Sunday, November 23, 2008

अपनी पहली कमाई..[बकलमखुद-79]

pnesbee Blue-Sky ब्लाग दुनिया में एक खास बात पर मैने  गौर किया है। ज्यादातर  ब्लागरों ने अपने प्रोफाइल  पेज पर खुद के बारे में बहुत संक्षिप्त सी जानकारी दे रखी है। इसे देखते हुए मैं सफर पर एक पहल कर रहा हूं। शब्दों के सफर के हम जितने भी नियमित सहयात्री हैं, आइये , जानते हैं कुछ अलग सा एक दूसरे के बारे में। अब तक इस श्रंखला में आप अनिताकुमार, विमल वर्मा , लावण्या शाह, काकेश ,मीनाक्षी धन्वन्तरि ,शिवकुमार मिश्र , अफ़लातून ,बेजी, अरुण अरोरा , हर्षवर्धन त्रिपाठी , प्रभाकर पाण्डेय अभिषेक ओझा और रंजना भाटिया को पढ़ चुके हैं।   बकलमखुद के चौदहवें पड़ाव और छिहत्तरवें सोपान पर मिलते हैं पेशे से पुलिस अधिकारी और स्वभाव से कवि पल्लवी त्रिवेदी से जो ब्लागजगत की जानी-पहचानी शख्सियत हैं। उनका चिट्ठा है कुछ एहसास जो उनके बहुत कुछ होने का एहसास कराता है। आइये जानते हैं पल्लवी जी की कुछ अनकही-
पना जेबखर्च खुद कमाने का कीड़ा बीएससी करते करते ही दिमाग में काटने लग गया था! इसलिए कॉलेज की छुट्टियों में एक नर्सरी स्कूल में पढाने जाने लगे!" लिटिल फ्लॉवर नर्सरी स्कूल" का वो एक महीना यादगार रहा!प्ले ग्रुप से लेकर के.जी.टू तक के बच्चे पढ़ते थे उस स्कूल में!बच्चों के साथ रहकर बहुत कुछ सीखने को मिला खासकर ये पता चला की छोटे बच्चों को लिखना सिखाना कितने धैर्य का काम है!तब मैंने जाना माँओं में इतना धैर्य कहाँ से आता है! एक बार मैं प्ले ग्रुप के बच्चों की क्लास ले रही थी....एक छोटी सी बच्ची मज़े से सो रही थी अपने बस्ते पर सर टिकाकर!मैंने उसे नहीं जगाया!सोती हुई बहुत क्यूट लग रही थी वो!इतने में प्रिंसिपल आया और उसके कान खींचकर उसे उठा दिया!बेचारी नन्ही बच्ची दर्द से चीख कर जाग गयी!मेरा मन दया से भर गया!बाद में मैंने प्रिसिपल से कहा भी की ये बिलकुल गलत है लेकिन शायद वह पढाई की मार पिटाई वाली थ्योरी में गहरा विश्वास रखता था!उसने नहीं सुना...मैंने भी एक महीना पूरा करके स्कूल छोड़ दिया!पहली तनख्वाह ढाई सौ रुपये मिली....दस दस के नोट होने से वो ढाई सौ रुपये भी गड्डी के रूप में मिले!घर जाकर उस ढाई सौ रुपये से ढेर सारी चोकलेट्स और जगजीत सिंह के कैसेट्स खरीदे!अपनी कमी से पहली बार कुछ खरीदना बहुत सुखद था!उस वक्त हम जगजीत सिंह के दीवाने हुआ करते थे!मैंने तो ये भी डिसाइड कर लिया था की जब मेरी शादी होगी तो फ़िल्मी गानों की जगह हर अवसर पर जगजीत की ग़ज़लें बजायी जायेंगी!हम सब बहनों ने बारात से लेकर विदाई तक के अवसरों के लिए ग़ज़लें छाँट कर लिख ली थीं!

