आओ बहस करें
सिद्धांतों को तहस-नहस करें
आओ बहस करें।
बहस करें चढ़ती महंगाई पर

विषमता की
बढ़ती खाई पर।
बहस करें भुखमरी कुपोषण पर
बहस करें लूट-दमन-शोषण पर
बहस करें पर्यावरण प्रदूषण पर
कला-साहित्य विधाओं पर।
काफी हाऊस के किसी कोने में
मज़ा आता है
बहस होने में।
आज की शाम बहस में काटें
कोरे शब्दों में सबका दुख बांटें
एक दूसरे का भेजा चाटें
अथवा उसमें भूसा भरें
आओ बहस करे....
-श्याम बहादुर नम्र
सही है, मौके क हिसाब है यह कविता श्याम बहादुर नम्र जी की. :)
ReplyDeleteआजकल यही माहौल है न भाई:
बिना बात की बात उठा लें
कहीं भी अपनी टांग अड़ा लें
इससे उससे गाली खा लें
मत सुनो कि अब बस करें
आओ, आओ-बहस करें.
:)
-समीर
सही है। बहस करने का मजा ही कुछ और है। :) अब आप बताइये बहस शब्द बना कैसे?
ReplyDeleteसुननेवाला भी हसा और कहनेवाला भी
ReplyDeleteतो लो हो गयी एक "बहस"
ताकि
और लोग भी हँस लेँ ..
भोत सई हे ख़ां
ReplyDeleteसचमुच करें ?
ReplyDeleteबहस रहे बरक़रार
ReplyDeleteन रहे उसमें क्षार
न हो हाहाकार
स्नेह की दरकार
आत्मीयता की बयार
यही हो शब्द का कारोबार
उसी बहस से मनुष्यता की
जय जयकार !