बै साखी पर्व को लेकर हिन्दी के शुद्धतावादी हमेशा भ्रम का शिकार रहे हैं। वे हिन्दी में बैसाखी शब्द के इस्तेमाल के खिलाफ हैं। उनका मानना है कि विकलांगों को सहारा देने वाली छड़ी बैसाखी कहलाती है इसलिए बैसाखी पर्व को वैशाखी लिखना सही है। मैं इसे दुराग्रह मानता हूं। क्या हम हिन्दीवालों की समझ इतनी विकलांग है कि इन दोनों बैसाखियों में फर्क न कर सके? पृथक अर्थवत्ता वाले एक जैसे शब्दों का अर्थ वाक्यांश के संदर्भ से तय होता है। यह बहुत साधारण सी बात है। हिन्दू पंचांग के मुताबिक चान्द्रवर्ष का दूसरा महीना यानी अप्रैल-मई वैशाख का महीना कहा जाता है। वैशाख माह की पूर्णिमा को वैशाखी कहते हैं। किन्तु इसका यह अर्थ नहीं कि वैशाखी के अर्थ में बैसाखी शब्द गलत है। देश के ज्यादातर हिन्दी अखबार वैशाखी को बैसाखी के रूप में ही प्रयोग करते हैं और यही सही भी है। शब्द का स्वरूप समाज में उसके प्रयोग से तय होता है। वैशाखी का लोकप्रिय रूप बैसाखी ही है। यह कैसा दुराग्रह कि विशाख या वैशाख के तद्भव रूप बैसाखी अर्थात लंगड़े की लाठी की खातिर वैशाखी के तद्भव रूप बैसाखी से परहेज करने को कहा जाता है जबकि यह प्रचलित रूप है।
वैशाखी और बैसाखी को लेकर कोई भ्रम नहीं है। बैसाखी का तत्सम रूप वैशाखी है और यह संस्कृत शब्द है। किन्तु ध्वनि नियमों के मुताबिक हिन्दी के तद्भव रूपों में व ध्वनि अक्सर ब ध्वनि में बदलती है जैसे वसंत का देशज रूप बसंत होता है। जहां तक बैसाखी पर्व को वैशाखी लिखने का सवाल है, यह सिरे से गलत है क्योंकि यह पर्व देश के पंजाब में मनाया जाता है जहां इसका रूप बैसाखी है। किसी क्षेत्र विशेष के पर्व, परम्परा और पदार्थों का उल्लेख हम हम उनके क्षेत्रीय उच्चारण के आधार पर ही करते हैं। पंजाब में वैशाखी को बैसाखी ही कहा जाता है। दूसरी बात यह कि हिन्दी में भी वैशाख का देशज या तद्भव रूप बैसाख ही होता है और वैशाखी पूर्णिमा को बैसाखी पूर्णिमा ही कहते हैं। यह वैशाख माह की मेष संक्रान्ति होती है। इस दिन सूर्य को अर्घ्य चढ़ाया जाता है और तीर्थों पर पुण्यस्नान होता है। इसे वैशाखी कहते है पर इसका प्रचलित रूप बैसाखी ही है। वैशाख शब्द मूलतः संस्कृत के विशाखः से बना है।
अब आते हैं बैसाखी पर। भाषाविज्ञानी बैसाखी की व्युत्पत्ति वि+शाखा या द्वि+शाखा से मानते हैं। शाखा शब्द की मूल धातु है शाख् जिसमें विभाग या शरीरांग जैसे पैर या हाथ का भाव है। इससे बने शाखा का अर्थ है विभाग, प्रभाग, शरीर का कोई हिस्सा या अंग-उपांग, पैर अथवा हाथ, रचना की सतह के लिए भी वैदिक अर्थों में शाखा शब्द का प्रयोग हुआ है। ज्योतिष संहिता का तीसरा हिस्सा भी शाखा कहलाता है। पांच वैदिक संहिताएं भी शाखा कहलाती हैं। इन अर्थों में वृक्षों-पादपों की टहनी भी शाखा हैं और किसी विचारधारा से जुड़ा सम्प्रदाय, गुट, दल या पन्थ भी शाखा है।
गौर करें शाखा के उस अर्थ पर जिसमें उसे शरीर का अंग या उपांग भी कहा गया है। पैरों से विकलांग व्यक्ति के लिए पैर का काम करनेवाली लकड़ी या धातु से बनी वह संरचना जो दो शाखाओं में विभक्त होती है और ऊपर नीचे से जिनके सिरे मिले रहते हैं, विशाख, विशाखा या वैसाख कहलाती है। इसका तद्भव रूप ही बैसाखी हुआ। याद रहे संस्कृत के वि उपसर्ग में अनेक या विभाजन का भाव है। विशाख का अर्थ हुआ अनेक शाखाएं। बैसाखी को लकड़ी की दो छड़ों से बनाया जाता है। द्विशाखा से बैसाखी की व्युत्पत्ति कुछ कठिन है।
