
योग का मूल
हिन्दी का योग शब्द अपने आप में सिर्फ एक शब्द भर नहीं बल्कि एक दर्शन है। सबसे पहले बात संस्कृत के योगः की जिससे योग बना। इसकी उत्पत्ति हुई संस्कृत के युज् से जिसमें सम्मिलित होना, जुड़ना , प्रयुक्त होना , काम में लगना आदि शामिल हैं। युज् बना है यु धातु से जिसके भी यही सारे अर्थ हैं। युज् से बने योगः में इन सारे अर्थों के अलावा जो भाव महत्वपूर्ण है वह है संपर्क, युक्ति, प्राप्ति, भाव चिंतन, मन का संकेन्द्रीकरण, परमात्मचिंतन आदि।
योग क्या है ?
मूल रूप से मन-मानस का परमात्मा से जुड़ाव या मिलन । यही पतंजलि योगदर्शन कहता है। आज योग का स्थूल अर्थ शारीरिक व्यायाम तक सीमित हो गया है तो भी मन और शरीर की क्रियाओं के मेल से स्वास्थ्य लाभ करने की प्रणाली इसे सामान्य व्यायामों से अलग करती है। कहावत है कि स्वस्थ शरीर में ही ईश्वर निवास करते हैं , सो जाहिर है योग ईश्वर से जुड़ाव का ही साधन हुआ। महर्षि पतंजलि ही योगदर्शन के प्रतिपादक माने जाते हैं । योगदर्शन का उद्देश्य उन उपायों की शिक्षा देना है जिनके जरिये मानव मन परमात्मा में लीन हो जाए या प्रकारांतर से मनुश्य को मोक्ष प्राप्त हो
जाए।
योग के मार्ग और साधन
योग के आठ अंग हैं और इसके लिए योग अपने आप में अष्टांगयोग कहलाता

योगपंथ
हिन्दू धर्म में योगविद्या से संबंध रखनेवाले कई पंथ , सम्प्रदाय या वाद हैं। एक है शब्दाद्वैतवाद । छठी सदी में सिद्ध योगी भर्तृहरि ने इसका प्रवर्तन किया था। इसे प्रणववाद या स्फोटवाद भी कहते हैं। इसमें शब्द अथवा नाद को ही ब्रह्म मानकर उसकी उपासना की जाती है। नाथ सम्प्रदाय भी योगसाधकों का पंथ है। चरनदासी पंथ और राधास्वामी सम्प्रदाय भी इसमें शामिल है।
आपकी चिट्ठियां
सफर की पिछली कड़ियों - किस्सा ए बेवकूफी यानी एटलस, जुग जुग जियो जुगल जोड़ी और थप्पड़ जड़ने की जटिलता पर सर्वश्री सतीश पंचम, समीरलाल, अनूप शुक्ल, विष्णु बैरागी, मीनाक्षी, दिनेशराय द्विवेदी, प्रशांत प्रियदर्शी, डॉ चंद्रकुमार जैन, मीत, ऋचा तैलंग, पल्लवी त्रिवेदी , डॉ अमरकुमार , अभिषेक ओझा, प्रभाकर पाण्डेय, घुघूति बासूती, श्रद्धा जैन, उड़नतश्तरी , लावण्या शाह और नीलिमा की टिप्पणियां मिलीं। आप सबका तहेदिल से शुक्रिया
साहब जी,
ReplyDeleteप्रथम दो..यानि कि यम और नियम के पालन के बाद ही आसन की उपादेयता है,
किंतु शार्टकट चल रही दुनिया में, आसन को लोकप्रिय बनाने हेतु इनका उल्लेख
भी नहीं किया जाता । एक किसिम की उपभोक्ता संस्कृति की शिकार है, अपना योग !
प्रत्याहार तक जाते जाते लोग टूट कर अलग हो जाते हैं, सो यह समझौता नाज़ायज़
भी नहीं लगता, जैसे कि शरीर को जी्वित रखने के लिये किया जाने वाला एम्पुटेशन !
संदर्भित करने योग्य है, यह आलेख !
कुछ लोग धनयोग में ही जुटे रहते हैं। एक गणित का योग (+) भी है। एक योग पंचांग में देखने को मिलता है। एक ग्रह-योग भी है। सूची बहुत लम्बी है।
ReplyDeleteयोग पस्चिमी देशोँ मेँ प्रचलित हुआ है
ReplyDeleteपर "ओम" OM को " आम " aam
बोलते सुना है :)
आपने अच्छा लिखा है
- लावण्या
सम्मान्य, अति महत्वपूर्ण जानकारी दी आपने....पहली बार आपका ब्लॉग देखा और बस देखता ही रह गया...अगले पोस्ट की तीव्र प्रतीक्षा में..... धन्यवाद
ReplyDeleteअधीर मानव को दिलासा,
ReplyDeleteसुविधा और तुरत-फुरत का निबटारा
सहज रूप से प्रभावित करता है.....
इसलिए आश्चर्य नहीं कि
योग भी ऊँची छलांग लगाने में मग्न है.
आपने योग के साधनों का उल्लेख किया है,
दरअसल उनमें से किसी की उपेक्षा उचित नहीं है.
शब्द व्युत्पत्ति की चर्चा के निमित्त
आपने इस पोस्ट में भी
अहम संदेश छोड़ दिया है.....आभार.
यह भी कि योगी की यश देह अर्थात्
कीर्ति कभी नष्ट नहीं होती......
परन्तु आज योग की कीर्ति के बहाने
कीर्ति-योगियों की संख्या बढ़ती जा रही है !
बलिहारी है समय की !
=================================
डा.चन्द्रकुमार जैन
यह पोस्ट भी बहुत जानकारी देने वाली है अजीत जी .आज जीवन उर्जा में मैंने भी कुछ योग के बारे में लिखा है .आपने बहुत अच्छी जानकारी दी है .धन्यवाद
ReplyDeleteअजीत जी सच मे बहुत जानकारी हे आप के सभी लेखो मे, ओर इस योगा यानि योग के बारे पढ कर पिता जी याद आ गये, वह यह सब बाते मुझे समझाया करते थे, आप ने विस्तार से योग के बारे मे बताया हे धन्यवाद
ReplyDeleteयूँही ज्ञान बाँटते रहें गुरुवर। जितना ही यहाँ आओ और पढ़ो उतना ही अपने अज्ञानी होने का अनुभव होता है।
ReplyDeleteशुभम
महेन
दो दिन पहले ही योग पर यही जानकारी कॉलेज के छात्रों को देने के लिए एक प्रोग्राम रक्खा था। डर रहे थे कि बच्चों को इन सब चीजों से क्या मतलब्। लेकिन बड़ा सुखद अनुभव रहा जब तीन घंटे बच्चों ने न सिर्फ़ इसके बारे में सुना, नोटस लिए, बल्कि दूसरे दिन हमसे कहा कि उस योगी को फ़िर से बुलाया जाए। अब जरा मुद्राओं के बारे में भी बता दिजीए ।धन्यवाद
ReplyDeleteshabad gyan too anant hain lakin aap us gagar main dagar bharna jaisa bhagarithi kaam kiya hain. sadhuwad
ReplyDeleteयोग हमारे जीवन का वह नियम है जिसका पालन करने से हम या कोई भी एक लंबी आयु प्राप्त कर सकता है और निरोग काया भी
ReplyDeleteजय हिन्द