(तस्वीर: एपी/क्रिस रेनियर)
शोधकर्ताओं ने भारत के सुदूर इलाक़े में एक ऐसी भाषा का पता लगाया है, जिसका वैज्ञानिकों को पता नहीं था।
इस भाषा को कोरो के नाम से जाना जाता है. वैज्ञानिकों का कहना है कि यह अपने भाषा समूह की दूसरी भाषाओं से एकदम अलग है लेकिन इस पर भी विलुप्त होने का ख़तरा मंडरा रहा है। भाषाविदों के एक दल ने उत्तर-पूर्वी राज्य अरुणाचल प्रदेश में अपने अभियान के दौरान इस भाषा का पता लगाया। यह दल नेशनल जियोग्राफ़िक की विलुप्त हो रही देशज भाषाओं पर एक विशेष परियोजना 'एंड्योरिंग वॉइसेस' का हिस्सा है।
दुर्लभ भाषा
शोधकर्ता तीन ऐसी भाषाओं की तलाश में थे जो सिर्फ़ एक छोटे से इलाक़े में बोली जाती है। उन्होंने जब इस तीसरी भाषा को सुना और रिकॉर्ड किया तो उन्हें पता चला कि यह भाषा तो उन्होंने कभी सुनी ही नहीं थी और यह कहीं दर्ज भी नहीं की गई थी। इस शोधदल के एक सदस्य डॉक्टर डेविड हैरिसन का कहना है, "हमें इस पर बहुत विचार नहीं करना पड़ा कि यह भाषा तो हर दृष्टि से एकदम अलग है। "
यदि हम इस इलाक़े का दौरा करने में दस साल की देरी कर देते तो संभव था कि हमें इस भाषा का प्रयोग करने वाला एक व्यक्ति भी नहीं मिलता
ग्रेगरी एंडरसन, नेशनल जियोग्राफ़िक
भाषाविदों ने इस भाषा के हज़ारों शब्द रिकॉर्ड किए और पाया कि यह भाषा उस इलाक़े में बोली जाने वाली दूसरी भाषाओं से एकदम भिन्न है। कोरो भाषा तिब्बतो-बर्मी परिवार की भाषा है, जिसमें कुल मिलाकर 150 भाषाएँ हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि यह भाषा अपने परिवार या भाषा समूह की दूसरी भाषाओं से बिलकुल जुदा है। यह माना जाता है कि इस समय दुनिया की 6909 भाषाओं में से आधी पर समाप्त हो जाने का ख़तरा मंडरा रहा है। कोरो भी उनमें से एक है। उनका कहना है कि कोरो भाषा 800 से 1200 लोग बोलते हैं, लेकिन इसे कभी लिखा या दर्ज नहीं किया गया है।
नेशनल जियोग्राफ़िक के ग्रेगरी एंडरसन का कहना है, "हम एक ऐसी भाषा की तलाश में थे जो या तो विलुप्त होने की कगार पर है या अत्यंत अल्पभाषी समूह में जीवित है। " उनका कहना है, "यदि हम इस इलाक़े का दौरा करने में दस साल की देरी कर देते तो संभव था कि हमें इस भाषा का प्रयोग करने वाला एक व्यक्ति भी नहीं मिलता। "यह टीम कोरो भाषा पर अपना शोध जारी रखने के लिए अगले महीने फिर से भारत का दौरा करने वाली है।
शोध दल यह जानने की कोशिश करेगा कि यह भाषा आई कहाँ से और अब तक इसकी जानकारी क्यों नहीं मिल सकी थी।
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ये बहुत अच्छा आलेख मिला पढने को .... वैसे लुप्त होती भाषाओं को को बचाए रखना दिन-ब-दिन मुश्किल होता जा रहा है...देखते हैं शोध से क्या निष्कर्ष निकलता है .
ReplyDeleteबहुत अच्छी जानकारी देती पोस्ट |ऐसी रचना पढ़ने का आनंद ही कुछ ओर होता है ,बधाई
ReplyDeleteआशा
बहुत अच्छी जानकारी
ReplyDeleteअपने देश में ना जाने कितनी भाषाए है जो रोज मर रही है . उसमे हिंदी भी एक है उसे भी सहेज़ने की आवशयकता है .नहीं तो संस्कृत की तरह वह भी किताबो में रह जायेगी
ReplyDeleteउपलब्धि ! ...पर आश्चर्य कि यह भी विदेशियों के हाथ आई ,क्या हमारे देश में भाषाशास्त्रियों के हाथ इतनें तंग हैं कि वे ...?
ReplyDeleteउत्तरपूर्व के विश्वविद्यालयों में भी तो भाषा विज्ञान विभाग अथवा अध्ययन संस्थान होंगे ?
खैर एक तरह से प्रसन्न और दूसरी तरह से क्षुब्ध मान कर हमारी टिप्पणी दर्ज की जाये !
जानकारी का आभार...
ReplyDeleteनवीन जानकारी के लिए आभार आपका भाई जी !
ReplyDeleteअली साहब की टिप्पणी से सहमत ...
ReplyDeleteऔर आपकी पोस्ट से तो हमेशा ज्ञान वर्धन होता है आपका आभार
अच्छी जानकारी आपका आभार
ReplyDeleteदुर्लभ भाषा के दुर्लभ शोध की दुर्लभ कहानी अच्छी लगी
ReplyDeleteकोरो भाषा के बारे में पढ़कर जानकारी मिली, अच्छी लगी. लेकिन शोधकर्ताओं ने अरुणाचल के उस जिले का उल्लेख नहीं किया जहाँ यह भाषा बोली जाती है. अनुमान है की अरुणाचल में 38 जनजाति के लोग निवास करते हैं और लगभग शायद उतनी ही भाषा बोली जाती है. लेकिन विद्वान लेखक ने नयी भाषा के बारे में सूक्ष्म शोध किया और इस नतीजे पर पहुंचे हैं . साधुवाद.
ReplyDeleteदुर्लभ भाषा पर दुर्लभ जानकारी। धन्यवाद।
ReplyDeleteपता नहीं कितनी भाषायें लुप्त हो रही हैं।
ReplyDeleteभाषा तो वे शब्द हैं कहते उर का भाव
ReplyDeleteअभिव्यक्ति हो ह्रदय की मात्र यही है उपाव