Friday, May 23, 2008

अरुण फ़ूसगढ़ी की कहानी...[बकलमखुद-40]

ब्लाग दुनिया में एक खास बात पर मैने गौर किया है। ज्यादातर ब्लागरों ने अपने प्रोफाइल पेज पर खुद के बारे में बहुत संक्षिप्त सी जानकारी दे रखी है। इसे देखते हुए मैं सफर पर एक पहल कर रहा हूं। शब्दों के सफर के हम जितने भी नियमित सहयात्री हैं, आइये , जानते हैं कुछ अलग सा एक दूसरे के बारे में। अब तक इस श्रंखला में आप अनिताकुमार, विमल वर्मा , लावण्या शाह, काकेश ,मीनाक्षी धन्वन्तरि ,शिवकुमार मिश्र , अफ़लातून और बेजी को पढ़ चुके हैं। बकलमखुद के नवें पड़ाव और चालीसवें सोपान पर मिलते हैं फरीदाबाद के अरूण से। हमें उनके ब्लाग का पता एक खास खबर पढ़कर चला कि उनका ब्लाग पंगेबाज हिन्दी का सबसे ज्यादा पढ़ा जाने वाला ब्लाग है और वे सर्वश्रेष्ठ ब्लागर हैं। बस, तबसे हम नियमित रूप से वहां जाते ज़रूर हैं पर बिना कुछ कहे चुपचाप आ जाते हैं। ब्लाग जगत में पंगेबाज से पंगे लेने का हौसला किसी में नहीं हैं। पर बकलमखुद की खातिर आखिर पंगेबाज से पंगा लेना ही पड़ा।
हमें पता चला कि गुरूवार यानी 22 मई को उनका जन्मदिन भी था। उन्हें विलंबित बधाइयां।

घोषणा

खिर कार हम भी फंस ही गये जी अजित जी के कहे मे। फंसते भी कैसे नही इन्होने गारंटी दी है कि हमारी भी जैविक दैहिक यात्रा की किताबे ठीक गांधी वांग्मय की तरह छपवा कर कम कम से कम १०० लोगो मे बांटेगे, आप तुरंत अपनी मुफ़्त प्रति के लिये तुरंत उन्हे घेरे, ना मिले तो तड़कती-भड़कती अजित जी की ऐसी तैसी करती दो चार पोस्ट तो ठेल ही दे। आखिर फ़्री मे मिलती रद्दी भी छोडी थोडे ही जाती है जी :-

" हम एतद द्वारा घोषित करते है ,यहा दी गई समस्त सामग्री हमारी समस्त जानकारी के अनुसार एक दम सत्य घटनाओ पर आधारित है " आप बेकार मे कोई भ्रम ना पाले, हमे इस लेखन द्वारा जिस जिस की ऐसी तैसी करनी है वोह हमारी नजर मे सत्य ही है। अगर किसी को कोई शक हो तो पंगा लेके देखे ?
(इस पर किसी भी शको शुबह करने वाले जान ले, हमने उनकी ऐसी तैसी करने वाली चार छै पोस्टे पहले ही लिख रखी है, बस नाम डाल कर पोस्ट करना शेष है)
मै एतद द्वारा घोषणा करता हूं कि अब तक प्राप्त समस्त जानकारियो के अनुसार मेरा नाम अरूण अरोरा पुत्र श्री सुरेन्द्र अरोरा पुत्र मास्टर ताराचंद अरोरा है और हमे ग्राम फ़ूसगढ पोस्ट कच्ची गढी,जिला मुज्जफ़रनगर ,उत्तर प्रदेश का निवासी होने का गौरव प्राप्त है, यू आप हमे अरूण फ़ूसगढी भी कह सकते है.

ऊपर से दूसरा नंबर...

