Thursday, November 20, 2008

प्रेमपत्र में मात्राओं की ग़लतियां [बकलमखुद-78]

pnesbee Blue-Sky ब्लाग दुनिया में एक खास बात पर मैने  गौर किया है। ज्यादातर  ब्लागरों ने अपने प्रोफाइल  पेज पर खुद के बारे में बहुत संक्षिप्त सी जानकारी दे रखी है। इसे देखते हुए मैं सफर पर एक पहल कर रहा हूं। शब्दों के सफर के हम जितने भी नियमित सहयात्री हैं, आइये , जानते हैं कुछ अलग सा एक दूसरे के बारे में। अब तक इस श्रंखला में आप अनिताकुमार, विमल वर्मा , लावण्या शाह, काकेश ,मीनाक्षी धन्वन्तरि ,शिवकुमार मिश्र , अफ़लातून ,बेजी, अरुण अरोरा , हर्षवर्धन त्रिपाठी , प्रभाकर पाण्डेय अभिषेक ओझा और रंजना भाटिया को पढ़ चुके हैं।   बकलमखुद के चौदहवे पड़ाव और छिहत्तरवें सोपान पर मिलते हैं पेशे से पुलिस अधिकारी और स्वभाव से कवि पल्लवी त्रिवेदी से जो ब्लागजगत की जानी-पहचानी शख्सियत हैं। उनका चिट्ठा है कुछ एहसास जो उनके बहुत कुछ होने का एहसास कराता है। आइये जानते हैं पल्लवी जी की कुछ अनकही-
कॉलेज में आते आते क्लास में झपकी मारना शुरू हो गया था! खासकर दोपहर लंच के बाद के पीरियड्स में तो ऐसी मीठी नींद आती थी कि चाहे आगे कि सीट पर बैठो या पीछे की, नींद पर कोई कंट्रोल नही होता था!कई बार डांट भी खायी मगर आदत न सुधारी! फर्स्ट इयर में पहला पीरियड फाउंडेशन का होता था , जो की बिल्कुल नही झिलाता था! जो चीज़ परीक्षा की रात में पढ़कर तैयार की जा सकती है उसके लिए साल भर एक घंटा बरबाद करना हमें कुछ जचा नही! पर घर से तो टाइम से ही निकलना पड़ता था...हम चार लडकियां पैदल या साइकल से कॉलेज जाते थे तो रास्ते में एक सीमेंट की गली पड़ती थी...वहाँ हम लोग आधा घंटा लंगडी खेला करते थे.!

ये तेरा मनहूस चेहरा...!!

सी दौरान होली पर टाइटल मिलने का सिलसिला भी शुरू हो गया था!पहला टाइटल जो मुझे मिला था वो था " हँसते हँसते कट जाएँ रस्ते" शायद ज्यादा ही ही हा हा करने के कारण ये मिला था मगर अच्छा था! मगर ये खुशी ज्यादा देर तक नही टिकी....हमारी कॉलोनी के लड़के भी टाइटल दिया करते थे! होली के अगले दिन ही एक लिस्ट हमारे घर के सामने चिपकी थी....जिसमे पहला ही टाइटल हमारा था और वो था " तेरा ये मनहूस चेहरा" ! बाप रे...सच्ची में पढ़ के बुरी तरह घबरा गए! क्या सही में इत्ते बुरे दीखते हैं? पहले वाले टाइटल की खुशी काफूर हो गई! खूब गालियाँ दी मोहल्ले के लड़कों को! बाद में पता चला की उनमे से एक लड़के ने सुबह सुबह ट्यूशन जाते वक्त मेरी सूरत देख ली थी और आगे जाकर उसका एक्सीडेंट हो गया था!इसलिए हमें इस टाइटल से नवाजा गया!

रात भर टाइटल बनाना...

गले साल से हमने भी टाइटल बनाकर मोहल्ले में और कॉलेज में चिपकाने शुरू कर दिए! एक बार तो बड़ी चोट हुई....मैं और मेरी एक दोस्त ने रात भर बैठकर टाइटल बनाये! जिन लड़कियों को हम पसंद नही करते थे उनके टाइटल बहुत बकवास टाइप के थे! स्कूल खुलने के पहले सुबह सुबह पाँच बजे उठकर पहुँच गए स्कूल का गेट कूदकर क्लास के बाहर टाइटल चिपकाने...चिपकाने ही वाले थे तभी एक लड़की न जाने कहाँ से आ टपकी! शायद वह भी अपनी लिस्ट चिपकाने आई थी! उसने हाथ से छीनकर लिस्ट पढ़ी! सबसे घटिया टाइटल उसी का था! हम बड़ी मुश्किल में....क्या करें? लेकिन हमारे बीच सौदा हुआ...उस लड़की ने अपना टाइटल सबसे अच्छा रखा फ़िर लिस्ट चिपकवाने में हमारी मदद भी की!

प्रेमपत्र बना हंसने की वजह...

