Sunday, October 19, 2008

पहली मिस यूनिवर्स !!! [तिल -3]

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तिल से बने तेल , तैलीय , तिलहन जैसे शब्दों के बीच अपार सौन्दर्य राशि का पर्याय बना एक अन्य शब्द भी तिल के कुनबे की शोभा बढ़ा रहा है । तिलोत्तमा नाम की एक अप्सरा का पुराणों में उल्लेख है। इसके बारे में अलग-अलग संदर्भ हैं। कहा जाता है कि इसकी रचना के लिए ब्रह्मा ने तिल-तिल भर संसार भर की सुंदरता को इसमें समाहित किया था इसीलिए इसका नाम तिलोत्तमा पड़ा। यह भी धारणा है कि इन्द्रलोक की समस्त अप्सराएं अलग-अलग विधाओं में निष्णात थीं और एक से बढ़ कर एक थीं। मगर एक अप्सरा ऐसी भी थी जो सब से रूप, गुण और कला में तिल भर श्रेष्ठ थी इसीलिए उसे तिलोत्तमा कहा गया। अप्सराओं में जो सर्वश्रेष्ठ हो वही त्रिलोकसुंदरी है , ब्रह्मांडसुंदरी भी वहीं है। मिस यूनिवर्स और किसे कहते हैं ?

क कथा के अनुसार हिरण्यकशिपु के कुल में निकुंभ नाम का प्रतापी दैत्य हुआ। उसके दो पुत्र थे सुंद और उपसुंद। दोनों एक शरीर दो आत्मा की तरह थे और परस्पर अतुल स्नेह भी रखते थे। उन्होंने त्रिलोक पर राज करने की कामना से विन्ध्याचल पर्वत पर घोर तपस्या की । उनके तप तेज से देवता घबरा गए और हमेशा की तरह ब्रह्मा की शरण में गए। ब्रह्मा स्वयं दोनो भाइयों के सामने गए और उनसे वर मांगने को कहा। दोनों ने अमरत्व मांगा। ब्रह्मा ने साफ इन्कार कर दिया। तब दोनों ने कहा कि उन्हें यह वरदान मिले कि एक दूसरे को छोड़कर त्रिलोक में उन्हें किसी से मृत्यु का भय न हो। ब्रह्मा ने कहा – तथास्तु। जैसा कि होना ही था, सुंद-उपसुंद लगे उत्पात करने जिसे देवताओं ने अत्याचार की श्रेणी में गिना और फिर ब्रह्मा के दरबार में गुहार लगा दी। अब तो दोनो की मौत तय थी, बस उपाय भर खोजा जाना बाकी था। ब्रह्माजी को उनके वरदान की याद दिलाई गई। ब्रह्माजी ने फौरन विश्वकर्मा को तलब किया और एक दिव्यसुंदरी की रचना का आदेश दिया। बस, विश्वकर्मा ने त्रिलोक भर की तिल-तिल भर सुंदरता लेकर एक अवर्णनीय सौंदर्य प्रतिमा साकार कर दी। ब्रह्माजी ने उसमें प्राण फूंक दिये।
ह सुंदरी तीनों लोकों में अनुपम थी। ब्रह्माजी ने इसका नाम तिलोत्तमा रखा।
तिलं तिलं समानीय रत्नानां यद् विनिर्मिता ।
तिलोत्तमेति तत् तस्या नाम चक्रे पितामहः ।।
बस, उसे दोनो भाइयों के पास जाने को कहा गया। तिलोत्तमा का वहां जाना था, दोनों का उस पर एक साथ मोहित होना था और फिर एक दूसरे की जान का प्यासा होना तो तय । ब्रह्माजी का वरदान फलीभूत हुआ। दोनो आपस में ही लड़ मरे। एक अन्य उल्लेख में तिलोत्तमा कश्यप ऋषि और अरिष्टा की संतान थी। अरिष्टा दक्ष प्रजापति की पुत्री थी। गंधर्वों और अप्सराओं को इसी की संतान माना जाता है। तिलोत्तमा को पूर्व जन्म में कुब्जा कहा गया है।
[यह आलेख तिल श्रंखला की संशोधित पुनर्प्रस्तुति है। दोनो चित्र कंबोडिया के अंगकोरवाट मंदिर में निर्मित अप्सराओं की प्रतिमाओं के हैं । उपर के चित्र की कड़ी । नीचे के चित्र की कड़ी ]

