घर की ओर झाँकते कुछ शब्द
"दहलीज़" यह शब्द सुनते ही मन में एक घर की छवि उभरती है: एक ऐसी सीमा-रेखा जो घर और बाहर का सन्धिबिन्दु होती है। यह केवल दरवाज़ा, राहदारी या घर के अन्दर-बाहर जाने का स्थान भर नहीं, बल्कि स्वागत, विदाई, परम्पराओं और स्मृतियों का सङ्केत-प्रतीक भी है। हिन्दी और उर्दू में समान रूप से रचा-बसा यह शब्द अपने भीतर भारत-ईरानी भाषाओं के हज़ारों साल पुराने रिश्ते की कहानी समेटे हुए है।
लेकिन इस एक शब्द की यात्रा हमें कई ऐसे मोड़ों पर ले जाती है, जहाँ इसके जैसे ही सुनाई देने वाले अन्य शब्द जैसे दिल्ली, डेहरी, डीह आदि खड़े मिलते
हैं। ध्वनि की इस समानता ने कई रोचक भ्रमों को जन्म दिया है। आइए, शब्दों की इसी दहलीज़ के पार जाकर इन सभी के असली रिश्तों को जानें।
'दहलीज़' की वंशावली: फ़ारस
से भारत तक
प्राचीन फ़ारस की बसाहटों से चल कर "दहलीज़" शब्द का सफ़र हिन्दी भवन में दाखिल हुआ। इसका सीधा सम्बन्ध मध्यकालीन फ़ारसी के
शब्द 'दहलीज़' से है, जिसका अर्थ 'बरामदा' या 'द्वारमण्डप' हुआ करता था।
भाषाविदों ने इसकी जड़ें और भी गहरी, प्रोटो-ईरानी भाषा में खोजी हैं। वहाँ इसका मूल रूप duvarθi- जैसा था, जिसका अर्थ 'द्वार से सम्बन्धित' या 'द्वारमण्डप' था। यह शब्द स्वयं प्राचीन फ़ारसी के duvar- यानी 'द्वार' या 'दरवाज़ा' से निकला है।
यहाँ एक छोटी सी भाषाई पहेली भी है, जो इसके लिखित रूप
में छिपी है जिसे हम आगे विस्तार से समझेंगे। इस शब्द की अहमियत का अन्दाज़ा इसी
बात से लगता है कि इसे अरबी (दिहलीज़), तुर्की (देहलीज), और कज़ाख जैसी कई भाषाओं ने अपनाया।
अर्थ का रूपान्तरण: बरामदे से देहरी तक
जहाँ फ़ारसी में 'दहलीज़' का आशय एक बड़े प्रवेश हॉल या बरामदे से था, वहीं भारतीय सन्दर्भ में यह दरवाज़े की चौखट के
निचले उभरे हिस्से तक केन्द्रित हो गया, जिसे हम 'देहरी' कहते हैं। या यूँ कहें कि
प्रोटो-ईरानी की समकालीन कोई वैदिक भाषा में यही भाव प्रमुख था।
इसका प्रमाण है 'दहलीज़' का निकटतम संस्कृत सजातीय शब्द 'देहली'। संस्कृत का एक प्रसिद्ध न्याय है-'देहलीदीपन्याय', जिसका अर्थ है कि देहली पर रखा दीपक घर के अन्दर और बाहर, दोनों ओर समान रूप से प्रकाश फैलाता है। यह न्याय "दहलीज़" के
प्रतीकात्मक चरित्र को बख़ूबी समझाता है- यह भीतर और बाहर के बीच एक पुल की तरह है।
घर और बाहर का सन्धिस्थल
यहाँ 'दहलीज़' और इसके निकटतम
भारतीय प्रतिरूप 'देहली'
की
आन्तरिक संरचना को समझना दिलचस्प है। ये दोनों ही शब्द सीधे तौर पर 'द्वार' का अर्थ नहीं देते, बल्कि इनसे द्वार द्वारा निर्देशित स्थान का बोध होता है।
प्राचीन फ़ारसी में 'दहलीज़' का मूल रूप duvarθi- है, जो duvar- (संस्कृत 'द्वार') से बना है। इसके संरचनागत
साम्य को समझने के लिए संस्कृत का शब्द 'द्वारस्थ' (द्वार + स्थ) उत्तम है, जिसका अर्थ है 'द्वार पर स्थित'। ठीक इसी तरह, duvarθi- का भी अर्थ 'द्वार' न होकर 'द्वार पर स्थित
