Sunday, March 2, 2008

कुटनियों की साजिशें और बर्बाद कुटुम्ब....

कुटुम्ब के परिवार वाले अर्थ का भाव इतना व्यापक है कि इसमें समूची पृथ्वी का जीवजगत ही समाहित हो गया है। थोड़े और व्यापक संदर्भ में इस पर बात करते हैं। प्राचीनकाल से ही मनुश्य का सबसे प्रमुख आश्रय क्या रहा है ? जाहिर है चारों ओर से घिरी हुई जगह जो गुफा, कंदरा, कुटी, छप्पर कुछ भी हो सकती है। मगर नहीं, ये सब तो सभ्यता के विकासक्रम का हिस्सा हैं । आश्रय की सबसे आदिम अभिव्यक्ति मनुश्य ने समूहबद्ध होकर की और इसे उसने पशुओं से सीखा। कोई भी समूह, परिवार या कुटुम्ब मूलतः एक आश्रय होता है। गुफा, कंदरा,मकान आदि तो रूपाकारों के नाम हैं। इसीलिए कुटुम्ब में आश्रय वाला भाव साफ साफ नुमायां हो रहा है। कुणबी, कुनबी , कुनबा, कुर्मी जैसे शब्द तो कुटुम्बकम् से बने मगर कुटुम्ब की व्युत्पत्ति का आधार क्या है ?

गौर करें कि कुटुम्ब के निवास के तौर पर तो हवेली या प्रासाद ही चाहिए। मगर भाषाविज्ञान में कुटुम्ब का रिश्ता जुड़ता है कुटी या कुटि से । देखते हैं कैसे। कुटि दरअसल झोपड़ी या एक छप्परदार घर को कहते हैं। यह बना है कुट् धातु से जिसका मतलब हुआ वक्र या टेढ़ा । इसका एक अन्य अर्थ होता है वृक्ष। प्राचीन काल में झोपड़ी या आश्रम निर्माण के लिए वृक्षों की छाल और टहनियों को ही काम मे लिया जाता था जो वक्र होती थीं। एक कुटि ( कुटी ) के निर्माण में टहनियों को ढलुआ आकार में मोड़ कर , झुका कर छप्पर बनाया जाता है। इस तरह कुट् से बने कुटः शब्द में छप्पर, पहाड़ (कंदरा), जैसे अर्थ समाहित हो गए । भाव रहा आश्रय का। इसके अन्य कई रूप भी हिन्दी में प्रचलित हैं जैसे कुटीर, कुटिया, कुटिरम् । छोटी कंदरा या गुफा आदि। विशाल वृक्षों के तने में बने खोखले कक्ष के लिए कोटरम् शब्द भी इससे ही बना है जो हिन्दी में कोटर के रूप में प्रचलित है। गौर करें कि किला अथवा दुर्ग के लिए एक शब्द संस्कृत में है कोटः जिसका हिन्दी रूप है कोट और मतलब हुआ किला या दुर्ग। यह भी बना है कुट् धातु से । आज के कई प्रसिद्ध शहरों मसलन राजकोट, सियालकोट, पठानकोट, कोटा आदि शहरों में यही कोट झांक रहा है। कहने की ज़रूरत नहीं कि इन शहरों के नामकरण के पीछे किसी न किसी दुर्ग अथवा किले की उपस्थिति बोल रही है। इसी से बना है परकोटा शब्द जिसका मतलब आमतौर पर चहारदीवारी या किले की प्राचीर होता है।
श्रेणी के लिए भी कोटि शब्द का चलन है मसलन निम्नकोटि, उच्चकोटि । इसका अर्थ होता है चरम सीमा या धार । गौर करें कि किसी टहनी को जब मोड़ा जाता है तो वह चरमकोण पर वक्र होकर तीक्ष्ण और धारदार हो जाती है। कुट् धातु का वक्र भाव यहां साफ साफ नज़र आ रहा है। यही पराकाष्ठा का भाव संख्यावाची कोटि में नज़र आता है जिसे हिन्दी में करोड़ भी कहते हैं।
अब आते हैं कुट् धातु में निहित वक्रता वाले भाव पर । वक्र यानी टेढ़ा । बोलचाल में हम छल प्रपंच करने वाले, बेईमान,
चालबाज व्यक्ति को ‘टेढ़ा’ भी कहते हैं । कुट् से बने कुटिल का अर्थ भी यही है –टेढ़ा, चालबाज , छली , प्रपंची, बेईमान आदि। कुट् का ही एक अन्य रूप नज़र आता है कूट में जिसमें भी जटिल, टेढ़ापन , तीक्ष्ण, धारदार, घर , आवास, आदि भाव छुपे हैं। चाणक्य का एक नाम कौटिल्य भी प्रसिद्ध है। इसमें यही कुट् या कूट धातुएं झांक रही हैं। कूट में भी वक्रता है। इसका अर्थ है जालसाजी, दांवपेंच, चालाकी, भ्रम , धोखा , छद्म आदि। कूटनीति में यही सब कुछ होता है। राजकाज के संदर्भ में चाणक्य इन बातों में विशारद थे इसीलिए उन्हें कौटिल्य भी कहा गया । प्राचीनकाल में सेविका, दूती को कुटनी कहा जाता था। यह शब्द भी इसी कड़ी में आता है। बाद में चुगलखोर, शातिर और बदमाश औरत के लिए कुटनी शब्द आम हो गया। इन्ही कुटनियों की साजिश से न जाने कितने कुटीरों ( कुटुम्ब का एक अर्थ गृहस्थी भी है )में आग लगी है और न जाने कितने कोट ( किले ) धराशायी हुए हैं।

