Monday, May 26, 2008

कालीघोड़ी और प्रिया का पंगा [बकलमखुद -42]

ब्लाग दुनिया में एक खास बात पर मैने गौर किया है। ज्यादातर ब्लागरों ने अपने प्रोफाइल पेज पर खुद के बारे में बहुत संक्षिप्त सी जानकारी दे रखी है। इसे देखते हुए मैं सफर पर एक पहल कर रहा हूं। शब्दों के सफर के हम जितने भी नियमित सहयात्री हैं, आइये , जानते हैं कुछ अलग सा एक दूसरे के बारे में। अब तक इस श्रंखला में आप अनिताकुमार, विमल वर्मा , लावण्या शाह, काकेश ,मीनाक्षी धन्वन्तरि ,शिवकुमार मिश्र , अफ़लातून और बेजी को पढ़ चुके हैं। बकलमखुद के नवें पड़ाव और बयालीसवें सोपान पर मिलते हैं फरीदाबाद के अरूण से। हमें उनके ब्लाग का पता एक खास खबर पढ़कर चला कि उनका ब्लाग पंगेबाज हिन्दी का सबसे ज्यादा पढ़ा जाने वाला ब्लाग है और वे सर्वश्रेष्ठ ब्लागर हैं। बस, तबसे हम नियमित रूप से वहां जाते ज़रूर हैं पर बिना कुछ कहे चुपचाप आ जाते हैं। ब्लाग जगत में पंगेबाज से पंगे लेने का हौसला किसी में नहीं हैं। पर बकलमखुद की खातिर आखिर पंगेबाज से पंगा लेना ही पड़ा।

पहली नौकरी के पंगे...

नौकरी पहली नौकरी लगी भिवाडी,अलवर मे,यहां हमने स्कूल से भी ज्यादा मस्ती ली. काम भी करते थे जी, लेकिन हमारे टीम लीडर अग्रवाल जी जयपुर कालेज मे पढाना छोडकर आये थे,और उनका काम कराने का अंदाज ही निराला था. हम ये मानने लगे थे कि ये अगर किसी को दिन भर धूप मे भी खडा करे तो वो बंदा वहां भी इंज्वाय ही करेगा.
इतनी मस्त तबियत के आदमी बस पूछिये मत, एक दिन रात को दो बजे मेरी क्लास ले ली.
-अरोरा कितनी गलत बात है तुम फ़ैक्टरी मे सिगरेट पीते हो.
-सर लिकिन मैने तो बाहर जाकर पी थी
बहुत गलत बात है चलो सिगरेट की डिब्बी निकल कर मेर पास जमा करो,
मैने कहा-
-सर डिब्बी नही है
-अच्छा कल से जेब मे रखा करो, चलो मेरे साथ अभी जुगाड़ करता हूं.
प्रोडक्शन हाल की एंट्री पर एक कैजुअल टकरा गया
-रामदीन तुम अन्दर बीडी का बंडल लेकर जा रहा है, जमा करो, पता नही बीडी अंदर ले जाना मना है.
अग्रवाल जी की आवाज सुनते ही गरीब ने बीडी का बंडल सरेंडर किया, और चला गया. दोनो ने वहीं बैठ कर बीडी लगाली
कुछ दिन बाद फ़िर वही हालत हुई. साहब ने फ़िर कहा- चल अरोडा रामदीन को बुला.
रामदीन आया, साहब ने फ़िर साह्ब ने बीडी का बंडल पूछा.
रामदीन बोला - साहब हम तो उसी दिन छोड दिये थे.


दिल में उतरने वाले रामपुरी...



