Tuesday, June 3, 2008

हिम्मते-मर्दां, मददे-खुदा [बकलमखुद-46]

ब्लाग दुनिया में एक खास बात पर मैने गौर किया है। ज्यादातर ब्लागरों ने अपने प्रोफाइल पेज पर खुद के बारे में बहुत संक्षिप्त सी जानकारी दे रखी है। इसे देखते हुए मैं सफर पर एक पहल कर रहा हूं। शब्दों के सफर के हम जितने भी नियमित सहयात्री हैं, आइये , जानते हैं कुछ अलग सा एक दूसरे के बारे में। अब तक इस श्रंखला में आप अनिताकुमार, विमल वर्मा , लावण्या शाह, काकेश ,मीनाक्षी धन्वन्तरि ,शिवकुमार मिश्र , अफ़लातून और बेजी को पढ़ चुके हैं। बकलमखुद के नवें पड़ाव और सैंतालीसवें सोपान पर मिलते हैं फरीदाबाद के अरूण से। हमें उनके ब्लाग का पता एक खास खबर पढ़कर चला कि उनका ब्लाग पंगेबाज हिन्दी का सबसे ज्यादा पढ़ा जाने वाला ब्लाग है और वे सर्वश्रेष्ठ ब्लागर हैं। बस, तबसे हम नियमित रूप से वहां जाते ज़रूर हैं पर बिना कुछ कहे चुपचाप आ जाते हैं। ब्लाग जगत में पंगेबाज से पंगे लेने का हौसला किसी में नहीं हैं। पर बकलमखुद की खातिर आखिर पंगेबाज से पंगा लेना ही पड़ा।

शुक्रिया सर्वोत्तम रीडर्स डाइजेस्ट का...

मैने तय किया कि मुझे वापस अपनी दुनिया मे जाना है . मुझे खुद ही खड़ा होना है. मुझे किसी भी हालत मे ज्यादा दिन इस हाल मे नही रहना. मुझे यहां से बाहर निकलना है. उस वक्त मुझे याद आई बस एक सार संक्षेप किसी अंग्रेजी उपन्यास का जो मैने सर्वोत्तम मे पढ़ा था.
मेरिका मे एक बंदा आबादी से मीलों दूर अपने फ़ार्म हाऊस मे अकेला पेड़ों को जलाकर खेती के लिये जमीन खाली करने मे लगा हुआ था. अचानक उसके उपर एक जलता हुआ पेड़ गिर पडा, वह बेहोश हो गया,जब उसे होश आया. तो उसने जाना कि उसके दोनो पैर घूटनो के उपर से टूट चुके है. मांस जलने की बदबू. वातावरण मे फ़ैली हुई थी . उसके पैरो पर पड़ा लकड़ी का लट्ठा अभी भी जल रहा था. उसने ऐसे मे एक और सिर्फ़ एक निर्णय लिया कि उसकी जीवन यात्रा यहा लट्ठे के नीचे जल कर तो समाप्त नही होगी.
अपनी शर्ट निकाली दोनो हाथों पर बांधी और सारा जोर लगाकर लट्ठे को पैरो से पीछे धकेल दिया. अब सामने जले हुये मांस के साथ टूटी हुई हड्डियां साफ़ दिखाई दे रही थी. दर्द अपनी चरम पर था. सामान्यत: सिर्फ़ जरा सी उंगली जल जाने पर आदमी पूरा घर आसमान पर उठा लेता है,पर यहा जीवन संघर्ष मे फ़ंसा ये इन्सान नई इबारते लिखने वाला था. जीने की अदम्य इच्छा शक्ति की . खुद के दर्द से लड़ने का इतना जुनून शायद कभी किसी ने नही देखा होगा. पर वहां लेकिन इन्सान ने बार बार आश्चर्य चकित किया है अपनी अदम्य इच्छा शक्ति से,अगले बारह घंटे उसने बिना किसी दर्द निवारक के बिना सोये बिना बेहोश हुये खिसक खिसक कर तीन किलोमीटर दूर खडी अपनी गाड़ी तक पहुचने मे लगाये, रस्ते मे से उठाई हुई लकडीयो की सहायता से उसने अपने को गाडी के स्टिंयरिंग व्हील के पीछे बैठने और गाड़ी चलाने मे प्रयोग किये . वक्त तिल तिल कर सरकता जा रहा था और उसकी जीवन जीने की इच्छा शक्ति बढती जा रही थी हर क्षण बढता दर्द उसकी हिम्मत को दोबाला कर रहा था. आखिर गाड़ी चली और अगले तीन घंटो मे वो पास के अस्पताल जा पहुंचा .वहां जाकर बेहोश होने से पहले वो आग बुझाऊ दस्ते के लिये उन्हे सारी बात बता चुका था. उसे वहा से एयर लिफ़्ट किया गया. उसने डेढ़ साल बाद हुई दौड़ मे प्रथम पुरस्कार जीत कर दुनिया को दिखा दिया की जीवन जीने की इच्छा हो तो भगवान को भी पीछे हटना पडता है
यही बनी मेरे अगले जीवन की गीता.मै हर वक्त हाथों की मुट्ठी बांधे सिर्फ़ यही सोचता रहता कि मुझे ठीक होना है. वापस जाना है .अपने काम पर . मुझे किसी पर बोझ नही बनना. मै अब बहुत जल्द अपने काम पर लौटूंगा और डाक्टरो को दिखा दूंगा कि ये गलत है . मुझे खडा होना है और मै होकर रहूगा.