ब सेकंड इयर में पढ़ते थे...तब जिंदगी का पहला प्रेम पत्र प्राप्त हुआ....हुआ यूँ की एक दिन मैं और गड्डू घर के बाहर गार्डन में बैठे थे तभी गड्डू की नज़र एक सफ़ेद कागज़ में लिपटी किसी डिब्बी पर पड़ी!जाकर देखा तो एक लाइन वाली नोटबुक के पेज में कुछ लिपटा हुआ था , कागज़ पर नीले पेन से टेढा सा दिल बना हुआ था जिसमे बाकायदा तीर भी घुसाया गया था!कागज़ हटाया तो अन्दर माचिस की डिब्बी निकली...उसके अन्दर एक कई बार तह किया हुआ पत्र था...जिसे किसी गुमनाम व्यक्ति ने लिखा था ! ऐसा लग रहा था मानो लेखक ने पांचवी क्लास भी अगर पास की होगी तो नक़ल के माध्यम से! हिन्दी में मात्राओं के ज्ञान से अपरिचित था पत्र लेखक तो अंग्रेजी में स्पेलिंग के ज्ञान से!पढ़ पढ़ के खूब हँसे...बहुत दिनों तक संभाल के रखा ये पत्र! जब भी बोर होते...पत्र निकाल कर पढ़ते और हँसते!

... जो देर से सोकर उठते हैं वो जानते होंगे की सुबह की वो नींद संसार के किसी भी खजाने से ज्यादा कीमती होती है!...



चिढ़ना-चिढ़ाना...

म चारों बहने एक दूसरे को परेशान करने में भी कोई कसर नही छोड़ते थे!खासकर जब किसी एक से मिलने कोई दोस्त या टीचर आए होते तो बाकि बहने दरवाजे के पीछे छुपकर तरह तरह से मुंह बनाकर चिढाते थे....जिसे सिर्फ़ वो बहन देख पाती थी...मेहमान नही! आज तक ये सिलसिला जारी है....इसी दीवाली पर मुझ...से जब विभाग के लोग मिलने आए तो बीच में कई बार उठकर अन्दर जाना पड़ा हंसने के लिए!

मेरे कुछ अंधविश्वास

मुझे याद है उस समय मेरे कुछ अंधविश्वास थे.....जैसे मैं हमेशा परीक्षा देने जाते वक्त मोगरे के बहुत सारे फूल ले जाया करती थी! मुझे यकीन था की मोगरे के फूल साथ में रहेंगे तो पेपर अच्छा जायेगा! पता नही मोगरे के फूल कितने कारगर होते थे लेकिन एक बात ज़रूर थी की तीन घंटे तक पेपर देते समय भीनी भीनी खुशबु आती रहती थी! सुबह देर से सोकर उठने की आदत थी! मम्मी हमेशा सुबह उठकर पढने पर ज़ोर देती और पापा कहते " सो लेने दो, मत जगाओ" लेकिन फ़िर भी मम्मी पाँच बजे उठा देती पढने के लिए! जो देर से सोकर उठते हैं वो जानते होंगे की सुबह की वो नींद संसार के किसी भी खजाने से ज्यादा कीमती होती है! जैसे तैसे उठकर किताब खोलते और पता नही कब सर एक तरफ़ लुढ़क जाता और किताब दूसरी तरफ़! रात में ज़रूर हम तीन चार बजे तक जागकर पढ़ लिया करते थे!खैर इसी तरह पढ़ाई करके एक्जाम देते रहे और ठीक ठाक नंबरों से पास भी होते रहे.....

20 comments:

  1. छोटी-छोटी बातें अमूल्‍य परिसम्‍पत्ति की तरह मन के कोठार में 'अक्षय-अक्षर' बनी रहती हैं । बात न बात का नाम लेकिन दिल मालामाल ।

    जगजीत सिंह की गायी गजल बरबस ही याद आ गई -

    दुनिया जिसे कहते हैं, जादू का खिलौना है
    मिल जाए तो मिट्टी है, खो जाए तो सोना है

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  2. पल्लवी जी,
    हमेँ मोगरे आपकी तरह बहुत पसँद हैँ और
    प्रेम पत्र प्रकरण पढकर बहुत हँसी आई :)
    स्नेह,
    - लावण्या

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  3. प्रेम पत्र और मोंगरे के फूल .बढ़िया यादें हैं ..यह कभी भी नही भूलेंगी ..

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  4. सच बहुत रोचक चल रहा है
    आप बीती का यह सफरनामा.
    लेखिका की शैली में जिंदगी से ज़्यादा
    एक कलम गो का तेवर बोल रहा है...वरना
    "नीले पेन से एक टेढा सा दिल" जैसा वाक्य !!!
    कमाल है...ये तो सचमुच कमाल है !!!!
    वैसे पल्लवी आपने कालेज में जो
    धमाचौकडी की है उसके तजुर्बे का लाभ
    आज कल के
    उद्दंड कालेजियन को जरूर मिल
    रहा होगा....है न ? ...बहरहाल आप हमारी बधाई
    स्वीकार कीजिए और शुभकामनाएँ भी कि आपकी लेखनी
    एक दिन आपको अलहदा पहचान प्रदान करे.
    ==========================================
    डॉ.चन्द्रकुमार जैन

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  5. मात्राओ पे न जाओ भावनाओ पे जाओ...