खैर जीवन मे मस्तिया तो चलती ही रही है, अगली नौकरी दिल्ली और फ़िर आखिरी रामपुर
मे चक्कू छुरी का मार्केट देखते हुये समाप्त हो गई. सच तो ये है कि पिताजी के साथ हर साल जगह बदलते बदलते हमने तय कर लिया था कि भले हॊ गोलगप्पे का ठेला लगाये पर अपना काम जरूर करेगे नौकरी नही करेगे। इसी चक्कर मे बिजली बोर्ड का इंटर्व्यू नही देने गये . इसी कारण इंदिरा गांधी एयरपोर्ट पर तकनीकी सहायक की नौकरी नही की। दूरदर्शन पर कैमरामैनी नही करने पहुचे कि कही पक्की नौकरी लग गई तो कौन छोडने देगा. हमे तो अपना काम करना है.
हुजूर अब हमारी आदते इतनी बिगड चुकी है कि ना अब हमे कोई नौकरी देने को राजी है,ना हम किसी की जी हजूरी करने को, लिहाजा आज की तारीख मे हम रोज कमाते है रोज खाते है. हर सुबह आठ बजे अपना फ़ावडा,बेलचा लेकर अपने कार्य स्थल पर पहुच जाते है ,और हर रात दस बजे अपने घर.मगर वो हाल आगे कहेंगे।.

तो बात रामपुर की हो रही थी सुंदर शहर ,और शहर वाले भी बहुत सुंदर दिल के. दुनिया मे भले ही रामपुरी चाकू मशहूर हो,पर रामपुर के लोग दिल मे उतर जाते है. यहा छह साल रहा इन छह सालो मे लगा मेरा घर यही है.इतना प्यार की समेटा ना जाये. जौली टी वी रामपुर मे मै एक ट्रेनी की तरह लगा था और जब छॊडी तब मै प्रबंधकों की गिनती मे आ चुका था. मालिको से प्यार मिला घर के बडे की तरह. जब मै वहां काम करता था तो दूसरो की तरह मै भी उन्हे कभी कभी गालियो से नवाजा करता था. दिन मे हम १२ से १६ घंटे काम करते थे ,लेकिन मै आज सोचता हूं ,आज मै जो कुछ हूं उन्ही की वजह से हूं. उन्होने काम करने की इतनी आदत डाल दी है कि मै छुट्टी वाले दिन भी घर मे नही रुक सकता.


रिश्ते की बात...


वैसे एक बार बात उठी थी कि मेरा रिश्ता हमेशा के लिये रामपुर से कायम हो पाता,एक रिश्ता आया था मेरे दोस्त के मार्फ़त.लडकी बहुत सुंदर थी ,हमने हां भी की और उन्हे अपने घर का पता भी दिया . लेकिन लड़की जल्दी मे थी और लड़की वाले मेरे घर जाने मे लेट हो गये . लिहाजा लडकी अपने ट्यूशन टीचर के साथ भाग गई. बाद मे फ़िर एक रिश्ता और आया आगरा से .लेकिन हमे लगा कि हमारी कंडीशन इतनी खराब नही है कि हमे लगातार आगरा जाने की जरूरत पडे. लेकिन किस्मत को क्या करे अगला रिश्ता आया शाहदरा से .घर वालो ने कहा ,इस से बडा पागलपन कुछ नही हो सकता कि हम पागलखाने वाले शहर मे शादी ना करे लिहाजा बात तय हो गई और हमे अपने होने वाले साले से बातों बातों मे पता चला की लडकी गाजियाबाद के एम एम एच कालेज से इतिहास मे एम ए कर रही है. हम जा पहुंचे . क्लास मे बेतहाशा शोर मचा हुआ था कुछ लडकिया डेस्क का तबला बजा कर गाने गा रही थी. क्लास मे जो लडकी सबसे ज्यादा जोर से तबला बजा रही थी , उसी से हमारी शादी हुई और हाथ वही है बस डेस्क की जगह इस बंदे का सिर है ,तबला बजे जा रहा है धन धना,धन धन.


