साथियों बीते साढे़ तीन महिनों में आपने न जाने कितनी बार अलग-अलग पड़ावों पर शब्दों के सफर की हौसला अफ़जाई की है। इसे शुरू करने से पहले मैं आश्वस्त तो था कि यह एक सार्थक पहल होगी मगर इतने हमसफर भी होगें इसका इल्म न था। इसी कड़ी में आज एक बहुत खास शख्सियत का भी जुड़ना हुआ है। समांतर कोश-हिन्दी थिसारस के सर्जक दंपती अरविंद कुमार-कुसुम कुमार का आशीर्वाद भी शब्दों के सफर को अनायास मिला। श्री अरविंदकुमार इन दिनों हिन्दी ब्लागजगत की प्रवृत्तियों पर गहरी नज़र रखे हुए हैं और इस माध्यम को वे हिन्दी के लिए बहुत शुभ मानकर चल रहे है। मगर जैसा कि हम में से अनेक की चिन्ता है कि क्या हिन्दी ब्लागिंग चाटवाली गली जैसी शोहरत में मुब्तिला होने जा रही है या फिर एक विशुद्ध सूचना माध्यम की गंभीर भूमिका निभाने की तैयारी में है जिसमें पत्रकारिता, साहित्य, संगीत , संदर्भ और इतर विधाओं को अपने भीतर समोने जैसी गहराई भी है । दिलीप मंडल इस संदर्भ में कहते हैं -
''ब्लॉग की सीमाओं को लेकर सोच रहा हूं। लेकिन इस बीच आपकी तरह के कुछ काम दिखते हैं तो उम्मीद बंधती है। सवाल ये है कि क्या टिकाऊ किस्म के काम के लिए ब्लॉग का इस्तेमाल हो सकता है। अगर आप ऐसा कर पा रहे हैं तो बधाई। मुझे अभी इसका रास्ता नहीं मिला है।''
इसी कड़ी में पल्लव बुधकर भी ब्लागिंग को दमदार माध्यम तो मानते हैं पर इसका शानदार तरीके से कैसे उपयोग हो इसे लेकर वे भी ऊहापोह में हैं। मेरी नज़र में इस वक्त करीब बीस-पच्चीस ब्लाग ऐसे हैं जो नियमित हैं और सार्थक हैं। मगर इनमें भी कई ऐसे हैं जो अक्सर उलझ पड़ते हैं। उलझाव से कोई सुलझाव न हो तो उलझना बेकार है। मगर लोग सचमुच गंभीर हैं और फिलहाल तो शुरुआत ही हुई है। अभी तो सचमुच इसका डायरियाना प्रयोग ही चल रहा है। रेसिपी से लेकर दर्शन तक सब कुछ एक साथ। इसमें भी कुछ बुराई नहीं।
इन सबके बीच अरविंदकुमार जैसे लोग अगर ब्लागिंग में दाखिल होते हैं और उसे परखते हैं तो यह शुभ संकेत है। अरविंदकुमार आजकल केद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा, की हिंदी लोक शब्दकोश परियोजना के प्रधान संपादक हैं।
अपने ब्लाग पर अरविंदजी की जो प्रतिक्रिया मुझे मिली है वह संक्षिप्त रूप में यूं है-
‘मैं ने पहली बार आप का ब्लाग पढ़ा--पशु और फ़ीस वाला। बघाई!अब इसे फ़ेवरिट की सूची में डाल लिया है। लगातार ज़ारी रखें.. मैनें अपना ब्लाग भी शुरू किया है --अरविंद कोशनामा। आप चाहें तो उस से अपना ब्लाग सहर्ष लिंक कर सकते हैं'
अरविंदकुमार जब माधुरी के संपादक थे तब मैं स्कूल का विद्यार्थी था। शानदार माधुरी की कई छवियां मन में हैं। सर्वोत्तम रीडर्स डाईजेस्ट पर भी अरविंदजी की छाप पड़ी। इन दोनों पत्रिकाओं के अंक पाठकों के पास सुरक्षित हैं।
व्यक्तिशः मैं अरविंदकुमार जी की प्रतिक्रिया पा कर बहुत खुश हूं , अभिभूत भी हूं। आज के दौर के सबसे बड़े कोशकार ने बिन मांगे मुझे वो दे दिया है जो मैं चाहता भी था। हौसला , प्रोत्साहन......