संरचना' (जैसे पोर्टिको, कोरीडोर) है। यही
बात प्राकृत-संस्कृत के 'देहली'
(चौखट)
पर भी लागू होती है।
सिर्फ़ चौखट यानी दरवाज़ा नहीं
इस प्रकार, 'दहलीज़' हो या 'देहली', ये दोनों ही द्वार से जुड़े स्थानवाची सङ्केत हैं जो घर और बाहर
के बीच एक सीमा-रेखा तय करते हैं। द्वार और दहलीज़ के अन्तर को यूँ भी समझ सकते
हैं कि चौखट पर पल्ले लगने से बनी संरचना 'द्वार' कहलाती है, जबकि 'दहलीज़' स्वयं वह चौखट या स्थान है जहाँ वे पल्ले लगाए जाते हैं अथवा जहाँ से
द्वार-मार्ग तक पहुँच बनती है।
हम द्वार पर ताला लगाते हैं, दहलीज़ पर नहीं। इस तरह द्वार और दहलीज़ एक-दूसरे के पर्यायी पद नहीं हैं।
दहलीज़ सीमा-रेखा है, द्वार आने या जाने की व्यवस्था।
दहलीज़ के प्रतीकार्थ
"दहलीज़" का असली सौन्दर्य
इसके भौतिक रूप में नहीं, बल्कि इसके प्रतीकात्मक और सांस्कृतिक अर्थ में छिपा है। यह आरम्भ, अनुष्ठान और जीवन के नए चरणों में प्रवेश का प्रतीक है। "दहलीज़ लाँघना" सिर्फ़ एक क्रिया नहीं, बल्कि एक नई दुनिया में क़दम रखने का एक शक्तिशाली मुहावरा है।
दुल्हन का ससुराल में पहला क़दम, नए घर में गृह
प्रवेश, या किसी महत्वपूर्ण यात्रा की शुरुआत- ये सभी मंगल कार्य दहलीज़ पर ही सम्पन्न होते हैं। पुराने
समय में विवाह से पहले दूल्हे द्वारा दुल्हन के घर की जाने वाली एक औपचारिक भेंट
को "दहलीज़ खुंदलाना" कहा जाता था, जो अपने आप में एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान था।
'दहलीज़' और 'ढेलज' का भ्रम
एक आम ग़लतफ़हमी यह भी है कि उर्दू का 'दहलीज़' और मराठी का 'ढेलज'
जैसे
शब्द भी 'देहली' से व्युत्पन्न हैं।
ध्वनि व अर्थ, दोनों ही कारक यहाँ प्रबल हैं, पर ऐसा नहीं है। ये दोनों अलग-अलग मूल के हैं, पर अर्थगत साम्य की वजह से
इन्हें 'देहली-ड्योढ़ी' वाली शृङ्खला से
सम्बन्धित मानना भी असहज नहीं है।
यद्यपि 'दहलीज़' और 'ढेलज' के स्रोत भिन्न हैं, पर 'देहली' के साथ इनका अर्थगत व ध्वनि-साम्य इतना गहन है कि
व्यवहार में ये एक-दूसरे के पर्याय बन जाते हैं।
चलते-चलते
इस सफ़र से यह स्पष्ट होता है कि शब्द केवल ध्वनि
नहीं होते; वे अपने भीतर इतिहास, भूगोल और मानव-सभ्यता के विकास की कहानियाँ छिपाए
रहते हैं।
(A) दहलीज़/देहली/देहरी: द्वार-परिसर, द्वारमण्डप अथवा वह
सीमा-रेखा, जिसका मूल प्राचीन फ़ारसी 'द्वार' है।
(B) दिल्ली: भारत की राजधानी, जिसका मूल 'ढिल्ली/ढिल्लिका' है, पर 'देहली' शृङ्खला से रिश्ता नहीं।
(C) डेहरी/डीह/ढूह: स्थानवाची शब्द, जिसका मूल 'ऊँचा टीला' या 'पुरानी बसावट' है।
(D) देह/देहात: गाँव, ग्राम जिसका मूल फ़ारसी 'देह' है। निश्चित ही, हम यहाँ आगे इन पर भी बात करेंगे।
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