माता पिता के बताये अनुसार मेरा जन्म रानी झासी असपताल मे जिला झांसी ,प्रदेश उत्तर प्रदेश (मुलायम जी के हिसाब से उत्तम प्रदेश,है या नही ये हमे पता नही) मे, साल हम बताना नही चाहते (बता दिया तो बाल काले करने का क्या फ़ायदा ,और असत्य हम से काहे बुलवाना चाहते हो भईये),मे हुआ था. उस समय हम दो हमारे चार का जमाना था जी. इसी नियम का पालन करते हुये पिताजी ने बच्चो की संख्या चार पर ही सीमित कर दी थी,आखिर सरकारी कर्मचारी जो थे.यानी हम दो भाई, दो बहन है ,मेरा नंबर उपर से दूसरा है.
बाबा हेडमास्टर थे,लोगो को पढ़ाने और छडी से पीटने के शौकीन, मे कभी कभी ये भी लगता है,उन्हे हमारे सर घुटाने का भी शौक था,गर्मियो मे ,जब तक वो रहे, हमारे सर पर बाल ना रहे.पिताजी को उनकी लापरवाही के गालिया मिलती,कभी कभी छडी से हाजिरी भी ले ही ली जाती,
वैसे गांव मे उन्हे गांव के बच्चो को जबरन अपनी पाठशाला मे ले जाकर पढाने ( वो सहारनपुर मे एक बोर्डिंग स्कूल मे हेडमास्टर थे)और उनके उन मा बाप, जो उनके इस कार्य मे बाधक थे को छड़ी से पीटने के लिये भी मशहूर थे. मैने खुद काफ़ी बड़े बड़े लोगो को उन्हे बीच सडक लेट कर पर दंडवत प्रणाम भी करते देखा है.
दादी ने हमे नही देखा, तो हम दादी का प्यार कहां से पाते, फ़ोटो तक नही देख पाये जी. हां बाबा,का साया जरूर दस साल तक सर पर रहा, उनकी फ़ोटॊ मै आपको जरूर दिखाना चाहूंगा.
गांव मे छूट्टियो मे जाते थे,जहा रहंट से लेकर क्रेशर तक इधर से उधर हमेशा खदेडे जाते रहे है. कभी खांड की बोरियो के अंदर छेद कर खांड खाते पकडे जाते,कभी राब के मटके मे से राब( खाने के बाद खिंडाने के आरोप मे), कभी शक्कर के उपर चलते हुये,कभी भैसे की सवारी करते ,कभी गन्ने की पिराई मशीन के आगे चुल्लू लगाकर रस पीते, या फ़िर पेड पर बैठ कर आमो को निपटाते,खुदा गवाह की हमारे गांव पहुचने के बाद अगर कलमी आम या शहतूत के पेड पर पत्तिया भी बचती हो. नहर के किनारे रेत मे दबे तरबूजो को नहर मे खडे होकर मुक्का मार कर खाने मे जो आनंद आता था.आज कहां मिल सकता है.

पंगेबाजी शुरू से ही

म के मामले मे दिन भर पंगा होता ही रहता था,हम भुसे की कोठरी मे आम छिपा देते ताकी अगले दो चार दिन मे पक जाये,और दूसरे के छिपाये आमो को ढूढ कर खा जाते,लेकिन जब सारे लोग ऐसा ही करेगे तो क्या होगा ? यानी एक छिपाकर जाता,दूसरा खोज कर खा जाता ता फ़िर कही और छिपा देता.
एक दिन मैने देखा कि सारे बच्चे हुक्का पी रहे थे,लिहाजा हमने भी दम मारने की कोशिश की ,और क्योकि पहले का कोई अनुभव भी हमें नही था, इसलिये गड़बड़ हो गई,हमने खीचने के बजाय पूरे दम से फ़ूक मार दी,पानी उपर आया चिलम तड़क गई,मामला ठंडा हो गया, सारे भाग लिये, थोडी देर बाद छोटे बाबा ने हुक्का मंगवाया और पहली नजर मे ही आदेश निकाल दिया ,जरा इस शैतान पलटन को घेर के लाओ... परेड हुई,और सबने हमारा नाम ले दिया की चिलम बंदे ने तोडी है... कान पकड कर कम से कम चार फ़िट उपर उठा दिये गये थे.दिन से आज तक कान लंबे ही है. ये अलग बात है बाद मे सारे पिटे.आखिर हम भी कोई चुप रहने वाले नही थे ना.
लेकिन वो गांव की पक पक कर लाल हुये दूध की लस्सी, जिस पर मक्खन के मोटे मोटे कतरे तैरते रहते हो... वो चूल्हे पर बनी सौंधी सौंधी महक वाली हाथ की रोटी पर रक्खा मक्खन का ढेला,अब तो शायद इस जनम मे क्या मिलेगा ?

लू के थपेडे को समेटती
पेड की छाया
दिल को सूकून पहुंचाता
घडे का पानी.
ना पेड़ बचेगे ना घडे
बस रह जायेगी कहानी.

जारी

26 comments:

  1. वाह अजित भाई, सही घेर लाए इन्हें. आजकल एकदम कवि हुए जा रहे हैं. मजा आ गया पंगेबाजी की शुरुवात देखकर.

    एक कहावत याद आ गई:

    "पंगेबाज आर नॉट मेड, दे आर बार्न’

    तो ये हैं बार्न पंगेबाज. बढ़िया चलेगा यह सफर भी बकलमखुद का. शुभकामनाऐं.

