
बहुत अच्छी है याददाश्त
मेरी याददाश्त बहुत अच्छी है। सब याद रहता है और कोई भूलता नहीं। तीन चार साल की उम्र में पहनी फ्रॉक, दोस्त, पेड़ ,खेत,चूल्हा....सब याद है। अपने साथ काफी सारा भावनात्मक कबाड़ लेकर चलती हूँ...।
लेट इट गो ....अलग अलग तरीके से लोग कहते हैं....मैने कभी कुछ नहीं छोड़ा....कुछ नहीं छूटा....जो नहीं है...किस्मत ने छीना है या फिर समय में विलीन हो गया।
अप्रेल 26 1973 में रावतभाटा,राजस्थान में जन्म। माँ की उम्र 20 वर्ष। भाई डेढ़ साल का। पापा को बेटी चाहिये थी। माँ को लग रहा था ज़रा ठहर कर नहीं आ सकती थी।
एक कमरे का घर। कमरे के साइड में किचन। पीली नीली आग वाला गहरे हरे रंग का स्टोव। मुझे याद है....पापा की गोद और मम्मी की साड़ी का रंग।
पापा एकदम चुस्त दुरस्त....ऊँची आवाज़...बेहद प्यारी मुस्कुराहट। मम्मी जिम्मेदार , सुंदर , संयत और नौकरीपेशा। होश सँभाला तो माँ के हाथ में शॉर्टहैन्ड की पुस्तक देखी।
कँधे पर एक बैग। बैग में एक स्टील का टिफिन। और उसमें शाम को लौटते वक्त समोसा, लड्डू या सेव....कुछ भी...जो किसी भी बहाने ऑफिस में मिला हो....हमारे लिये बच निकल पहुँच जाता था।
भाई साँवला, अपने में खोया खोया....कार्डबोर्ड, टायर,माचिस की डिब्बी वगैरह से कुछ ना कुछ बनाने की कोशिश करता हुआ। [चित्रः मम्मी पापा ]
पापा कहते, खुश रहना हमेशा...

समय बदल जाता है। स्टोव, नूतन स्टोव में तब्दील हुआ। अपना खुद का संडास बाथरूम। बातरूम में एक बड़ा सा ड्रम। गहरे लाल रंग के ड्रम में मैने कितने तूफान देखे। लहरों का उठना,गिरना.....सू्र्योदय....किश्ती का डूब जाना...किनारे लगना...रौशनी का पानी में उछल कूद करना। मम्मी आवाज़ देती और मुझे किसी जलपरी को बता कर इस दुनिया में फिर लौटना पड़ता।
हमेशा लो मेन्टेनेन्स रही । अपने में, अपने से, सच में ,सपने में खुश।
मम्मी कहती बच्चों तुम्हे बड़ा आदमी बनना है। सब अपने बलबूते पर। इतना अच्छा बनो की कोई चुनौती नहीं दे सके। पापा कहते खुश रहना हमेशा।
दसवीं फेल पापा, बारहवीं पास माँ.... माँ को आगे पढ़ना था। शॉर्टहैन्ड,टाइपिंग, बीए । पापा को हम सबकी खुशी के लिये जीना था।
जिद्दी , राजदुलारी, सबकी प्यारी....

पापा रोटी बनाते थे...मम्मी सीखती थी।
टेलिफोन नंबर्स मम्मी सँभालती थी....पापा इस्तेमाल करने के लिये डायरी रखना सीखते थे।
भाई कॉपी पर कवर चढ़ाता था मैं सीखती थी।
मैं बेमतलब, बेहिसाब हँसती थी....और घर में यह सीखना किसी के लिये मुमकिन नहीं हुआ।
शायद सबसे आलसी मैं रही,जिद्दी,राजदुलारी, सबकी प्यारी...[चित्रः चार बरस के हम !! ]
झाड़ा, पोंछा और घर पहुंचाया...
बहुत बचपन से पावर इक्वेशन्स बहुत अच्छे से समझती थी। दूसरों की और अपनी ताकत का भी काफी सही अंदाज़ा लगा लेती थी। एक बात याद है...।
एक भारीभरकम लड़का था जो एक दो घर छोड़ कर रहता था। हर रोज़ मुझपर रौब झाड़कर मुझसे अपनी साईकल को धक्का लगवाता। मैं भी बिना कोई शिकायत किये मान जाती थी। अपने घर पहुँच कर एक बगोना भरकर दूध पीता। मोटा ताजा किसी साँड़ से कम नहीं लगता। एक दिन बिना बात मुझे दो थप्पड़ धर दिये। कहने को तो पापा को कह सकती थी। पर इससे कितना फायदा होगा नहीं जानती थी। बहुत सोचने के बाद अगले दिन उससे माफी माँग ली।

