...प्राचीन काल से ही इनसान ने बरतन-भाण्डों के आपस में टकराकर ध्वनि करने के गुण की परख कर ली थी...
कि सी की असलियत सामने आने या पोल खुलने के अर्थ में भांडा फूटना या भांडा फोड़ना मुहावरा हिन्दी में बहुत प्रचलित है। भाण्ड अर्थात बर्तन में टूट-फूट होने से उसमें रखी सामग्री बाहर बाहर निकल आती है। यही बात इस मुहावरे में भी है। हिन्दी में पात्र के लिए कई तरह के शब्द हैं। रसोई की संस्कृति में विभिन्न आकार-प्रकार के उपकरण भी महत्वपूर्ण होते हैं जिनमें बर्तन भी प्रमुख हैं। सभ्यता के विकासक्रम को बर्तनों की विविधता में भी देखा जा सकता है जो विभिन्न कालखंडों में मनुष्य की आवश्यकता के अनुसार आकार लेते चले गए।
मनुष्य जब विकास के उस चरण में पहुंचा जब सामग्री संग्रह के लिए प्राकृतिक साधनों पर निर्भरता से उसे मुश्किल होने लगी तब आवासीय क्षेत्र में ही भंडारण शुरु हुआ जिसमें जल-संग्रह की व्यवस्था प्रमुख थी। जल-संग्रह की निजी व्यवस्था मानव ने खेती की तकनीक सीखने से पहले ही कर ली थी। सबसे पहले बात करते हैं भंडार शब्द की जो बना है भण्ड् से जिसका मतलब होता है पात्र, बरतन आदि। भण्ड बना है संस्कृत की भण् धातु से जिसका मतलब होता कहना, पुकारना,शोर मचाना, ध्वनि करना। जब बहुत कुछ कहने-सुनने को कुछ नहीं रहता तब भी अक्सर हम कुछ न कुछ कहते ही हैं जिससे भुनभुनाना कहते हैं। यह इसी मूल से आ रहा है। कहने की ज़रूरत नहीं कि मच्छर जैसा तुच्छ जीव के पंखों की गुंजार-ध्वनि को हमने भिन-भिन नाम दिया और इस क्रिया को भिनभिनाने की व्यंजना दी वह इसी भण् धातु से आ रही है।
भाण्ड शब्द के मूल में भी यही भण् धातु है। संस्कृत के भाण्डम् से बने भाण्ड का मतलब होता है पात्र, बरतन आदि। रसोई के काम आने वाले सभी पात्र जैसे लोटा, थाली, कटोरी, गिलास आदि इसमें शामिल हैं। आदि काल से ही मनुष्य ने बरतनों-पात्रों के ध्वनि करने के गुण पहचान लिया था। चम्मच, थाली, लोटा, मटका, घड़ा अर्थात ऐसा कोई बरतन नहीं है जिसे बजाया न जा सके। वैसे भी बरतन आपस में टकराने के अलावा जब भाण्ड में कोई सामग्री डाली जाती है तब भी वे तली से गले तक भरे जाते हुए ध्वनि करते हैं इसलिए भण् धातु में निहित ध्वनि
करने का भाव भाण्ड में बखूबी स्पष्ट है। जल-पात्र के रूप में भी भाण्ड का इस्तेमाल किया जाता है। प्राकृत में भाण्डकः का रूप सिर्फ हंडा रह जाता है। हांडी, हंडिया जैसे देशी रूप हिन्दी में खूब प्रचलित है। भाण्ड से बने भंडार का अर्थ होता है संग्रह, गोदाम, आगार आदि। भण्डार का प्रभारी या अधिकारी भंडारी कहलाता है। प्राचीनकाल में भी दूर देशों की वस्तुओं के गोदाम होते थे जिनका निर्माण वणिक कराते थे। इन्हें आगार, भंडार, कोष्ठागार कहा जाता था। भंडारी की तरह कोष्ठागार का अधिपति या स्वामी कोठारी कहलाता था। बाद के दौर में भंडारी और कोठारी बनिया जाति के प्रमुख उपनाम हो गए।
