
संस्कृत में एक क्रिया है सृ जिसका मतलब होता है जाना, तेज-तेज चलना, धकेलना , सीधा वगैरह। इन तमाम अर्थों में गति संबंधी भाव ही प्रमुख है। सृ से ही बना है सर शब्द जिसका मतलब न सिर्फ जाना है बल्कि गतिवाले भाव को प्रदर्शित करता हुआ एक अन्य अर्थ जलप्रपात भी है। यही नहीं सर का मतलब झील भी है। इसी से सरोवर भी बना है । अमृतसर , मुक्तसर , घड़सीसर जैसे अनेक नामों में भी यही सर समाया है। सीधी सी बात है कि ये सभी स्थान किसी न किसी सरोवर के नाम से जाने जाते हैं।
हिन्दी का सड़क शब्द भी सृ से ही जन्मा है। सृ के गति वाले भाव से संबंधित सड़क शब्द मूल रूप से संस्कृत में सरक: के रूप में मौजूद है जहां इसका मतलब राजमार्ग, सीधा चौड़ा रास्ता है। संस्कृत, हिन्दी, बांग्ला रास्ते या राह के लिए सरणि शब्द भी यहीं से पैदा हुआ। यही नहीं किसी राह या रास्ते पर चलना, किसी के पीछे चलना जैसे भावों को उजागर करने वाले सरण, अनुसरण जैसे शब्दों में भी संस्कृत मूल का सृ शब्द है।
निष्कपट, ईमानदार और सीधा-सादा के अर्थ में सरल शब्द का हिन्दी में खूब प्रयोग होता है। यह भी इसी कुटुंब का शब्द है।
सृ से ही संस्कृत के सरस् शब्द की उत्पत्ति हुई है जिसका मतलब तालाब, पोखर, जलाशय है। सरस्वत शब्द इसी की अगली कड़ी है जिसका अर्थ है सजल, रसीला, नद, समुद्र वगैरह। पुराणों में उल्लेखित सरस्वती नदी का नाम इससे ही निकला है। वाणी व ज्ञान की देवी के साथ दुर्गा और गाय को भी सरस्वती कहते हैं। किसी दरार से पानी के बहाव को रिसाव या रिसन कहा जाता है । यह भी सृ से ही बना है। यही नहीं नदी के लिए सरिता सरकना, सरसराना आदि शब्दों का उद्गम भी इससे ही हुआ है।
अजित जी,
ReplyDeleteशायद आप नहीं जानते कि आपकी यह शृंखला कइयों के लिए कितना महत्व रखती है. मेरे लिए तो प्यासे को पानी समान है. कृपया लिखते रहियेगा. बड़े चाव से इंतज़ार करता हूँ. ढेरों साधुवाद.
अजित जी, बतौर अख़बारनवीस मैं शब्दों की अहमियत बख़ूबी समझ सकता हूँ। आप ब्लाग के ज़रिये एक अच्छा और काफी अहम काम कर रहे हैं। ऐसे वक़्त में जब भाषा के साथ सबसे ज्यादा खिलवाड़ हो रहा हो, आपकी जानकारी काफी काम आयेगी। शुक्रिया।
ReplyDeletethat's really a vry good work from u...i appreciate that...
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