हिन्दी में दिशा शब्द के लिए प्रचलित विकल्प बहुत सीमित हैं । दिशा का मतलब पूछा जाने पर सामान्य तौर पर [ उस ]
तरफ या [ उस ]
ओर जैसे अर्थ बताए जाते हैं। जानकार
दिश् , दिक् ,दिग् ,
सिम्त या
डायरेक्शन जैसे शब्द बताने लगेंगे मगर ये प्रचलित नहीं हैं। दिशा का विकल्प चाहे न हो मगर ऐसे कई शब्द है जिनमें
दिशा शब्द छुपा हुआ नज़र आता है। इससे ही बना है
देश शब्द जिसके कई विकल्प हिन्दी में प्रचलित है मसलन
राष्ट्र , मुल्क, वतन, नेशन और
कंट्री आदि।
दिशा शब्द बना है संस्कृत धातु
दिश् से जिसका मतलब होता है होता है दिखलाना , संकेत करना आदि। गौर करें कि दिश् में निहित दिखलाने के भाव पर । रास्तों में हमने अक्सर दिशा सूचक चिह्न या पट्टिकाएं देखी होंगी वो किसी खास तरफ इंगित करती हैं- कुछ दिखलाती हैं। जाहिर है दिशा में सबसे पहले इंगित करने का भाव ही सामने आया। दिश् से ही बना है दिष्ट अर्थात जो अंगुली के इशारे से दिखाया जा सके। इसमें निर् उपसर्ग लगने से बना है निर्दिष्ट यानी जिस ओर बतलाया जाए, दिखाया जाए, तयशुदा ।
निर्देश , निर्देशन या
निर्देशक भी इसी मूल से बने हैं।
दिश् शब्द में दिशा या दिग्बिंदु, चार दिशाओं वाले भाव बाद में समाए। इससे बने दिशा शब्द का अर्थ पृथ्वी का चौथाई, आकाश का चौथाई भी होता है। संस्कृत में दिश् के ही अन्य रूप
दिक् और
दिग् भी मिलते हैं जिनसे
दिग्गज, दिग्विजय,दिक्पाल जैसे शब्द बने हैं । दिश् में
दस का भाव भी शामिल हैं। गौरतलब है सामान्यतः
चार दिशाएं मानी जाती हैं मगर ज्योतिष शास्त्र में
दस दिशाएं बताई गई हैं-
पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, ईशान, वायव्य, नैऋत्य, आग्नेय, आकाश और पाताल । दिग्गज या दिक्पाल का अर्थ भी दिशाओं के रखवाले के अर्थ में ही हुआ है। पुराणों में
आठ दिशाओं का भी उल्लेख है (आकाश-पाताल नहीं)। इस तरह आठों दिग्गजों के नाम इस प्रकार हैं
(१) ऐरावत, (२) (पुंडरीक,) (३) वामन, (४) कुमुद, (५) अंजन, (६) पुष्पदंत, (७) सार्वभौम व (८) सुप्रतीक।
इसी तरह
देश शब्द का

जन्म भी इस दिश् धातु से ही हुआ है। यहां दिश् से बने देश शब्द में स्थान, जगह , स्वदेश, प्रदेश, विदेश ,प्रांत, राज्य, मुल्क आदि अर्थ समाहित हैं। बात वही है , इंगित करने के अर्थ में दूरस्थ स्थान के अर्थ में ही इस शब्द का प्रयोग होता रहा है। इससे ही बने
बिदेस, बिदेसिया , देस-परदेस जैसे शब्द लोक बोलियों में खूब रचे बसे हैं। बिदेसिया तो पूरब की एक प्रसिद्ध लोकगायन शैली ही है। परदेसगमन पर सभी भाषाओं में खूब लोकगीत रचे जाते रहे हैं। राजस्थान के मारवाडी बरसों पहले कमाई के लिए अपना घर छोड़कर जब परदेस जाते थे तो उनके इस यात्रा-काल को
दिसावरी कहा जाता था। अब परदेस से आनेवाले समाचारों के लिए
संदेश, संदेसा जैसे शब्द और आशंका के लिए
अंदेशा, अदेसा जैसे शब्द भी इसी मूल से उपजे हैं।
देशाटन शब्द हालांकि इसी मूल का है मगर इसका अर्थ किसी वक्त देश का भ्रमण या मुल्क की सैर न होकर विशुद्ध भ्रमण या पर्यटन था । सूक्ति , वचन के अर्थ में उपदेश जैसा शब्द भी हिन्दी में खूब प्रचलित है और इन उपदेशों के जरिये ही संत-महात्माओं ने भी देस-परदेस के दार्शनिक भाव उजागर किए हैं। संसार की निस्सारता के बारे में कबीर कहते हैं-
कबीर कहा गरबियौ, काल कहै कर केस ।
ना जाणै कहाँ मारिसी, कै घर , कै परदेस ॥
दिकपालोँ के नाम
ReplyDeleteऔर सारी जानकारी
यादगार रही इस पोस्ट की -
- लावण्या
दिक्काल में दिशा का अर्थ क्या स्पेस और काल का अर्थ समय नहीं है?
ReplyDeleteकबीर का यह दोहा नश्वरता-बोध से
ReplyDeleteकहीं अधिक चेतावनी है.
आपने इसका
बहुत प्रासंगिक उल्लेख किया है.
अजित जी !
वर्षा के स्वागत में
दूरदर्शन पर कविता पढने चला गया था.
लिहाज़ा तीन पोस्ट आज पढ़ सका.
बेल...बालम वाली जानकारी तो
बिल्कुल अलहदा है.
खुशवंत जी की किताब
Men and Women In MY Life
इन दिनों पढ़ रहा हूँ.
आपने जानकारी दी, अब ये
आत्मकथा ज़रूर पढूँगा.
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शुक्रिया.
डा.चन्द्रकुमार जैन
एक और उम्दा जानकारी.. ये कक्षा बचपन में मिल जाती तो हम भी निहाल हो जाते
ReplyDelete@दिनेशराय द्विवेदी
ReplyDeleteसही कह रहे हैं दिनेश जी। दिशा का एक अर्थ अंतरिक्ष भी होता है।
ना जाणै कहाँ मारिसी, कै घर , कै परदेस ॥ --- इस बात को मानते हैं कि माटी तो माटी है ..कहीं भी इस जीवन का बुलबुला फूट कर उसमे समा जाए...!
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