तपस्वी के शाप में तबाही

गुस्सैल व्यक्ति को हमेशा ताव आता है यानी वह जल्दी आवेश में आ जाता है। गुस्सा न करनेवाले को अक्सर साधु कहते हैं मगर यह भी सुनते रहे हैं कि अक्सर तपस्या में बाधा पड़ने पर तपस्वी भी ताव खा जाते थे और तबाही लाने वाले शाप दे दिया करते थे।
दरअसल तपस्या, तबाही और ताव में रिश्तेदारी है। चमक, तेज रोशनी, गर्मी , अग्नि, जलाना, दग्ध करना, पीड़ा सहन करना आदि के लिए संस्कृत में तप् शब्द है। तप का एक अर्थ होता है यंत्रणा देना, पीड़ा देना, जला कर समाप्त करना आदि। एक अन्य भाव है शरीर को कृश करना, सुखा देना। तपस्या शब्द तप से ही बना है जिसका अर्थ है साधना, कड़ा अभ्यास करना । दरअसल तपस्या में इन्द्रियदमन, आत्मनियंत्रण का भाव प्रमुख है। मनीषियों नें ब्रह्मप्राप्ति का जो मार्ग खोजा वह कठिन मगर कारगर था। ध्यान, चिंतन-मनन की ऐसी प्रणाली उन्होंने बताई जिसके जरिये मन को एकाग्र कर ज्ञान की दिव्य ज्योति में विषय वासनाओं को जलाना, नष्ट करना होता था। यही तपस्या या तपश्चरण है। इसी ताप से आत्माशुद्धि मिलती और तपस्वी सिद्ध कहलाता।
शरीर और मन को लगातार समाधि की अवस्था में स्थिर रखना ही तप है। तंत्रमार्ग में तप का अर्थ ब्रह्मचर्य है। तप तीन प्रकार के होते हैं 1. शारीरिक 2.वाचिक 3.मानसिक । ईश्वर, माता-पिता, गुरू आदि की भक्ति-सेवा शारीरिक तप हैं। वेदपाठ, मीठी वाणी बोलना वाचिक तप और प्रसन्नमन रहना मानसिक तप है। तप से ही बने है ताप, तापना, तपन जैसे शब्द। तपस्वी जहां वास करते है उसे कहा गया तपोवन या तपोभूमि। जिसे गर्म किया जाए वह हुआ तप्त। सूर्य का एक नाम तपसः भी है। भक्त, सन्यासी या ऋषि को तापस भी कहते हैं।

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बहुत खूब.. वैसे तो तप कोई भी हो कठिन होता है. लेकिन तब भी मुझे लगता है कि तप के तीन प्रकारों में वाचिक तप सबसे कठिन है :)
ReplyDeleteयदि ताब से अलग है तो क्या ताव भी कुछ-कुछ इसी भाव से संबंधित नहीं ...
एक शब्द है पश्चाताप, पश्च का मतलब पीछे का, पूर्व आगे होता है जहाँ से सूर्य उगता है, पश्च पीछे, यानी अतीत का ताप, पिछली करनी का अपराध बोध, ग्लानि में जलने का भाव.
ReplyDeleteआग और गर्मी पर आप पूरी सिरीज़ चला सकते हैं, आग, दाह, दहन, धाह, दग्ध, दहक, धधक...धू धू, धुआँ
अग्नि से ही इग्निशन बनता है जिसके बारे में सोचे बिना भारत में हर रोज़ इग्निशन ऑन करके लाखों स्कूटर स्टार्ट होते हैं.
@अनामदास
ReplyDeleteशुक्रिया साहेब, हमेशा की तरह कुछ खास लेकर आए हैं आप। अलबत्ता पश्चाताप समेत बहुत सारे उपसर्गों और प्रत्ययों के साथ और भी शब्द समेटने थे मगर फिर वहीं समय का राग अलापना चाहूंगा कि वक्त नहीं था...कोशिश यही कि विषय विमोचन हो जाए और कामचलाऊ विवेचन हो जाए...संतोषजनक काम तो अभी तक किया ही नहीं है। आप जैसे सुबुद्ध लोग आते हैं , ये गर्व की बात है हमारे लिए मगर रोज़ ही खुद का लिखा पढ़ कर शर्मिंदा होता हूं ....क्या करूं ....इससे ज्यादा वक्त दे नहीं सकता ...
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ReplyDeleteहम तो तपाक से ही पहुंचते हैं हमेशा आपकी पोस्ट पर अजीत जी। अब यह कहूं कि आप बहुत तप कर रहे हैं तो कहीं तावडे तावडे कही गयी बात न हो जाए। ताव न खाएं, तपे हुए तवे पर आप खूबसूरत टिकडों को सेंक रहे हैं। जारी रहें। शुभकामनाएं।
ReplyDeleteत से तप और त से ही तर, दोनों एक दूसरे के विपरीत मगर।
ReplyDeleteTapah poot deh, Tapaswi ki ,
ReplyDeleteTapti nadee, ( Tapti Surya putri thee )
tapish , Santaap,
bahut sare shabd,
aur
Dadhichee jaise Param Tapaswee
sakar ho gaye !
Fir ek baar, interesting Sub.
rgds,
- Lavanya
बहुत अच्छा लिखा है .....जानकारी भी है ...
ReplyDeleteपोस्ट को बहुत खूब, टिप्पणियाँ सुभान अल्लाह. बहुत जानकारी बढ़ी इस एक पोस्ट और टिप्पणियों से - जारी रखें.
ReplyDeleteअजित जी,
ReplyDeleteआज की पोस्ट कुछ ज़्यादा
मन को भा गई.
एक बात बताइए -
आजकल लोगों से 'तपाक' से
मिलने पर अगर वो तवज़्ज़ो न दें
और बरबस 'ताव' आ जाए तब भी
'तापस' बने रहना कैसे सम्भव है ?
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बहरहाल आपके 'अक्षर-तप' का फल
हम सब को मिल रहा है...आभार.
आपकी एकाग्रता ओर निरंतरता को प्रणाम .......सच में आप बधाई के पात्र है.......
ReplyDeleteबहुत ही बढिया पोस्ट है आज की.तप के तीन प्रकार पता चले.बहुत खूब दादा,हमेशा की तरह.
ReplyDeleteज्ञानवर्धक जानकारी।
ReplyDeleteतप से याद आया सोना भी आग मे तप कर ही खरा होता है।
तीन तरह के तप,
ReplyDeleteहम इनमे से एक भी तप भली-भांति नही कर पाते, अफसोस!
तपाक शब्द भी तप से ही बना है...ये जानकर आश्चर्य हुआ. इसके पहले कभी इस तरह से नहीं सोचा था!धन्यवाद इतनी अच्छी जानकारी के लिए....
ReplyDeleteaaj ke daur me mansik tup kitna kathin!!! post sadaa kii bhaanti adhbhut
ReplyDeleteदेर रात शायद सबसे पहले यह पोस्ट मैने ही पढ़ी ..सोचा कल करूंगी टिप्पणी..आज देखा तो ढेर सारी टिप्पणियां..वाह..वाह..। बहुत सारी जानकारी है । ताव न खाया जाए सोचा तो बहुत बार जाता है लेकिन क्या करें आ जाता है।
ReplyDeleteतप के तीन प्रकार जो आपने बताये हैं उसमें 'शरीर को कृश करना, सुखा देना' वाला अर्थ समाहित नहीं मिला.. साधारणतया तप से यही मतलब निकाला जाता है. धन्यवाद जानकारी के लिए.
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