
ईरान का उत्तरी क्षेत्र प्राचीन काल में तूरान के नाम से जाना जाता था और यहां के जातीय समूह और भाषा के लिए तूरानी शब्द का प्रयोग होता रहा। ईरान की प्राचीन भाषा अवेस्ता में इसके लिए तुर्य शब्द मिलता है। गौरतलब है कि ईरान शब्द की व्युत्पत्ति आर्य से हुई है। संस्कृत की बहन और ईरान की प्राचीन भाषा अवेस्ता में ऐर्य-तुर्य शब्दों का उल्लेख है जिसकी वजह से इस पूरे भूक्षेत्र के लिए ईरान के साथ तूरान नाम भी चलन में आया । किसी ज़माने में इस इलाके में पश्च्चिम में तुर्की से लेकर पूर्व में मंगोलिया और उत्तर में साइबेरिया तक का विशाल क्षेत्र आता था। तूरान का संबंध तुर्क जाति से है। गौरतलब है कि संस्कृत में तुर्क के लिए तुरुष्क शब्द है। अवेस्ता में इसे ही तुर्य कहा गया है। इसके अलावा अवेस्ता की कथाओं में एक उल्लेख मध्यएशिया के प्रतापी सम्राट फरीदुन का भी मिलता है जिसके तीन पुत्र थे । सल्म (अरबी में सलामत), तूर और इरज़। किन्ही संदर्भों में तूर का उल्लेख तुरज़ भी आया है।सम्राट ने पश्चिमी क्षेत्र के सभी राज्य जिसमें अनातोलिया भी था सल्म को दिए। तूर को मंगोलिया, तुर्किस्तान और चीन के प्रांत दिए और साम्राज्य का सबसे अच्छा इलाका तीसरे पुत्र ईरज़ को सौंपा। ईर का बहुवचन ईरान हुआ और तूर का तूरान। अर्थात जहां तूर शासित क्षेत्र तूरान और ईर शासित क्षेत्र ईरान। यह गाथा काफी लंबी है मगर इतना तो बताती है की संस्कृत और अवेस्ता में उल्लेखित तुरुष्कः , तुर्य अथवा तूर से ही तुर्क शब्द बना है और प्राचीन काल में इसे ही तूरान या तुरान कहा जाता था। इस शब्द के दायरे में सभी मंगोल, तुर्क,
कज़ाख, उज़बेक आदि जाति समूह आ जाते हैं। उल्लेखनीय है कि अवेस्ता में आर्य का उच्चारण ऐर्य होता है। एर का अर्थ होता है सीधा, सरल, सभ्य । तूर का मतलब होता है ताकतवर, कठोर, मज़बूत। हिन्दी में प्रचलित तेज़-तर्रार और तुर्रमखाँ जैसे मुहावरों के पीछे यही तुरुष्क, तूरान और तुर्क झांक रहा है।
अरबी में दुर्र या दुर का मतलब होता है मोती। दुर्र का बहुवचन हुआ दुर्रान इस तरह दुर्र ऐ दुर्रान का मतलब हुआ मोतियों में सबसे बेशकीमती
फोटो साभार-www.afghanland.com/
दुर्रान-दुर्रानी - ईरानी, तूरानी की तरह दुर्रानी शब्द भी भारत में सुनाई पड़ता है। इसका रिश्ता भारत के एक आक्रांता से जुड़ा हुआ है। नादिरशाह की मौत के बाद उसका सिपहसालार अहमदशाह अब्दाली (1723-1773) ने काबुल की गद्दी कब्जा ली। अपने आक़ा की तरह दिल्ली फतह के इरादे उसके भी थे और कई बार उसने भारत पर चढ़ाई भी की। दिल्ली फतह की उसकी इच्छा इतनी प्रबल थी कि उसका उल्लेख उसने एक कविता में भी किया है। बहरहाल , अहमदशाह अब्दाली पख्तून (पठान) था। पठानों की एक उपजाति है अब्दाली । इन्हीं अब्दालियों का एक कबीला है सबदोजाई जिससे ताल्लुक था उसका। अहमदशाह की बहादुरी को देखते हुए उसे दुर्र ए दुर्रान की उपाधि मिली। अरबी में दुर्र या दुर का मतलब होता है मोती। दुर्र का बहुवचन हुआ दुर्रान इस तरह दुर्र ऐ दुर्रान का मतलब हुआ मोतियों में सबसे बेशकीमती । सबसे अव्वल। सो अहमदशाह अब्दाली को दुर्रानी कहा जाने लगा। कई लोग दुर्रानी का अर्थ कबीले अथवा जाति से लगाते हैं, जबकि ऐसा नहीं है। अलबत्ता सबदोजाई कबीले के लोगों ने अहमदशाह के बाद खुद को दुर्रानी कहलवाना ज़रूर शुरू कर दिया। हालांकि एक अन्य व्युत्पत्ति के अनुसार यह शब्द दुर्र-ऐ-दौरान से बना है अर्थात दौर यानी काल, वक्त, समय का बहुवचन दौरान। इसका मतलब हुआ वक्त का बेशकीमती मोती।
तातार- तूरानियों की तरह ही भारतीय इतिहास में तातारियों का भी उल्लेख है। दरअसल तातार शब्द से अभिप्राय तुर्क और उज़बेक लोगों से ही है। मूलतः एक मंगोलियाई कबीले के नाम के तौर पर तातार शब्द प्रचलित हुआ। पुराने ज़माने में चीन के लोग उत्तर पश्चिमी सीमा से लगते प्रांतवासियों के लिए तातान अथवा दादान शब्द का प्रयोग करते थे। तातार शब्द इससे ही चला। बाद में चंगेज़ खान द्वारा शासित मंगोल जाति समूहों ने खुद को तातार कहना शुरू कर दिया।
वाह!!!
