छत्तीसगढ़ निवासी श्री बुधराम यादव अद्भुत कवि हैं। उनके पुत्र समीर यादव जबलपुर में उप पुलिस अधीक्षक हैं और मनोरथ नाम का ब्लाग भी चलाते हैं जिसे उन्होने अपने पिताजी को समर्पित किया है। बुधरामजी छत्तीसगढ़ी में भी बहुत मधुर रचनाएं लिखते हैं। इनकी कविताओं का आनंद आप अक्सर मनोरथ पर ले सकते हैं। समीर ने बहुत अपनत्व के साथ उनका एक गीत शब्दों के सफर में भेजा है-

सम्प्रति-सेवानिवृत्त उप अभियंता,जल संसाधन विभाग छत्तीसगढ़ शासन, अध्यक्ष प्रांतीय छत्तीसगढ़ी साहित्य समिति की जिला इकाई बिलासपुर,अध्यक्ष चंदेला नगर विकास समिति बिलासपुर
वर्तमान पता-एम.आई.जी.-ए/8 चंदेला नगर, रिंग रोड क्र 2 बिलासपुर मोबाइल नंबर-09755141676
विस्तृत परिचय
वर्तमान पता-एम.आई.जी.-ए/8 चंदेला नगर, रिंग रोड क्र 2 बिलासपुर मोबाइल नंबर-09755141676
विस्तृत परिचय
।।गीत।।


कहो सुनयने किसे दिखायें अंतस के अनगिन आघात |
किसके राम दुवारे जायें लेकर दर्दों की बारात ||
धीरज विचलित लगे निरंतर
संयम
टूटे बारम्बार |
अभिलाषाओं से अभिसिंचित
झुलस रहा सुरभित संसार ||
नेह की संचित निधि चुरा ली
भ्रम की आवाजाही ने |
आशा के अवशेष मिटा दी
वक्त की एक गवाही ने ||
विषम परिस्थितियों में निर्मम छोड़ गए सब अपने साथ..
कहो सुनयने किसे दिखायें अंतस के अनगिन आघात |
परछाई हरकर निर्मोही
अंधियारे ने समझाया |
नाता नहीं किसी से स्थिर
पगले नर क्यों भरमाया ||


