tag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post7019846908109735612..comments2024-01-18T18:37:01.064+05:30Comments on शब्दों का सफर: एक मातृभाषा की मौतअजित वडनेरकरhttp://www.blogger.com/profile/11364804684091635102noreply@blogger.comBlogger13125tag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-53201344783709254102010-10-08T05:03:41.452+05:302010-10-08T05:03:41.452+05:30बड़ी सुंदर बात की है आपने. अमेरीका ही नहीं भारत भी...बड़ी सुंदर बात की है आपने. अमेरीका ही नहीं भारत भी राजस्थानी जैसी भासा का दम घोटने पर तुला हुआ है. अगर भारत का ये रवैया आने वाले २० वर्षों तक इसीप्रकार रहा तो या तो भारत में अलगाववाद की संभावना है या फिर राजस्थानी को दुनिया से रुकसत होना पडेगा.Hanvanthttps://www.blogger.com/profile/00692952593450833405noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-85913375872452220422008-09-18T20:04:00.000+05:302008-09-18T20:04:00.000+05:30" एक दीप सौ दीप जलाये मिट जाये अँधियारा "जब तक काल..." एक दीप सौ दीप जलाये मिट जाये अँधियारा "<BR/>जब तक कालिदास रहेँगेँ,सँस्कृत के प्रति आकर्षॅण रहेगा<BR/>मानस के साथ जीवित रहेगी अवधी और नरसैँया के भजन से ठेठ गुजराती,<BR/>हिन्दी को हम और आप २१ वीँ सदी मेँ आगे बढाने का भगीरथ प्रयास करते रहेँगेँ<BR/>आशावान हूँ ...इसीलिये शायद, इस तरह सोच रही हूँ ..चलिये, अब देखते हैँ मुन्न्ना भाई बम्बइया अँदाज़ मेँ क्या बोले ...<BR/><BR/>- लावण्यालावण्यम्` ~ अन्तर्मन्`https://www.blogger.com/profile/15843792169513153049noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-72555214192015777692008-09-18T14:42:00.000+05:302008-09-18T14:42:00.000+05:30ये तो हम लोगों पर ही है की हम अपनी भाषा को कितना स...ये तो हम लोगों पर ही है की हम अपनी भाषा को कितना संजोते हैं.आजकल बहुत कम लोग अपने बच्चों को मातृभाषा सीखाते हैं.इंग्लिश का ज़माना है,हिन्दी बोलने में भी शर्म मह्सूस करते हैं.सभी को एक बार ये संपादकीय जरूर पढ्ना चाहिये.Unknownhttps://www.blogger.com/profile/01634947543138803817noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-83785314963350502652008-09-17T19:50:00.000+05:302008-09-17T19:50:00.000+05:30हिन्दी तो नहीं पर कई आंचलिक भाषाओँ का यही हाल होना...हिन्दी तो नहीं पर कई आंचलिक भाषाओँ का यही हाल होना है... इसके लक्षण दिख रहे हैं... शायद शादियों बाद हिन्दी का भी ये हाल हो ! <BR/><BR/>धन्यवाद इस सम्पादकीय के लिए.Abhishek Ojhahttps://www.blogger.com/profile/12513762898738044716noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-46643620280326653292008-09-17T14:47:00.000+05:302008-09-17T14:47:00.000+05:30एक चेतावनी परक आलेख ,पर क्या भाषा विचार से बढ़कर ह...एक चेतावनी परक आलेख ,पर क्या भाषा विचार से बढ़कर है ? आशा कीजिये मानव विचार बचा रहे -क्योंकि साईबोर्ग संस्कृति अब उस पर भी धावा बोल चुकी है !Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-66584655534367482702008-09-17T13:53:00.000+05:302008-09-17T13:53:00.000+05:30एक भाषा का जड़ से समाप्त हो जाना बहुत दुखद है...अभ...एक भाषा का जड़ से समाप्त हो जाना बहुत दुखद है...अभी भी चेत जाना चाहिए वरना कई भाषाएं इसी तरह दम तोड़ देंगी!pallavi trivedihttps://www.blogger.com/profile/13303235514780334791noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-29784991999094151232008-09-17T09:26:00.000+05:302008-09-17T09:26:00.000+05:30यह आलेख महत्वपूर्ण है और अनूप जी की टिप्पणी और भी ...यह आलेख महत्वपूर्ण है और अनूप जी की टिप्पणी और भी अधिक महत्वपूर्ण है। उन्हों ने इस प्रक्रिया की व्यापकता की ओर संकेत किया है जिस में अनेक चीजें नष्ट हो रही है।