tag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post852799354976884793..comments2024-01-18T18:37:01.064+05:30Comments on शब्दों का सफर: सर्वव्यापी विष्णु, विट्ठल, विठोबाअजित वडनेरकरhttp://www.blogger.com/profile/11364804684091635102noreply@blogger.comBlogger21125tag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-43672367826313022772009-08-06T21:55:38.012+05:302009-08-06T21:55:38.012+05:30आपका वाक्य कि “निराकार ब्रह्म की पूर्णता विश्वरूप ...आपका वाक्य कि “निराकार ब्रह्म की पूर्णता विश्वरूप में साकार होने में ही है “ आध्यात्म जगत की विशद् स्थिति को अत्यंत सरल कर रहे हैं । इसी प्रकार डॉ. गिरजेश राव जी के उद् गार कि - ज्योतिर्लिंगों और शक्ति पीठों की तरह ही प्राचीन काल में सूर्य पूजा के स्थापित केन्द्र थे जो धीरे धीरे बौद्ध धर्म के उत्थान के साथ समाप्त हो गए; स्थिति को बहुत स्पष्ट कर देते है । अनेक सुधी पाठकों सहित डॉ सुरेश कुमार वर्मा की टीप इस आलेख को उच्चतर स्थान प्रदान कर रही है । <br /><br />आलेख संग्रहणीय है बारम्बार पठनीय भी । लेखक सहित सभी टिप्पणीकारों को भी नमन !Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-40034788342905231552009-08-04T12:46:41.867+05:302009-08-04T12:46:41.867+05:30अजित वडनेरकर अपने विश्लेषण में व्युत्पत्तिशास्त्र ...अजित वडनेरकर अपने विश्लेषण में व्युत्पत्तिशास्त्र के समस्त संभव प्रतिमानों का उपयोग करते हैं. वे सावधानी के साथ लोकव्यवहार में प्रचलित उन शब्दों का चयन करते हैं, जिनके अर्थ को लेकर लोकमानस में जिज्ञासा हो सकती हो. फिर वे उस शब्द की धातु, उस धातु के अर्थ और अर्थ की विविध भंगिमाओं तक पहुँचते हैं. फिर वे समानार्थी शब्दों की तलाश करते हुए विविध कोनों से उनका परीक्षण करते हैं. फिर उनकी तलाश शब्द के तद्भव रूपों तक पहुंचती है और उन तद्बवों की अर्थ-छायाओं में परिभ्रमण करती है. फिर अजित अपने भाषा-परिवार से बाहर निकलकर इतर भाषाओँ और भाषा-परिवारों में जा पहुँचते हैं. वहां उन देशों की सांस्कृतिक पृष्टभूमि में सम्बंधित शब्द का परीक्षणकर, पुनः समष्ठिमूलक वैश्विक परिदृश्य का निर्माण कर देते हैं. यह सब रचनाकार की प्रतिभा और उसके अध्यवसाय के मणिकांचन योग से ही संभव हो सका है. व्युत्पत्तिविज्ञान की एक नयी और अनूठी समग्र शैली सामने आई है. बहुत संभव है, आगे चलकर यह 'अजित-शैली' के नाम से आख्यात हो. अब 'विष्णु' शब्द को ही लें, तो हम देखते हैं कि अपनी संपूर्ण समग्रता में उसका विवेचन किया गया है. अजित ने भाषा और व्युत्पत्तिविज्ञान से आगे बढ़ते हुए संस्कृति, धर्मं, इतिहास और लोकविश्वासों का आधार ग्रहण करते हुए अपनी विवेचना को परिपुष्ट किया है. यह सही है कि वैदिक देवताओं के बीच विष्णु को समुचित महत्व नहीं मिल पाया था. इसका मुख्या कारन यह था कि वैदिक देवता भौतिक शक्तियों के अधिष्ठाता के रूप में मान्य हुए थे. किसी परम आध्यात्मिक शक्ति या परमब्रह्म कि अवधारणा तब तक भलीभांति विकसित नहीं हो पाई थी. बाद के औपनिषदिक चिंतन में जब एक परम सत्ता के रूप में ब्रह्म का विचार विकसित हुआ, तब कहीं जाकर विष्णु को यथोचित स्थान और सम्मान मिला. फिर तो न केवल वे महेश और ब्रह्म के साथ वृहत्रयी में सम्मिलित हुए, अपितु उनसे सर्वोपरि भी मान्य हुए. यह उनके अनन्य महत्व का सूचक है कि धारणा भी विकसित हुई कि ब्रह्म जब अवतार लेता है, तो विष्णु शक्ति से ही अवतार लेता है. यही नहीं, यह भी कि पूर्णावतार केवल विष्णु का ही हुआ करता है, जैसे राम और कृष्ण. भगवन विष्णु पर एक प्रामाणिक अनुशीलन प्रस्तुत करने के लिए अजित को बधाई. विश्वास है कि उनकी लेखनी से अधीत चिंतन का प्रवाह अजस्र ज़ारी रहेगा. भगवान विष्णु कि अनुकम्पा उन पर सतत बनी रहे. <br /> डॉ सुरेश कुमार वर्मासुरेश कुमार वर्माhttps://www.blogger.com/profile/06596899558485632268noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-56290753171140416932009-08-03T21:16:54.393+05:302009-08-03T21:16:54.393+05:30कण-कण में भगवान है।