इसीलिए केवल सूनापन
अब अंतर्मन को भाता |
बिना रिक्तता सचमुच कोई
पूर्ण कहाँ फ़िर हो पाता ||
अवचेतन सी हुई दशा सहते पीड़ा के वज्रापात..
कहो सुनयने किसे दिखायें अंतस के अनगिन आघात |
हाड़ मास के इस पिंजर का
क्षण भंगुर लौकिक संसार |
नित्यानंद स्वरुप प्रेम का
निश्छल मन उत्तम आधार ||
यह चिंतन थोड़े में तुमको
यदि ह्रदय से भाये |
जहां भी हो आओ स्वर देकर
कीर्तन सा हम गायें ||
इससे अधिक बताओ जीवन कैसे भला निभाएं साथ..
कहो सुनयने किसे दिखायें अंतस के अनगिन आघात |
किसके रामदुवारे जाएँ लेकर दर्दों की बारात ...||
-बुधराम यादव
कहो सुनयने किसे दिखायें अंतस के अनगिन आघात |
ReplyDeleteकिसके राम दुवारे जायें लेकर दर्दों की बारात ||
आप इतनी अच्छे गीत भी लिखते हैं , पता ही नही था !
शुभकामनायें !
किसके रामदुवारे जाएँ लेकर दर्दों की बारात ...||
ReplyDeletebahut sunder rachana
keep writing sir
regards
kabhi humre dawre bhi bhatke ram
अजित जी,
ReplyDeleteआपका अंतर्मन से आभार.
छत्तीसगढ़ के कवि-मन को इतना
सुंदर स्थान दिया आपने.
मैं छत्तीसगढ़ महतारी से आपके लिए
अनंत मंगल कामना करता हूँ.
प्रस्तुत कविता की रिक्त पूर्णता,
जहाँ पाठक और भावक के लिए
स्पेस बनाती है वहीं इसकी
पूर्ण रिक्तता में मैं कविता के लिए
विराट संसार देख पा रहा हूँ.
हरेक मन की पुकार और
जीवन के गान के समान है यह प्रस्तुति.
कवि बुधराम जी और समीर जी को बहुत-बहुत बधाई.
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डॉ.चन्द्रकुमार जैन
bahut sundar rachanaa preshit ki hai badhaai svikaare.
ReplyDeleteअजित वडनेरकर जी आपने बुधराम यादव जी की ये कविता प्रस्तुत की । बहुत ही अच्छा लगा पढ़कर । सच में बहुत भावपूर्ण रचना है , शब्द के जाल को निश्चय ही वास्तविक रूप दिया गया है । धन्यवाद
ReplyDeleteवास्तव में अद्बुत कविता है। भावनाओं को इस सुंदरता और सहजता से प्रस्तुत करने की क्षमता बहुत कम कवि रखते हैं। आप का आभार जो इन से परिचित कराया। इन की रचनाओं से आगे भी मिलवाते रहें।
ReplyDeleteअजीत भाई, गीत बहुत ज़रूरी हैं हिन्दी कविता के लिये। अफ़सोस ज़्यादा लोग गीत लिखते नहीं अब।
ReplyDeleteबुधराम जी का गीत बांटने के लिये धन्यवाद।
बड़े सीधे सादे मनई लगते हैं श्री बुधराम यादव जी। कवि छाप स्नॉब लगते ही नहीं।
ReplyDeleteचिन्तन को कीर्तन सा गाने वाली कविता समझ में आई और अच्छी भी लगी।
चिंतन परक सार्थक गीत
ReplyDeleteकविवर बुधराम जी को बधाई
आपको इस प्रस्तुति के लिये साधुवाद
मनोरथ पर अभी गया था तब तक नहीं पता था कि समीर जी इनके सुपुत्र हैं
मैं भी सोच रहा था कि ये कौन है जो अपनी ही बातें बता रहा है
फोटोस्टेट में करोड़ों का धंदा
जै हो
बहरहाल कविपुत्र को नमन
वाकई आपने अपने संस्कारों को बचाये रखा
bahut sundar geet...aabhaar padhvaney ka
ReplyDeleteसार्थक रचना। मन को छू गईं ये पंक्तियां-
ReplyDeleteकिसके रामदुवारे जाएँ लेकर दर्दों की बारात ..
ना जाने क्योँ , २ बार आपके जाल घर पर आकर पिछली पोस्ट पर ही जा पाई और आज ही ये सुँदर कविता पढ पाई हूँ - बहुत पसँद आई ...बुधराम यादव जी को मेरे स स्नेह अभिवादन और आपको धन्यवाद अजित भाई
ReplyDelete- लावण्या
आदरणीय सुकवि बुधराम जी को प्रणाम, अंतस को छू गई यह रचना ।
ReplyDeleteआपको आभार इसे यहां प्रस्तुत करने के लिए ।
अजीत जी, आपके स्नेह और सम्मान के लिए ह्रदय से आभार. यह रचना मुझे व्यक्तिशः बहुत पसंद है. अपने अंतरंग से नेह को चिंतन से कीर्तन के स्तर पर ले जाना प्रेमानंद का चरम है. और यही इस कवित्व का आनंद है. आदरणीय कवि को मेरा प्रणाम. आपने इसे सबके बीच लाने हेतु कष्ट लिया, पुनः आभार. स्नेह बनाये रखें.
ReplyDeletebahut sunder geet hai...ajit ji abhar......aap ka blog ab bhi meri tippani nahi leta khaskar hindi mein
ReplyDeleteअति सुंदर.
ReplyDeleteइसीलिए केवल सूनापन
अब अंतर्मन को भाता |
बिना रिक्तता सचमुच कोई
पूर्ण कहाँ फ़िर हो पाता ||
ये पंक्तियाँ तो सबसे सुंदर हैं.
बुधरामजी से परिचय के लिए धन्यवाद. ज्ञानजी की बात सही है... सादा जीवन-उच्च विचार के लगते हैं बुधरामजी.
ReplyDeleteसबसे पहले अजीत जी आपको बहुत धन्यवाद इतने अच्छे गीतकार के उत्तम रचना शब्दों का सफर पर लेने के लिए
ReplyDeleteबहुत दिन बाद कोई ऐसा गीत पढने को मिला जो की अपने साथ बहा ले गया
गीतकार श्री यादव जी को उत्तम रचना के लिए बधाई साधुवाद
वास्तव में इन भाषाओं में ही असल जिंदगी है क्योंकि लोक की शक्ति इनके पास ही बची है...
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