19 comments:

  1. वाह। तब के ॠषि-मुनि भी ग्लैमरस संतान उत्पन्न करते थे।
    अब तो सौन्दर्य प्रसाधन और शाहनाज हुसैन के बिना यह सम्भव ही नहीं।

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  2. आधुनिक काल में शत्रु से निपटने के जितने तरीके हैं उन में से अधिकांश ब्रह्मादि देवों के ही दिए हुए प्रतीत होते हैं।

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  3. बहुत विद्वतापूर्ण, सरस और सधी हुई प्रस्तुति.
    इसके सन्दर्भ तथा चित्रों की लय में अप्रतिम
    सौदर्य है.....यह प्रस्तुति सफ़र की तिलोत्तमा
    की तरह है....इसमें तिल भर भी संदेह नहीं.
    =================================
    आभार
    डॉ.चन्द्रकुमार जैन

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  4. आपका ब्लाग लगातार देख रहे हैं हम ।बहुत सार्थक काम कर रहे हैं आप। हिन्दी के विद्वान होने का दावा करने वाले को भी यहां ज्ञान प्राप्त करने का अवसर मिल रहा होगा।यूं ही लगे रहिए...

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  5. इस लेख के पढ़ने से पहले तक तो तिलोत्तमा का सिर्फ नाम ही सुना था।
    एक बार फिर बहुत अच्छी जानकारी पता चली। धन्यवाद

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  6. u r upper box to write in hindi not working properly
    great reserach work on mis of univers
    regards

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  7. तिलोत्तमा का जिक्र आपने तीसरे भाग में किया। मुझे पहले भाग से ही इसे पढ़ने की उम्‍मीद हो गयी थी। हमेशा की तरह अच्छा जा रहा है जी...।

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  8. " अप्सरा तिलोत्तमा" श्री कृष्ण की कृपा से
    कुरुप से स्वरुपवान बनी "कुब्जा" के बाद मेँ उत्पन्न हुई थी क्या ?
    क्या कहने मिस वर्ल्ड - # -1 ,
    प्रथमा के !! :)
    - लावण्या

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  9. वाह तिलोत्तमा के बारे में जानकर अच्छा लगा ! पौराणिक कथा पसंद आई. लावण्याजी का प्रश्न मेरे दिमाग में भी आया... कुब्जा को कृष्ण ने कंस वध के पहले मुक्त किया था.

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  10. @लावण्याजी - अभिषेक ओझा
    पौराणिक संदर्भ तिलोत्तमा को पूर्वजन्म की कुब्जा बताते हैं। एक अन्य संदर्भ उसके महान तपस्विनी और पुण्यात्मा होने का भी है जिसकी वजह से उसे स्वर्गप्राप्ति हुई । बाद में उसे अप्सरा तिलोत्तमा का रूप लेने का सौभाग्य मिला।

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  11. बहुत विद्वतापूर्ण, सरस और सधी हुई सुंदर प्रस्तुति.

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  12. “ब्रह्माजी ने फौरन विश्वकर्मा को तलब किया और एक दिव्यसुंदरी की रचना का आदेश दिया। बस, विश्वकर्मा ने त्रिलोक भर की तिल-तिल भर सुंदरता लेकर एक अवर्णनीय सौंदर्य प्रतिमा साकार कर दी। ब्रह्माजी ने उसमें प्राण फूंक दिये”
    अजित जी,शब्दों के सन्धान का सफर नित्य लिखनें के पराक्रम के चलते पटरी से उतरता प्रतीत हो रहा है।ब्रह्मा विश्वकर्मा अप्सरा तिलोत्तमा सुंद एवं असुंद वैदिक पारिभाषिक शब्द हैं जिनके तात्विक अर्थ हैं।पुराणकारों का कार्य वेदों मे वर्णित विशिष्ट ज्ञान को जन सामान्य की भाषा में रूपांतरित एवं प्रचारित प्रसारित करना था किन्तु उनकी व्यंजनात्मक शैली नें कार्य और कठिन कर दिया। आप तो शब्दविद हैं अतः विशेष दायित्व बनता है। प्रथम विश्व सुन्दरी जैसी हेड़िग समीचीन नहीं है।