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  2. समीर जी से संपूर्ण सहमति
    "पंगेबाज आर नॉट मेड, दे आर बार्न’

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  3. पक पक कर लाल हुआ दूध.... रोटी ...मक्‍खन बहुत सी पुरानी यादों को ताजा करा दिया अरुण भाई... पंगेबाजी जारी रखें

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  4. अब तक नाम देख कर बचते रहे कि पंगेबाज से कौन पंगा ले। पर लगता है लेना पड़ेगा। ऐसा लग रहा है अरुण जी सस्ते में निपटा देना चाहते हैं, बकलमखुद को।

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  5. अरे ये कविता भी लिखते हैं। ये भी एक पंगा है।

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  6. आपके बहाने गांव की सैर कर ली, वरना जिन चीज़ों का आपने ज़िक्र किया है, वो आज तक देखना भी नसीब नहीं हुईं.

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  7. अरुण जी आपने खुद तो पंगा ले लिया अब और लोगों को क्यों भिडाने पर तुले है. चलो जब आपकी यही मंशा है तो झेलेगें जी.

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  8. अब समझ में आया । बचपन की इत्‍ती खिलाई पिलाई ने ही पंगेबाज़ को पंगा करने की ताकत दी है । :D

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  9. पंगेबाजी की नैसर्गिक प्रतिभा के धनी हैं अरुण जी. बचपन से ही पंगे लेने का अभ्यास शुरू कर दिया था. बढ़िया है जी.

    जन्मदिन की हमारी और से भी बधाईयाँ, देर से ही सही.

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  10. टिप्पणी के कौन पंगा ले :-)

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  11. गांधी वांग्मय के दिन लद गए। अब तो पंगामय रह लेना ही जीवन सूत्र है। पंगा ना ले यार ... अब ले लिया तो, पंगे से मत डर यार।

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  12. टिप्पणी न देकर मैं पंगा नहीं लेना चाहता..

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  13. अरुण जी का बचपन कैसा होगा, ये हम आजतक अंदाजा लगाने की कोशिश करते थे जी...वो भी आज के अरुण जी को देखते हुए...लेकिन ये अच्छा हुआ कि पिटारा खुला है बचपन में की गई पंगेबाजी का...

    लेखन अद्भुत है जी..

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  14. पंगेबाजी जिन्दाबाद.

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  15. He is one of most fantastic Blogger in HIndi World. Nice to read :) Go Ahead, Arun JI :)

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  16. Aap ka bakalamkhud kya padna shuru kiya hamaare monitor ki bathi hi gul ho gayi....waise jab aapne hamaare bakalam par likha ki tipanni se kaam nahi chalega poori post likhni padegi to maaloom nahi tha aap bakalam likh kar panga lena chaahte hain....

    panga mat lena ....nahi to ek mukka ...aur tarbooj nikal aayega...

    :))

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  17. वाह आप भी आ गये.. मगर हम भी नहीं छोड़ने वाले हैं आपको.. बहुत दिनों से आपसे पंगा लेना चाह रहे हैं मगर आप तो इधर देखते भी नहीं हैं.. हमने तो एक पोस्ट भी ठेली थी "पंगेबाज से पंकेबाजी' जैसा कुछ.. मगर फिर भी आप नहीं आये.. चलिये बाकलम खुद में तो आपसे पंगा लेकर ही छोड़ेंगे..:D

    वैसे सबसे पहले जन्मदिन कि शुभकामनाऐं.. :)

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  18. अरे अजित भैय्या, ये किन्हे पकड़ लिया आपने ;)
    देख के कहीं कोई पंगा न हो जाए, हे हे हे।

    अरूण जी को जन्मदिन की विलंबित बधाई व शुभकामनाएं।

    अरूण जी ने अपनी तरफ़ से कोशिश तो की है कि जल्दबाजी में न निपटे लेकिन पहली किश्त पढ़कर लोगों को यही लगेगा कि जल्दी में निपटा रहे हैं, दर-असल ये अपनी पंगेबाजी के बावजूद भी सबके चहेते ब्लॉगर्स में से एक हैं शायद इसीलिए ही लोग इनका बकलमखुद विस्तार से पढ़ना पसंद करेंगे, जैसे कि मैं खुद ही।

    तो जनाब पंगेबाज जी, पूत के पांव पालने में ही दिख जाने वाले अंदाज़ से आप बचपन से ही पंगेबाज हैं, सही है। वैसे गुरु कोई कोर्स चलाते हो तो बताओ अपन लपक के शिष्यत्व लेने को तैयार है आपका, पंगेबाजी सीखने के लिए!!
    और हां, पढ़कर लगा कि पंगेबाज की छाया के अंदर एक भावुक मन छिपा बैठा है, खुशी हुई यह देखकर।