और हमने कर दिखाया

मैं अपने चिकित्सको की राय के खिलाफ़ ठीक हुआ बहुत जल्द ठीक हुआ. जब वो मुझे लेटने को कहते थे ,मै दीवार पकड़ चल रहा होता. जब वो मुझे देखना आ रहे होते तो मै उन्हे उनके क्लीनिक पर मिलता. मेरी आखो मे खून उतर आया था.जिसे हटने मे लगभग छह महीने लगे.मेरी आवाज मे तोतलाहट थी जिसे हटने मे कई महीने लगे.लेकिन मै घर पहुचा चिकित्सकों के बताये वक्त से बहुत पहले.
लेकिन कुछ समस्यायें भी रही जो जीवन भर की साथी बन गई.सर के आधा हिस्से की (आपरेशन के कारण) सेंसटीविटी समाप्त हो चुकी थी लगातार सिर मे चुभती सुईयो जैसा दर्द अलग परेशान किये था. मै खुजा खुजा कर खून निकाल लेता और मुझे पता भी ना चलता.डाक्टरो से लगातार चलती दवाईयो का खर्च अलग से सर उठाये हुये था.लगातार होते कैट स्कैन और दी जा रही डाईयो का दर्द असहनीय था. इतना असहनीय की उसके सामने रोज रोज का सुई चुभने का दर्द बहुत सामान्य महसूस हुआ. तब मैने फ़ैसला लिया कि अगर दर्द की दवा भी दर्द बनने लगे तो दर्द के साथ जीना ज्यादा अच्छा , और तब से आज तक मै अपने आपको उसी दर्द के साथ जीने का आदी बना चुका हूं. हां बस आठ दस महीने मे मेरे सिर की त्वचा मे सेंसटिविटी जरूर लौट आई, लेकिन उस से काफ़ी पहले मै खुजाना छोड चुका था. मेरे लिये गरमी और बरसात सिर मे पिन चुभोने वाले दर्द के लिये काफ़ी अच्छा मौसम है, सरदी मे सिर की हड्डिया दर्द कर पुराने जख्मो की याद दिलाती रहती है. लेकिन अब आदत पड चुकी है वो इतनी की अगर दर्द ना हो तो मुझे लगता है कि मै डाक्टर से परामर्श कर ही लू. कभी कभी ऐसे मौके भी आ ही जाते है :) वक्त अच्छा हो या बुरा कुछ निशानिया तो देकर ही जाता है ना :)