ReplyDeleteरोचक और जबरदस्त जानकारी है.
आभार.
धन्यवाद अजित भाई,
ReplyDeleteआप तो अगली ही कड़ी में तातार और दुर्रानी वगैरह ले आए।
ईरान नाम पड़ने के बारे में एक रोचक तथ्य यह है कि भारतीयों की ही तरह ईरानी भी अपने को आर्य कहते थे और अवेस्ता में आर्य को अइर्य कहा जाता था जो बहुवचन में अइर्यन से होता हुआ एरान हुआ और वहां से ईरान हो गया। इसके लिये संस्कृत में आर्याणाम् शब्द प्रयुक्त होता है।
वाह !
ReplyDeleteअब तो सफ़र में शब्दों के जीवन
के साथ इतिहास-बोध का समर्थ
अध्याय भी जुड़ता जा रहा है.
अजित जी,
आपके ध्येय-निष्ठ श्रम और
भारती-विभूति के प्रति
सतत उत्तरदायी अवदान का आलोक
न जाने कितने कोणों से प्रकीर्ण होकर
सूचना व ज्ञान का पथ प्रशस्त कर रहा है.
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मंगल कामनाओं सहित
डा.चन्द्रकुमार जैन
देखिये जी हमतो इरान तुरान के बारे मे इतना ही जानते है.
ReplyDeleteकि इरान मे मम्मिया पाई जाती है मतलब वहा पापा तूरानी होते होगे :)
ReplyDeleteरेफ का कमाल... साहिबान, कद्रदान, मेहरबान ये शानदार रेफ के पकवान तो पेट भरने के बाद भी ललचाए जाते हैं...
ReplyDeleteहैरत है और यह एक बडी हैरत है काफी दिनों बाद आया और पेट भर पढकर मन भर देखकर जा रहा हूं... मैं औराक-ए-हैरानी में....
बहुत जानकारी भरा सफर -मेरे आदि पुरखों के वंशधर आज भी इरान में है -यह मुझे जीनोग्रैफी जांच से पता चला
ReplyDeleteतातार बहुत पंसदीदा शब्द है, क्यों तो इस के लिए गोगोल की लम्बी कहानी 'तातार' पढनी होगी। तातार कैसे किसी से युद्ध रत होते ही अपने तमाम उत्पादन के साधन घर आदि नष्ट कर देते थे, सारे लोहे को हथियारों में तब्दील कर देते थे। ताकि पीछे कोई संपत्ति ही शेष न रहे जिस का लड़ते वक्त मोह बना रहे। पूरा कबीला स्त्रियों बच्चों समेत फौज बन जाता था। जीते तो फिर बना लेंगे। हारे तो सब कुछ वैसे ही छिनना है, दुश्मन के हाथ क्यों लगे?
ReplyDeleteअजितजी, बहुत बढिया और रोचक जानकारी जिसे पढ़कर हमें अपना ईरानी परिवार याद आ गया जो उत्तरी ईरान के रश्त शहर मे रहते हैं. अगली बार जब भी गए आपको ज़रूर याद करेंगे और ज़िक्र तो लाज़िमी होगा ही.
