
हम दो, हमारे दो...
तोता-तोती की आशिकी...
पशुओ से लगाव हमे हमेशा रहा है.बचपन मे बहुत से पशु पाले हैं. सबसे पहले तोता पाला.हमारे घर के अंदर आगंन मे एक पेड़ था. तोता वही लटका रहता. पढना तो उसने क्या था,हमारे पिताजी का भी यही कहना था . ये भी बच्चो के पूरे प्रभाव मे है. ना ये पढना चाहते ना वो. लेकिन साहब हमारे तोते ने पेड़ पर उड़ कर आई एक तोतन को इतना पटा लिया की जब हमने उसके पिंजरे का दरवाजा खोला तो वो भी अंदर आ गई. दोनो का प्रेम देखकर पिताजी ने पिजरे का दरवाजा ही खुला रख दिया. करीब महीने भर तक जोडा वहीं रहा फ़िर उड़ गया. लेकिन वो हर दो चार हफ़्ते बाद आ जाते दो चार दिन रुकते और उड़ जाते. आज पता नही कहा होगे पर शायद आज भी उस मकान मे आते जरूर होगें.एक दिन नवाबगंज उन्नाव मे पिताजी किसी ग्रामीण से मजाक मे कह आये कि तुम्हारा काम हो जायेगा तो मुर्गा खिलाओगे ? (जबकि वो पूर्ण शाकाहारी थे) बस अगला तो मुर्गा ही छोड़ गया हमारे घर. पिताजी बाहर गये थे . तो बडॆ प्यार से स्वीकार लिया हमने. घर के पीछे वाले बरामदे मे एक टोकरी मे उसे पाल लिया. माताजी से छुपा कर ..अब हमारा मुर्गा रोज अडोस पडोस की मुर्गियो के साथ टहलता(पास मे कुछ मुस्लिम परिवार रहते थे). और उनके मुर्गे के साथ लड़ता . एक दिन जब शिकायत ज्यादा हो गई तो हमने (भाइ बहनो ने ) आपस मे चंदा कर दो मुर्गिया खरीद ली. इस तरह लगभग चार महीने (जब तक हमारी माताजी को पता चलता), हमने मुर्गियां भी पाली. बाद मे हमारॆ यहा सफ़ाई करने आने वाली को दे दी गई . आखिर माताजी को इस मलेच्छ वाले काम के बारे मे बताया भी उसी ने था.
पंगेबाज कुतिया के बीवी से पंगे
कुछ दिन हमने के गाय भी पाली,हिरन भी पाला और कुत्ते तो साहब बहुत पाले देशी से विदेशी तक. लेकिन इनमे सबसे ज्यादा प्यारी थी सेवी. उसका नाम ही सेवी इसी लिये था कि अगली सेव खाकर ही जिंदा रहती थी.पूर्ण शाकाहारी थी . अंडा भी कभी उसने नही छूआ . खीरा ,ककड़ी हरी सब्जियां उसका भॊजन था. कभी कभार ब्रेड और दूध भी खा लेती थी.पर फ़लो की शौकीन इतनी की आम के मौसम मे तो उसने कई बार भूख हड़ताल भी रखी.
वहीदा,सिम्मी,हेमा, डिम्पल....

