tag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post4592472542374835543..comments2024-01-18T18:37:01.064+05:30Comments on शब्दों का सफर: सलवार चली-सलवार चली, जम्पर हो गया गुम !अजित वडनेरकरhttp://www.blogger.com/profile/11364804684091635102noreply@blogger.comBlogger9125tag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-59269292685822400162008-03-22T17:20:00.000+05:302008-03-22T17:20:00.000+05:30जरूरी नहीं है कि आप एक समय में एक ही साथी की श्रंख...जरूरी नहीं है कि आप एक समय में एक ही साथी की श्रंखला को चलाएं. विमल जी नहीं हैं तो क्या हुआ आप अगले साथी की श्रंखला आरंभ कर दें. जब विमल जी लौटेंगे तो उनकी अगली कड़ी दे दीजिएगा. शीर्षक में नंबर दे ही रहे हैं सो श्रंखला अपने आप बनती रहेगी. इस तरह आप एक से अधिक श्रंखलाओं को जल्दी जल्दी प्रस्तुत कर सकेंगे और उन्हें उतावली भी नहीं होगी जिन्हें लिखना है... :) वरना धीमी गति से बेसब्री बढ़ भी सकती है. बस एक सुझाव है....Sanjay Karerehttps://www.blogger.com/profile/06768651360493259810noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-73925266561819031652008-03-21T07:47:00.000+05:302008-03-21T07:47:00.000+05:30सही है। बकलमखुद जारी रखें।सही है। बकलमखुद जारी रखें।अनूप शुक्लhttps://www.blogger.com/profile/07001026538357885879noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-42370357620582062812008-03-20T15:06:00.000+05:302008-03-20T15:06:00.000+05:30आपकी इस किताब को यदि मेरी कोई जरुरत हो तो जरुर बता...आपकी इस किताब को यदि मेरी कोई जरुरत हो तो जरुर बताइएगा,Ashish Maharishihttps://www.blogger.com/profile/04428886830356538829noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-47421020581235188062008-03-20T13:34:00.000+05:302008-03-20T13:34:00.000+05:30@दिनेशराय द्विवेदी- विमलजी का संदेश आया है कि वे र...@दिनेशराय द्विवेदी- विमलजी का संदेश आया है कि वे रविवार को लौटेंगे और फिर लिखेंगे। <BR/>@हर्षवर्धन-बंधु, किताब वाली बात तो दिमाग़ में है। बस, फुर्सत नहीं मिल रही कि कुछ तरतीब दे सकूं। कुछ सोच सकूं। मगर ये काम आकार ज़रूर लेगा, क्योंकि आपकी शुभकामनाएं साथ है। शुक्रिया।अजित वडनेरकरhttps://www.blogger.com/profile/11364804684091635102noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-17078731012080783892008-03-20T13:21:00.000+05:302008-03-20T13:21:00.000+05:30अजित जी आपका शुक्रिया जो आपने आज सलवार -कुरते के ब...अजित जी आपका शुक्रिया जो आपने आज सलवार -कुरते के बारे मे भी बताया ।mamtahttps://www.blogger.com/profile/05350694731690138562noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-42904050808677133622008-03-20T09:51:00.000+05:302008-03-20T09:51:00.000+05:30ये क्या बात हुई भला, विमल जी श्रृंखला शुरु करके कल...ये क्या बात हुई भला, विमल जी श्रृंखला शुरु करके कल्टी हो गए, पेशी में हाजिर किया जाए उन्हें, ये गुनाह कत्तई मुआफी के काबिल नही है!!Sanjeet Tripathihttps://www.blogger.com/profile/18362995980060168287noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-5940567515690211842008-03-20T08:56:00.000+05:302008-03-20T08:56:00.000+05:30अजित जी.विमल जी का सफरनामा अभी ज़ारी रखिए .शिद्दत ...अजित जी.<BR/>विमल जी का सफरनामा अभी ज़ारी रखिए .<BR/>शिद्दत जिस किसी ज़िंदगी की पहचान बनती है ,<BR/>उसकी कहानी सिर्फ़ उसकी नहीं, उसके अपने वक़्त<BR/>और उसकी सीख का दस्तावेज़ भी तो होती है .<BR/>वे गोवा से लौट आएँ ...तब तक होली भी मन जाएगी .<BR/>शुभकामनाएँ .....Dr. Chandra Kumar Jainhttps://www.blogger.com/profile/02585134472703241090noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-26938611509255758362008-03-20T08:25:00.000+05:302008-03-20T08:25:00.000+05:30अजीतजी, शब्दों का सफर संग्रह किताब के रूप में कब त...अजीतजी, <BR/>शब्दों का सफर संग्रह किताब के रूप में कब तक लाने की योजना है। जानकारी बढ़ाने वाला, रुचिकर और शब्दों को जिंदा रखने के लिए जरूरी संग्रह होगा।Batangadhttps://www.blogger.com/profile/08704724609304463345noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-36305102228310847912008-03-20T05:22:00.000+05:302008-03-20T05:22:00.000+05:30बचपन में हम पुरुषों के लिए सलवार-कुर्ता और महिलाओं...बचपन में हम पुरुषों के लिए सलवार-कुर्ता और महिलाओं के लिए सलवार-कुर्ती शब्दों का प्रयोग सुनते रहे। अब केवल सलवार सूट ही सुनाई देता है वह भी महिलाओं और लड़कियों के पहनावे के रुप में ही। <BR/>विमल जी विस्तार से लिखें तो अनेक लोगों के बारे में जानकारियाँ मिलेंगी। एक इतिहास बनेगा। आत्मकथ्य से वह अधिक महत्वपूर्ण है। उन का आत्मकथ्य एक समय का दस्तावेज भी है। यह समय है भारत में 1975 के आपातकाल के इर्द-गिर्द का जब राजनीति ने एक मोड़ लिया था। 1977 के चुनाव ने उसे एक ऐसा रुख दिया जिसे हम आज तक भुगत रहे हैं। आप उन से लिखवाइये अवश्य। अभी अगले रविवार तक होली का माहौल रहेगा। व्यस्ताएं और अवकाश दोनों एक साथ होंगे। इस श्रंखला में थोड़ा व्यवधान अखरेगा नहीं। प्रतीक्षा ही उचित है।दिनेशराय द्विवेदीhttps://www.blogger.com/profile/00350808140545937113noreply@blogger.com