कवि और कविता की महिमा में बहुत सी बातें कही जाती हैं। सुमित्रानंदन पंत की ये पंक्तियां भी कवि और कविता को कुछ अर्थों में परिभाषित करती है। सभ्यता के विकासक्रम में कलाओं के रूप बदलते रहे हैं। कविता ने भी कई रूप बदले। एक बात तो तय है कि इन्सान के भीतर से कविता पहले जन्मी है । गद्य बाद में । उससे भी बाद में उसने लिखना सीखा। प्रकृति की ,निसर्ग की मूल ध्वनियों का अनुकरण ही बना होगा शब्दों का आधार, बोली का आधार और कविता का आधार।
ध्वनि का बोध करानेवाली संस्कृत धातु कै [जिससे कौवा बना] और कु [ जिससे कोयल बनी ] से ही संबंध है संस्कृत के कव् शब्द का जिससे जन्मा कवि। संस्कृत धातु कव् का अर्थ है स्तुति करना । इसके अन्य अर्थ हुए वर्णन करना , रचना करना, चित्रण करना , चित्र बनाना आदि। खास बात यह कि कव् का मूल भी कु [कु+ई] ही है जिसका मूलार्थ है ध्वनि करना। अब कव् शब्द के भावों पर गौर करें तो विशुद्ध ध्वनि से कविता का सफर अपने आप नज़र आ रहा है। कु में निहित ध्वनि ही बनी कोयल की कुहूक। सभी पशु-पक्षियों की चहचहाहट प्रकृति के संधिकाल अर्थात सुबह और शाम को ही सर्वाधिक होती है। मनुश्य ने इसे प्रकृति का गान समझा।
खुद मनुश्य ने जब विकासक्रम में निसर्ग की शक्तियों को पहचाना और उन्हें देवत्व से जोड़ा , उनकी आराधना शुरू की जिसमें सबसे पहले सूर्य ही थे तब उसे भी कव् अर्थात स्तुति ही माना। इस तरह कव् धातु से बना कवि। कवि के गुणों से जो युक्त हो उसे कहा गया काव्य अथवा कविता। गौर करें कि वैदिक ऋचाओं में प्रकृति का स्तुतिगान ही है। कवि शब्द के संस्कृत में व्यापक अर्थ हैं। कवि को सर्वज्ञ, बुद्धिमान, विचारवान, प्रशंनीय, ऋषि और सबसे अंत में काव्यकार माना गया है।
जाहिर सी बात है कि उस दौर में मनीषियों ने जो कुछ अपने आसपास के संसार के बारे में जाना उसे बहुत ही काव्यात्मक संस्कारों के साथ प्रकट किया। सम्पूर्ण अध्ययन , मनन और चिंतन के साथ जो वर्णन अथवा छंदोबद्ध रचना सामने आई उसे काव्य अथवा महाकाव्य कहा गया। चिंतन भी अपने आप में काव्य ही है। जो लोग यह मानते हैं कि कविता सोच-विचार कर नहीं लिखी जाती वे भी सही हैं क्योंकि कु यानी ध्वनि। कुछ कहना भी ध्वनि है। काव्य का चिंतनवाला रूप तो तब बना जब मनुश्य को कविता का महत्व समझ में आया। तब कविता को चिंतन का माध्यम बनाया गया और चिंतन से फिर उपजा काव्य ।
कवि, कविता-इन शब्दोँ से उत्पन्न हुए-ज्ञानवर्धक. बहुत आभार.
ReplyDeleteएक जमाने तक संस्कृत में हर ज्ञान गणित, वैद्यक आदि सब काव्य में ही थे।
ReplyDeleteआज कवि-कोविद के बारे में भी जान गए, कवि पर एक बार किसी परीक्षा में लिखना था तो 'वियोगी होगा पहला कवि' और और 'मा निषाद' पर खूब घुमाया था हमने. पर ये न जानते थे .
ReplyDeleteकविता के बारे मेँ पढकर अच्छा लगा :)
ReplyDeleteचिंतन से फिर उपजा काव्य
ReplyDeleteइसको बनाने की रेसिपी में कुछ और तत्व भी होंगे। अन्यथा हमारे जैसे कई कविता ठेलने लगते! :-)
प्रिये! गीत की रचना करने
ReplyDeleteपहला कवि जहाँ बैठा था
निश्चय ही वसुधा के मुख से
फूट पड़ा होगा संगीत !
बहुत ज्ञानवर्धक| आभार
ReplyDeleteबहुत सार्थक पोस्ट.
ReplyDeleteकविता का रचयिता
गाहे-ब-गाहे ख़ुद भी
रचा जाता है....!
सृजन और सर्जक का
यह सम्बन्ध
यदि समझा जाए तो
कोई संदेह नहीं कि कालजयी
कविता का द्वार सहज ही खुल जाए.
वैसे मुक्तिबोध ने लिखा है
प्रत्येक वाणी में महाकाव्य पीड़ा है.
अजित जी, मुझे कहने दीजिये कि
इस पोस्ट से आपने
उस वाणी को वाणी दी है.
बधाई
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चन्द्रकुमार
achchi jaankari...aapke blog par aakar har baar gyaan mein izaafa hi hota hai. dhanyvaad..
ReplyDeletebahut khoob sir..
ReplyDeletekal maine aapko ek mail kiya tha aapne uska javaab nahi diya abhi tak.. main intzaar me hun.. :)
ज्ञानवर्धन के लिए शुक्रिया!
ReplyDeleteनमन है आप को इतनी सार्थक जानकारी देने के लिए...आप का ज्ञान अद्भुत है...
ReplyDeleteनीरज
नही जानते थे की जिसे लिख कर हम आत्म- मुग्ध होते है उसका जन्म कैसे हुआ ?शुक्रिया.......
ReplyDeleteकै से कौवा...कु से कोयल...कव से कवि जन्मा तो कविता भी पीछे पीछे जन्मी... और बस फिर हमें मिला अदभुत काव्य जो दिल और दिमाग को शांति के साथ साथ आनन्द भी देता है. मीनाक्षी
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