tag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post781774580355880549..comments2024-01-18T18:37:01.064+05:30Comments on शब्दों का सफर: जल्लाद, जल्दबाजी और जिल्दसाजीअजित वडनेरकरhttp://www.blogger.com/profile/11364804684091635102noreply@blogger.comBlogger24125tag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-69711828747827947162013-02-11T22:33:40.394+05:302013-02-11T22:33:40.394+05:30@baljit basi
मैने बांधना के साथ कसना लिखा है । अन्...@baljit basi<br />मैने बांधना के साथ कसना लिखा है । अन्य कोश कड़ा, कठोर करना जैसा अर्थ भी बताते हैं । आशय एक ही है । जल्लादा क्रिया में बांधने का भाव है । कसने का आदि भाव टाइट करना है न कि स्क्रू कसने वाली क्रिया । दो छोर पकड़ कर बांधने की क्रिया में कसना स्पष्ट है । मुझे नहीं लगता कि बात अगर पल्ले पड़ रही है तो कोई दिक्क़त है । भाव स्पष्ट करने से आशय है । मैने ये नहीं कहा कि अर्थ ये है, मैं आशय बता रहा हूँ ।अजित वडनेरकरhttps://www.blogger.com/profile/11364804684091635102noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-2802281835874456902013-02-11T22:19:48.739+05:302013-02-11T22:19:48.739+05:30अपनी तो अरबी कमज़ोर है। फिर भी मेरे ज्ञान अनुसार &#...अपनी तो अरबी कमज़ोर है। फिर भी मेरे ज्ञान अनुसार 'जल्लाद' में 'कसाव' का भाव नहीं है। 'जलद' का मतलब चाबुक आदि से मारना है, कुछ ऐसे की इसमें चमड़ी के भाव भी हैं। जैसे चमड़ी उधेडना। इसके आगे इसका भाव तलवार आदि से मारना भी है। जल्लाद में यह मारने वाला भाव है। जिल्द में भी ढकने वाला भाव है , कसने वाला नहीं . आप थोडा और गौर करें। वैसे मैं निश्चित नहीं हूँ। Baljit BasiAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-1552923678023547712013-02-11T14:18:24.125+05:302013-02-11T14:18:24.125+05:30जय हो! बांचकर काफ़ी ज्ञान मिला। फ़िर से जय हो।जय हो! बांचकर काफ़ी ज्ञान मिला। फ़िर से जय हो।अनूप शुक्लhttp://hindini.com/fursatiyanoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-45682353838996390962009-12-19T20:51:04.083+05:302009-12-19T20:51:04.083+05:30'वधिक' और 'जल्लाद' समानार्थी नहीं...'वधिक' और 'जल्लाद' समानार्थी नहीं होते फिर भी वे समानार्थी मान लिए गए हैं। आपकी यह पोस्ट वास्तविकता उजागर करती है।विष्णु बैरागीhttps://www.blogger.com/profile/07004437238267266555noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-65136260162718679472009-12-19T08:36:17.313+05:302009-12-19T08:36:17.313+05:30@ अजित जी,
आप की शिकायत वाजिब है। शायद बकलम खुद मे...@ अजित जी,<br />आप की शिकायत वाजिब है। शायद बकलम खुद में मेरी चुनी गई फॉर्म की परेशानी मेरे सामने रही। मैं खुद को दूर खड़ा हो कर देखता रहा। ये बात तो कल आप की पोस्ट पढ़ कर ध्यान आई। पहले आप की पोस्ट पर टिप्पणी की। उसी दौरान गाँठों के लिए सर्च की तो शानदार वेबसाइट मिली। उसे साँझी करने का लोभ संवरण नहीं कर सका। स्काउटिंग का जीवन एक अलग ही अनुभव है। आप की यह टिप्पणी पढ़ कर समझ में आ रहा है कि इसे बकलम खुद में होना चाहिए। मुझे हमेशा यह मलाल रहता है कि मै योजनाबद्ध रूप से शायद कभी कुछ नहीं कर पाउंगा। चीजें इतनी तेजी के साथ सामने आती हैं कि योजना धरी रह जाती है। जो सामने होता है उसी पर पिल पड़ता हूँ।दिनेशराय द्विवेदीhttps://www.blogger.com/profile/00350808140545937113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-69754698016191218392009-12-19T04:22:17.887+05:302009-12-19T04:22:17.887+05:30@दिनेशराय द्विवेदी