विष्णु सार्वलौकिक है। प्रमाण हम...कण-कण में भगवान है।विष्णु सार्वलौकिक है। प्रमाण हमारे अपने ही अंदर है इसे स्वामी परेशानंद रामकृष्ण आश्रम ने अपने पुस्तक-रामकृष्ण शारदा गीता में कुछ इस तरह से बताया है- आत्मा ब्रम्ह है-मांडूक्या उपनिषद अथर्ववेद<br />सभी कुछ ब्रम्ह है-सामवेद<br />चेतना ही ब्रम्ह है-एतरेव उपनिषद ऋग्वेद<br />तुम ही वह हो- सामवेद<br />मै ब्रम्ह हूं-यजुर्वेद<br /> हरि ऊं तत्सत।<br />अलौकिक लेख बहुत-बहुत शुभकामनायें।जीवन सफ़रhttp://jivansafar.blogspot.comnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-88751818037592958202009-08-02T09:28:33.685+05:302009-08-02T09:28:33.685+05:30विठ्ठल तो महाराष्ट्र के जन जन के देव हैं । विठ्ठल ...विठ्ठल तो महाराष्ट्र के जन जन के देव हैं । विठ्ठल मूर्ती के सिर पर पर शिवलिंग है, इसीसे वे शैव और वैष्णवों के बीच एकात्मता स्थापित करते हैं । आपका लेक छोटा है परंतु टिप्पणियों ने जानकारी बढा दी खास कर गिरजेश राव , दिनेश राय त्रिवेदी और कोकास जी की ।Asha Joglekarhttps://www.blogger.com/profile/05351082141819705264noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-47730992334395699572009-08-01T17:02:34.483+05:302009-08-01T17:02:34.483+05:30''ॐ नमो भगवते वासुदेवाय''
...''ॐ नमो भगवते वासुदेवाय''<br /> 3 0f our 4 pious 'dhaams' are abodes of Vishnu--Badri,Dwarika and Jagannath . Badri Vishal is also the presiding deity of mighty Garhwal Rifles. Their war cry ,while attacking the enemy, is--'' Jai Badri Vishaal !''मुनीश ( munish )https://www.blogger.com/profile/07300989830553584918noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-4814450971873793282009-08-01T08:08:10.002+05:302009-08-01T08:08:10.002+05:30बहुत दिनों से टीप नहीं पाया. टिपण्णी में तो बड़ी अ...बहुत दिनों से टीप नहीं पाया. टिपण्णी में तो बड़ी अच्छी चर्चा हो गयी है. <br />कल श्यामसखा श्यामजी से बात हुई शब्दों के उद्भव के बारे में मैंने आपके ब्लॉग का जिक्र किया आते ही होंगे.मेरे फ्रेंच में उच्चारण वाली पोस्ट पर उन्होंने बड़ी अच्छी जानकारी दी थी फिर कुछ और शब्दों के बारे में भी बताया था उन्होंने. शब्दों के सफ़र में बड़े अच्छे सहयात्री होंगे वो.Abhishek Ojhahttps://www.blogger.com/profile/12513762898738044716noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-20934964894599682272009-08-01T03:48:07.569+05:302009-08-01T03:48:07.569+05:30चलिये सबसे पीछे मै ही सही, लोकोक्ति मे कहा जाता है...चलिये सबसे पीछे मै ही सही, लोकोक्ति मे कहा जाता है " विटे वर जो उभा तो विट्ठल " अर्थात ईट पर जो खडा है वह विट्ठल . यह पंढरपुर के विट्ठल के बारे मे है . यह कथा इस प्रकार है कि श्रीकृष्ण की पटरानी रुख्मीणी का अन्य रानी से झगडा हुआ तथा वह दन्डकारण्य चली गई तथा भीमा नदी के किनारे वर्तमान मे पंढरपुर मे झोपडी बनाकर रहने लगी.श्रीकृष्ण उसे ढूंढते हुए वहाँ गये पर उसने आने से मना कर दिया .उसने कहा कि यदि तुम विष्णु के अवतार हो अर्थात देव हो तो तुम्हे पत्नी की अपेक्षा भक्त अधिक प्रिय होना चाहिये और उसे पुंडलीक नामक एक भक्त का पता बताया जो वहीं पास ही झोपडी बनाकर रहता था और अपने माता-पिता की सेवा करता था .