लेकिन मै तो लौट आया पर सब कुछ समाप्त हो चुका था मेरी वर्कशाप बिकने के कगार पर थी. बैंक वाले ,बिजली वाले थे .मकान मालिक कहता नहीं था पर पैसा तो उसे भी चाहिये था.गरज ये की वो हर कोई जिसे पैसे चाहिये थे, चक्कर काट रहे थे और जिनसे हमे लेने थे वो भूले बैठे थे. इन्हीं दिनो मेरी दुनिया मे रवि भी आ गया, शायद उसकी भी हिस्सेदारी थी इन परेशानियो को झेलने मे. जारी

25 comments:

  1. अरुण भाई, हमें गर्व है कि हम आपको जानते हैं. जीवन का अद्भुत अनुभव है आपका. वाह!

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  2. सही है. हिम्मते-मर्दां, मददे-खुदा

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  3. क्या प्रेरणादायक जीवन जी रहे हैं आप.
    इतना संघर्ष सचमुच अद्भुत है.
    आपकी पंगेबाजी का एक नायब रूप ये भी.
    पंगेबाजी - इतनी बड़ी-बड़ी मुश्किलों से.
    पंगेबाजी - इस निर्दयी और कठोर दुनिया से.
    पंगेबाजी - इस असीम और ना ख़त्म होने वाले दर्द से.
    बधाई और शुभकामनाएं.
    बालकिशन.

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  4. वाह! ये हुई न जज्बों वाली बात. जिओ शेर खान, जिओ.

    बहुत प्रेरक है आज की बकलमखुद. आभार अजीत भाई.

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  5. तो ये है सहनशीलता,साहस और
    अडिग संकल्प की सच्ची कहानी.
    वेदना पर चेतना का अमिट हस्ताक्षर !
    ============================
    प्रेरणा को पथ का प्रदीप बना लेना और
    उसकी रौशनी से जिन्दगी के हर अंधेरे
    कोने में भी उम्मीदों के कण बटोर लेना
    कोई साधारण घटना नहीं है.....आपने
    इंसान होने का हक़ अदा कर, दिखा
    दिया है दुनिया को कि ठोकरों को
    ठोकर मारकर जीना किसे कहते हैं.
    =============================
    व्यथा की कथा में भी बकलम ख़ुद
    खुलती जा रही है
    जूझकर जीने की महागाथा !
    आभार
    डा.चंद्रकुमार जैन

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  6. अरुणजी आपकी आज के फोटो के आसपास भी एक आभामण्डल है.....और सच कहें तो प्रकाश यहाँ तक आ रहा है।

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  7. सच है अरुण भाई ..
    हिम्मत जो रखता है,
    वही ज़िँदगी को जीता है !
    आपके साथ,
    इस लडाई मेँ,
    अब हिन्दी ब्लोग जगत भी शामिल है
    -- लावण्या

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  8. अरूण भाई, बड़ी भयंकर दुर्घटना से साबुत बचकर आए हो। आशा है अब कार चलाते समय हड़बड़ी नहीं करते हो। हिम्मत तो गजब की है आपमें, परन्तु अब संभलकर रहें।
    घुघूती बासूती

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  9. आशा है अब दाये हाथ की बाये से तीसरी उंगली का दर्द ठीक हो गया होगा ।
    :D :)
    घुघूती बासूती

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  10. दर्द से इतना गहरा नाता !!!! आप तो अपने से लगते हैं... !!!! आप से तो मिलना ज़रूरी हो गया है.... अगली कड़ी में अपना पता ज़रूर दीजियेगा....
    एक बार फ़िर अजित जी का आभार जिनके कारण अद्भुत आभामंडल के व्यक्तित्व सामने आ रहें हैं. ...

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  11. अरे, पंगेबाज, आप पर गर्व हो रहा है मुझे! इस बात से कि ऐसे व्यक्ति को मैं जानता हूं जिसमें ऐसा प्रचण्ड जज्बा है।

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  12. आपकी हिम्मत को सलाम.

