वैदिक साहित्य

एक अन्य शब्द भी गेहूं के विकल्प के रूप में संस्कृत में मिलता है-बहुदुग्ध । जाहिर है बाद में यही गोधूम यानी गेहूं चारे के रूप में गायों को भी दिया जाने लगा होगा जिसकी पौष्टिकता से उनके दूध में बढ़ोतरी होने पर यह नाम चल पड़ा होगा। जा़हिर है प्राचीन आर्य संस्कृति में गेहूं का उपयोग मनुश्य के लिये कम और पशुओ के लिए ज्यादा था। खाद्यान्नों मे इसे बहुत बाद मे सामाजिक स्वीकृति मिली होगी ।
हिन्दू पूजा विधि-विधानों में जो महत्व जव या जौ और धान यानी चावल का है वह गेंहूं को नहीं मिला है । फारसी में भी यही गोधूम, गंदुम बनकर विद्यमान है। इस शब्द का हिन्दी में भी गेहुंआ रंग के अर्थ में गंदुमी रंग कहकर प्रयोग होता है। जो भी हो, जिस गेहूं अर्थात गोधूम की आज धूम है किसी ज़माने में उससे सिर्फ धुंआं ही किया जाता था।
बताइये - गेहूं का यह अपमान था भूतकाल में।
ReplyDeleteकब स्टॉक वैल्यू बढ़ी इस अन्न की विज-अ-विज जौ, और यह मानव का मुख्य खाद्य बना! शायद पिछले कुछ दशकों में ही?
शुक्रिया इस जानकारी के लिए!!
ReplyDeleteनायिका वर्णन के लिए गेहुएं रंगत का भी इस्तेमाल होता रहा है न।
अभी तक तो गेंहू खाकर ही तृप्त होते थे आज पढ़कर तृप्त हो लिए.
ReplyDeleteधन्यवाद
जानकारी के लिए धन्यवाद
ReplyDeleteजहां तक याद पड रहा है कि गौ का प्रयोग शुरुआत में कई चौपाया के लिए होता था बाद में यह रूढ होकर एक ही जानवर का पर्याय बन गया. जाहिर है तब गेहूं सभी जानवरों को धुआं देने के लिए उपयोग में लाया जाता होगा.
दिलचस्प जानकारी मिली ।
ReplyDeleteदो जगह पर गोधूम की व्याख्या में 'गो' का अर्थ धरती बताया है. यह शायद मोनिअर विलियाम्ज़ में है. फारसी में भी एक जगह गेहूं शब्द 'गे' का अर्थ जमीन बताया गया है.
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