सुबह आपकी टिप्पणी पढ़ कर कहना च...@दिनेशराय द्विवेदी<br />सुबह आपकी टिप्पणी पढ़ कर कहना चाहता थी कि इस अनुभव को आपने बकलमखुद में क्यों नहीं डाला। सोचा कि क्यों दुखती रग छेड़ूं। आप वैसे ही बकलमखुद में अपनी अनकही के ज्यादा लंबा हो जाने को लेकर चिंता पाल रहे थे। फिर सोचा कि ये स्वतंत्र पोस्ट बन सकती है, आपके यहां। तब तक नीचे के लिंक पर ध्यान नहीं गया था। आपकी पोस्ट पर टिप्पणी कर चुकने के बाद ध्यान आया तब तक बिजली चली गई थी। <br />दिल की बात अब कह रहा हूं कि आपने इसे स्वतंत्र पोस्ट बनाया, उसका शुक्रिया।अजित वडनेरकरhttps://www.blogger.com/profile/11364804684091635102noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-14768887940797228112009-12-19T02:20:36.619+05:302009-12-19T02:20:36.619+05:30@डॉ टी एस दराल
डॉक्टसाब, मैं तो खुद अभी सीखने-समझन...@डॉ टी एस दराल<br />डॉक्टसाब, मैं तो खुद अभी सीखने-समझने की प्रक्रिया से गुजर रहा हूं। इसी के तहत आपसे वह सब साझा कर रहा हूं। ज्ञानी होने का गुमान कभी न आए मन में, ईश्वर से यही कामना करता हूं। सफर में आप सबके होने के सुख के साथ जिम्मेदारी का भी एहसास है। <br />शुक्रियाअजित वडनेरकरhttps://www.blogger.com/profile/11364804684091635102noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-63870902715671934362009-12-18T22:07:43.698+05:302009-12-18T22:07:43.698+05:30रोचक. ज्ञानवर्धक. बताये, क्या ये सब ज्ञान पुस्तक र...रोचक. ज्ञानवर्धक. बताये, क्या ये सब ज्ञान पुस्तक रूप में मिलेगा?पंकजhttps://www.blogger.com/profile/05230648047026512339noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-26653949812037194092009-12-18T20:33:44.184+05:302009-12-18T20:33:44.184+05:30आपका भाषा का ज्ञान सबको ज्ञानी बना रहा है.
आभार ....आपका भाषा का ज्ञान सबको ज्ञानी बना रहा है. <br />आभार .डॉ टी एस दरालhttps://www.blogger.com/profile/16674553361981740487noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-69670595204523019972009-12-18T20:01:53.475+05:302009-12-18T20:01:53.475+05:30पशु और फीस वाली आपकी पोस्ट पढ़ कर ही मैं ने यह प्र...पशु और फीस वाली आपकी पोस्ट पढ़ कर ही मैं ने यह प्रतिक्रिया दी थी. आप ने लिखा है, "संस्कृत का पशु ही इंडो रोपीय भाषा परिवार में घुस कर पेकू बना। वहां से लैटिन में प्रवेश हुआ तो फेहू हो गया। उसके बाद बना प्राचीन इंग्लिश का फीओ।" यही मेरा सवाल है हम जिस चीज का मतलब "फंदा" लेकर "पशु" बना रहे हैं दुसरे लोग उसका मतलब उन तोढ़ना लेकर भेड बनाते हुए फीओ वगैरा पर पहुंचते हैं . मैं ने संदर्भ गलत नहीं उठाए . यह फाइट के संदर्भ में ही नहीं जगह जगह है. कोई भी यूरपी डिक्शनरी पैकू का मतलब (उन) तोढ़ना ही बताती है. खैर यह बहस तो लंबी है. मैं तो आप से सीख ही रहा हूँ की . आप की बात सही है, मैं जल्दबाजी कर जाता हूँ, आप ने मेरी कमजोरी पकढ़ ली.Baljit Basihttps://www.blogger.com/profile/11378291148982269202noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-59039482425138846022009-12-18T18:52:51.628+05:302009-12-18T18:52:51.628+05:30@बलजीत बासी