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  13. वाह अजित जी, मैं अभी कुछ दिनों पहले ही खजुराहो की सैर कर लौटा हूँ और आपने 'तिलोत्तमा' के शब्द-चित्र से वहाँ की सुरा-सुंदरियों का स्मरण करा दिया. वस्तुतः पत्थरों पर उत्कीर्ण शारीरिक आकार और भंगिमाएं उनके अनुपम रूप-सौन्दर्य का स्वयं ही बखान करती हैं. ठीक वैसे ही जैसे आप श्रृंखलाबद्ध शब्दों का बखान कर रहे हैं, अनेक उपमेय के साथ.

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  14. बहुत बहुत आभार इतने सुंदर प्रसंग को हमसे बांटने के लिए.कृपया ऐसी श्रृंखलाएं आगे भी जारी रखें.वैसे तो यह प्रसंग सुन रखा था,पर बहुत ही संक्षेप में सुना था.यहाँ इस तरह से पढ़कर बड़ा आनंद आया.

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  15. वाह अजीत जी वाह
    तिलोत्तमा के बहाने कंबोडिया की पाषाण सुंदरियों के दुर्लभ दर्शन कर अभिभूत हूं
    वाह
    बधाई आपको

    एक बात बताइयेगा कि सांस्कृतिक मंच भिवानी का फोन नं जानने के लिये मुझे आप ही ने फोन किया था क्या
    तो क्या जगतनारायण जी का नं आपको मिला या नहीं
    अभी आवश्यकता हो तो मेल करें या टिप्पणीबाक्स में लिख छोड़ें

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  16. वाह दादा,ये जानकारी तो मिस यूनिवर्स चुनने वालों को भी पता नही होगी.आपके ब्लॉग का स्वरुप बढ़िया लग रहा है.कब बदला,मैं शायद लेट हो गई देखने में.

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  17. अजीत जी सबसे पहले तो हमारी बधाई स्वीकार कीजिए, आप का ब्लोग एकदम नयी दुल्हन सा सजा हुआ है, पीला रंग ऐसा लग रहा है मानो सुन्दरी उबटन लगा रही हो, और उस पर लाल नीले रंगों की छ्टा, बस देखते ही बनता है।
    तिलोत्तमा नाम हमारे पसंदीदा नामों में से एक है। बचपन में चंदामामा में एक कहानी आती थी तिलोत्तमा की, बस तब से उस की सुंदरता का ऐसा बखान पढ़ा की बस नाम मन में बस गया। आप की पोस्ट में इन जीवंत पाषान मूर्तियों के चित्र पोस्ट को और भी मजेदार करे दे रहे हैं।
    वैसे एक बात आ रही है मन में। ये अपने ज्ञान जी को क्या हो गया। जब से आलोक जी ने इनकी दोस्ती राखी सांवत से कराई, हमारे अच्छे खासे धीर गंभीर भाई कवि हो लिए और अब तो ये भी जानकारी दे रहे है कि शहनाज हुसैन की मदद से सुंदर बना जा सकता है। सच्ची क्या? हमें भी नहीं पता था….॥:)

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  18. बेहतरीन लेख। मैं आपकी इस बात की तारीफ़ करता हूं और जबरदस्त जलन भी रखता हूं कि आप अपनी पोस्ट इत्ते अच्छे से मय समुचित फोटो के कैसे लिख लेते हैं। बेहतरीन उपलब्धि है आपका ब्लाग!

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