tag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post8525432513416174628..comments2024-01-18T18:37:01.064+05:30Comments on शब्दों का सफर: [बहस-2] विमर्श में घुमक्कड़ी भी है ज़रूरीअजित वडनेरकरhttp://www.blogger.com/profile/11364804684091635102noreply@blogger.comBlogger11125tag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-26030736045066809222008-08-17T17:49:00.000+05:302008-08-17T17:49:00.000+05:30"अब तो जो भी विमर्श होते हैं उनमें घुमक्कडी तो गाय..."अब तो जो भी विमर्श होते हैं उनमें घुमक्कडी तो गायब हो गई, बस बंद कमरों में किसी न किसी रूप में शिकार हो रहा होता है कभी व्यक्ति का , कभी विचार का।" <BR/>इसके बाद तो कमेंट करना ऐसा लग रहा है कि हमें खुद घुमक्कड़ी स आपत्ति हो लेकिन इतने शानदार लेखन पर बंद कमरे से ही सही यह तो कह सकता है वाकई शानदार लिखा है आपनेRamashankarhttps://www.blogger.com/profile/09873866884519903643noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-85878150654570610592008-03-07T23:40:00.000+05:302008-03-07T23:40:00.000+05:30शानदार सफ़र। प्रमोदजी के बहकावे में न आइयेगा। :)शानदार सफ़र। प्रमोदजी के बहकावे में न आइयेगा। :)अनूप शुक्लhttps://www.blogger.com/profile/07001026538357885879noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-50822690129226823872008-03-07T05:57:00.000+05:302008-03-07T05:57:00.000+05:30बस बंद कमरों में किसी न किसी रूप में शिकार हो रहा ...बस बंद कमरों में किसी न किसी रूप में शिकार हो रहा होता है कभी व्यक्ति का , कभी विचार का। <BR/>शानदार समापन..... इस बात ने मन खुश कर दिया अजीत भाई... बहुत शानदार.Sanjay Karerehttps://www.blogger.com/profile/06768651360493259810noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-85683505956085286832008-03-06T20:07:00.000+05:302008-03-06T20:07:00.000+05:30हमेशा की तरह बेहतरीन - लेकिन नया ये देखा " ...बस ब...हमेशा की तरह बेहतरीन - लेकिन नया ये देखा " ...बस बंद कमरों में किसी न किसी रूप में शिकार हो रहा होता है कभी व्यक्ति का, कभी विचार का.." सशक्त उपसंहार - सादर मनीषAnonymoushttps://www.blogger.com/profile/08624620626295874696noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-59418353565433251422008-03-06T16:28:00.000+05:302008-03-06T16:28:00.000+05:30विचार विमर्श और उसके ऊपर का काथ्याकूट (यह मराठी का...विचार विमर्श और उसके ऊपर का काथ्याकूट (यह मराठी का शब्द है) दोनो ही अच्छे लगे । वैसे आपकी तो सभी पोस्ट ज्ञानवर्धक होतीं हैं ।Asha Joglekarhttps://www.blogger.com/profile/05351082141819705264noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-15508609337377858962008-03-05T13:18:00.000+05:302008-03-05T13:18:00.000+05:30sochna...vicharna...vihar-vimarsh karna, jeevant h...sochna...vicharna...vihar-vimarsh karna, jeevant hone ka pramaan hai.<BR/>UDAYPRAKASH JI ki mashhoor panktiyan hain...<BR/>AADMEE MARNE KE BAAD <BR/>KUCH NAHEEN SOCHTAA<BR/>AADMEE MARNE KE BAAD<BR/>KUCH NAHEEN BOLTAA<BR/>KUCH NAHEEN SOCHNE<BR/>AUR KUCH NAHEEN BOLNE PAR <BR/>AADMEE MAR JATA HAI...<BR/>Aapke vimarsh ke liye dhanyavad AJIT JI.Dr. Chandra Kumar Jainhttps://www.blogger.com/profile/02585134472703241090noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-85935386297170743582008-03-05T11:21:00.000+05:302008-03-05T11:21:00.000+05:30विचारों से अपनी दुश्मनी है और विमर्श तो कोई हमसे क...विचारों से अपनी दुश्मनी है और विमर्श तो कोई हमसे करने से रहा! <BR/>लेकिन फिर भी ज्ञानवर्धक!!Sanjeet Tripathihttps://www.blogger.com/profile/18362995980060168287noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-37023678766209909752008-03-05T09:42:00.000+05:302008-03-05T09:42:00.000+05:30विचार/विमर्श में कब किसका इस्तेमाल हो, यह हमेशा ख्...विचार/विमर्श में कब किसका इस्तेमाल हो, यह हमेशा ख्याल आता था..अब क्या..जब एक यह पर्यायवाची ही हैं.Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-34034107579576070102008-03-05T07:54:00.000+05:302008-03-05T07:54:00.000+05:30धन्यवाद अजित जी । विमर्श शब्द का हिन्दी मे हालिया...धन्यवाद अजित जी । विमर्श शब्द का हिन्दी मे हालिया इस्तेमाल "डिस्कोर्स " पर्याय के रूप मे होता है ।सुजाताhttps://www.blogger.com/profile/12373406106529122059noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-51088895971741487172008-03-05T07:53:00.000+05:302008-03-05T07:53:00.000+05:30देख रहा हूं थर-थर कांपने के बाद आप फर्र-फर्र उड़ भ...देख रहा हूं थर-थर कांपने के बाद आप फर्र-फर्र उड़ भी रहे हैं.. आंख से आपके आंसू छूटने चाहिए थे तो वो उड़न परात के छूट रहे हैं.. सारे कार्य-व्यापार का कोई लॉजिक ही नहीं है.. रतलामी बाबू का भी पता नहीं क्या था.. अब इसपे विचार किया जाये या विमर्श? बहस तो न ही किया जाये क्योंकि उसके नाम से फिर मैं थर-थर कांपने लगूंगा.. शायद थोड़ी देर में रोने भी..azdakhttps://www.blogger.com/profile/11952815871710931417noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753883218562979274.post-23768684352612894202008-03-05T06:31:00.000+05:302008-03-05T06:31:00.000+05:30चर। विचर। कुछ सोच। फर्श पर पड़ा मत रह। कुछ करने की...चर। विचर। कुछ सोच। <BR/>फर्श पर पड़ा मत रह। <BR/>कुछ करने की सोच,<BR/>चरण को कष्ट दे, विमर्ष कर। <BR/>केवल घूमता भी मत रह<BR/>निष्कर्ष पर पहुँच <BR/>चरित्र पर ध्यान दे। <BR/>कुछ सुधार कर। <BR/>चर। विचर। कुछ सोच। <BR/>फर्श पर पड़ा मत रह।दिनेशराय द्विवेदीhttps://www.blogger.com/profile/00350808140545937113noreply@blogger.com