    आपने उस की भावनाओ को नही समझा.. क्या पता वो अज ब्लोगर बन गया हो और आपकी पोस्ट पढ़ रहा हो..

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  6. प्रेम-पत्र लिखने का हमें कोई मौका नहीं मिला। पर कई लोगों के लिये इस विषय में घोस्ट राइटिंग अवश्य की है!
    पता नहीं इससे जन कल्याण हुआ या नहीं! :-)

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  7. वो प्रेम पत्र अब तुरंत हमे भिजवा दे , प्रेम पत्रो के कबाड पर हमारा और केवल हमारा ही अधिकार होता है :)

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  8. चलिये दो बातें तो आपकी हमसे मिलीं ..एक ये कि जानते हुए भी हम कुछ अंधविश्वास पाल रखे हैं बचपन नही अब तक..! और दूसरा सुबह की नींद भी आज तक सबसे कीमती चीज है..रात भर चाहे जितनी मेहनत कर लें..!

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  9. क्लास में सोना और सुबह देर तक सोना इन दोनों में तो मेरा कोई मुकाबला नहीं :-) और अब आप इतनी ईमानदारी से बता रही हैं तो... हमने भी ऐसे कुछ अंधविश्वास पाल रखे थे. सारे ख़ुद के बनाए हुए.

    पर प्रेम पात्र आज तक नहीं लिखा किसी ने... यहीं मार खा गए :-)

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  10. गज़ब है!
    देखो जी जे गलत बात है न कि आपने पहले प्रेमपत्र का उल्लेख तो कर दिया पन बाकी का क्यों नई? बोलो बोलो.....

    आपकी सुबह देर से उठने वाली बात से तो सौ फीसदी सहमत हैं अपन।
    बचपन से आज तक सुबह जल्दी उठने के नाम पर डांट ही खा रहे हैं।

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  11. वाह पल्लवी जी आपकी अन्धविश्वास तो कुछ हद तक हम भी मानते थे |और सुबह उठने की तो मत पूछिये बचपन से परिजनों ने कोशिश की तो अब जाकर जब पढ़ाई ख़त्म हो गई तो आदत पड़ी.
    पुराने दिनों की यादो को फ़िर से तजा करने के लिए आपको धन्यवाद्

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  12. शादी तक किसी तरह संभाल कर रखे वो सारे ख़त
    जिनमे प्यार को भी पार लिखा होता था.
    जलाने पड़े एक एक कर, एक दिन वे सब
    जिनकी टूटी तहरीर में दिल का तार जुड़ा होता था.
    खैर, आपकी पोस्ट पढ़कर मजा आ गया. लेकिन आगे क्या हुआ ये तो बताइए, क्योंकि टूटा फूटा लिखने वाला इतनी आसानी से नहीं रुकता या रूकती.

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  13. 'जो देर से सोकर उठते हैं वो जानते होंगे की सुबह की वो नींद संसार के किसी भी खजाने से ज्यादा कीमती होती है!'
    वाकई अनमोल खजाना होती है वो नींद और कॉलेज की मीठी यादें भी. लव लेटर हम ब्लोगेर्स तक भी पहुँचाना चाहिए था.

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  14. बहुत बढ़िया ! अच्छा किया गलत भाषा लिखने वाले का बहिष्कार किया । यदि यह बात सब बच्चों को पता चल जाए तो शायद सही लिखने का प्रयास करें । वैसे फिर भी उसकी मेहनत का सदुपयोग आपको हंसाकर तो हुआ, वह जानेगा तो थोड़ा बखुश होगा ।
    लिखने का अंदाज बहुत अच्छा लगा ।
    घुघूती बासूती

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  15. रोचक यादें हैं। आगे भी इंतजार है कुछ और किस्सों का!

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  16. पिछले तीनों भाग एक साथ पढ़े । काफी आनंद आया आपकी शैतानियों के बारे में पढ़कर।

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  17. बहुत आनंद आया पल्लवी जी के बारे में पढ़ कर...बहुत सी बातों से अपना बचपन याद आ गया...
    नीरज

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  18. देर तक सोने के बारे में अमूल्य लाइने लिख कर आपने हमें मजबूर कर दिया कि टिप्पणी की जाय.
    वैसे प्रेमपत्र लिखने वाले बेचारे इतने होश में होते ही कहाँ हैं कि मात्राओं पर भी ध्यान दें
    कहते हैं जिसे इश्क खलल है दिमाग का..
    वैसे कुश जी की बात सही है भावनाओं पर ध्यान देना चाहिए मात्राओं पर नही.

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  19. सच्ची? वो पत्र आपको अबतक याद है?

    यह बात मैं उस बन्दे को आजही बताता हूँ। उस समय आपने जब कोई रिस्पॉन्स नहीं दिया था तो वह मेरे कन्धे पर फू्ट-फूटकर रोया था। गुमसुम रहने लगा था। बेचारा शायद उस सदमें से अब उबर जाय...। :)

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  20. सब कुछ जला दिया था उस जालिम के प्यार में
    माचिस भी आज उसके गार्डेन में फेंक दी!

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