[ इस कड़ी के संदर्भों का बेहतर और सम्यक आनेद लेने के लिए कृपया सफर की यह कड़ी -बेचारे चरणों का चरित्र ज़रूर देखें ]
आमतौर पर विमर्श कहते हैं किसी खास बिंदु का सम्यक दृष्टि से परीक्षण, उस पर तर्क-वितर्क के साथ भली भांति सोच-विचार आदि। यही बात विचार में भी है । इसमें भी जांच-पड़ताल, विचार-विनिमय, निष्कर्ष का निर्धारण आदि बातें आती हैं।

विचार का जन्म चर् धातु में वि उपसर्ग लगने से हुआ है। चर् धातु का अर्थ है इधर-उधर घूमना। गौर करें कि मनुश्य ने जो कुछ भी जाना समझा है वह घूम-फिर कर ही जाना है। चर् यानी चलना। विचरण करना। विचरण से ही आचरण बनता है। आचरण ही संस्कार का आधार है। आचरण से चरित्र स्पष्ट होता है सो चरित्र का मूल भी यही चर् धातु हुई। मुद्दे की बात यह कि चर् धातु में निहित घूमने फिरने, भ्रमण करने का जो भाव है उसमें परीक्षण अर्थात घूम फिर कर ज्ञान हासिल करने , भली भांति किसी वस्तु , तथ्य को देखने समझने की बात आती है। घूम फिर कर जब पर्याप्त तथ्य मिल जाएं तो क्या करना चाहिए ? उन तथ्यों पर विमर्श होना चाहिये। यही विचार है। चर् में वि उपसर्ग लगने से बना विचार। अर्थात किन्ही तथ्यों, बिन्दुओं के आसपास विचरण करते हुए , विमर्श करते हुए निष्कर्ष पर पहुंचा जाए। विचार-विमर्श, चिन्तन-मनन भी एक तरह की घुमक्कड़ी है तभी आप मंजिल तक पहुंचते हैं। मगर अब तो जो भी विमर्श होते हैं उनमें घुमक्कडी तो गायब हो गई, बस बंद कमरों में किसी न किसी रूप में शिकार हो रहा होता है कभी व्यक्ति का , कभी विचार का।
आपकी चिट्ठियां-
सफर के पिछले दो पड़ावों और गाली में बदल गई बहस तथा एलेक्सा सूची में शब्दों का सफर भी पीछे नहीं पर सर्वश्री उड़न तश्तरी, दिनेशराय द्विवेदी, अनूप शुक्ल, तरुण , सुजाता , डा सचिनकुमार जैन, आभा,नीलिमा, संजीत, अनुराधा श्रीवास्तव , ममता, अरुण आदित्य , जाकिर अली रजनीश, प्रमोदसिंह,अनिल रघुराज, और रविरतलामी की टिप्पणियां मिलीं। आप सबका आभार । धन्न भाग हमारे, जो आप सब पधारे।
@दिनेशराय द्विवेदी-
भाई साहेब, लगता हूं आपके सुझाए काम पर । वैसे मेरी पोस्ट में जिरह शब्द को उसी संदर्भ में लिखा गया है जिस रूप में आप बता रहे है।
@सुजाता-
बेशक, आप ज़रूर शब्द सुझाएं। वैसे भी इस पोस्ट को विमर्श पर हमने आपके सुझाव पर ही लिखा है:)
@प्रमोदसिंह-
साहेब, इधर-उधर ज्यादा तो नहीं भटकते हम , फिर भी ऐसे काहे हड़का दिए कि हम थर-थर कांपने लगे थे। पोस्ट ही डिलीट करने लगे थे । वो तो बेटे ने रोक दिया।
@रवि रतलामी-
रविभाई, हमने भी सहजता से ही लिया और लिखा भी। कुछ बातें अटपटी लग रही थीं सो फुनिया लिये थे। मगर बाद में लगा कि चलो बहती गंगा में हाथ धो लिए जाएं:)
@तरुण-
भाई शुक्रिया कि जानकारियां दीं। उपयोगी हैं या नहीं , देखता हूं।
चर। विचर। कुछ सोच।
ReplyDeleteफर्श पर पड़ा मत रह।
कुछ करने की सोच,
चरण को कष्ट दे, विमर्ष कर।
केवल घूमता भी मत रह
निष्कर्ष पर पहुँच
चरित्र पर ध्यान दे।
कुछ सुधार कर।
चर। विचर। कुछ सोच।
फर्श पर पड़ा मत रह।
देख रहा हूं थर-थर कांपने के बाद आप फर्र-फर्र उड़ भी रहे हैं.. आंख से आपके आंसू छूटने चाहिए थे तो वो उड़न परात के छूट रहे हैं.. सारे कार्य-व्यापार का कोई लॉजिक ही नहीं है.. रतलामी बाबू का भी पता नहीं क्या था.. अब इसपे विचार किया जाये या विमर्श? बहस तो न ही किया जाये क्योंकि उसके नाम से फिर मैं थर-थर कांपने लगूंगा.. शायद थोड़ी देर में रोने भी..
ReplyDeleteधन्यवाद अजित जी । विमर्श शब्द का हिन्दी मे हालिया इस्तेमाल "डिस्कोर्स " पर्याय के रूप मे होता है ।
ReplyDeleteविचार/विमर्श में कब किसका इस्तेमाल हो, यह हमेशा ख्याल आता था..अब क्या..जब एक यह पर्यायवाची ही हैं.
ReplyDeleteविचारों से अपनी दुश्मनी है और विमर्श तो कोई हमसे करने से रहा!
ReplyDeleteलेकिन फिर भी ज्ञानवर्धक!!
sochna...vicharna...vihar-vimarsh karna, jeevant hone ka pramaan hai.
ReplyDeleteUDAYPRAKASH JI ki mashhoor panktiyan hain...
AADMEE MARNE KE BAAD
KUCH NAHEEN SOCHTAA
AADMEE MARNE KE BAAD
KUCH NAHEEN BOLTAA
KUCH NAHEEN SOCHNE
AUR KUCH NAHEEN BOLNE PAR
AADMEE MAR JATA HAI...
Aapke vimarsh ke liye dhanyavad AJIT JI.
विचार विमर्श और उसके ऊपर का काथ्याकूट (यह मराठी का शब्द है) दोनो ही अच्छे लगे । वैसे आपकी तो सभी पोस्ट ज्ञानवर्धक होतीं हैं ।
ReplyDeleteहमेशा की तरह बेहतरीन - लेकिन नया ये देखा " ...बस बंद कमरों में किसी न किसी रूप में शिकार हो रहा होता है कभी व्यक्ति का, कभी विचार का.." सशक्त उपसंहार - सादर मनीष
ReplyDeleteबस बंद कमरों में किसी न किसी रूप में शिकार हो रहा होता है कभी व्यक्ति का , कभी विचार का।
ReplyDeleteशानदार समापन..... इस बात ने मन खुश कर दिया अजीत भाई... बहुत शानदार.
शानदार सफ़र। प्रमोदजी के बहकावे में न आइयेगा। :)
ReplyDelete"अब तो जो भी विमर्श होते हैं उनमें घुमक्कडी तो गायब हो गई, बस बंद कमरों में किसी न किसी रूप में शिकार हो रहा होता है कभी व्यक्ति का , कभी विचार का।"
ReplyDeleteइसके बाद तो कमेंट करना ऐसा लग रहा है कि हमें खुद घुमक्कड़ी स आपत्ति हो लेकिन इतने शानदार लेखन पर बंद कमरे से ही सही यह तो कह सकता है वाकई शानदार लिखा है आपने