मोटर साइकल पर अदाकारी

ई नई नौकरी लगी थी ,पहले कुछ दिनो तो हम अपनी साईकिल से जो हमे दसवी मे फ़ेल ना होने के फ़ल स्वरूप इनाम मे मिली थी से जाते रहे. फ़िर एक सज्जन अपनी राजदूत मोटर साईकल बेच रहे थे ,और ये हमे तभी से पसंद थी,जब से हमने पिक्चर मे काली घोडी द्वार खडी गाना सुना था. हमने कुछ पिताजी से सहायता ली और मोटर साईकल खरीद ली. उन दिनो हमे चमडे की नुकीली एडी वाले जूते पहनने का शौक था ,और हम एक हाथ मे सिगरेट और एक हाथ से गाडी चलाते हुये पूरे अमिताभ स्टाईल मे ( रोते हुये आते है सब वाले)चलाते थे. और जब चाहते पैर के उपर मोटर साईकल घुमाकर वापस मोड लेते.

मोटरसाईकल आने के तीसरे ही दिन मैने अपनी मस्ती मे मस्त होकर एक हाथ मे सिगरेट और दूसरे हाथ से भीड भरे रास्ते मे काफ़ी तेजी से मोटरसाईकल चलाते हुये, वो भी दाये बाये गोल गोल घुमाकर अपने प्रबंध निदेशक की गाडी को ओवरटेक कर बैठा. मै पहुंचा ही था की अगले कुछ मिनटॊ के अंदर प्रबंध निदेशक महोदय भी कारपोरेट आफ़िस मे होने के बजाय वही हाजिर थे . उन्होने मुझे बुलाया मोटरसाईकल लेने की बधाई दी. और मुझसे चाबी मांग ली कि वो देखना चाहते है कैसी चलती है. मै अपने काम मे लग गया. शाम को जाने के समय मैने गार्ड से मोटरसाईकल की चाबी मांगी तो पता चला वो तो साहब के साथ ही ड्राईवर मोटरसाईकल लेकर चला गया था. मुझे बड़ा गुस्सा आया और मै तुरंत कारपोरेट आफ़िस एक सहयोगी के साथ पहुचा .पता चला मोटरसाईकल साहब ने अपने घर भिजवा दी थी, और उन्होने मुझे सडक पर सिगरेट के साथ जिग जैग चलते हुये देख लिया है.

मै चुपचाप रिक्शा पकड घर पहुचा,और अगले दो दिन जब तक बुलावा नही आया .साहब के सामने पडने से बचता रहा.
आखिर बकरे की मां कब तक खैर मनाती,बुलावा आ गया . प्रबंध निदेशक के साथ तकनीकी निदेशक( उनके छोटे भाई) भी बैठे थे.मुझे कहा गया कि आप सिगरेट और वो भी गाडी चलते हुये बहुत स्टाईल से पीते है, और हम सब यहां इसी लिये इकट्ठा हुये है की आपकी इस स्टाईल को एक बार आपके पूज्य पिताजी को दिखा दिया जाये फ़िर आपको बम्बई भिजवा दिया जायेगा , ताकि आप पूरी तरह से फ़िल्मों मे काम कर सके. वहा बात कर ली गई है,ताकी मेरा हुनर यहा रामपुर मे बर्बाद होने से बचाया जा सके.मेरी हालत काटो तो खून नही जैसी थी.हमने तुरंत माफ़ी मांगी और दुबारा ऐसा ना करने का वचन दिया, लेकिन उन्होने तो ना पिघलने का फ़ैसला कर रखा था. तकनीकी निदेशक ने बडे भाई को समझाने की कोशिश की ,लेकिन उन्होने फ़ैसला सुना दिया या तो पिताजी आयेगे ,या मोटरसाईकल जायेगी .

और हम हर हाल मे पिताजी को बुलाने के अलावा हर फ़ैसले पर राजी (मरता क्या ना करता जी) तय पाया गया कि मोटरसाईकल बिक जायेगी और मुझे रिक्शा से ही आना जाना होगा.लेकिन तकनीकी निदेशक ने कहा की इसे प्रिया स्कूटर दिलवा देते है और मेरी गारंटी ली और अगर मै आगे से ऐसा करता पाया जाऊगा तो स्कूटर जप्ती के साथ पिताजी को भी बुलवा लिया जायेगा, कंपनी ने मुझे बिना ब्याज का लोन दिया ,और उस जमाने मे जबकी प्रिया पर ब्लैक चल रहा था, तकनीकी निदेशक ने मुझे अपने दोस्त की एजेंसी से बिना ब्लैक के दूसरे ही दिन दिल्ली नंबर स्कूटर दिलवा दिया. (दिल्ली नंबर की तब बडी वकत थी जी ) जारी

