tag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post4174053478190485777..comments2024-01-18T18:37:01.064+05:30Comments on शब्दों का सफर: ...फिर आंच तेज न करनी पड़ जाएअजित वडनेरकरhttp://www.blogger.com/profile/11364804684091635102noreply@blogger.comBlogger6125tag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-79175087484320097852008-02-09T15:42:00.000+05:302008-02-09T15:42:00.000+05:30ये बहस कई दिन से मैं बी पढ़ रही थी लेकिन टिप्पणी क...ये बहस कई दिन से मैं बी पढ़ रही थी लेकिन टिप्पणी करना ठीक नहीं समझा। इस मामले में मुझे अनिल जी की बात ठीक लगी और आपका बहस बंद करने का फैसला मुझे सही लगा।।नीलिमा सुखीजा अरोड़ाhttps://www.blogger.com/profile/14754898614595529685noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-86344980021577149712008-02-09T14:07:00.000+05:302008-02-09T14:07:00.000+05:30बड़े उलझे पेंच हैं, भाई.. वैसे आपने ऊपर जो अपनी प्...बड़े उलझे पेंच हैं, भाई.. वैसे आपने ऊपर जो अपनी प्रतिक्रियाएं दर्ज़ की हैं, मुझे उनमें ज़्यादा संगति दिखती है. फिर अनिल जो कह रहे हैं, वह भी यथार्थ का एक दूसरा पहलू है ही..azdakhttps://www.blogger.com/profile/11952815871710931417noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-52684854138328541202008-02-09T08:35:00.000+05:302008-02-09T08:35:00.000+05:30सारा कुछ दलितों और पिछड़ों से निकले मलाई चाभनेवालो...सारा कुछ दलितों और पिछड़ों से निकले मलाई चाभनेवालों का अवसरवादी शगल है। इसी बहाने वो और मलाई चाहते हैं। मीडिया में दलितों की स्थिति पर बहस पूरे समाज के ही संदर्भ में हो सकती है।अनिल रघुराजhttps://www.blogger.com/profile/07237219200717715047noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-72182329683101431152008-02-09T07:24:00.000+05:302008-02-09T07:24:00.000+05:30आपने ठीक किया अजीत भाई जो इस निरर्थक बहस से बाहर ह...आपने ठीक किया अजीत भाई जो इस निरर्थक बहस से बाहर हो गए. यह बेबुनियाद बहस है जिसका कोई सार्थक नतीजा निकलना कठिन है. मुझे भी अब यह शक हो रहा है कि वहां किसी षड्यंत्र के तहत यह सब लिखा जा रहा है. गोया अब बहस के लिए कोई और मुद्दा ही नहीं रह गया तो आओ मीडिया में दलितों को खोजें. मुझे कोई हैरत नहीं कि दिलीप मंडल ने आपके सवाल का जवाब नहीं दिया. और यदि वे 3रा या 4था विकल्प चुन लेते तो बिल्कुल भी हैरानी नहीं होती. उन्हें पढ़ते हैं तो इसका यह अर्थ भी नहीं कि सहते रहेंगे... <BR/>आप सफर आगे बढ़ाएं अजित भाई.. ऐसे भटकन भरे पड़ाव न ही आएं तो अच्छा.Sanjay Karerehttps://www.blogger.com/profile/06768651360493259810noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-68046852082133905932008-02-09T06:53:00.000+05:302008-02-09T06:53:00.000+05:30अजित जी, आप ने टिप्पणियों के माध्यम से सब को एक स्...अजित जी, आप ने टिप्पणियों के माध्यम से सब को एक स्थान पर एकत्र कर सुन्दर काम किया है। मेरा मानना है कि ये सारे भेद शोषण की इस व्यवस्था को चलाए और बनाए रखने के लिए हैं। ये भैद शोषण की समाप्ति की लड़ाई में साथ साथ चलते हुए समाप्त होते जाऐंगे। मुख्य बात तो यह लड़ाई और इस में बने रहना है। हमें यह देखना चाहिए कि इस लड़ाई में कौन हमारे साथ है और कौन सामने खड़ा है। हमें बीच में खड़े लोगों को तो साथ लाना ही है। खिलाफ खड़े लोगों में से भी अपनी ओर लाने के प्रयास करने चाहिए। अपने बीच आपसी खींचतान कम से कम हो यही हमारे लिए बेहतर है। दो संघर्षरत सेनाओं में से एक ही सेना के सिपाही आपस में भी लड़ रहे होते हैं। मगर वही सेना विजयी होती है जिस के सिपाही आपस में सबसे कम मारपीट करते हैं। तो इस आपसी मारपीट को कम से कम करें तो अच्छा है। मूल लक्ष्य से नहीं भटकें।दिनेशराय द्विवेदीhttps://www.blogger.com/profile/00350808140545937113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-45330878364208659092008-02-09T04:21:00.000+05:302008-02-09T04:21:00.000+05:30बहुत अच्छा लेख है. आंकणो को भी सामाजिक विकास् के स...बहुत अच्छा लेख है. आंकणो को भी सामाजिक विकास् के साथ ही देखना चाहिये. सिर्फ कुछ दलितो के शीर्श पदो पर बैठने से समाज नही सुधर जायेगा. बरबरी का समाज हासिल करना एक लम्बी प्रक्रिया है. प्रतिभा पाटिल के जिस तरह रास्ट्र्पति बनने से हिन्दुस्तान की आम औरत बेहतर नही होती. उसी तरह जाति को तूल देकर, बराबरी का समाज नही बन सकता.स्वप्नदर्शीhttps://www.blogger.com/profile/15273098014066821195noreply@blogger.com