दिनेशराय द्विवेदीhttps://www.blogger.com/profile/00350808140545937113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-69186599020263307312008-09-17T08:50:00.000+05:302008-09-17T08:50:00.000+05:30आधुनिक...उत्तर आधुनिक जैसी संज्ञाएँ हमें उधार में ...आधुनिक...उत्तर आधुनिक जैसी <BR/>संज्ञाएँ हमें उधार में मिलीं हैं<BR/>और मूल धन से वंचित हम <BR/>अपनी ही ज़बान से हाथ धो बैठें <BR/>तो आश्चर्य की बात न होगी. एक <BR/>भाषा के निमित्त, यहाँ भाषाओं के <BR/>जीवन पर जो चिंता व्यक्त की गयी है<BR/>वह सचमुच चिंतनीय है...आभार.<BR/>============================<BR/>डॉ.चन्द्रकुमार जैनDr. Chandra Kumar Jainhttps://www.blogger.com/profile/02585134472703241090noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-1715383133242108022008-09-17T08:15:00.000+05:302008-09-17T08:15:00.000+05:30हर भाषा रोज़ किसी न किसी तरीके से मर रही है. रोज़ ...हर भाषा रोज़ किसी न किसी तरीके से मर रही है. रोज़ न जाने कितने शब्द लुप्त हो जाते हैं. विकास की इस अंधी दौड़ में शब्द और भाषा की चिंता अजित भाई आज किसको है? हम हमारी ही भाषाओं के साथ कैसा सलूक कर रहे हैं? यह देखने के लिए सितम्बर महीने में किसी भी सरकारी दफ्तर में चले जाइए, वहां हिन्दी भाषा की खूब माँ-बहिन हो रही है. चचा गालिब कह गए हैं ना 'कीजिये हाय हाय क्यूँ'Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/13562041392056023275noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-62190931183018749992008-09-17T08:05:00.000+05:302008-09-17T08:05:00.000+05:30यह केवल भाषाओं के साथ ही नहीं हो रहा है। जीवन के ज...यह केवल भाषाओं के साथ ही नहीं हो रहा है। जीवन के जुड़े हर पहलू के साथ यह हो रहा है। स्वाभाविक तौर पर। फ़िज के साथ घड़े गायब हो रहे हैं, डिस्पोजेबल ग्लास के साथ कुल्हड़। गांव में तमाम शब्द तिरोहित हो रहे हैं। शहर में नये बन रहे हैं, पुराने गायब हो रहे हैं। आप जैसे लोगों की दुआ है जो कुछ-कुछ झलक मिलती रहती है इस संपदा की।अनूप शुक्लhttps://www.blogger.com/profile/07001026538357885879noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-60962103608652259472008-09-17T07:48:00.000+05:302008-09-17T07:48:00.000+05:30आजकल कई इंग्लिश मीडियम स्कूलों में भी हिंदी बोलने...आजकल कई इंग्लिश मीडियम स्कूलों में भी हिंदी बोलने पर सख्त सजा दी जाती है. एयाक भाषा का हश्र एक सबक बन सकता है. यह दुर्लभ लेख पढ़ने का अवसर देने के लिए धन्यवाद. अंतिम से तीसरी पंक्ति में एक करेक्शन दिखा है.. :)<BR/><BR/>....अपने उत्तदायित्व पर सोचना उचित नहीं होगा? <BR/><BR/>उत्तरदायित्व<BR/><BR/>आपने कहा, इसलिए उल्लेख किया..:)Sanjay Karerehttps://www.blogger.com/profile/06768651360493259810noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-54299740499196203122008-09-17T07:13:00.000+05:302008-09-17T07:13:00.000+05:30यह सब जगह हो रहा है.पता नहीं हम देख पा रहे हैं या ...यह सब जगह हो रहा है.पता नहीं हम देख पा रहे हैं या नहीं.हमारी बोलियां भी इसकी चपेट में आयेंगी यह सोचकर डरता हूं.इसलिये आजकल भोजपुरी पर लाड़ आता रहता है.यह भी देख रहा हूं कि हमारा भोजन कितना बदल गया है.<BR/>पंत जी ने कहा है -'अहे,निष्ठुर परिवर्तन....'siddheshwar singhhttps://www.blogger.com/profile/06227614100134307670noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-18287458323324476812008-09-17T05:50:00.000+05:302008-09-17T05:50:00.000+05:30मन खराब होरहा है, यह प्ढ़ कर...डर भी लग रहा है कि ...<I>मन खराब होरहा है, यह प्ढ़ कर...<BR/>डर भी लग रहा है कि हमारी आंचलिक भाषाओं का यही हाल होने वाला है ?<BR/>याद आ रहा है, हमारे यहाँ प्रचलित कैथी लिपि व भाषा, जो कि अपनी पीढ़ी में केवल मैं जानता हूँ.. इसमें किसी अन्य को दिलचस्पी ही नहीं... यह भी शायद मर रही है..<BR/>मन खराब हो रहा है..</I>डा. अमर कुमारhttps://www.blogger.com/profile/12658655094359638147noreply@blogger.com