आपकी चिट्ठियां

सफर में अरुण अरोरा की अनकही की पिछली दो कड़ियों अरुण फूसगढ़ी की कहानी और पंगेबाज ने सिला पेटीकोट पर सर्वश्री समीरलाल, मैथिली, संजय , सिरिल, दिनेशराय द्विवेदी, अनूप शुक्ल, विजय गौर, यूनुस, घोस्टबस्टर, उन्मुक्त, हर्षवर्धन , बोधिसत्व, शिवकुमार मिश्र, काकेश, राजेश रोशन, बेजी, प्रशांत प्रियदर्शी, संजीत त्रिपाठी, अनिताकुमार ,ज्ञानदत्त पांडेय, अरूण, अफ़लातून, प्रमोदसिंह , डा चंद्रकुमार जैन, अनुराग आर्य , प्रमेंद्र प्रताप सिहं, महाशक्ति, हरिमोहनसिंह, सुरेश चिपलूणकर, संजय बैंगाणी , अरविंद मिश्र, अजित वडनेरकर, घुघूति बासूती और सागर नाहर की टिप्पणियां मिलीं। आपका आभार।

21 comments:

  1. यहाँ तो लग रहा है कि अरुण जी पंगेबाज नहीं। पंगे ही अरुणबाज होते जा रहे हैं। लग नहीं रहा बल्कि साबित हो रहा है।

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  2. रामपुर के लोग चाकू दोनों ही वाकई दिल में उतर जाते हैं.
    सफर बहुत आनन्ददायक चल रहा है.

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  3. आपकी शुरुआती स्ट्रगल(मस्ती?) के बारे मे जानकार अच्छा लगा. साथ ही दाढ़ी के साथ आपकी फोटो भी देख ली.

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  4. गलती हो गयी जो पंगेबाज़ को मुंबई नहीं आने दिया गया । ये दाढ़ी । सिगरेट पीने का अंदाज़ और मोटरसायकिल वाली अदाएं । अरे एक हीरो से खामखां वंचित कर दिया देश को । सुभाष घई की क़सम हमें समझ में आ गया है कि पंगेबाज़ इत्‍ते पंगेबाज़ क्‍यों हैं । :D

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  5. पंगेबाज की इन्‍हीं अदाओं का तो जमाना दीवाना है..... :)

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  6. यहाँ माफी मांगी, वहाँ माफी मांगी-जितने पंगे नहीं लिए, उससे ज्यादा तो माफी मांगी-फिर काहे के पंगेबाज. ऐसे में तो लोगों के दिल से डर ही खत्म हो जायेगा. :)

    अगली बार बिना माफी मांगने वाली घटना बताना, जिसमें पंगा लेते रहे लगातार. :)

    बस डेस्क की जगह इस बंदे का सिर है ,तबला बजे जा रहा है धन धना,धन धन.

    --तभी संभले हो वरना क्या हाल होता? सोच कर दिल बैठा जाता है. हा हा!

    बेहतरीन पोस्ट. अजित भाई की भी जय.

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  7. यह दाढ़ी वाला जवान कौन है जी, जिसकी फोटो लगा पंगेबाज की इमेज बिल्डिंग की जा रही है। इमपर्सोनेशन तो ठीक नहीं। :D

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  8. काली घोड़ी का छीना जाना काफ़ी खला होगा. कभी प्रबंधन तो कभी ट्यूशन टीचर धता बताते रहे. आपकी पंगेबाजी की प्रतिभा को निखारने में इनका भी योगदान लगता है.
    मस्त रहा ये अंक भी. चलने दीजिये.

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  9. शानदार है जी शानदार...मोटरसाईकिल, सिगरेट, गाना और अमिताभी स्टाइल...और हाँ, तबला भी. सारी बातें इतिहास में दर्ज हो गईं, अरुण जी...

