वाह जी वाह उस समय तो सरे रिकार्ड टूट गए होंगे १७ पिच्चर <br />मगर आज कल के डीवीडी जमाने में दो महीने में १०० भी देखी जा सकती है :)<br /><br />वीनस केसरीवीनस केसरीhttps://www.blogger.com/profile/08468768612776401428noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-82706730976250185472009-08-11T20:50:52.108+05:302009-08-11T20:50:52.108+05:30अंग्रेजी भाषा का ज्ञान होना अच्छा ही है। लेकिन जो ...अंग्रेजी भाषा का ज्ञान होना अच्छा ही है। लेकिन जो नहीं जानते उन्हें हीनभावना से ग्रस्त नहीं होना चाहिए। मेरी १२वीं तक की पढ़ाई हिन्दी में हुई। उसके बाद पिता जी की इच्छा थी कि बी.ए. में एक विषय अंग्रेजी जरूर लूँ। प्रवेश परीक्षा में अच्छे अंक मिले तो मैने अपने प्रिय विषय मनोविज्ञान, दर्शन और राजनीति विज्ञान चुन लिया। पिताजी ने फिर कहा कि बिना अंग्रेजी पढ़े क्या कर पाओगे? मैंने मजबूरी में दर्शन छोड़कर अंग्रेजी विषय पाने के लिए प्रार्थना पत्र लिखा और विश्वविद्यालय के एक छात्रनेता के पास सिफारिश कराने के लिए पहुँच गया क्योंकि संशोधन का समय बीत चुका था। उन्होंने मेरा प्रार्थना पत्र पढ़ा और फाड़कर फेंक दिया। बोले- इतनी बड़ी मूर्खता क्यों करना चाहते हो। दर्शनशास्त्र ही तुम्हे आगे सफलता दिलाएगा। <br /><br />मैने पिताजी की इच्छा का जिक्र किया तो व्यग्य में हँस पड़े, फिर चुनौती देते हुए बोले, “इतना ही अंग्रेजी का शौक है तो सारे विषय ही अंग्रेजी माध्यम से पढ़ लो...!”<br /><br /><br />मैं इस चुनौती के लिए तैयार तो हो गया लेकिन उसके बाद वही पापड़ बेलने पड़े जिनका जिक्र यहाँ किया गया है। गनीमत ये रही कि कभी फेल नहीं होना पड़ा और प्रथम श्रेणी भी बरकरार रही। बाद में अंग्रेजी माध्यम ने खूब नम्बर दिलाए। यह बात अलग है कि हिन्दी हमेशा मेरे दिल के करीब रही और आज भी मुझे इसका प्रयोग बहुत सुकून देता है।<br /><br />दर्शन शास्त्र का आजीवन ऋणी तो हो ही गया हूँ जिसने मुझे हर परीक्षा में सम्बल प्रदान किया और नौकरी भी दिला दिया।सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठीhttps://www.blogger.com/profile/04825484506335597800noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-60555339506592607922009-08-11T20:29:32.529+05:302009-08-11T20:29:32.529+05:30दूसरी फिल्मो के नाम भी बता देते ...कोई अडल्ट फिल्म...दूसरी फिल्मो के नाम भी बता देते ...कोई अडल्ट फिल्म रिलीज नहीं होती थी उन दिनों?.....हम तो एक बार ही गए थे ..उसमे इत्ता डर की कोई पहचान वाला न मिल जायेडॉ .अनुरागhttps://www.blogger.com/profile/02191025429540788272noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-15013655527477049442009-08-11T20:12:21.719+05:302009-08-11T20:12:21.719+05:30अंग्रेजी से अपना भी छत्तीस का आकडा रहा है हमेशा से...अंग्रेजी से अपना भी छत्तीस का आकडा रहा है हमेशा से . अंग्रेजी फिल्मे देखि है बिना समझे ,टर्मिनेटर जैसीdhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह }https://www.blogger.com/profile/06395171177281547201noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-77032945484587699142009-08-11T19:17:12.390+05:302009-08-11T19:17:12.390+05:30लगातार पढ़ रहा हूँ,
बहुत रोचक...सूचनात्मक
और प्रेरक...लगातार पढ़ रहा हूँ,<br />बहुत रोचक...सूचनात्मक<br />और प्रेरक भी हैं कडियाँ.<br />=====================<br />आभार <br />डॉ.चन्द्रकुमार जैनDr. Chandra Kumar Jainhttps://www.blogger.com/profile/02585134472703241090noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-42231860726153928472009-08-11T18:52:55.887+05:302009-08-11T18:52:55.887+05:30बहुत उम्दा संस्मरणबहुत उम्दा संस्मरणAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-81708968103607595152009-08-11T18:44:51.072+05:302009-08-11T18:44:51.072+05:30अजित साहब,