अजित जी, जबरदस्त काम कर रहे हैं आप। उम्मीद है कि शब्दों का सफर बरास्ता ब्लाग किताब की शक्ल में जल्द सामने आएगा। शुभकामनाएं
ReplyDeleteबहुत अच्छे। बधाई!
ReplyDeleteयह तो सच में बधाईवाली बात है....
ReplyDeleteवाह बधाई, मेहनत का फल मीठा होता है। :)
ReplyDeleteअजित भाई,
ReplyDeleteआपका चिट्ठा लगभग रोज़ ही देखता हूँ और ज्ञान वर्धन भी होता है, आनंद भी आता है। रही आपके ब्लॉग पर टिप्पणी... कोई संकोच तो नहीँ था पर हमें यह लगता था (और लगता है) कि इस प्रकार की ज्ञानवर्धक पोस्ट और यह सम्पूर्ण संकलन हमारी टिप्पणी के स्तर से कहीँ उच्च है, सो कभी ऐसी हिमाकत नहीँ करी। आज ऐसा अवसर मिला है, जब कि यह पोस्ट आपकी नियमित पोस्ट से भिन्न है और टिप्प्णी का ज़िक्र है तो मैं इसे आपके प्रति आभार प्रकट करने का अवसर मानता हूँ। बहुत शुभकामनाएं इस प्रकार का कार्य जारी रखने के लिये।
आपको अरविंद जी की टिप्पणी के लिये बधाई भी। आप का चिट्ठा वास्तव में इसका अधिकारी है।
एक बात और भी कहनी है - बहुत बार सोचा था कि सीधे ई-मेल से लिख दी जाय। मेरे विचार से आपके इस संकलन को तकनीकी रूप से ब्लॉग के अलावा या इसके स्थान पर किसी अन्य रूप / तंत्रांश से इंटरनेट पर होना चाहिये। यह मात्र एक ब्लॉग नहीँ अपितु संदर्भ स्रोत है जिसका कि अन्य तंत्रांशों से अधिक उपयोग हो सकता है।
खुश, अनूपजी, बोधिभाई, श्रीशपंडितजी और राजीव भाई
ReplyDeleteमेरी खुशी में आप सब सहभागी है। क्योंकि इस ब्लाग को चलाते रहने की लगन आप लोगों से ही मिलती है। मैं बहुत मामूली आदमी हूं राजीवभाई और अपने शौक को सबके साथ बांट रहा हूं । आपने अभी तक मुझ से संवाद न बनाकर तो मेरे साथ अन्याय ही किया है:)
आप की रचना पढ़ी... धन्यवाद।
ReplyDeleteपल्लव बुधकर जी की चिंता बेकार है। सभी प्रकाशित सामग्री उच्च साहित्य नहीं होती। अधिकांश कूड़ा ही होती है। और यूँ तो दवाओं की प्रचार सामग्री को भी अँगरेजी में लिटरेचर कहा जाता है... है ना। हर फ़िल्म क्लासिक नहीं होती। केवल मदर इंडिया, श्री 420 ही याद रह जाती हैं।
इस लिए लगे रहो, ब्लागरो... क्या पाता भविष्य के गर्भ में क्या है...
अरविंद कुमार
पुनश्च:
यहाँ मैं कुसुम जी ओर मेरी नई किताब का ज़िक्र भी कर दूँ, तो अन्यथा न लें। शब्दों के सफ़र में वह संसार में एक बड़ा पड़ाव है, और अफनी तरह का विशालतम द्विभाषी थिसारस और शब्दकोश है। यह विश्व में भारत का गौरव सिद्ध होगा, ऐसा कई लोगों ने मुझ से कहा है,ठीक वैसे जैसे आज भारत के अँगरेजी लेखक विश्व पर छाए हुए हैं।
किताब है The Penguin English-Hindi/Hindi-English Tesaurus and Dictionary द पेंगुइन इंग्लिश-हिंदी/हिंदी-इंग्लिश थिसारस ऐंड डिक्शनरी... ए-4 साइज़ में चार कालमों में छोटे अँगरेजी हिंदी फौंटों में काम की जानकारी से भरपूर इस किताब के तीन वौल्यूम को एक तरह का अंतर्सास्कृतिक संपर्क केंद्र और अंतर्भौगोलक हैंडबुक कहा जा सकता है। साथ ही यह दोनों भाषाओं की समृद्ध शब्दावली एक साथ रख कर लेखकों अनुवादको विचारकों के सामने रखती है।
धन्यवाद
अरविंद
वैसे ही हर ब्लाग
वाह बधाई!!
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