मेरी पिटाई खाने की पूरी तैयारी थी। पर उसने शिकायत ही नहीं की। बल्कि अगली बार से बराबरी से पेश आने लगा। तब मैं करीबन पाँच साल की थी और वो सात।
बजाज आंटी मेरी के जी की टीचर थी। सबसे पहले अक्षर उन्होने सिखाये। समझाया कि जीवन में कसरत और खेल कितने महत्वपूर्ण हैं। शीर्षासन करना सिखाया। गोरी सी गोल गोल...टीचर शब्द मेरे लिये उनकी छवि से जुड़ा है। [जारी]
इन्हें जानने की इच्छा बहुत दिनों से थी..
ReplyDeleteअच्छा किया जो आपने इन्हें भी यहाँ ला दिया.. :)
चैन से पढ़ कर फिर टिपियता हूँ..
वाह वाह जी. आपको बारे में जानने की इच्छा कई दिनों से थी.अजीत जी का धन्यवाद आपसे रूबरू कराने के लिये.
ReplyDeleteबहुत खूब, लिखती रहे. अच्छा लग रहा है आपके बारे में जानकर
ReplyDeleteबेजी की कविताएं पढ़कर अक्सर सोचता हूं कि वह कविताएं लिखती नही बल्कि बुनती हैं…
ReplyDeleteअब उन्हे जानने मिल रहा है यह खुशी की बात है।
शुक्रिया
पीली नीली आग वाला गहरे हरे रंग का स्टोव।
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गहरे लाल रंग के ड्रम में मैने कितने तूफान देखे। लहरों का उठना,गिरना.....सू्र्योदय....किश्ती का डूब जाना...किनारे लगना...रौशनी का पानी में उछल कूद करना।
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अपने में, अपने से, सच में ,सपने में खुश।
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इन पंक्तियों में काव्यात्मा बोल-सी रही है.
बकलमखुद के सिलसिले का गुनगुनाता हुआ पड़ाव.
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सन्जीत, है सटीक कही बात बुनने की ,
कहानी बुन गई अब ज़रूरत है सुनने की .
आभार अजित जी.
डा.चंद्रकुमार जैन
बेजी से बात करके और मिलकर जितना आनन्द आता है, यहाँ पढ़कर तो आनन्द कई गुना बढ़ रहा है. आगे की कडियों का बेसब्री से इंतज़ार है.
ReplyDeleteये वाली बेजी तो बहुत चुलबुली है.
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति है. बेजी जी की कविताओं की सी मधुर सरस बहती हुई. आनंद आ गया. संघर्षों से बने जीवन में प्रेरणा के बीज होते हैं जो पढने वाले को नवीन उत्साह से भर देते हैं.
ReplyDeleteआपका बुना हुआ पढ़ना और पढ़ कर गुनना सदा ही भाता है-- यहाँ तो और भी भा रहा है-शुभकामनाएं
ReplyDeleteसभी की तरह मैं भी जानना चाहता हूँ, आपको। रावतभाटा मेरे घर से चालीस किलोमीटर है। अनेक बार हो आया हूँ। जब आप का बकलम पढ़ रहा था तो मुझे आरएपीपी के क्वार्टर याद आ रहे थे। इतने नजदीक है आप का जन्मस्थान। जान कर अपने आप नजदीकी रिश्ते की नदी बहने लगती है।
ReplyDeleteएक से बढ़कर एक बढ़िया कवितायें लिखने वाली बेजी जी को हमेशा जानने की इच्छा सब की होगी ही. खासकर इसलिए भी कि इतने शानदार विचार और इतनी बढ़िया सोच पैदा कैसे होती है? ये बकलमख़ुद पढ़ कर कुछ-कुछ समझ आ रहा है.
ReplyDeleteशानदार शख्सियत के बारे में पढ़कर बहुत खुशी हुई. अगली कड़ी का बेसब्री से इंतजार है.
अजित भाई, धन्यवाद.
ज़िंदगी के सफ़र की सुकूनदेह शुरुआत। आगे के ठौर पर नज़रें टिकी हैं।
ReplyDelete'बक़लम ख़ुद' पर आज तक जो भी कुछ पढ़ा है उस सारे के सारे में यह एक अलग से नज़र आने वाला बयान है. बेहतरीन शुरुआत की है आपने अपने जीवन की दास्तान की.
ReplyDeleteइस आत्मकथ्य के शुरुआती दो पैराग्राफ़ विश्व साहित्य की किसी भी कालजयी रचना के पहले दो पैराग्राफ़ हो सकते हैं. कृपया आराम आराम से बताएं.
बहुत सारे लोग जानना चाहते हैं बहुत सारा कुछ आपसे.
फ़िलहाल इस पहली किस्त के लिये ... पता नहीं क्या क्या ... यानी बेहतरीनतम ...
अपने मुरीदों में मुझे भी शामिल करें .
शुक्रिया आपका भी अजित भाई!
वाह, बेजी यहाँ भी. क्या बात है!!!
ReplyDeleteरावतभाटा में तो हमारा भी बचपन गुजरा है डैम पर. बड़ी सुनहरी यादें साथ हैं.
लिखो-पढ़ रहे हैं.
बेहतरीन शुरुआत! आगे की कड़ियों का इंतजार है।
ReplyDeleteबेहद भावभरी,
ReplyDeleteमुखरित, अभिव्यक्ति भरा पहला परिचय बेजी जी के बचपन का पढ रहे हैँ ,:-) मुस्कुरा रहे हैँ और पुन: अजित भाई को सराह रहे हैँ !
- लावण्या
बेमतलब , बेहिसाब हँसने वाली लड़की को अपनी याददाश्त पर इतना फक्र !
ReplyDeleteअजित जी ने अपने ब्लॉग में बुलाया और पूरा बचपन बिछा कर हम भी जम गये....आप सबके अपनेपन और स्नेह का आभार....अजित जी का खासतौर पर...।
ReplyDeleteवाह! बहुत सुन्दर स्मृति लेखन....अच्छा लगा.
ReplyDeletekitna kavyatmak hai aap ka aapne bare me lekh ....sab kuchh ridam me.n...!
ReplyDeleteपढ़ कर बहुत अच्छा लगा.
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