आपके ब्लॉग की खासियत है कि वह इतने उच्च...अजित साहब,<br />आपके ब्लॉग की खासियत है कि वह इतने उच्च मानदंडों को हर पोस्ट में बरकरार रखता है...और कम समय अन्तराल में एक से बढ़ कर एक उम्दा पोस्ट मिलती है...आश्चर्य इस बात पर होता है कि हमारे प्रिंट और विसुअल मीडिया में वह स्तर क्यों दिखाई नहीं पड़ता है...पर मेरे जैसे सोच कर कुछ जरा लम्बी टिप्पणी करने की इच्छा रखने वाले पाठक को एक टिप्पणी लिखने तक अगली दो पोस्ट आ जाती है....जेवियर मोरो के पेशन इंडिया पर आपकी दी जानकार पर दो दिन तक उस पर सोचता रहा...आपने एक कालखंड की यात्रा करा दी....तब तक भोंपू,ढीढोरची ढोल वाली पोस्ट आगई...और आज टिप्पणी लिखने बैठा तो बकलमखुद देखी ...अंग्रेजी की उपयोगिता पर किसी को संदेह नहीं है...आपत्ति मात्र इतनी है कि योग्यता के लिए भाषा कि सुविधा के बजाय अंग्रेजी भाषा ही योग्यता हो गई...रविन्द्रनाथ टैगोर की रचनाओं को उनकी श्रेष्ठता के कारण अंग्रेजी में अनुवाद किया गया था..क्या उनको नोबल पुरस्कार प्राप्त करने के लिए अंग्रेजी में लिखना अनिवार्य होना चाहिए था?मानव सभ्यता की उन्नति के लिए आवश्यक है कि वह अपने सदस्यों की योग्यता के समुचित उपयोग का आधार तैयार करे न कि भाषा या किसी अन्य बहाने को किसी योग्यता को कुंठित करने का औजार बनाए...<br />अत्यंत श्रेष्ठ रव्ह्नाओं कि प्रस्तुति के लिए आभार...<br />प्रकाश पाखी.प्रकाश पाखीhttps://www.blogger.com/profile/09425652140872422717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-20705455829794293662009-08-11T17:07:59.795+05:302009-08-11T17:07:59.795+05:30आगे का इंतज़ार है!
हम जब विज्ञान में स्नातक हुए, हि...आगे का इंतज़ार है!<br />हम जब विज्ञान में स्नातक हुए, हिंदी माध्यम में किताबे आ गयी थीं. खुशकिस्मती हमारी.<br />अब थोडी समझे हैं अंग्रेजी पर जैसा नामवर जी ने कहा उस घोडे की सवारी कभी मत करो जिसकी लगाम तुम्हारे हाथ में न हो, तो अब भी डर लगता है.sanjay vyashttps://www.blogger.com/profile/12907579198332052765noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-23641245363515296212009-08-11T14:23:50.444+05:302009-08-11T14:23:50.444+05:30मुनीश भाई से सहमत हूं। जो लोग मिशनरियों को कोसते ह...मुनीश भाई से सहमत हूं। जो लोग मिशनरियों को कोसते हैं उन्हें उनकी अच्छाइयों की जानकारी नहीं है। धर्म परिवर्तन कोई भी अपनी मर्जी से करता है, दूसरी बात यह कि यह काम इतना ही प्रभावी होता तो इस देश में ईसाई जमात का प्रतिशत इतना कम न रहा होता।अजित वडनेरकरhttps://www.blogger.com/profile/11364804684091635102noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-32158613861476776252009-08-11T09:22:11.539+05:302009-08-11T09:22:11.539+05:30जे बात ! फिल्में तो हमने थोडी लेट शुरू की... अंग्र...जे बात ! फिल्में तो हमने थोडी लेट शुरू की... अंग्रेजी थोडी पहले ... छठी कक्षा से पढना चालु किया था लेकिन उसके पहले घर पे बहुत रटाया गया था. पर आज भी परेशान करती है :) जहाँ मौका मिलता है हिंदी नहीं छोड़ते. अंग्रेजी तो मज़बूरी है. और अब तो ये मजबूरी बचपन से ही हो जाती है. हमें तो फिर भी बाद में पता चली.Abhishek Ojhahttps://www.blogger.com/profile/12513762898738044716noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-33278149121882002492009-08-11T08:57:22.275+05:302009-08-11T08:57:22.275+05:30याद आया कि प्रोफ़ेसर पिता के आतंक से मुक्त हो जब हम...याद आया कि प्रोफ़ेसर पिता के आतंक से मुक्त हो जब हम गोरखपुर बीए करने पहुंचे तो पहले साल लगभग रिज़ एक फ़िल्म देखी…फिर जो ऊब पैदा हुई तो अब साल में एक देख पाना मुश्किल है…Ashok Kumar pandeyhttps://www.blogger.com/profile/12221654927695297650noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-87112874798304982212009-08-11T08:35:54.670+05:302009-08-11T08:35:54.670+05:30....और मुझे वहां किसी ने किसी धर्म के समर्थन या वि.......और मुझे वहां किसी ने किसी धर्म के समर्थन या विरोध में कभी कुछ नहीं कहा . ओउम हेल मदर मैरी !मुनीश ( munish )https://www.blogger.com/profile/07300989830553584918noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-75667155449555471122009-08-11T08:32:23.725+05:302009-08-11T08:32:23.725+05:30इस मायने में मैं काफी भाग्यशाली रहा . मैं एक ईसाई ...