( कृपया इस पोस्ट को स्त्रियों के खिलाफ न समझा जाए )
सफर की यह कड़ी कैसी लगी , ज़रूर बताएं। इसी क्रम में आगे है एक और दिलचस्प पड़ाव।

14 comments:

  1. वाह! कोटर से चले करोड़ तक पहुंचे। जानकारी बढ़ी।

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  2. AJIT JI,
    AAPKEE IS SHAANDAR YATRA MEIN
    KHAMOSH RAHKAR SAREE DUNIYA KO
    CHALANE WALE SHABDON KO
    ZABAAN DEE JA RAHEE HAI.
    ISMEN MUJHE,AAPKE MANTAVYA,VICHAR
    YA PAKSHA KEE BADHA KAHEEN NAZAR NAHEEN AATEE...
    LIHAZAA KISEE KE VIRODH KA
    SAVAAL HEE NAHEEN UTHNAA CHAHIYE.
    SHABDON KA SAFAR KOII
    kootaakyaan BHEE NAHEE,
    ISMEN TO SHABDA-SANSAAR KEE JANKAREE koot-koo kar
    BHAREE JA HAI.
    JISKAA JITNA AANCHAL HOGA,
    LE JAYEGA UTNEE SAUGAT!
    aap chante rahiye.

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  3. pls.correct the word chante...it is chalte.sorry for typing mistake.

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  4. agle dilchaspa padaav kee utsuktaa banee rahegee.

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  5. कुट घडॆ को भी कहते है ।कुट घर को भी कहते हैं ।हज़ारी प्रसाद द्विवेदी के निबन्ध "कुटज"में वे इसे व्याख्यायित करते हैं । पिछली पोस्ट नही देख पाई। शायद आपने वहाँ इसका ज़िक्र किया हो । बहुत ज्ञानवर्धक बातें आपने बताईं ।शब्दों का सफर यूँ ही चलता रहे ।

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  6. कहां शुरु कहां खतम!!
    सफर के लिए शुक्रिया!!

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  7. रोचक पोस्ट ....कुटुम्ब से शुरु हुई तो कहाँ जाकर खत्म हुई.. !

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  8. कहाँ से कहाँ ले उड़े बंधु - गौरतलब पढ़ा - " कोई भी समूह, परिवार या कुटुम्ब मूलतः एक आश्रय होता है।" - rgds- manish

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  9. नही नही कुटनी का बुरा नहीं माना बल्कि मै खुद कुटनियों को कुटनी ही कहती हूँ। हजारी प्रसाद की किताब मे कुटनीमत्म का जिक्र आता है, इनका कुटज भी पढा है.... आदाब।

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  10. कूट्नी = कैकेयी

    राजनीतिज्ञ - कौटिल्य

    काफी जानकारी समा गयी इस आलेख में

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  11. अजित जी!
    शब्दों के इस दिलचस्प सफ़र में आपसे जुड़े अधिक वक्त नहीं गुज़रा और टिप्पणी तो पहली बार ही कर रहा हूँ. पर इतने कम समय में ही आपकी शैली की रोचकता और अमूल्य जानकारी ने बहुत प्रभावित किया. आभार!

    - अजय यादव
    http://merekavimitra.blogspot.com/
    http://ajayyadavace.blogspot.com/
    http://intermittent-thoughts.blogspot.com/

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  12. बहुत शानदार पोस्ट है , अगली कड़ी का बेसब्री से इंतजार है।

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  13. हमेशा के समान एक बेहतरीन पोस्ट ...साधुवाद !

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