मै राजकपूर की फ़िल्मो और उन की हिरोईनो का इतना दीवाना हूं जितना शायद राजकपूर भी खुद ना होंगे. कईयो से मेरे चक्कर चले लेकिन किसी परिणति पर नही पहुंचे. कारण उन्हे अनुभवी बंदा चाहिये था और हम यहा मार खा गये. वैजयंती माला,पद्मिनी, हेमामालिनी, डिम्पल कपाडिया,सिम्मी ग्रेवाल,साधना, नर्गिस अब किस किस का नाम ले जी सभी हमे चाहती थीं और हम उन्हे. दोनो ही इतने समर्पित प्रेमी कि आज तक ना उन्होने कभी ये प्यार सार्वजनिक किया ना ही हम करने वाले है. ( हम उन घटिया लेखको मे नही है जी जो अपनी किताब को बेस्ट सेलर बनाने के चक्कर मे अपना बीता कल उधेड देते है ,और उनके कारण कईयो की जिंदगी मे भूचाल आ जाता है) आज कल की हीरोईनो से भी हमे दिली लगाव है,पर अब हम जाहिर नही करते. जानते है कि अब इस मार्केट मे हमारी (अब तक अर्जित अनुभवो के कारण) काफ़ी डिमांड हो सकती थी पर अब फ़िल्मी तारिकाओ का टेस्ट बदल गया है. वो ज्यादा से ज्यादा दो चार महीने मे बंदे से बोर होकर बंदा बदल लेती है. इसी लिये हमने ऐशवर्या,विपाशा,माधुरी,रानी. करीना के हमारे काफ़ी चक्कर काटने के बावजूद हमने उन्हे लिफ़्ट नही दी, चवन्नी छाप वालों ने हमारा बडा भारी इंटर्व्यू भी लिया था इस बाबत लेकिन फ़िर बालीवुड इतने बडे स्कैंडल से कही जमीन पर ना आ गिरे नही छापा. इसीलिये हम भी आपको वो किस्से यहां बिलकुन नही बतायेगे.आखिर हमने सिर्फ़ सत्य बताने की कसम खाई है ना :)
हम भी थे रंगी मिजाज,
गिला इतना सा रह गया
जिससे भी नजरे मिली,
उसने भैया कह दिया
जारी
[ अगली कड़ी में पंगेबाज की जिंदगी का ड्रामा ]
भगवान सेवी की आत्मा को शांति दे. जो गुज़र गयी हैं राज कपूर की उन हिरोइनों की आत्मा को भी. जो बची हैं उनकी आप चिंता न करें, उन्हें समीर भैया शांत करेंगे.
ReplyDeleteअजित बढ़िया है. इसे जारी रखो.
ReplyDeleteदुलहिन ले घर लौटने का इंतजार है।
ReplyDeleteस्वीट "सेवी" लगता है पिछले जनम की शरत्चँद्र की पारो थी शायद !:)
ReplyDeleteबहुत बढिया रहा ये पन्ना भी ..जारी रखेँ .
- लावण्या
हम भी थे रंगी मिजाज,
ReplyDeleteगिला इतना सा रह गया
जिससे भी नजरे मिली,
उसने भैया कह दिया
-haa haa!! इसमें भी पंगा. :)
बहुत सही, अगली कड़ी का इन्तजार है. कभी जाकर देख आओ कि तोता तोती आते हैं कि नहीं.
अजीत भाई जिन्दाबाद.
सेवी के बारे में पढ़ना बहुत रुचा, मित्र अरुण! धन्यवाद।
ReplyDeleteआपने अपने बंबई प्रवास के बारे में नहीं बताया. जब आप हिरोइनों को पंगेबाजी सिखाने के लिये बुलवाये गये थे.
ReplyDeleteग़ज़ब की शुरूआत है यह मौज़ूदा किस्त की !
ReplyDeleteसिर्फ़ शैली और व्यंग्य के लिहाज़ से देखें तो
एक पूरा उपन्यास अपने कैनवास
के साथ हाज़िर दिखता है.
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कमाल है साहब कितने सहज अंदाज़ में
ज़िंदगी का रस पान करा रहे हैं आप.
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शुक्रिया
डा.चंद्रकुमार जैन
पंगे ही पंगे....हिरोईनों से इस कदर का पंगा...वाह! असल में राजकपूर साहब को आप ही टक्कर दे सकते थे....उन्हें ख़ुद पर बड़ा घमंड टाइप था...:-)
ReplyDeleteसेवी जहाँ भी हो, उसे सेब मिलता रहे. अजित भाए ने लिखा है अगली कड़ी में आप ड्रामा पेश करने वाले हैं....वो भी जिंदगी का ड्रामा...इंतजार रहेगा..
फोटो देखकर ही समझ आ जाता है. भई बात है आपमें जो इतनी नामी गिरामी हीरोइंस पीछे पड़ी रहीं. बाकी ये कड़ी तो सेवी के ही नाम रही तोता और तोतन के अलावा.
