शब्द जब अपनी मूल धातु से उपजते हैं तब उनका अर्थ कुछ और होता है मगर जैसे जैसे समाज उन्हें इस्तेमाल करता है, भिन्न भिन्न परिवेश और स्थितियों में व्यवहृत होते हैं, उनका अर्थविस्तार होता चला जाता है। यह अर्थ कभी कभी इतना भिन्न होता है कि उसे मूल शब्द से पृथक देखने पर दोनो अर्थ अजनबी नज़र आते हैं। ऐसा ही एक शब्द है
जटिल जिसका सीधा सादा अर्थ है पेचीदा, उलझा हुआ या कठिन । मुश्किल सवाल भी जटिल हो सकता है और समस्या भी जटिल । अगर समस्या का निराकरण आसान नहीं हो तो समाधान को भी जटिल कह दिया जाता है। अशिक्षा तो जीवन को जटिल बनाती ही है मगर शिक्षा भी अक्सर जटिल ही होती है। दिलचस्प बात यह कि किसी ज़माने में साधु-सन्यासियों और परिव्राजकों को ही
जटिल कहा जाता था । वजह सांसारिक बंधनों से मुक्त रहने की वजह से ये अपने बाल नहीं काटते थे और वे
जटा का रूप ले लेते थे इसीलिए उन्हें जटिल कहा जाता था। शिव के
औघड़ रूप को भी जटिल का विशेषण दिया जाता है ।
जटा शब्द बना है संस्कृत की
जट् धातु से जिसमें आपस में मिलना, संयुक्त होना, घनत्व , गुत्था होने के भाव हैं । जट् से ही बने जोड़े के अर्थवाले
जुट, एकजुट जैसे शब्द। एकत्रित करना , इकट्ठा करना , सम्मिलित होना, पहुंचना आदि के अर्थ में
जुटना जुटाना जैसे शब्द भी बने। आपस में जुड़े होने से ही लंबे घने , खासतौर पर पुरुषों के केश
जटा कहलाए । इसीलिए सन्यासियों के लिए
जटा-जूटधारी शब्द भी प्रचलित हुआ। जाहिर सी बात है कि जटिल के अर्थ में उलझाव या पेचीदापन यूं ही नहीं समा गया । अपने विशिष्ट रेशे के लिए पहचानी जाने वाली एक खास वनस्पति के लिए
जूट नाम भी इसी वजह से चलन में आया । जूट के रेशों का रंग और बनावट जटाओं जैसी ही होती है। वटवृक्ष की अधोमुखी शाखाओं या तन्तुओं को भी जटा ही कहा जाता है।
जट् धातु ने स्त्री – पुरुषों के साथ समान न्याय किया है। अगर पुरुषों के केश के लिए इससे जटा शब्द बना तो महिलाओं का एक खास केशविन्यास
जूड़ा भी कहलाया ।
जूड़े की खासियत पर अगर गौर करें तो इसकी जट् से रिश्तेदारी समझ में आ जाएगी।
स्पष्ट है कि बोलचाल की हिन्दी में सर्वाधिक प्रयुक्त
जुड़ना, जोड़ना , जुड़वाना, जुड़ाव जैसे शब्दों के पीछे जट् ही है। कीमती नगों को आभूषणों से जोड़ने या युक्त करने के लिए
जड़ना शब्द इसी से बना है। रत्नयुक्त के लिए र
त्नजड़ित या रत्नजटित शब्द इसके लिए इस्तेमाल होते हैं। ऐसे गहनों के लिए समाज ने एक नया शब्द रच लिया
जड़ाऊ ।
जड़वाना या जड़ना जैसी क्रियाएं भी इससे ही निकली हैं। सुनारों की एक उपशाखा को
जड़िया भी इसीलिए कहते हैं क्योंकि उनके यहां गहने बनाने का नहीं बल्कि नग जड़ने का काम प्रमुख होता है। जड़ने का काम यूं तो काफी महीन और बारीकी का होता है मगर गुस्से में काम बिगड़ जाता है और फिर जड़ाई कहीं भी हो सकती है मसलन गाल पर थप्पड़ भी
जड़ा जा सकता है। हालांकि उसके बाद जड़नेवाले के लिए परिस्थिति
जटिल हो सकती है।
बढ़िया है। थप्पड़ के लिये तमाम तरह के शब्द प्रयोग किये जाते हैं। झापड़, लप्पड़, कन्टाप, रहपट आदि। इनके क्या मतलब हैं। लप्पड़ और कन्टाप में क्या भेद है। कभी ये थप्पड़ भेद बताइये जी!
ReplyDeleteबहुत उम्दा पोस्ट,,,, बाकी अनूप जी के साथ हैं हम...अर्थ जानने को.
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ReplyDeleteजट यमला पगला दीवाना --
ReplyDeleteउसके बारे मेँ भी बतायेँ :)
बहुत रंजक और
ReplyDeleteव्यंजक शीर्षक दिया है आपने.
अजित जी,
आजकल जूडा और जूडो का
रिश्ता गहरा हो गया है.
लिहाज़ा जड़ने से पैदा होने वाली
जटिलता आम बात हो जाए
तो आश्चर्य नहीं.
जटा से जुगाड़ तक भी
एक अलग धारा चल रही है.
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शब्द लोक के माथे पर
मुकुट-मणि की तरह
जड़ा रहे शब्दों का सफ़र
यही शुभकामना है
चन्द्रकुमार
pata naheen devanaagaree mein kaise likha jaaye.
ReplyDeleteaasha hei ki aap ke prayaas se hindee patrakaarita kee bhaasha mein kuch sudhaar hoga aur ciDiyaaghar ke bandee jaanvaron ke bhojan go "maauj kaaTanaa" naheen kahaa jaayega aur na hee kisee adhikaaree/mantree ke acaanak aagman par "vibhaag mein haDkamp" bataaya jaayega. -kokaamal
जट, जटिल, जुट, एकजुट, जटा, जुड़ना, जोड़ना , जुड़वाना, जड़ा..
ReplyDeleteये सब तो ठीक है मगर ये थप्पड़ कहां से आ गया??
:)
ये हरियाणा वाले 'जाट' भी यहीं से आए क्या?
ReplyDeleteथप्पड़ देख कर कुछ उत्सुकता सी हुई,
ReplyDelete' थाप-थाप ' ही तक पहुँच कर अटका हुआ था ।
यहाँ आकर जटा में अटकना भी सुखद रहा, अब आपके थप्पड़ का इंते़ज़ार है ।
हमारे यहां तो दो तरह के जट होते हैं एक जटसिख और दूसरे हरियाणवी जाट.
ReplyDeleteसभी साथियों का शुक्रिया।
ReplyDeleteअनूपजी थप्पड़ के सभी प्रकारों का भेद ज़रूर खुलेगा। प्रतीक्षा करें।
नीलिमाजी, लावण्याजी जाट समाज के नामकरण में
इस जट् का कोई योगदान नहीं है। जाट की व्युत्पत्ति की तलाश में हूं । इसका रिश्ता दरअसल प्राचीनकाल से विभिन्न समूहों के भारतवर्ष में आने जाने से जुड़ा हुआ है।