जब कृष्ण उसके पास पहुंचे तो वह माता पिता की सेवा कर रहा था उसने एक ईट कृष्ण की ओर फेंकी और कहा इस पर खडे रहो .तबसे विट्ठल-रुखमाई ( रुख्मीणी) वहीं ईट पर खडे हैं . कालांतर में इस कथा का प्रचार अनेक संतों ने किया .रही असल (?) विष्णु की बात तो इस त्रयी से षडयंत्र पूर्वक ब्रह्मा को निकाल दिया गया (शैव और वैष्णव वाद) इसलिये आज ब्रह्मा के मन्दिर नहीं मिलते .खैर यह हरिकथा तो अनंत हैशरद कोकासhttps://www.blogger.com/profile/09435360513561915427noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-84306340298778145392009-07-31T23:28:14.966+05:302009-07-31T23:28:14.966+05:30JAI HO !JAI HO !Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/09116344520105703759noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-23275884228447969342009-07-31T22:18:33.561+05:302009-07-31T22:18:33.561+05:30विष्णु का नाम वेदों से लेकर पुराणों तक विविध रूपों...विष्णु का नाम वेदों से लेकर पुराणों तक विविध रूपों में मिलता है। वेदों में इन्हें सौरदेवता कहा गया है और सूर्य का प्रतिरूप व इंद्र का सहायक माना गया है। <br /><br />बिल्कुल सही विश्लेषण किया है।<br />बधाई!डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'https://www.blogger.com/profile/09313147050002054907noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-843620462378595972009-07-31T21:04:09.181+05:302009-07-31T21:04:09.181+05:30ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमःॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमःdhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह }https://www.blogger.com/profile/06395171177281547201noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-2636876222268752142009-07-31T17:39:54.171+05:302009-07-31T17:39:54.171+05:30गिरजेश राव की टिप्पणी बहुत महत्वपूर्ण है। वैदिक दे...गिरजेश राव की टिप्पणी बहुत महत्वपूर्ण है। वैदिक देवताओं में विष्णु बहुत उपेक्षित हैं। वैदिक आर्यों और भारतीय द्रविड़ सभ्यता में जो संघर्ष वर्षों तक विद्यमान रहा उस ने प्रमुख वैदिक देवता इंद्र को पददलित कर दिया। इंद्र के चारित्रिक पतन की इतनी कथाएँ प्रचलित हो गई कि उसे एक प्रमुख देवता बनाए रखना कठिन हो गया। तब सामंजस्य के रूप मे उपनिषदों का ब्रह्म, वैदिक विष्णु जो इंद्र का छोटा भाई या सहायक है और द्रविड़ों के महादेव/पशुपति को मिला कर एक त्रिदेव की स्थामना हुई जो सनातन धर्म की रीढ़ बन गया। पश्चिम में जब एकेश्वरवाद पनपा तो उस ने लोक देवताओं और उन की मूर्तियों और चिन्हों को नष्ट किया। लेकिन भारत में बहुदेववाद एकेश्वरवाद के साथ कायम रहा। प्रत्येक देवता में ब्रह्म की छवि देखी जाने लगी। दूसरे के देवता को भी अपने देवता के समान सम्मान मिला। यही भारतीय धर्म के विकास की सब से बड़ी विशेषता है। आर्य वैदिक धर्म सिर्फ कर्मकांड में रह गया। लोक ने अपनी परंपराओं को सुरक्षित रखते हुए एकेश्वरवाद को ग्रहण किया। <br />आज का आप का आलेख बहुत महत्वपूर्ण है शब्द के विकास की दृष्टि से भी और चर्चा के उद्देश्य से भी।दिनेशराय द्विवेदीhttps://www.blogger.com/profile/00350808140545937113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-65805502431428764382009-07-31T13:20:43.594+05:302009-07-31T13:20:43.594+05:30@munish
