
डंडा यानी बांस या लकड़ी का लंबा टुकड़ा , छड़ी या सोंटा । यह लफ्ज बना है संस्कृत के दण्ड: से जिसकी उत्पत्ति दण्ड् धातु से हुई है। दण्ड् का मतलब है सज़ा देना । बाद में सजा देने वाले उपकरण यानी छड़ी के लिए ही दण्ड शब्द प्रचलित हो गया जिसने डंडे का रूप ले लिया। यह डंड या दंड शब्द सजा और जुर्माने के लिए भी प्रयुक्त होता है तथा भुजदंड भी एक प्रयोग है। प्रणाम के अर्थ में भी 'दंडवत' शब्द का प्रयोग होता है। गौरतलब है कि प्राचीनकाल से ही तिलक साफा-पगड़ी और दण्ड यानी छड़ी वगैरह समाज के प्रभावशाली लोगों का पसंदीदा प्रतीक चिह्न थे। राजा के हाथ में हमेशा दण्ड रहता था जो उसके न्याय करने और सजा देने के अधिकारी होने का प्रतीक था। आज भी जिलों व तहसीलों के प्रशासकों के लिए दंड़ाधिकारी शब्द चलता है। पौराणिक ग्रंथों में यम, शिव और विष्णु का यह भी एक नाम है।
प्रणाम

आपकी चिट्ठी
सफर की पिछली कड़ी - बक-बक वकील की , अधिवक्ता के वचन पर सर्वश्री दिनेशराय द्विवेदी, ज्ञानदत्त पाण्डेय, , संजीत त्रिपाठी और ममता जी की टिप्पणियां मिलीं। आप सबका आभार ।
अच्छा है - दण्डवत पर पोस्ट और पुलिस के दण्डप्रणाम का अन्दाज दिखाती फोटो!
ReplyDeleteअच्छा लगा पढ़कर ..सही है जब कोई पुराना शिष्य आकर दण्डवत प्रणाम करता है तो मन गदगद हो जाता है..
ReplyDeleteआप के आलेख के साथ के चित्रों का क्या कहना। नित्य आप की पोस्ट की प्रतीक्षा रहती है।
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