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  19. शर्म आती है पर आज ये कहना होगा कि आज से पहले हम ने अरुण जी को या उनके बारे में कभी नहीं पढ़ा, दूसरे ब्लोगरों से बातचीत के दौरान भी कभी इनका जिक्र नहीं हुआ, दरअसल पंगेबाज नाम देख कर ही हम डर गये थे और पतली गली से निकल लेना ही बेहतर समझा था। अब अजीत जी आप खबर दे रहे हैं कि ये बेस्ट ब्लोगर हैं।
    शुक्रिया अदा करना पढ़ेगा एक बार फ़िर( कितनी बार शुक्रिया अदा करें) अजीत जी का कि एक और अच्छे ब्लोगर से हमारा परिचय करवा रहे हैं( ये मैं खास अपने लिए कह रही हूँ) अरुण जी से माफ़ी मांग रही हूँ कि इसके पहले कभी ध्यान नहीं दिया।
    सबसे पहले तो इनका लिखने का अंदाज चारों खाने चित्त करने वाला है( आलोक पुराणीक और फ़ुरसतिया शैली से मिलता हुआ), अब जरूर पहला मौका मिलते ही इनका चिठ्ठा ढूंढूगी।
    हम कभी गांव में रहे नहीं तो गांव का चित्रण बहुत रोमांचक लगा। ये घड़े में राब- राब क्या होता है?
    उबल उबल कर लाल होता दूध हमें भी बचपन की याद दिला गया।
    अरुण जी को देर ही से सही जन्मदिन की बधाई देते हुए बड़े सकोंच के साथ पूछ रही हूँ -दोस्त?

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  20. पंगेबाज एक सहृदय व्यक्ति हैं। पंगेबाजी तो एक सशक्त मुखौटा है।

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  21. भाई अरुण ,
    उसके बाद कभी हुक्का उल्टा नहीं खींचा ?
    सप्रेम,
    अफ़लातून

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  22. अनीता जी आपके सवाल राब क्या है ?
    गन्ने से बनने वाले पदार्थो मे १. गुड २. खांड ३. शक्कर (पीले रंग की) ४. चीनी प्रमुख है
    खाड बनाने के लिये चाशनी को जरा पतला ही रखा जाता है, गाव की भाषा मे कहे तो दूसरे नंबर के कढाहे से ही निकाल कर ठंडा कर लेते है. और फ़िर सेंट्रीफ़्यूगल सिस्टम से खांड अलग और शीरा अलग हो जाता है. गांव मे इसी चाशनी को घडे मे रख देते है , जिसने कुछ समय बाद दाने बन जाते है(क्रिस्टल) इसका स्वाद थोडा खट्टापन लिये मीठा ही होता है गाव मे इसे लोग सीधे रोटी के साथ भी खा लेते है. :) वैसे हमारे यहा गुड भी कई प्रकार का बनता था मेवो से लेकर अदरक , मूंगफ़ली और मिर्ची (हरी मिर्ची का जो मुझे बेहद पसंद था)

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  23. हुक्‍का उल्‍टा खींचा या नहीं, बाद में जो भी खींचा, सही खींचा है.. सही है.. लगे रहो, फूसगढि़यावादी.

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  24. लू के थपेडे को समेटती
    पेड की छाया ...
    ========================
    सही सोच...सामयिक चिंतन
    साथ ही बकलम ख़ुद की ये कड़ी तो
    मिट्टी की समझ और महक
    के साथ शुरू हुई है .
    ठेठ भाषा का ठाठ
    सिर चढ़कर बोल रहा है !
    ===============================
    स्वागत ...आभार सहित
    डा.चंद्रकुमार जैन

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  25. हमे नही मालूम था की हुक्का पीने से इतनी बढ़िया कलम चलने लगती है ,ओर शायद उसका असर अब तक रगों मे बाकी है पर आप भा गये ....वाकई ......जारी रखिये .....हम तब तक हुक्का ढूंढने बाज़ार मे निकलते है......

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  26. श्री अरूण जी के बारे में पढ़कर अच्‍छा लगा, अरूण जी का व्‍यक्तित्‍व शीशे की तरह साफ है, मजा आता है इनको पढ़ना।

    कभी कभी परीक्षण भी कर लेते है कि सामने वाला चकारा जाये, एक दिन हमारे समाने भी यक्ष प्रश्न जैसे हाजिर हो गये थे किन्‍तु हम निकल गये। :)

    विलम्‍ब से ही सही जन्मदिन की शुभकामनाऍं ग्रहण करें।

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