मुनीश भाई, गरुड़ महाराज विष्णु के वाहन हैं...@munish<br />मुनीश भाई, गरुड़ महाराज विष्णु के वाहन हैं और एक पूर्वी देश की वायुसेवा में नज़र आते हैं उधर जर्मनी की वायुसेवा lufthansa में सरस्वती का वाहन हंस झांक रहा है। जर्मन में लुफ्त यानी हवा है। संस्कृत में लुप्त यानी गायब है। यहां गायबाना भाव को गति से जोड़ कर देखा जाना चाहिए क्योंकि प्राचीन भारोपीय भाषा परिवार में lopt जैसी ध्वनियों में ऊपर उठना का भाव शामिल था जिसमें ऊंचाई के साथ वायु भी शामिल है। जाहिर है गायब यानी लुप्त होना भी इसमें निहित है। हवा में भी ऊपर उठने का गुण होता है। बहाव और गतिवाचक तो यह है ही। <br /><br />आप जो कह रहे हैं उसे साबित करने की जरूरत नहीं है। एशिया-यूरोप के बीच इस तरह के सांस्कृतिक एकता सूत्र बहुत से हैं। पूर्वी देशों में तो भारतीय संस्कृति की बहुत गहरी छाप साफ देखी जा सकती है। सदियों पुराना लेन-देन का रिश्ता है। हमारी अयोध्या उधर भी नज़र आती है और उधर की गंगा इधर पूजी जाती है। <br />भारत माता की जै...अजित वडनेरकरhttps://www.blogger.com/profile/11364804684091635102noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-87536213117315269182009-07-31T12:50:55.402+05:302009-07-31T12:50:55.402+05:30@डॉ मनोज मिश्र
विष्णु शब्द बहुत प्राचीन है और वेद...@डॉ मनोज मिश्र <br />विष्णु शब्द बहुत प्राचीन है और वेदों में इसका उल्लेख है। प्रस्तुत पोस्ट में विद्वानों के संदर्भ दिए हैं। वैसे गिरिजेश राव की टिप्पणी भी इसे स्पष्ट कर रही है। विष्णु का महत्व पुराणों की रचना के बाद बढ़ा है। वेद में निश्चित ही प्राक् देवताओं का ही महात्म्य है।अजित वडनेरकरhttps://www.blogger.com/profile/11364804684091635102noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-1980986087191397982009-07-31T12:46:42.915+05:302009-07-31T12:46:42.915+05:30@गिरिजेश राव
टिप्पणी के लिए शुक्रिया भाई। संशोधन क...@गिरिजेश राव<br />टिप्पणी के लिए शुक्रिया भाई। संशोधन कर दिया है।अजित वडनेरकरhttps://www.blogger.com/profile/11364804684091635102noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-15269516964522038652009-07-31T11:16:46.194+05:302009-07-31T11:16:46.194+05:30गिनती की सीमा भी कभी बीस रही होगी। बीस (विश) पर ही...गिनती की सीमा भी कभी बीस रही होगी। बीस (विश) पर ही पूर्णता रहती होगी? ये तो बाद वाले उसे अनन्त तलक ले गये! <br />नहीं?Gyan Dutt Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/05293412290435900116noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-60706809516662924792009-07-31T10:36:00.361+05:302009-07-31T10:36:00.361+05:30Pta nahi kya ho raha hain,hindi likhne vaale box m...Pta nahi kya ho raha hain,hindi likhne vaale box me type karne ke bad vah comment box me copy-paste nahi ho raha hain .khair mujhe viththl vishnu ka hi naam hain yah to pta tha,lekin dono shbdo me bhi sambandh hain yah nahi pta tha ,isi tarah vishwa Aur viththl shbd me sambandh hain yah main soch bhi nahi sakti thi .yah chiththa vakai kamal ka hain.aap sachmuch mahan kaam kar rahe hain dada.RADHIKAhttps://www.blogger.com/profile/00417975651003884913noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-48354141379644307972009-07-31T09:06:45.791+05:302009-07-31T09:06:45.791+05:30"मंगलम भगवान् विष्णु मंगलम गरुड़ ध्वजः