ReplyDeleteएक ही पोस्ट में इतनी सारी चीज!!! सही है गुरू.. वैसे हमने भी तोता पाला था बचपन में और मेरी ही तरह वो भी कुछ नहीं पढ पाया..
ReplyDeleteवैसे आज कि आपकी पसंद राखी सावंत तो नहीं है न?? :P
ऊपर जिस भले आदमी का फोटू छापा है, ये कौन हैं।
ReplyDeleteसमीर जी से उधार लेकर कहते हैं "आनंदम-आनंदम"
ReplyDelete;)
समीर जी के बाद एक आपको ही गुरु बनाने की सोच रहे हैं अपन तो, हमारे गुरु बनने के पूरे गुण है आपमें, आजकल की हीरोईन्स का जिम्मा इधर दई दो हमका, संभाल लेंगे, टेंशन नई लेने का ;)
मस्त लग रहा है , लिखते रहिए आप तो बस!
हम भी थे रंगी मिजाज,
ReplyDeleteगिला इतना सा रह गया
जिससे भी नजरे मिली,
उसने भैया कह दिया.
वाह ! धन्यवाद अजित जी को इस श्रृंखला के लिए.
अजित जी,
ReplyDeleteपेज पर आपकी बदलती
तस्वीरें अच्छी लग रहीं हैं.
नया पन भी लग रहा है....
इसे जारी रखिए..... वैसे अब
आपका बकलम खुद भी
हम सब तक पहुँच जाना चाहिए.
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डा.चंद्रकुमार जैन
वाह.
ReplyDeleteआपके जानवर प्रेम को देखकर तो हम दंग रह गए हैं.
वैसे सेवी बहुत ज्यादा ही जमी इस कड़ी में.
शैली भी आपकी जोरदार है.
आगे के इंतजार मे
बालकिशन.
नोट किया जाये कि इनकी तस्वीर के आसपास आभा मण्डल है...यह सिर्फ सत्य,सेवा,सदभावना और सत्यानाश का ही असर हो सकता है...
ReplyDeleteनमन
कमाल के शीर्षक ।
ReplyDeleteऔर क्या धारा प्रवाह है आपकी लेखनी मे की बस क्या कहें।
इस अंदाजे बयां को क्या कहें?
ReplyDeleteबहुत मजा आया, हँसते हँसते पढ़ा. स्टाफ लोगो ने सोचा साहब पगला गये हैं... :)
हम भी थे रंगी मिजाज,
ReplyDeleteगिला इतना सा रह गया
जिससे भी नजरे मिली,
उसने भैया कह दिया
अच्छा लिखा है, अब कुछ कविताई में भी पंगेबाजी की जानी चाहिये.
राज कपूर साहब की आत्मा बैचैन हो गयी होगी सर जी......
ReplyDeleteनोटिस
ReplyDeleteसर्वसाधारण को सूचित किया जाता है कि इस आत्मकथ्य में पंगेबाज़ अपनी कहानी जिस व्यक्ति की तस्वीर लगाकर छाप रहे हैं, वो बेचारा नाहक परेशान है । उसने हमसे अनुरोध किया है कि पंगेबाज़ से निवेदन करें कि वो उसे बदनाम करना बंद करें । सभी से निवेदन है कि पंगेबाज़ की असली तस्वीर खोजने में मदद करें । ताकि असली पंगेबाज़ को सबके सामने लाया जाए । अंत में बस इतना ही कहना है कि पंगेबाज़ की कहानी बड़ी दिलचस्प है । बस तस्वीर से पंगे लेना बंद करें । :D
तस्वीर देख कर हम भी चकरा गये कि ये कौन है क्या नया बकलम शुरु हो गया और हमें पता नहीं चला।
ReplyDeleteहम भी थे रंगी मिजाज,
गिला इतना सा रह गया
जिससे भी नजरे मिली,
उसने भैया कह दिया
मेरी भी सहमति यूनुस जी के साथ है...लेकिन आपकी भी लाईफ़ कमाल रही है अच्छा लगा जानकर....
ReplyDeleteतथ्य भी,
ReplyDeleteकथ्य भी
सत्य भी
रससृष्टि के लिये साधुवाद