बलजीतजी, आप गलत जगह से संदर्भ उठा रहे ...@बलजीत बासी<br />बलजीतजी, आप गलत जगह से संदर्भ उठा रहे हैं। एटिमऑनलाईन में सही संदर्भ है- PIE *peku- "cattle" (cf. Skt. pasu, Lith. pekus "cattle;" L. pecu "cattle," pecunia "money, property")। प्रोटो इंडो यूरोपीय भाषा परिवार एक कल्पना मात्र है। धातुएं भी स्वतंत्र रूप में नहीं होती बल्कि भाषाओं के प्राकृत रूपों के आधार पर विद्वानों नें उसकी कल्पना की है। एक ही मूल से निकला शब्द कई कालखण्डों में, कितने भाषाई समूहों से होते हुए गुजरा है; उन समूहों का खान-पान, व्यवहार, संस्कृति क्या थी जैसे अनेक तथ्यों का प्रभाव उस मूल धातु से विकसित हुए शब्दों पर पड़ता है। <br /><br />पशु प्राचीनकाल से सम्पत्ति रहा है। पशु और फीस वाली दोनों पोस्ट शायद आपने पढ़ी नहीं हैं। वस्तु-विनिमय के दौर में पश्चिमी समूहों में भी मूल पशु का अर्थ सम्पत्ति या भुगतान से ही था। इस संदर्भ में विभिन्न भाषायी संदर्भों के मद्देनजर विद्वानों नें peku निर्धारित की। फ्रैंकिश में इसका रूप fehu-od था। मनुष्य की आदिम शब्दावली के प्रारम्भिक शब्दों में पाशः रहा है। पशु और फीस की कतार में सबसे पहली पायदान पर पाश साफ साफ नजर आ रहा है। पाश से पशु बना। बाद में यह पशुधन हुआ। दिक्कत इसलिए हो रही है कि आप मेरी पोस्ट के संदर्भ में गलत जगह से हवाला दे रहे हैं। ध्यान रहे उक्त धातु संदर्भ फाइट के संदर्भ में आया है। आप से अनुरोध है कि प्रतिक्रिया देने में जल्दबाजी न करें।अजित वडनेरकरhttps://www.blogger.com/profile/11364804684091635102noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-30065147931835534682009-12-18T17:58:27.693+05:302009-12-18T17:58:27.693+05:30बहुत ग्यानवर्द्धक पोस्ट है। धन्यवाद ।बहुत ग्यानवर्द्धक पोस्ट है। धन्यवाद ।निर्मला कपिलाhttps://www.blogger.com/profile/11155122415530356473noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-68459828582482642432009-12-18T17:34:32.696+05:302009-12-18T17:34:32.696+05:30English 'fee' and our 'pashu' are ...English 'fee' and our 'pashu' are both from Proto-Indo-European *pek- to pluck which is understood to mean 'to pluck fleece'So any Indo-European cognate means 'whose fleece is plucked' ie sheep, hence livestock, cattle, wealth.My question is where the Sanskrit 'pash'<br />(snare,string,chain) stands vis-a-vis PIE *pek- to pluck.Baljit Basihttps://www.blogger.com/profile/11378291148982269202noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-16748350346391928962009-12-18T14:17:07.522+05:302009-12-18T14:17:07.522+05:30@बलजीत बासी
पंजाबी में खरगोश के लिए सेहा शब्द का आ...@बलजीत बासी<br />पंजाबी में खरगोश के लिए सेहा शब्द का आपने उल्लेख किया है दरअसल वह संस्कृत के शश का ही अपभ्रंश रूप है जिसका मतलब होता है खरगोश। शशक इससे ही बना है। चन्द्रमा का शशांक नाम भी इसी वजह से है। ध्यान से देखने पर चन्द्रमा में कभी कभी बैठे हुए खरगोश की आकृति नजर आती है। अर्थ है जिसके अंक में अर्थात गोद में शश बैठा हो उसे शशांक कहते हैं। चन्द्रमा श्रंखला की चौथी कड़ी देखें।अजित वडनेरकरhttps://www.blogger.com/profile/11364804684091635102noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-24236031803076050782009-12-18T14:10:10.867+05:302009-12-18T14:10:10.867+05:30@बलजीत बासी