मंगलम ..."मंगलम भगवान् विष्णु मंगलम गरुड़ ध्वजः <br />मंगलम पुन्डरीकाक्ष मंगलायतनो हरिः " <br /> विशालतम यवन -राष्ट्र इंडोनेशिया की सरकारी एयर लाइन का नाम विष्णु -वाहन 'गरुड़' ही क्यूं है ? इस की भी किंचित व्याख्या हो एवम पुरातत्व अनुरागी ये बतलावें की विश्व का विशालतम प्राचीन मंदिर जो विष्णु को अर्पित था वो कम्बोडिया में क्यूं कर है ? आखिर क्यूं ?कोई तो बतावे , कोई पोस्ट चढावे !मुनीश ( munish )https://www.blogger.com/profile/07300989830553584918noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-1752345377652463922009-07-31T08:41:29.007+05:302009-07-31T08:41:29.007+05:30बस, पढ़ लिये..प्रसन्न हो लिए. बाकी लोगों की जिज्ञास...बस, पढ़ लिये..प्रसन्न हो लिए. बाकी लोगों की जिज्ञासा देख रहे हैं और कुछ भी उससे जान जायेंगे जब आप जबाब देंगे.Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-17912517796004326772009-07-31T08:07:23.028+05:302009-07-31T08:07:23.028+05:30हाँ, ऋक् संहिता में 'विष्णु' शब्द का सूर्य...हाँ, ऋक् संहिता में 'विष्णु' शब्द का सूर्य के 'अर्थ' में प्रयोग हुआ है। सूर्य पूजा के केन्द्रों के विष्णु मन्दिरों में परिवर्तित हो जाने को इससे समझा जा सकता है।<br /><br />ऐसे बहुत से दृष्टांत मिलते हैं। जैसे:<br />वेद मंत्र 'गणानांत्वा गणपति...' का गणेश के अर्थ में प्रयोग नहीं हुआ है या महामृत्य्ंजय मंत्र 'त्रयम्बकम् यजामहे...' का महादेव से कोई सम्बन्ध नहीं है। वास्तव में सनातन मत परम्परा बहुत ही रोचक और विशद रूप में विकसित हुई है।गिरिजेश राव, Girijesh Raohttps://www.blogger.com/profile/16654262548719423445noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-27944401409276982462009-07-31T07:06:38.185+05:302009-07-31T07:06:38.185+05:30संशोधन: 'गुजराती भक्ति कवियों' के स्थान पर...संशोधन: 'गुजराती भक्ति कवियों' के स्थान पर 'गुजराती भक्त कवियों' और 'कर्मकांडों का महत्व बढ़ने पर यह माना जाने लगा कि पुण्यफल तभी मिलेंगे जब विष्णु की उपासना न हो जाए।' के स्थान पर 'कर्मकांडों का महत्व बढ़ने पर यह माना जाने लगा कि पुण्यफल तब तक नहीं मिलेंगे जब तक विष्णु की उपासना न हो जाए।'<br /><br />सूर्य पूजा से विष्णु पूजा का सीधा सम्बन्ध है। इसके बारे में वृहद चर्चाएँ मुंशी और चतुरसेन साहित्य में भी मिलती हैं। वास्तव में ज्योतिर्लिंगों और शक्ति पीठों की तरह ही प्राचीन काल में सूर्य पूजा के स्थापित केन्द्र थे जो धीरे धीरे बौद्ध धर्म के उत्थान के साथ समाप्त हो गए। परवर्ती विष्णु पूजा परम्परा ने इसे अपने में समाहित कर एकदम समाप्त कर दिया। आज भी जगह जगह सूर्य मन्दिरों के अवशेष मिलते रहते हैं- पूर्वी उत्तरप्रदेश और बिहार में। हमारे कुशीनगर जिले में सूर्य की एक सुन्दर नीलम प्रतिमा कुछ वर्षों पहले मिली थी। वहाँ अब एक आधुनिक मन्दिर है जिसका वास्तु किसी भी तरह से प्रतिमा के सौन्दर्य से मेल नहीं खाता। <br /> शैव पूजा का केन्द्र बनने से पहले काशी विष्णु पूजा का केन्द्र थी। पुराणों में शैवों द्वारा काशी को वैष्णवों से छीनने के प्रसंग हैं। गंगा किनारे का प्रसिद्ध बिन्दु माधव मन्दिर पहले सूर्य पूजा का केन्द्र था। एक घाट पर आज भी पुरानी वेधशाला विद्यमान है। बिन्दु माधव मन्दिर को भी बाकी प्रसिद्ध मन्दिरों की तरह ही मुसलमान शासकों ने तोड़ कर मस्जिद बना दिया। आज वहाँ मस्जिद विद्यमान है, जो बिन्दु माधव के इतिहासकारों द्वारा वर्णित भव्यता और सौन्दर्य के ध्वंश जैसी नजर आती है।गिरिजेश राव, Girijesh Raohttps://www.blogger.com/profile/16654262548719423445noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-42392964457708895442009-07-31T07:02:49.341+05:302009-07-31T07:02:49.341+05:30ऋग्वेद में विष्णु को कोई स्थान नहीं दिया गया है ,म...ऋग्वेद में विष्णु को कोई स्थान नहीं दिया गया है ,मेरी जानकारी में अग्नि,इन्द्र आदि देवता ही उस दौर के प्रधान देवता थे.डॉ. मनोज मिश्रhttps://www.blogger.com/profile/07989374080125146202noreply@blogger.com