डा क पर पिछली दो कड़ियों में हमने जानने का प्रयास किया कि डाक शब्द की व्युत्पत्ति का आधार क्या हो सकता है। इस संदर्भ मे द्राक् और ढौक शब्द सामने आए। अंग्रेजी के डॉक और बांग्ला के डाक से भी कुछ रिश्तेदारी सामने आई। द्राक् के शीघ्रता और दौड़ना जैसे मायनों और ढौक के पहुंचाना, पाना जैसे अर्थों के संदर्भ में पेश है कुछ और जानकारियां । वेनिस के मशहूर यात्री मार्को पोलो के बारे में मॉरिस कॉलिस की सुप्रसिद्ध पुस्तक मौले और पेलियट का अनुवाद श्री उदयकांत पाठक ने किया है । हिन्दी में यही पुस्तक मार्को पोलो के नाम से सन्मार्ग प्रकाशन ने छापी है। यहां उसी पुस्तक के कुछ अंश दिए जा रहे हैं जिनसे प्राचीन डाक व्यवस्था के बारे में ठोस जानकारियां मिलती हैं। सन् 1271 में मार्कोपोलो अपने पिता और चाचा के साथ चीन रवाना हुआ। उनका सफर सिल्क रूट पर तय हुआ। पोलो तब पंद्रह बरस का था। साढे तीन साल में यह सफर पूरा हुआ। पोलो को चीन के महान मंगोल शासक कुबलाई खान के शासन में सिविल सर्विस में काम करने का मौका मिला । करीब दो दशक तक वह वहां रहा। उसके नोट्स के आधार पर ही उक्त पुस्तक लिखी गई है। इस दिलचस्प विवरण की पहली कड़ी का आनंद लें।
तीन लाख घोडे, दस हजार चौकियां
कुबलाई खान भी रोमनों की तरह साम्राज्य पर नियंत्रण के लिए सड़कों के महत्व को जानता था।राजधानी पीकिंग को इन तमाम स्थानों से जोड़ने के लिए उसने सुदूर इरान और रूस तक सड़को का जाल बिछाया। मंगोलों की मार्ग प्रणाली, उस पर स्थित सरायें, फौजी चौकियां, डाक के घोड़े और थके घोड़ों के बदले नए घोड़े लेना इन सबका इतना अधिक विकास हुआ कि यह सारे शासन का ही एक महत्वपूर्ण विषय बन गया । इन मुख्य उद्देश्यों में से एक यह भी था कि
चीनियों तथा अन्य विजित राष्ट्रों को नियंत्रण में रखा जाए। पोलो इस विषय संबंधी कुछ मनोरंजक विवरण देता है। उसने समूचे चीन में बहुत यात्राएं की थी और वह मार्गों से खूब परिचित था। कुछ स्थानों पर ये मार्ग पहियेदार गाड़ियों के लिए बने थे किन्तु सामान्य घुड़सवारों के लिए उनके अनुरूप मिट्टी की सड़कें थीं। हर पच्चीस मील पर सरकारी चौकी रहती थी जो यात्रा करनेवाले अफसरों और संदेशवाहकों के लिए सुरक्षित रहती थी। इस इमारत में बढ़िया रेशमी बिस्तर और अन्य आवश्यक चीज़ें भी रहती थीं।
इनमें से प्रत्येक चौकी में एक अस्तबल रहता था जिसमें सरकारी संदेशवाहकों के लिए घोड़े तैयार रहते थे। जिन रास्तों पर शाही डाक बहुत चलती थी उन पर चारसौ घोड़े तक सुरक्षित रखे जाते थे। दूरवर्ती मार्गों पर यह संख्या कम होती और चौकियों के बीच दूरी भी ज्यादा रहती। पोलो अपने विवरण में इन तमाम घोड़ों की संख्या तीन लाख और चौकियों की संख्या दस हजार बताता है। और इस भय से कि उसकी बात पर शायद भरोसा न किया जाए - क्योंकि मंगोल साम्राज्य की विस्तृत दूरियां और विशालता उसके भूमध्यसागरीय पाठकों की कल्पना से परे थीं - वह जोर देकर कहता है कि यह सब व्यवस्था इतने आश्चर्यजनक पैमाने पर और इतनी व्ययसाध्य थी कि उसका वर्णन कठिन है।
....अगली कड़ी में भी जारी
तीन लाख घोडे, दस हजार चौकियां
