tag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post2781300104493803308..comments2024-01-18T18:37:01.064+05:30Comments on शब्दों का सफर: शब्दों की तिजौरी पर ताले की हिमायत...अजित वडनेरकरhttp://www.blogger.com/profile/11364804684091635102noreply@blogger.comBlogger7125tag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-83447361915384231192008-02-01T01:25:00.000+05:302008-02-01T01:25:00.000+05:30अजित जी, औरत शब्द को मैं भी अश्लील ही मानती रही हू...अजित जी, औरत शब्द को मैं भी अश्लील ही मानती रही हूं। इसे हमारे समाज में शादीशुदा महिला के सन्दर्भ में माना जाता रहा है। जैसे उप्र में बाई शब्द निचले दर्जे का माना जाता है तो महाराष्ट्र में महिला शिक्षक को भी बाई कहते हैं। जैसा हमें बचपन से बताया गया या पढ़ा है उससे भी बात मस्तिष्क में जम जाती है। जिससे परंपराओं को समझने या बदलने मे थोड़ी दिक्कत तो आती है। सुरेन्द्र वर्मा के उपन्यास मुझे चांद चाहिए में नायिका वर्षा हर्षवर्धन से एकाकार होने के बाद अपनी मित्र दिव्या से ये क्यों कहती है कि मैं अब औरत हो गयी हूं?<BR/><BR/>अश्मिताAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-24112043622199335482008-01-31T21:06:00.000+05:302008-01-31T21:06:00.000+05:30मैं आप की बात से सहमत हूं कि ऑक्स्फ़ोर्ड डिक्शनरी क...मैं आप की बात से सहमत हूं कि ऑक्स्फ़ोर्ड डिक्शनरी की तरह हिन्दी डिकशनरी भी खुले दिल से दूसरी भाषाओं के शब्दों को आत्मसात करेAnita kumarhttps://www.blogger.com/profile/02829772451053595246noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-8913418850812475812008-01-30T17:19:00.000+05:302008-01-30T17:19:00.000+05:30प्रिय अजितव्युत्पत्ति से हट कर आज यह जो विश्लेषणात...प्रिय अजित<BR/><BR/>व्युत्पत्ति से हट कर आज यह जो विश्लेषणात्मक लेख लिखा है इस के लिये आभार. बीचबीच में इस तरह की विचारोत्तेजक एवं विश्लेषण से भरपूर लेख भी दें. हिन्दी संबंधित काफी विषय हैं जिन पर इस तरह के लेखों एवं सोच की जरूरत है.<BR/><BR/>इस लेख में आपने जो मुद्दे उठायें हैं एवं जो निर्णय दिये हैं उनसे मैं सहमत हूँ.Shastri JC Philiphttps://www.blogger.com/profile/00286463947468595377noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-67535255968683058592008-01-30T07:57:00.000+05:302008-01-30T07:57:00.000+05:30मैं आपके विचारोंसे सहमत हूँ | आप की बात सभी भाषाओ...मैं आपके विचारोंसे सहमत हूँ | आप की बात सभी भाषाओं के लिये लागू होती है |प्रशांतhttps://www.blogger.com/profile/00684642374587753836noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-75966469607427414952008-01-30T05:18:00.000+05:302008-01-30T05:18:00.000+05:30हिन्दी को ऐसे शब्द कोष की जरूरत है जो हिन्दी का हो...हिन्दी को ऐसे शब्द कोष की जरूरत है जो हिन्दी का हो। ऐसी हिन्दी का जो आम हिन्दी बोलने, लिखने, पढ़ने वालों के शब्दों को सम्मिलित करे। जिस में आगत शब्दों को भी रखा जाए। वही हिन्दी का सही शब्द कोष होगा।दिनेशराय द्विवेदीhttps://www.blogger.com/profile/00350808140545937113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-36093419243007617262008-01-30T01:59:00.000+05:302008-01-30T01:59:00.000+05:30आपबीती - दो महीने पहले मैंने हिन्दी बीस साल से लिख...आपबीती - दो महीने पहले मैंने हिन्दी बीस साल से लिखी नहीं थी - आज लगभग हर दिन लिख रहा हूँ (हाँ शब्दकोष (भार्गव ?) कक्षा छः से साथ लेके घूमने की आदत है) - अभी भी नुक्तों में चीनी होती है - जहाँ पुच्च से टोक दिया वहां भूल सुधार - भाषा पर पिछले दो महीनों में इस मंच पर शायद यह तीसरी - चौथी बहस है - जैसा माहौल है हर पखवाड़े बात फिर उठेगी - अपने सख्त दिमाग का पूरे ज़ोर से मानना है कि भाषा, उससे अनुराग और उसका व्यवहार,- परिवार, बचपन और पढने के शौक के बीच का समीकरण है - इसीलिए कोशिश है कि बच्चे सीखें - शायद - बाकी बस इतना ही कि इस सौ हज़ार की भीड़ में अब मैं पैर सीधा कर सकता हूँ - शायद आसमान गिरेगा नहीं - शायद - मनीषAnonymoushttps://www.blogger.com/profile/08624620626295874696noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-74942751993070075312008-01-29T21:25:00.000+05:302008-01-29T21:25:00.000+05:30सच कहा है कि अगर प्रसारक सही उच्चारण करना सीख लें ...सच कहा है कि अगर प्रसारक सही उच्चारण करना सीख लें तो स्कूल में भाषा सीखते समय बच्चों की आधी से ज़्यादा समस्या हल हो जाए.Anonymousnoreply@blogger.com