ReplyDeleteअजीत जी मन तो चाह्ता है कि आप से कहूँ आप कहां पत्रकारिता में लगे हुए हैं आप तो जन्मजात जैसे टीचर ही हैं जी लेकिन फ़िर ये सोच रही हूँ कि नहीं आप का पत्रकार होना ही ज्यादा ठीक है, टीचर होते तो सिर्फ़ उनको ज्ञान मिलता जो आप के संपर्क में आते और आप की कक्षा में बैठते, अब तो हम सब लाभ उठा रहे है। भगवान करे आप इसी तरह हमें पढ़ाते रहें। आप से सीखने को इतना है कि मुझे लगता है कि अगर आप एक दिन में दो पोस्ट भी ठेलें तो हम पढ़ने को बेकरार रहेगें। वैसे मैने दुर्रानी शब्द के बारे में पूछा था पाकिस्तान की मशहूर लेखिका ताहमिमा दुर्रानी के नाम की वजह से।
ReplyDeleteधन्यवाद, अगले लेख का इंतजार
आज की कक्षा में आने में कुछ देरी हो गई :) जानकारी बहुत जबर्दस्त पढने को मिली आज ..शुक्रिया
ReplyDeleteआअह!! क्या जानकारी देते हैं, महाराज!! मोहित होते जाते हैं.
ReplyDeletehamari hazziri guruvar....
ReplyDeleteसलीम दुर्रानी भारत के बल्लेबाज नादिरशाही वँश के रहे होगेँ
ReplyDelete( तभी सीक्सर / SIXER ,लगाया करते थे :)
ये कडी भी इतिहास की
लँबी यात्रा करवा गयी और बहुत भा गयी
- लावण्या
Bahut hi jandar lekh. toory, aary aur air aur tatar sabka arth samza diya. Dhanyawad.
ReplyDeleteईरान का उत्तरी क्षेत्र प्राचीन काल में तूरान के नाम से जाना जाता था
ReplyDeleteiske alawa saarijaankari ekdam nayi thi....really thanx.
वाह दादा वाकई रोचक जानकारी है. शब्दों के सफर के माध्यम से इतिहास के पन्नों मैं छिपे कई रोचक व्यक्तित्व भी सामने आते हैं. यूँ ही ज्ञान बढाते रहें.
ReplyDeleteअभिराम
आप के माध्यम से,शब्दों के अर्थ जाननें के प्रयास में न केवल हमें अपनें पड़ोसियों के विषय में जाननें का अवसर मिल रहा है,वरन उनसे हमारे खानदानी समबन्धों का ही नहीं,रक्त समबन्ध तक का पता चल पा रहा है। अनिल मिश्र जी का यह रक्त समबन्ध ईरान से नहीं वरन कश्यप सागर के उस क्षेत्र से है जहाँ से सभ्य(आर्य) कही जानें वाली जाति और सम्भवतः समस्त मानव सभ्यता का उदभव और विकास हुआ था। वहीं से कतिपय छुद्र कारणों से हुए पारिवारिक विभाजन के परिणामस्वरुप दोनों सहोदर जातियाँ,हिमयुग के आसन्न संकट के कारण नीचे उतरी और दो भिन्न रास्तों पर चल पड़ीं थी।दक्षिण पश्चिम की ओर पलायित शाखा कालान्तर में अपनीं प्राचीन धरोहरों को ही न केवल विसमृत कर बैठी वरन भाषा और लिपि तक से हाथ धो बैठी। (हम कब तक बचाए रख पाऎगे यह भी देखनें की बात है)जरुथुस्त्र धर्म को माननें वाले पारसियों की भाषा पहले संस्कृत ही रही होगी,ऎसा ज़न्दावस्ता (छन्दोभ्यस्ता) के अवलोकन से ही स्पष्ट होता है। अनेकानेक शाब्दिक साम्यों के अतिरिक्त एक शब्द ऎसा अभी भी पूरी गरिमा एवं महत्व के साथ उपस्थित है, वह है "ॠत" जो इण्डो-यूरोपियन परिवार की अन्य किसी भी भाषा में नहीं मिलता है। अनिल जी, पारसियों या आवेस्ता(ज़न्दावस्त) की पर्शियन के पहले पहलवी लिपि सासानी काल तक मिलती थी, भाषा क्या थी यह अभी भी रह्स्य ही है। पौराणिक ग्रन्थों में तातार के लिए तार्तार शब्द मिलता है। सुन्दर एवं ञान वर्धक लेख के लिए बधाई।
ReplyDeleteइस पोस्ट में तो सब कुछ नया ही नया मिला... अनमोल पोस्ट ! बहुत जानकारी पूर्ण !
ReplyDeleteअब पता चला तहमिना दुर्रानी के नाम का मतलब । इतिहास की सही जानकारी होना आज कितना ज़्यादा ज़रूरी है । हमें इस दिशा में जानकारी देने और सोचने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए शुक्रिया सर ।
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