कुबलाई खान भी रोमनों की तरह साम्राज्य पर नियंत्रण के लिए सड़कों के महत्व को जानता था।राजधानी पीकिंग को इन तमाम स्थानों से जोड़ने के लिए उसने सुदूर इरान और रूस तक सड़को का जाल बिछाया। मंगोलों की मार्ग प्रणाली, उस पर स्थित सरायें, फौजी चौकियां, डाक के घोड़े और थके घोड़ों के बदले नए घोड़े लेना इन सबका इतना अधिक विकास हुआ कि यह सारे शासन का ही एक महत्वपूर्ण विषय बन गया । इन मुख्य उद्देश्यों में से एक यह भी था कि
चीनियों तथा अन्य विजित राष्ट्रों को नियंत्रण में रखा जाए। पोलो इस विषय संबंधी कुछ मनोरंजक विवरण देता है। उसने समूचे चीन में बहुत यात्राएं की थी और वह मार्गों से खूब परिचित था। कुछ स्थानों पर ये मार्ग पहियेदार गाड़ियों के लिए बने थे किन्तु सामान्य घुड़सवारों के लिए उनके अनुरूप मिट्टी की सड़कें थीं। हर पच्चीस मील पर सरकारी चौकी रहती थी जो यात्रा करनेवाले अफसरों और संदेशवाहकों के लिए सुरक्षित रहती थी। इस इमारत में बढ़िया रेशमी बिस्तर और अन्य आवश्यक चीज़ें भी रहती थीं।
इनमें से प्रत्येक चौकी में एक अस्तबल रहता था जिसमें सरकारी संदेशवाहकों के लिए घोड़े तैयार रहते थे। जिन रास्तों पर शाही डाक बहुत चलती थी उन पर चारसौ घोड़े तक सुरक्षित रखे जाते थे। दूरवर्ती मार्गों पर यह संख्या कम होती और चौकियों के बीच दूरी भी ज्यादा रहती। पोलो अपने विवरण में इन तमाम घोड़ों की संख्या तीन लाख और चौकियों की संख्या दस हजार बताता है। और इस भय से कि उसकी बात पर शायद भरोसा न किया जाए - क्योंकि मंगोल साम्राज्य की विस्तृत दूरियां और विशालता उसके भूमध्यसागरीय पाठकों की कल्पना से परे थीं - वह जोर देकर कहता है कि यह सब व्यवस्था इतने आश्चर्यजनक पैमाने पर और इतनी व्ययसाध्य थी कि उसका वर्णन कठिन है।
....अगली कड़ी में भी जारी
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अजित भाई पीकिंग से पेइचिंग कब और कैसे हो गया? या दोनों अलग हैं?
ReplyDeleteऔर ये जो मंगल फॉन्ट है ना ये मंगली है. मंगल दोष से पीडित है, इटैलिक करते ही दोष परिलक्षित हो उठता है. बजाए इटैलिक करने के एक पॉइंट बढ़ाकर कलर सैटिंग चेंज करने से ब्लर्ब अलग और बेहतर दिखता है.
बस एक फोकट की सलाह ...!!
मंगोलिया बड़ा फ़ैसिनेटिंग है। यह मार्लो पोलो का भी और अन्य सभी भी।
ReplyDeleteतैमूर लंग भी तो मंगोलियन था । मार्को पोलो की यात्रा बचपन में पढ़ी थी । तब का जादू रोमाँच याद आ गया ।
ReplyDeleteपढ़ रहा हूं……
ReplyDeleteयह मंगोलिया शब्द अपने आप में न जाने क्या समेटे हुए है कि जहां कहीं दिखाई देता है एक उत्सुकता सी पैदा कर देता है, अपनी ओर खींचता सा है!!
1. आप कमाल की जानकारी ढूढ कर प्रस्तुत कर रहे हैं.
ReplyDelete2. इस लेख की जानकारी मेरे लिये एकदम नई है, एवं एक ऐसे विषय पर है जिसमें अभी हाल ही में रुचि जागृत हुई है.
Ajit sa
ReplyDeleteaap shayad antaryami hai jo itihas ko bhi doosre roop me smete chalte hai. itihaas janna mere pasandeeda vishay hai.bahut aabhar aapke gyan kalash ka jo chalak kar paathako ko tript karta hai. dhanyawaa bhut chota shabd lag raha hai___
kiran