
मनीषी और बुद्धिमान मनुश्य के तौर पर दर्शाया गया है। उनकी कार्यशैली पांडवों के लिए फायदेमंद रहती थी। विदुरनीति शब्द से भी बुद्धिमानीपूर्ण बात ही स्पष्ट होती है। यह शब्द बना है संस्कृत की विद् धातु से। संस्कृत के विद् का मतलब होता है जानना , समझना, सीखना और खोजना। महसूस करना, प्रदर्शन करना, दिखाना आदि भाव भी इसमें समाहित हैं। गौर करें कि अत्यधिक ज्ञान भी घातक होता है। इसलिए संस्कृत में धूर्त और षड्यंत्रकारी को भी विदुर कहा गया है।
गौर करें विद् शब्द के उपसर्ग के रूप में प्रयोग पर। विद् का यहां अर्थ होता है जानकार,समझदार । विद्वान शब्द की उत्पत्ति इसी विद् से हुई है। विद्या में यही विद् समाया हुआ है जाहिर है कि विद्यार्थी भी इसी कड़ी का शब्द है। किसी शब्द के साथ विद् इसे लगा दिए जाने पर मतलब निकलता है जाननेवाला, मसलन भाषाविद् यानि भाषा का जानकार। इसी तरह जाननेवाले के अर्थ में उर्दू-फारसी में दां लगाया जाता है जैसे कानूनदां। यह दां भी इसी विद् का रूप है।

यह जानना दिलचस्प होगा अंग्रेजी के विज़न शब्द के पीछे भी यही विद् है। बोल चाल की हिंदी में टेलीविजन और वीडियो के लिए कोई आमफहम हिंदी शब्द नहीं है(दूरदर्शन शब्द गढ़ा तो गया था टेलीविज़न के लिए ही मगर अब सिर्फ सरकारी चैनल के लिए प्रयोग होता है। )चूंकि इन उपरकरणों की खोज पश्चिमी दुनिया में हुई इसलिए इनका नामकरण अंग्रेजी-लैटिन मूल के शब्दों से हो गया। खास बात यह कि टेलीविज़न को पश्चिमीजगत ने ही सबसे पहले इडियट बॉक्स कहा । मगर इसके असली नामकरण के पीछे अगर विज़न जैसा शब्द है तो जाहिर है मूर्खता नहीं बल्कि बुद्धिमानी का भाव ही छुपा है। इसी तरह किसी अनोखी सूझ, विचार, तरकीब के अर्थ में हिंदी भाषी बड़ी सहजता से अंग्रेजी के आइडिया ,आईडियल या शब्दों का इस्तेमाल कर लेते हैं। ये तमाम शब्द प्राचीन भारोपीय भाषा परिवार से ही जन्में हैं और भाषाशास्त्री इनके पीछे weid जैसी किसी धातु की कल्पना करते हैं जिसका मतलब भी बुद्धिमानी, जानना और समझना ही है। इसकी संस्कृत विद् से समानता गौरतलब है। जाहिर है संस्कृत इनकी जन्मदात्री नहीं मगर बहन तो अवश्य ही है।
केवल अंग्रेजी में ही करीब दो दर्जन से ज्यादा शब्दों की इसी विद् से रिश्तेदारी हैं।

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आपकी चिट्ठी
पिछली पोस्ट आह पुलाव, वाह पुलाव सफर के हमराहियों ने काफी पसंद की । सर्वश्री राजेन्द्र त्यागी, पल्लव बुधकर, प्रत्यक्षा, संजीत त्रिपाठी, मीनाक्षी,अनुराधा श्रीवास्तव, सौमित्र बुधकर , ममता , और रवीन्द्र प्रभात जी को पुलाव का स्वाद पसंद करने के लिए शुक्रिया। सफर में खान-पान न हो तो हिन्दुस्तानी सफर में बहुत कुछ सफर करने लगता है।
प्रचुर जानकारी के लिए धन्यवाद। इस प्रकार के लेखों का प्राय अभाव देखने में आता है। प्रयास करते रहें।
ReplyDeleteद को ध में बदलने में क्या देर लगेगी। विद्वता ही शायद विधाता की जनक हो!
ReplyDeleteबताइए, कहां (टेली) विजन और कहां इडियट बॉक्स! भला योरपियंस का भी कोई विजन है! कल मैं मसरूफ था और यहां पुलाव की दावत उड़ गई. चलिए कोई बात नहीं अगली बार देखेंगे... मतलब खाएंगे.
ReplyDeleteअबोधता में आदमी सुखी रहता है.. जानकर दुखी हो जाता है.. दुखिया दास कबीर है.. प्रमाण इस सफ़र में है- विद से वेद बनकर वेदना बन जाता है!
ReplyDeleteचलो कुछ और नई जानकारी मिली। शुक्रिया भाई साहब।
ReplyDeleteनयी जानकारी मिली। धन्यवाद।
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