
हिंदी में रुपए के लिए कलदार शब्द प्रचलित है। खासतौर पर ग्रामीण क्षेत्रों में यह शब्द धड़ल्ले से एक-दो रुपए के सिक्के के लिए प्रयोग होता है। दरअसल लॉर्ड कार्नवालिस (31दिसंबर1738 - 5 अक्टूबर 1805)के जमाने में भारत में मशीन के जरिए सिक्कों का उत्पादन शुरू हुआ। लोगों नें जब सुना कि अंग्रेज `कल´ यानी मशीन से रुपया बनाते हैं तो उसके लिए `कलदार´ शब्द चल पड़ा। यूं देखें तो आज कागज के जिस नोट को हम रुपया कहते हैं वह भी पहले चांदी का सिक्का होता था। संस्कृत में चांदी को `रौप्य´ कहते हैं इसलिए `रौप्य मुद्रा´ शब्द प्रचलित था। इसे ही घिसते-घिसते `रुपए´ के अर्थ में शरण मिली। मजे की बात देखिए, पाकिस्तान जहां की भाषा उर्दू है, संस्कृत के रौप्य से जन्मा रुपया ही सरकारी मुद्रा के तौर पर डटा हुआ है।
अजित जी
ReplyDeleteपाकिस्तान तो ख़ैर रूपया के चलन में आने के बहुत बाद देश बना, बहुत ही अस्वाभाविक तरीक़े से. लेकिन दुनिया के अनेक देशों में रुपिया, रुपिहा, रुपिका, रुपया, रुपाहाः ही मुद्रा के नाम हैं. चाँदी रूपा से इनका उदगम होगा, ऐसा लगता है.
This comment has been removed by a blog administrator.
ReplyDelete