कहने की ज़रूरत नहीं कि दरबारों में राजाओं की कीर्ति का बखान करनेवाले भाण्ड समुदाय का नाम भी इसी भण् धातु से हुआ है। भण् से बने भाण्डकः का मतलब होता है घोषणा करनेवाला। किसी ज़माने में भाण्ड सिर्फ विरुदावली ही गाते थे और वीरोचित घोषणाएं करते थे ताकि सेनानियों में शौर्य और वीरता का भाव जागे। कालांतर में एक समूचा वर्ग राज्याश्रित व्यवस्था में शासक को खुश करने के लिए झूठा स्तुतिगान करने लगा। इसे समाज ने भंड़ैती कहा और शौर्य का संचार करनेवाला पुरोहित भाण्ड बनकर रह गया। जोर-शोर से मुनादी करनेवाले को जिस तरह से ढ़िंढोरची, भोंपू आदि की उपमाएं मिलीं जिनमें चुगलखोर, इधर की उधर करनेवाला, एक की दो लगानेवाला और गोपनीयता भंग करनेवाले व्यक्ति की अर्थवत्ता थी उसी तरह भाण्ड शब्द की भी अवनति हुई और भाण्ड समाज में हंसी का पात्र बन कर रह गया। स्वांग करनेवाले व्यक्ति, हास्य कलाकार, विदूषक भी भाण्ड की श्रेणी में आ गए। इसके अलावा चुगलखोर और ढिंढोरापीटनेवाले को भी भाण्ड कहा जाने लगा। यही नहीं, चाटूकार और चापलूस व्यक्ति को दरबारी भाण्ड की उपाधि से विभूषित किया जाने लगा जो किसी ज़माने में दरबार का सम्मानित कलाकार का पद होता था। [जारी]
ये सफर आपको कैसा लगा ? पसंद आया हो तो यहां क्लिक करें |
ज्ञान का भंडारण है आपके पास.
ReplyDeleteबेहतरीन रहा ये सफर । अच्छा रहा भाण्डा का फूटना । आभार ।
ReplyDeleteअच्छा भांडा फोड़ा आपने :-)
ReplyDeleteबी एस पाबला
रोजाना के प्रयोग आने वाले मुहावरे के पीछे का सच आप से ही ज्ञात होता है . वैसे कई भांडों के रोचक किस्से मशहूर रहे है .
ReplyDeleteहम भी अपने शब्दों का भंडार आपके इस सफर से भर रहे हैं आभार्
ReplyDeleteभाण्डा फूटने पर पता लग जाता है कि उस के स्वामी ने क्या क्या संग्रह किया था। यहाँ बहरुपिये के उल्लेख की भूमिका बन गई है। जो आज कल सड़कों के स्थान पर विधानसभा संसद में अधिक नजर आ रहे हैं।
ReplyDeleteबजते हुए भाण्ड, बोलते हुए भाण्ड, बुलवाते हुए भाण्ड!
ReplyDeleteकुछ मैं भी भुनभुना दूँ?
# भुनभुना ke जब, न बात चली तो भन्नाएं,
अब भान हुआ की भांडा कैसे फूटा है.
# कुछ लोग भडैती मान के बैठे थे ''जिनको'' ,
जब खुला भाण्ड तो तीर सा बन के छूटा है.
(राजनैतिक परिप्रेक्ष्य में देखे)
प्रेरक लेख, कुछ और शेर, हो गए तो , ब्लॉग के तौर पर प्रकाशित कर दूँगा.
-मंसूर अली हाशमी
भण धातु से भुनभुनाना और फिर भाण्ड ...
ReplyDeleteअजीब-से रहस्य अनावृत होते हैं शब्दों के । आभार ।
खमा घणी
ReplyDeleteउपयोगी जानकारी । हमारे गांव में हमारा एक बेरा कुआं है जिसमें कुछ साल पहले इतनी पैदावार हेाती थी कि उस इलाके में वह बेरा भंडािरया नाम से मशहूर हो गया था।
ये बात अलग है कि अब उसमें पानी रेाज आधे घण्टे ही चलने जितना है।
बहुत सुंदर लिखा है आपने अंकल भोंपू ढोल पर अच्छी जांनकारी दी है आपने । अंकल मैने अभी अपने ब्लोग पर रमज़ान पर लिखा है ज़रुर देखियेगा ।
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया पोस्ट रही।
ReplyDeleteइसे पढ़कर ज्ञानकोष में वृद्धि हुई।
अरे! यह तो एलानिया बतायें कि मंगल फॉण्ट इतना अलग सा चमकदार कैसे लग रहा है आपके ब्लॉग पर! फीड रीडर में भी आपकी फीड अलग सी झलक रही है!
ReplyDeleteबहुत ख़ूब!
ReplyDelete