
शरीर को पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश आदि पंचतत्वों से निर्मित कहा जाता है। ऐसा कहा जाता है कि सबकी उत्पत्ति तेजस् अथवा दिव्यज्योति जिसे परमब्रह्म समझ सकते हैं , से हुई है। इनमें जल अथवा पानी की उत्त्पत्ति सबसे अंत मे हुई बताई जाती है। पानी का गुण शीतलता है , मगर पारदर्शी होने के बावजूद उसमें चमक का गुण भी है जो प्रकाश की मौजूदगी में नुमायां होता है।
संस्कृत में एक धातु है पा जिसका अर्थ है पीना,एक ही सांस में चढ़ाना। इसी तरह संस्कृत में प वर्ण का अर्थ भी पीने से ही जुड़ा है। बहना और धारा संबंधी अर्थ भी इसमें शामिल हैं। इससे ही बना है संस्कृत का लफ़्ज़ अप् का अर्थ भी जल है। संस्कृत की प या पा धातुओं का विस्तार पश्चिमी देशो तक हुआ और यहां भी इंडो-यूरोपीय परिवार की भाषाओं में ऐसे कई शब्द बने हैं जिनसे पानी, बादल, तरल, पेय और धारा संबंधी अर्थ निकलते हैं अलबत्ता कहीं-कहीं ये समीपवर्ती वर्णों में बदल गये हैं मसलन- फ या ब में । पुरानी फारसी का अफ्शः , आइरिश का अब , लात्वियाई और लिथुआनियाई के उपे जैसे शब्द भी नदी या जल-धारा का अर्थ बतलाते हैं ।
इन सभी शब्दो की संस्कृत के अप् से समानता पर गौर करें। पानी के अर्थ वाला संस्कृत का अप् फारसी में आब बनकर मौजूद है । आब का एक अर्थ चमक भी होता है, ज़ाहिर है प्रकाश के सम्पर्क में आने पर पानी में पैदा होने वाली कान्ति से आब में चमक वाला अर्थ भी समा गया। आब का एक अर्थ इज्जत भी होता है जिसे आबरू कहते हैं। इसका एक रूप आबरुख भी है जिसका मतलब हुआ चेहरे की चमक । माना जा सकता है यहां चेहरे पर चरित्र की चमक से अभिप्राय है। वैसे हिन्दी में बेइज्जती के लिए चुल्लू भर पानी में डूब मरने वाली कहावत में भी चरित्र का संबंध पानी से जुड़ रहा है। प्राचीनकाल से ही जलस्रोतों के नज़दीक मानव का आवास हुआ सो जनशून्य जलस्रोतों के निकट जब लोग बसे तो वे आबाद कहलाए। जाहिर है इसी बसाहट को आबादी कहा गया जो बाद में जनसंख्या के अर्थ मे हिन्दी में रूढ़ हो गया।
संस्कृत में द वर्ण का अर्थ है कुछ देना या उत्पादन करना । चूंकि पृथ्वी पर पानी बादल लेकर आते हैं इसलिए अप् + द मिलकर बना अब्द यानी पानी देने वाला। उर्दू फ़ारसी में यह अब्र बनकर मौजूद है- कभी तो खुल के बरस अब्रे-
मेहरबां की तरह... यही नहीं,जानकारो के मुताबिक पानी के लिए लैटिन का अक्वा और अंग्रेजी का एक्वा शब्द भी अप् से रिश्ता रखते हैं। जर्मन में नदी के लिए एख्वो शब्द है।

आज जल के अर्थ में अगर सबसे ज्यादा कोई शब्द बोला जाता है तो वह है पानी । हिन्दी का पानी शब्द आया है संस्कृत के पानीयम् से जिसने हिन्दी समेत कई भारतीय भाषाओं में पानी के रूप में अपनी जगह पक्की कर ली। यही नहीं, द्रविड़ परिवार की तमिल में पनि शब्द का मतलब है बहना। इसी तरह तमिल का ही एक शब्द है पुनई (नदी , जल ) जिसके बारे में भाषा-विशेषज्ञों का कहना है कि यह भी संस्कृत मूल से ही जन्मा है। संस्कृत में पान अर्थात (पीना) , पयस् ( जल) , पयोधि (समुद्र) , और हिन्दी में पानी , प्यास , प्याऊ , परनाला, प्यासा, पिपासा , पनीला,पनघट, पनिहारिन,जलपान वगैरह कई शब्दों की पीछे संस्कृत की प या पा धातुएं ही हैं।
प का बड़ा विस्तार है।
ReplyDeleteजीवन के लिए सब से पहले पानी ही खोजा जाता है।
अब्र की तरह मराठी में भी बादलों के लिये अभ्र शब्द का प्रयोग होता है । निरभ्र आकाश बहुत ही आम प्युक्त होने वाला शब्द है । और अब्दाली शब्द का भी स्त्रोत अब्द ही है ?
ReplyDeleteहमेसा की तरह रोचक ।
प के बारे में जानकर ज्ञान की प्यास बुझ गई. लेकिन ये प्यास है बड़ी... शुक्रिया.
ReplyDeleteरू का मतलब भी चेहरा ही होता है। मेरा ख़याल है कि आबरू का मतलब लक्षणामूलक ना होकर अभिधेय वाला है। क्योंकि वीर्य खोने से चेहरे की कांति भी जाती है।
ReplyDeleteअजित जी,
ReplyDeleteशब्दों की समझ की पारदर्शी चमक
हर बार नुमायां होती है सफ़र में
पानी की तरह....! और जब सफ़र
अब्रे मेहरबां की मानिंद पेश आता है
तब लगता है कि हर बार कहीं दूर
बरस जाने वाले बादल आज
घर-द्वार-आँगन में आकर बरसे पड़े हैं...सच !!
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शुक्रिया इस पानीदार पोस्ट के लिए.
डॉ.चन्द्रकुमार जैन
पानी रे पानी... तेरा रंग कैसा? आज कई रंग दिखे...
ReplyDeleteवाकई कई रंग है....
ReplyDeleteपानी के इतने रंग ...बहुत बढ़िया पर नन्हे बच्चो को हम मम बोलना क्यूँ सिखाते हैं ..पानी शब्द से कैसे जुडा है यह ?
ReplyDeleteप पर ज्ञानधारा बही-आनन्द पूर्वक ग्रहण कर लिया.
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