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  13. अरुण जी। इस जीवट के लोग किताबों में मिलते हैं। इसे पढ कर मुझे निकोलाई आस्त्रोवस्की की अग्निदीक्षा का स्मरण हो आया। आप इस पुस्तक को न पढ़ी हो तो जरुर पढें।
    पर वास्तविक जीवन में भी यह जीवट देखने को मिलता है। मैं ऐसे कुछ लोगों को जानता हूँ। जो जीवट के कारण ही हमारे बीच हैं। इस जीवट का पुरस्कार जीवन ही है।

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  14. गजब!
    जीवटता इसे ही कहते हैं शायद!

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  15. आपके जज्बे को हमारा सलाम.....ओर कुछ कहने की अवस्था मे नही हूँ..डिस्कवरी चैनल पर ऐसे ही संगर्ष से जूझ कर आये लोगो पर एक प्रोग्राम शायद सोमवार या मंगलवार को आता है ,उसे देखियेगा ....एक बार फ़िर आपको सलाम....

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  16. इच्छा शक्ति ही सबसे बड़ी शक्ति है.
    पढ़कर बहुत अच्छा लगा

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  17. अरुण जी सबसे पहले तो आप को सलाम्…:)
    वैसे मुझे अभी अभी पता चला कि अमिताभ बच्चन( आखिरकार वो भी ब्लोगिया हो ही गया) आप का बकलम बड़े ध्यान से पड़ रहा है और उसने रामू से कहा है कि अगली पिक्चर में वो अमिताभ का रोल इसी बकलम पगेंबाज की तर्ज पर बनाए, आप अपने कॉपी राइट्स प्रोटेकट कर लिजिए। असली जिन्दगी के अमिताभ है आप॥हम भी मिनाक्षी जी की बात से सहमत है…अगली बार उस तरफ़ आये तो आप से तो मिलना बहुत जरुरी होगा। इन्फ़ेक्ट सोच रहे है सिर्फ़ इसी एक कारण से वहां आने का प्रोग्राम बना लिया जाए। मैं आप का बकलम सहेज के रख रही हूँ , स्टुडेंट्स के लिए बहुत ही प्रेरणादायी होगा। धन्यवाद

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  18. मीनाक्षी ji se main bhi sahmat hun.. aap kahan rahate hain?? aapse pangebaaji ke alaavaa bahut kuchh sikhana hai..
    sabse pahle jine ka andaaj.. main bas likhne ke liye nahi likh raha hun.. dil se kah raha hun..

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  19. गज़ब का ज़ज्बा है। इस ज़ज्बे को सलाम। और अजित जी आप को भी धन्यवाद इनसे रूबरू कराने के लिए।

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  20. लखनऊ से लौटकर आज ही सभी कड़ियां पढीं .

    पंगेबाज की पंगेबाजी से संतप्त लोग भी जब अरुण जी के जीवट,जिजीविषा और जिन्दादिली के कायल हो गए तो मैं किस खेत की मूली हूं . मैं तो उनके लिखे का आनंद लेता रहा हूं .

    बकलम खुद के माध्यम से बहुत प्रेरक,आत्मीय, अंतरंग और घरोआ होता जा रहा हिंदी ब्लॉग जगत .

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  21. पंगेबाज़ के जीवन के सबसे बड़े पंगे के बारे में पढ़कर लगा कि आपको उठकर सैल्‍यूट मारना चाहिए ।
    बहुत ही प्रेरक और जिजिविषा से भरपूर याद ।
    पंगेबाज़ जिंदाबाद ।

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  22. ऐसा जुझारू जज्बा, ऐसा जोशीला जीवन बहुत बहुत प्रेरणादायक है. सलाम इस जवान को.

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  23. आपका सब्दो का सफर अभी थोड़ा पड़ा है अच्चा लगा मै सब्दो के साथ खिलवाड़ करता हू अनेक क्या नेक से है आज तो अनेक है ढूदे से नही मिलेगे नेक? ईस्वर आपको खूब शोहरत दे यही कामना है मेरी

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  24. बंधुवर आपने मेरे बहूत पुराने प्रसन का जबाब नही दिया कृपया देने का कास्ट करे

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