
एशिया की सभी प्राचीन सभ्यताओं में तिल का बहुत प्राचीन काल से उल्लेख मिलता है चाहे वह आर्य सभ्यता हो, असीरियाई हो या मिस्र की हो। भारत में ईसा से ढाई हजार साल पूर्व हड़प्पाकाल मे तिल की खेती के प्रमाण मिले हैं। इन सबसे हटकर प्राचीन ग्रंथों में तिल का उल्लेख बताता है कि वैदिक युग से ही इसका बड़ा धार्मिक महत्व था और चावल के साथ साथ इसका शुमार भी उन प्राचीनतम खाद्य वनस्पतियों में है जिनके महत्व से मनुश्य परिचित था। हिन्दू संस्कृति में तो तिल-तंडुल और तिलहोम जैसे शब्द इसके धार्मिक महत्व को ही साबित करते हैं।
पेराई से निकले द्रव्य को तैलम् कहते हैं। इसी से हिन्दी में तेल शब्द बना। कहावत भी है-इन तिलों में तेल नहीं। मगर ज़माने की रफ्तार के साथ-साथ तिलों की तो छोडि़ए न जाने कितनी चीजों से तेल निकलने लगा। अरण्डी का तेल, नारियल का तेल, लौग का तेल, बादाम का तेल और तो और मिट्टी का तेल ? तेल शब्द के अर्थ विस्तार के संदर्भ में प्रसिद्ध भाषाविज्ञानी भोलानाथ तिवारी इस

मिलता है -सारा तेल निकाल दिया। यानि किसी काम के लिए पसीना बहाना पड़ा। इसका मतलब हुआ मनुश्य का भी तेल निकलता है। पुराने ज़माने में जब कोल्हू से तेल निकाला जाता था तो सजा़ के तौर पर कई दफा जानवर की जगह अपराधी को जोत दिया जाता था-यानी उधर तिल का तेल निकलता और इधर आदमी का।
साफ है कि प्राचीनकाल में तिल से निकाले गए द्रव्य को ही तेल कहा जाता था मगर बाद में उन वनस्पतियों अथवा बीजों से निकाले गए द्रव्य को भी तेल कहने का चलन हो गया। यही नहीं , वे तमाम बीज जिनसे तेल निकाला जा सकता हो तिलहन या तेलहन कहलाने लगे। जो समुदाय तेल निकालने और बेचने के काम में लगा वह तेली कहलाया। पूर्वी भारत में कंजूस व्यक्ति को तेलिया मसान कहा जाता है।
गौरतलब है कि तिल का अर्थविस्तार को देखकर को तो लगता है कि इसका सचमुच ताड़ बना दिया गया है।
तिल तिल कर मरना भी तो कहते हैं-शायद वो इसकी छोटी साईज की वजह से होगा. खैर, आप तो ऐसे ही हर शब्द का तेल निकाले रहो और हम सब ज्ञानार्जन करते रहें. :)
ReplyDeleteहमेशा की तरह ज्ञानवर्धक.
ReplyDeleteआपके ब्लाग की सबसे बड़ी खासियत है कि जो चीजें हमारे आसपास होती हैं उनके बारे में हमें नयी जानकारी पता चलती है जिसके बारे में हमने कभी विचार नहीं किया होता है पहले। शरीर का तिल, तेल का तिल। बहुत अच्छा लगा। आपको धन्यवाद कि यह शब्दसंपदा पहचनवाने में आप हमें रोशनी दिखा रहे हैं।
ReplyDeleteआपके शब्दों के सफर मे हम भी एक मूक हमसफर थे लेकिन आज आपका फारसी मे एक मुहावरा (दंदां तुर्श करदन) पढ़ कर फारसी की पढ़ाई आगे बढ़ाने का जोश जाग गया. बहुत बहुत धन्यवाद ( दुनिया मुछकर )
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