हिन्दी की कई बोलियां हैं और साहित्य व पत्रकारिता के क्षेत्र में इन्हीं विशाल क्षेत्रों से लोग आते हैं जहां एक ही शब्द के अलग अलग उच्चारण होते हैं। जनपदीय बोली या लोकशैली का प्रयोग जहां साहित्य को समृद्ध बनाता है वहीं अखबारों को एक मानक भाषा अपनानी ही पड़ती है क्योंकि वे भी क्षेत्रीय होते हैं। मगर बैसाखी को वैशाखी लिखना मानकीकरण का उदाहरण नहीं बल्कि शुद्धता का दुराग्रह है। विषय के अनुसार हम वसंत का प्रयोग भी करते हैं और बसंत का भी। वासंती भी लिखते है और बसंती भी। किन्तु बैसाखी तो बैसाखी ही है। सन्दर्भित विषय से स्पष्ट होता है कि बैसाखी कहां लंगड़े की लाठी है और कहां तिथि-पर्व है।
पुछल्ला- वैशाख का तद्भव या देशज रूप बैसाख हिन्दी में भी प्रचलित है। इसका उदाहरण है गधे का एक अन्य नाम बैसाखनंदन। पुराने जमाने से यह मुहावरा चला आ रहा है। दरअसल बैसाख के महिने में ही गधी का प्रसवकाल होता है।
ये सफर आपको कैसा लगा ? पसंद आया हो तो यहां क्लिक करें |
दो दिन बाद लिखा लेकिन बहुत सही शब्द चुना। कई बार साथियों से इसे लिखने को लेकर बहस हुई और समझाने में काफी मशक्कत करना पड़ी। शायद अब नहीं होगी। यह पोस्ट दिखा दिया करूंगा।
ReplyDeleteबैसाखी वस्तुतः मेष राषि में सूर्य के प्रवेश के दिन के पर्व को कहते हैं। यह दिन अक्सर ही चांद्रमास वैशाख में पड़ता है। इस तरह वैशाख मास में पड़ने वाली सूर्य की संक्रांति बैसाखी हुई। इस का वैशाख की पूर्णिमा से कोई संबंध नहीं है। सौर वर्ष के मास हमेशा संक्रांति से संक्रांति तक होते हैं। वैसे इस संक्रांति से सौर चैत्र आरंभ होता है। वृष राशि में सूर्य के प्रवेश पर वैशाख और मिथुन राशि में सूर्य के प्रवेश पर आषाढ़ मास आरंभ होता है। कालिदास के मेघदूत में जो आषाढ़ मास के प्रथम दिवस का वर्णन यूँ ही नहीं है, वह दिन मिथुन राशि में सूर्य का प्रथम दिन भी है। उस दिन यक्ष अपनी प्रिया को मेघों के साथ संदेश प्रेषित करता है।
ReplyDeleteवैसे हिन्दी की लगभग सभी बोलियों में वैशाख मास को बैसाख ही कहा जाता है। इस को लेकर कोई भ्रम नहीं होना चाहिए।
बैसाखी का मेला वही रहता है यदि उसे वैशाखी का भी कह लें। भंगड़े, गिद्धे का आनन्द भी वह रहता है।
ReplyDeleteघुघूती बासूती
आप अनवरत उत्कृष्ट लेखन कर,
ReplyDeleteहमें नित नयी जानकारी देते रहे हैं अजित भाई
बढ़िया लेखन के लिए आपको बधाई
- लावण्या
खूबसूरत प्रविष्टि ! आभार ।
ReplyDeleteजय हो! वैशाख के बारे में जानने का मौका मिला। सच है भाई जिन्दगी भर जिसको सुनते रहो अगर उसको भी ध्यान से सोचो तो नया अर्थ निकलता है। अद्भुत!
ReplyDeleteअजित भाई
ReplyDeleteऋतु / पर्व / महीना / और दो छड़ी जैसी बैसाखियां ये तो समझ में आया की इनका मतलब उल्लास और आश्वस्ति ( सहारा ) है !
पर छोटी बहू धारावाहिक की विशाखा तो कुछ वैम्पिश अर्थ देती है :)
बैसाख के नंदन है, दुलत्ती के है माहिर,
ReplyDelete'वे' शाख पे बैठे है, कही 'वो'* तो नही है ?
*??? वही....जिससे गुलिस्ताँ को अंजाम की फ़िक्र होने लगे!
aaj bahut din baad time nikaal paayee hoon aur apake blog par aate hee vaisakhee kee yaad aa gayee varna amerika me to pata hee nahee chalata kisee festival kaa
ReplyDeletebahut achhaa lagaa ye safar shubhakamanayen
भारतीय कैलेण्डर के मास विभाजन का आधार ज्योतिष है। चैत्र मास वो होता है जिस मास पूर्णिमा चित्रा नक्षत्र में हो। वैशाख , विशाखा नक्षत्र में। ज्येष्ठ, ज्येष्ठा नक्षत्र में, श्रावण, श्रवण नक्षत्र में। वैसे तो मास बारह हैं और नक्षत्र २७, थोड़ा आगे-पीछे होता रहता है।
ReplyDeleteतब क्या किसी को वैसाख नंदन उपाधि उचित है देना ?
ReplyDeleteवैशाखनन्दन तो हम भी हैं । वैशाख माह में जन्म लिये हैं ।
ReplyDelete