इस मायने में मैं काफी भाग्यशाली रहा . मैं एक ईसाई रोमन कैथोलिक स्कूल में पढ़ा जहाँ सारे विषय हिंदी माध्यम से पढाये जाते थे मगर अँग्रेज़ी भाषा के पेपर को अंग्रेजी माध्यम स्कूलों की तरेह ही पढाया जाता था . मज़े की बात ये है पाँचवीं तक मैं एक टाट पट्टी वाले सरकारी स्कूल में पढ़ा और जब मैं इस ईसाई स्कूल में गया तो मुश्किल मुझे संस्कृत पढने में हुई चूंकि वहां ये कक्षा चार से अनिवार्य थी जबकि सरकारी में कक्षा छः से और वो भी वैकल्पिक.! उग्र राष्ट्र वाद का प्रेमी और समर्थक होते हुए भी मैं कहना चाहता हूँ दोस्तो की शिक्षा का तमाम ठेका भारत में शान्ति से ईसाई संस्थाओं को ही दे दिया जाना चाहिए , उन जैसा समर्पण और त्याग हम में नहीं है ...नहीं है ...नहीं है ! .मुनीश ( munish )https://www.blogger.com/profile/07300989830553584918noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-36658075026052179032009-08-11T08:25:14.286+05:302009-08-11T08:25:14.286+05:30वाकई ये बहुत बड़ी कमजोरी है जिससे हम भी गुजर चुके ...वाकई ये बहुत बड़ी कमजोरी है जिससे हम भी गुजर चुके हैं पर धीरे धीरे सब ठीक हो जाता है।विवेक रस्तोगीhttps://www.blogger.com/profile/01077993505906607655noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-80774090170627265802009-08-11T08:19:32.689+05:302009-08-11T08:19:32.689+05:30भाई मुझे बहुत मज़ा आया ये संस्मरण पढ़करभाई मुझे बहुत मज़ा आया ये संस्मरण पढ़करअनिल कान्तhttps://www.blogger.com/profile/12193317881098358725noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-80415322664524668162009-08-11T07:57:32.061+05:302009-08-11T07:57:32.061+05:30रोचक संस्मरण प्रकाशित करने के लिए,
धन्यवाद।रोचक संस्मरण प्रकाशित करने के लिए,<br />धन्यवाद।डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'https://www.blogger.com/profile/09313147050002054907noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-41037233800011454672009-08-11T06:23:51.520+05:302009-08-11T06:23:51.520+05:30अरे यह तो बड़ी किरकिरी हो गयी ...आप लोग तो शायद इस ...अरे यह तो बड़ी किरकिरी हो गयी ...आप लोग तो शायद इस परेशानी से उबर पाए मैं तो आज भी झेल रहा इस विदेशी भाषा हूँ को !Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-68669247711194150132009-08-11T05:37:43.952+05:302009-08-11T05:37:43.952+05:30इसी परेशानी से हम भी दो चार हुए थे लेकिन किसी तरह ...इसी परेशानी से हम भी दो चार हुए थे लेकिन किसी तरह पार पा गये. बहुत उम्दा संस्मरण रहा!!Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-26530339992472944212009-08-11T03:22:21.080+05:302009-08-11T03:22:21.080+05:30मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ, मगर काबू पा लिया गया. ...मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ, मगर काबू पा लिया गया. भारतीय शिक्षा व्यवस्था की कड़वी हकीकत को आपने सुन्दर शब्दों में आपने बयान किया है.. <br />कालेज की ज़िन्दगी का एक पहलू यह भी है...Sachihttps://www.blogger.com/profile/04099227991727297022noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-27999678851922622822009-08-11T03:16:28.066+05:302009-08-11T03:16:28.066+05:30आज की पोस्ट इस कड़ी की बेहतरीन प्रस्तुति है। अंग्र...आज की पोस्ट इस कड़ी की बेहतरीन प्रस्तुति है। अंग्रेजी का जैसा धड़का सरदार को था वैसा ही हमें भी था। सरदार तो वकीलसाब बनकर इस कमजोरी से पार पा गया, हम क्या करें?<br /><br />अंग्रेजों ने अंग्रेजी इसलिए नहीं सिखाई थी कि हमारे हिन्दीभाषी मध्यवित्त परिवेश वाले विद्यार्थी इस क़दर निरीह हो जाएं। लानत है हमारी शिक्षा पद्धति, बुद्धिजीवियों और नियामकों पर जिनकी उदासीनता के चलते छह दशकों बाद भी हिन्दी के बूते हम सर उठा कर तब तक नहीं चल सकते जब तक अंग्रेजी में प्रवीण न हो जाएं।<br />(ये हिन्दी बनाम अंग्रेजी की भूमिका नहीं हैं, सिर्फ तत्काल टिप्पणी है)अजित वडनेरकरhttps://www.blogger.com/profile/11364804684091635102noreply@blogger.com