फीस और पशु के रिश्ते पर तीन साल पहले ए...@बलजीत बासी<br />फीस और पशु के रिश्ते पर तीन साल पहले एक पोस्ट लिखी जा चुकी है बलजीत जी। पैसे और पशु का रिश्ता क्या है यह आप उक्त पोस्ट पढ़ कर जान जाएंगे। अलबत्ता व्युत्पत्तिमूलक रिश्तेदारी कुछ नहीं है। पद्म+अंश से पैसे की व्युत्पत्ति पाद+इका+सदृशकः की तुलना में ज्यादा तार्किक है। विस्तार से से देखें सिक्का श्रंखला पर लिखी तेरहवीं कड़ी।अजित वडनेरकरhttps://www.blogger.com/profile/11364804684091635102noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-51233576762728080432009-12-18T12:41:03.884+05:302009-12-18T12:41:03.884+05:30बेहद ज्ञानवर्धक। बढ़िय पोस्ट।आभार।बेहद ज्ञानवर्धक। बढ़िय पोस्ट।आभार।परमजीत सिहँ बालीhttps://www.blogger.com/profile/01811121663402170102noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-66806370665563925742009-12-18T10:27:28.044+05:302009-12-18T10:27:28.044+05:30वध के बारे में कहीं पढ़ा है के जनहित में की गई हत्...वध के बारे में कहीं पढ़ा है के जनहित में की गई हत्या वध कहलाती है . <br />और पशु को पशु क्यों कहते है आज समझेdhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह }https://www.blogger.com/profile/06395171177281547201noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-22757109123430790582009-12-18T10:08:02.799+05:302009-12-18T10:08:02.799+05:30अजित जी,
आज आप ने सही तरह से समझाया कि शादी और फां...अजित जी,<br />आज आप ने सही तरह से समझाया कि शादी और फांसी में क्या रिश्ता होता है...पहले मोहपाश, बाहुपाश, फिर माइंडवाश...उसके बाद तो आदमी ज़िंदा लाश...यानि कठपुतली...रिमोट मैडम के हाथ में...<br /><br />जय हिंद...Khushdeep Sehgalhttps://www.blogger.com/profile/14584664575155747243noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-82957409355981776152009-12-18T09:34:44.166+05:302009-12-18T09:34:44.166+05:30१.पंजाबी में 'पशु' को पुराने लोग 'पहु&...१.पंजाबी में 'पशु' को पुराने लोग 'पहु' बोलते थे. कुँए की ओर पशु को लेकर जाने वाले रासते को 'पैहा' बोलते हैं. एक मुहावरा है ' सैहे की नहीं, पैहे की पढ़ी है' मतलब फसल में जिस जगह से सैहा (खरगोश) गुजर जाए वो आम रास्ता बन जाएगा और यह किसान के लिए चिंता की बात है.<br />२.पंजाबी में पुराने लोग पैसे को भी 'पैहा' ही बोलते हैं जिस बात से कई लोग 'पैसे' को 'पशु' से निकला शब्द मानते हैं. मैं जानता हूँ कोष पैसे की व्युत्पति पाद+इका+सदृशकः करते हैं लेकिन शंका रहिती है.<br />३.अंग्रेजी का शब्द फी(fee) जिसको हम फीस बोलते हैं 'पशु' का सुजाति है, पुरानी अंग्रेजी में ' मुद्रा, सम्पति, पशु' के लिए 'फिहू'(feoh) शब्द था.Baljit Basihttps://www.blogger.com/profile/11378291148982269202noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-44687073524718448512009-12-18T08:57:25.229+05:302009-12-18T08:57:25.229+05:30आजित जी ,
आपके साथ इस सफ़र पे चलते जाने का अपना ही ...<i>आजित जी ,<br />आपके साथ इस सफ़र पे चलते जाने का अपना ही मजा है और शब्दों की उत्पत्ति उनसे जुडी कहानियों का तो कहना ही क्या ...बहुत ही दिलचस्प ..जल्लाद ,फ़ांसी,</i>अजय कुमार झाhttps://www.blogger.com/profile/16451273945870935357noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-84597473256472634042009-12-18T08:54:04.330+05:302009-12-18T08:54:04.330+05:30लिजिये, इस बार द्विवेदी जी के यहाँ से होकर आप तक प...लिजिये, इस बार द्विवेदी जी के यहाँ से होकर आप तक पहुँचे गठान ढूंढते..हद ही हो गई.Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-56777144199411618872009-12-18T07:20:04.869+05:302009-12-18T07:20:04.869+05:30अजित भाई!
