Tuesday, July 31, 2007

मेरी पसंद - आओ बहस करें ...

हस करना ज्यादातर पढ़े-लिखे मनुश्यों का खास शगल है। ये बहस कहीं भी नज़र आ सकती है। स्कूल, कालेज, दफ्तर सड़क,घर-बाहर और अब तो ब्लाग पर भी ....कहीं भी। किसी भी विषय पर हो सकती है चांद-तारों से कारों तक, योग से भोग तक , शराब-शबाब से गंगा-जमना दोआब तक किसी पर भी। इस पर भी कि मैं ये सब क्यों लिख रहा हूं, ऐसा सचमुच हो , इससे पहले लें मजा़ श्याम बहादुर नम्र की इस कविता का जो मुझे प्रिय है।


आओ बहस करें
सिद्धांतों को तहस-नहस करें
आओ बहस करें।

बहस करें चढ़ती महंगाई पर
विषमता की
बढ़ती खाई पर।
बहस करें भुखमरी कुपोषण पर
बहस करें लूट-दमन-शोषण पर
बहस करें पर्यावरण प्रदूषण पर
कला-साहित्य विधाओं पर।

काफी हाऊस के किसी कोने में
मज़ा आता है
बहस होने में।

आज की शाम बहस में काटें
कोरे शब्दों में सबका दुख बांटें
एक दूसरे का भेजा चाटें
अथवा उसमें भूसा भरें
आओ बहस करे....

-श्याम बहादुर नम्र

6 comments:

  1. सही है, मौके क हिसाब है यह कविता श्याम बहादुर नम्र जी की. :)

    आजकल यही माहौल है न भाई:

    बिना बात की बात उठा लें
    कहीं भी अपनी टांग अड़ा लें
    इससे उससे गाली खा लें
    मत सुनो कि अब बस करें
    आओ, आओ-बहस करें.


    :)

    -समीर

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  2. सही है। बहस करने का मजा ही कुछ और है। :) अब आप बताइये बहस शब्द बना कैसे?

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  3. सुननेवाला भी हसा और कहनेवाला भी
    तो लो हो गयी एक "बहस"
    ताकि
    और लोग भी हँस लेँ ..

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  4. भोत सई हे ख़ां

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  5. बहस रहे बरक़रार
    न रहे उसमें क्षार
    न हो हाहाकार
    स्नेह की दरकार
    आत्मीयता की बयार
    यही हो शब्द का कारोबार
    उसी बहस से मनुष्यता की
    जय जयकार !

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