
विभिन्न स्थानों पर आप्रवासन बेहद सामान्य घटना रही है। मनुष्य ने सदैव ही रोज़गार की खातिर, आक्रमणों के कारण और अन्य सामाजिक धार्मिक कारणो से अपने सुखों का त्याग कर, नए सुखों की तलाश में आबाद स्थानों को छोड़कर नए ठिकाने तलाशे हैं। उनकी संतति बिना अतीत में गोता लगाए पुरखों की बसाई नई दुनिया को बपौती मान स्थान विशेष के प्रति मोहाविष्ट रही। क्षेत्रवाद ऐसे ही पनपता है। आज जो बाल ठाकरे बिहारियों -पुरबियों को मुंबई से धकेल देना चाहते हैं वे नहीं जानते कि किसी ज़माने में बौद्धधर्म की आंधी में चातुर्वर्ण्य संस्कृति के हामी हिन्दुओं के जत्थे मगध से दक्षिण की ओर प्रस्थान कर गए थे। ऐसा तब देश भर में हुआ था। मगध से जो जन सैलाब दक्षिणापथ (महाराष्ट्र जैसा तो कोई क्षेत्र था ही नहीं तब ) की ओर गए और तब महाराष्ट्र या मराठी समाज सामने आया। इसे जानने के लिए यहां पढ़ें विश्वनाथ काशीनाथ राजवाड़े द्वारा एक सदी पहले किए गए महत्वपूर्ण शोध का एक अंश। उन्होंने तो महाराष्ट्रीय संस्कृति पर गर्व करते हुए जो गंभीर शोध किए वे एक तरह से अपनी जड़ों की खोज जैसा ही था। उन्हें क्या पता था कि दशकों बाद उसी मगध से आनेवाले बंधुओं को शिवसेना के रणबांकुरे खदेड़ने के लिए कमर कस लेंगे। ।
राजवाड़े जी के लेख का अंश-
``...पाणिनी के युग में महाराज शब्द के दो अर्थ प्रचलित थे। एक , इन्द्र और दूसरा, सामान्य राजाओं से बड़ा राजा। पहले अर्थानुसार महाराजिक इन्द्र के भक्त हुए और दूसरे अर्थानुसार

उपनिवेशी महाराष्ट्रिक
यह निश्चय कर चुकने के बाद महाराजिक ही महाराष्ट्रिक थे, एक अन्य प्रश्न उपस्थित होता है कि जस समय दक्षिणारण्य में उपनिवेशन के विचार से महाराष्ट्रिक चल दिए थे उस समय उत्तरी भारत में महाराज उपाधिधारी कौन भूपति थे और महाराष्ट्र नामक देश कहां था। कहना न होगा कि वह देश मगध था। प्रद्योत , शैशुनाग , नन्द तता मौर्य-वंशीयों ने क्रमानुसार माहाराज्य किया था मगध में। माहाराज्य का क्या अर्थ है ? उस युग में सार्वभौम सत्ता को माहाराज्य कहा जाता था। ऐतरेय ब्राह्मण के अध्याय क्रमांक 38/39 में साम्राज्य, भोज्य , स्वाराज्य , वैराज्य, पारमेष्ठ्य, राज्य माहाराज्य , आधिपत्य , स्वाश्य , आतिष्ठ्य तथा एकराज्य आदि ग्यारह प्रकार के नृपति बतलाए गए हैं। मगध के नृपति एकच्छत्रीय या एकराट् थे अर्थात् राज्य, साम्राज्य,महाराज्य आदि दस प्रकार के सत्ताधिकारियों से श्रेष्ठ थे, अतः है कि वे महाराज थे। अपने को मगध देशाधिपति महाराज के भक्त कहने वाले महाराष्ट्रिकों ने जब दक्षिणारण्य में बस्ती की तो वे महाराष्ट्रिक कहलाए । ``
कहना न होगा कि उनका निवास ही महाराष्ट्र कहलाया। लेख काफी लंबा है। मगर हमारा अभिप्राय इससे भी पूरा हो रहा है। महाराष्ट्रीय होने के नाते मागधों अर्थात बिहारियों से यूं अपना रिश्ता जुड़ता देख मुझे तो बहुत अच्छा लग रहा है।
shandar Jankari nikali hai apne...ise thakare tak pahuchana padhegaa
ReplyDeletegoa ke museum mein reference hai ki bihar se nishkasit hone ke baad parshuraam goa aakar bas gaye the.kuchh log majak mein kahte hain ki bharat bihar ka avibhajya hissa hai.
ReplyDeleteयह पोस्ट पढ़कर एक घटना याद आ गई हालाँकि उल्लेख करना ज़रूरी नहीं फिर भी उल्लेख करने को जी चाहा. रियाद के स्कूल में 45 लड़कों की क्लास में अक्सर इसी बात पर झगड़ा होता कि हर बच्चे को अपना राज्य सबसे उत्तम लगता, एक दूसरे को नीचा दिखाने की होड़ लगी रहती है. महीनों लगे बच्चों को शांत करने में. एक दूसरे के राज्य की अच्छी बातें ढूँढने को कहा गया और अंत में मासूम बच्चे एक दूसरे का टिफिन शेयर करके खाने का आनन्द लेने लगे.
ReplyDeleteगजब की जानकारी। वैसे आपके सभी पोस्ट ज्ञानप्रद ही होते हैं। नियमित पाठक हूँ।
ReplyDeleteअजित भाई - अद्भुत जानकारी - यह बात और आगे बढ़ती है - मुझे बचपन में यह बताया गया कि कुमाऊँ (उत्तरांचल) के पन्त, जोशी इत्यादि मूलतः महाराष्ट्र से उत्तरांचल पहुंचे थे (मराठी और कुमाऊँनी भाषा में कुछ साम्य तो है ही) - अगर वह सत्य था तो उसे आपके लेख से मिलाकर कुमाऊँनी पन्त, जोशी वगैरह भी बिहारी हैं - साभार - मनीष
ReplyDeleteवाह अजित जी बढिया और नई जानकारी दिलाई । मै तो सोच रही हूँ कि भैया लोगों पर नाक भं सिकुडने वालों का चेहेरा कैसा देखने वाला होगा ।
ReplyDeleteसब सूत्र एक !
ReplyDeleteमिले सुर मेरा तुम्हारा तो सुर...बने हमारा --
ReplyDeleteबहुत सही ,
ReplyDeleteसब मम् प्रिय सब मम् उपजाया !
सब पर मोर बराबर दाया !!
हम सब एक हैं !!!