इंतसाब
मेरा कद

और मेरी माँ जीत गई।
( इंतसाब-समर्पण)
एक ग़ज़ल
लड़कियां माँओं जैसा मुकद्दर क्यों रखती है
तन सहरा और आँख समंदर क्यों रखती हैं
औरतें अपने दुख की विरासत किसको देंगी
संदूकों में बंद यह ज़ेवर क्यूँ रखती हैं
वह जो आप ही पूजी जाने के लायक़ थीं
चम्पा सी पोरों में पत्थर क्यूँ रखती हैं
वह जो रही हैं ख़ाली पेट और नंगे पाँव
बचा बचा कर सर की चादर क्यूँ रखती हैं
बंद हवेली में जो सान्हें हो जाते हैं
उनकी ख़बर दीवारें अकसर क्यूँ रखती हैं
सुबह ए विसाल किरनें हम से पूछ रही हैं
रातें अपने हाथ में ख़ंजर क्यूँ रखती हैं
(सान्हें - हादिसे, सुबह ए विसाल-मिलन )
मेरा कद
ReplyDeleteमेरे बाप से ऊंचा निकला
और मेरी माँ जीत गई।
बेहद खूबसूरत हैं तीन पंक्तियॉं जिसमें वो सारी बातें इतनी आसानी से कह दी गई हैं जिनको बताने में उपन्यासों के सारे पन्ने कम पड़ जाते हैं। लाजवाब !
तीन पंक्तियों में बहुत ही वज़नदार बात। नज़्म भी बहुत बढिया। प्रस्तुति के लिए धन्यवाद।
ReplyDeleteआप सबका बहुत बहुत आभार।
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