    बहुत शानदार लेखन है. अजित भाई की जय हो.

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  10. पिताजी के साथ हर साल जगह बदलते बदलते हमने तय कर लिया था कि भले हॊ गोलगप्पे का ठेला लगाये पर अपना काम जरूर करेगे नौकरी नही करेगे। इसी चक्कर मे बिजली बोर्ड का इंटर्व्यू नही देने गये . इसी कारण इंदिरा गांधी एयरपोर्ट पर तकनीकी सहायक की नौकरी नही की। दूरदर्शन पर कैमरामैनी नही करने पहुचे कि कही पक्की नौकरी लग गई तो कौन छोडने देगा. हमे तो अपना काम करना है.
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    यह अंश आज के नौजवानों को पढ़ना चाहिए.
    नौकरी के नाम पर क़ाबिलियत या हालात से
    कोई भी समझौता करने के बज़ाए
    कुछ कर के दिखाना,अपने बाल बूते पर
    और सिर्फ़ नौकरी की दौड़-भाग से हटकर
    सोचना वक़्त की अहम ज़रूरत है.
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    आज की ये किस्त रोचक तो है ही
    संदेश परक भी है.
    आभार
    डा.चंद्रकुमार जैन

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  11. ये दाढ़ी वाली फोटो किसकी है जी.

    रोचक रहा यह भी किस्सा.

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  12. सर जी क्या कर रहें हैं?? आप पंगेबाजी में मेरे गुरू हैं.. ऐसे मेरा नाम बदनाम ना करें..
    अबकी वाले पोस्ट में तो जिसे देखो वही आपसे पंगे ले रहा है.. कभी आपके टीम लीड तो कभी बीबी तो कभी बॉस.. अजी मेरी इज्जत का तो खयाल किजीये.. :)

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  13. दाढ़ी वाले साइड पोज़ मे आप की शक्ल अभिषेक बच्चन से मिल रही है .....लगे रहिये...मजा आ रहा है...

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  14. धांसू!!
    हजूर अब तो मै शिष्यत्व ले के रहूंगा चाहे आप दो या ना दो, नई तो हमहूं पंगा कर दूंगा हां, ;)

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  15. आज की कड़ी पढ़कर बहुत मजा आया।

    बिल्कुल मस्त लेख !!

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  16. हमें आप के बॉस का अंदाज पसंद आया, वैसे अभी भी कहां देर हुई है, बम्बई तो अब भी आया जा सकता है…:)

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  17. एक बात कहूंगा, अरुण प्‍यारे, कि तुम्‍हारी कहानी में एक अच्‍छी फि‍ल्‍म वाले (जो अपने यहां बनती नहीं) सारे मसाले हैं. जमके ठेले रहो..

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  18. बकलमख़ुद मे शायद दूसरी या तीसरी बार आया हूँ. (पहली बार शिव के लिए ) लेकिन अब लगता है कि हरदम आना होगा.
    ब्लॉग-जगत मे शायद सच्चाई केवल यंही रह गई है.
    पढ़ कर आनंद आया.

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  19. भई वाह, मजा आ गया। अब डेस्क की बजाय मेरे सिर को तबला समझ कर बजाती है। गजब, आज तो सीरियसली हंस रही हूं। :-)

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  20. वाह, बहुत खूब जा रहे हैं आप... पूरा ज़माना दिख रहा है हमें... अमिताभ बच्चन से लेकर प्रिया स्कूटर तक. अजित जी आपको धन्यवाद... आज कई दिनों के बाद आपके ब्लॉग पर आया, काफ़ी वक्त लग गया anpadhe पोस्ट्स को निपटाने में.

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  21. Itna acha mat likhiye pangebaaz ji ki ab daily aapke blog par aana pade :-), bahut sunder likha hai, mujhe bhi kaitha khane ka bahut shauk hai. likhte rahiye aap to jaise hume hamare bachpan aur gaon ki sair kara rahe hai :-)

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