प्राथमिक शिक्षा के दिनों में स्काउटिंग ...अजित भाई! <br />प्राथमिक शिक्षा के दिनों में स्काउटिंग बहुत की। उन दिनों गाँठें और फाँसे सिखाई गई थीं जिन के लिए अंग्रेजी शब्द नॉट, हिच और बैंड का प्रयोग किया जाता है। जैसे घावों के ऊपर पट्टी को अंतिम रूप से बांधने के लिए रीफ नॉट का उपयोग किया जाता है। किसी रस्सी को किसी स्तंभ से बांधने के लिए 'क्लोव हिच'यानी खूंटा फाँस का और किसी मोटी रस्सी को पतली रस्सी से जोड़ने के लिए 'शीट बैंड' का। इन सभी को सामान्य रूप से गाँठें भी कहा जाता है। लेकिन तकनीकी रूप से ये तीनों अलग हैं। इसी तरह जो फाँसी है उस में एक हिच के प्रयोग से एक लूप बनाया जाता है। यह लूप एक फांस का काम करता है यदि किसी हुक या खूंटे में इस लूप को डाल कर खींचा जाए तो खूंटे पर रस्सी का बंधन दबाव के समानुपाती क्रम में अधिकाधिक तब तक कसता चला जाता है जब तक कि रस्सी उस दबाव को सहन करती है। इस एक हिच से बनाए गए लूप को ही फाँसी कहते हैं। वैसे यदि हाथ या पैर में लकड़ी आदि का तीखा तिनका घुस जाए तो उसे भी फांस कहते हैं, हालांकि वह सूक्ष्म कांटा होता है लेकिन कहा यही जाता है कि फाँस घुस गई।दिनेशराय द्विवेदीhttps://www.blogger.com/profile/00350808140545937113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-27684924909446971652009-12-18T07:08:47.586+05:302009-12-18T07:08:47.586+05:30बेहद उम्दा आलेख । इतना आश्चर्य शब्दों की क्रियाओं ...बेहद उम्दा आलेख । इतना आश्चर्य शब्दों की क्रियाओं और संबंधों पर अपने अध्ययन के दौरान भी नहीं हुआ, जब कभी भाषा विज्ञान की कुछ पस्तकें पढ़ी । शब्दों का सफर ने असली कलई खोली । आभार ।Himanshu Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/04358550521780797645noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-49871734421679599512009-12-18T07:02:16.033+05:302009-12-18T07:02:16.033+05:30बेहद ज्ञानवर्धक, पाश से पशु तो वाकई जबर्दस्त है..क...बेहद ज्ञानवर्धक, पाश से पशु तो वाकई जबर्दस्त है..कई बार तो शब्दों के आपसी संबंध चकित कर देते हैं.Dr. Shreesh K. Pathakhttps://www.blogger.com/profile/09759596547813012220noreply@blogger.com