ब्रिलिएंट कोचिंग क्लास का खोलना

इसके बाद हिस्ट्री में एम.ए. करते हुए बाकायदा एक स्कूल में साल भर तक पढाया ! यहाँ 8th क्लास से 12th तक पढाती थी! लेकिन सुबह सात बजे से दो बजे तक पढाकर सात सौ रुपये तनख्वाह बड़ी कम लगती थी!इसलिए मैंने अगले साल अपनी बहन के साथ एक कोचिंग खोल ली! हमने कोचिंग का नाम रखा " ब्रिलियंट कोचिंग क्लास" ! और सबसे मजेदार बात ये थी की जब हमने अपनी कोचिंग के पेम्प्लेट्स बनवाए...अखबारों में बंटवाए तो उसकी तारीफ में बहुत सारे कसीदे पढ़े और अंत में एक लाइन लिखी " हर बच्चे के पास होने की गारंटी" ! जबकि उस वक्त तक हमें नही पता था की हम हर बच्चे को पास कैसे करवाएंगे! आज जब कई कोचिंग क्लास के बोर्ड पर पास कराने की गारंटी देखती हूँ तो समझ जाती हूँ कि ये लाइन बच्चे जुगाड़ने में बड़ी सहायक है! खासकर दो दो साल से फेल हो रहे बच्चे तो इसी लाइन से खिंचे चले आते हैं! आश्चर्यजनक रूप से कोचिंग मस्त चल निकली! एक स्टुडेंट से हम मात्र 50 रुपये लेते थे शर्त यह थी की एक बैच में कम से कम दस बच्चे आना चाहिए! कम फीस होने के कारण आसानी से दस दस बच्चों के सात बैच तैयार हो गए!इस तरह हम ३५०० रु. कमाने लगे!एम.ए. पूरा होते ही उसी कॉलेज में संविदा पर पढाना शुरू कर दिया!

कमाई से 'सनी'की आमद ...

कोचिंग साथ में चल रही थी! इन पैसों से हमने 'सनी' गाडी खरीदी! आमतौर पर हम कोचिंग में मैथ्स छोड़कर सारे विषय पढाते थे!लेकिन एक बार कॉन्वेंट स्कूल के सात आठ बच्चे पढने आये ...वो लोग 150 रु. देने वाले थे!एक घंटे के हज़ार रुपये!sounds so cool na... पर उन्हें मैथ्स भी पढना था!हम तैयार हो गए पढाने को!एक गाइड खरीदी...घर पर बैठकर पहले सारे सवाल खुद हल करके देखे! थोडी सी माथा पच्ची के बाद दिमाग में घुसने लगे!पर
फिर भी कई बार ऐसा होता की बच्चों को सवाल हल कराते करते कहीं कहीं हम अटक ही जाते तो उसके लिए योजना ये बनायीं थी की अन्दर वाले कमरे में गाइड रखी रहती थी....पानी पीने के बहाने जाते और सवाल हल करने का तरीका देखकर आ जाते! और बच्चों को समझा देते!दो-चार बार ऐसा हुआ....एक दिन फिर हम कहीं अटके! पानी पीने जाने ही वाले थे इतने में एक बच्चा बोल उठा " दीदी...आप पानी पी आओ, आपको पानी पीने के बाद सवाल का उत्तर बन जाता है" हम समझ गए ..बच्चे भी कम चालू नहीं हैं.

एक फर्जी कम्पनी में बेवकूफ बने

उसी दौरान एक फर्जी इंश्योरेन्स कम्पनी के चक्कर में भी आ गए.....विज्ञापन बड़ा लुभावना था...जिसमे ३०% कमीशन एजेंट को मिलना था! तो उस कम्पनी में एजेंट बन गए! कई ग्राहक भी बन गए! तीन महीने बाद पता चला कि वो एक फर्जी कम्पनी थी जो अपना ऑफिस तक समेट कर भाग चुकी थी! अब बड़े परेशान ....ग्राहकों का पैसा कैसे लौटायेंगे! लेकिन दुनिया में सचमुच बहुत अच्छे लोग हैं! हमने जब उन लोगों को जाकर बताया कि कम्पनी फर्जी थी ...लेकिन हम उनका सारा पैसा धीरे धीरे करके लौटा देंगे तो उनमे से एक ने भी हमसे पैसा वापस नही लिया! उनका कहना था कि इसमे आपकी गलती नही है...जो नुक्सान होना था सो हो गया! इस बात से राहत तो मिली लेकिन एक सबक भी मिला कि आइन्दा आँख बंद करके किसी काम में हाथ नही डालेंगे!

17 comments:

  1. बेहतरीन मजेदार केरियर की शुरुआत रही.

    वो ३०% कमीशन तो कम से कम वापस करो भले ही मूलधन न दो. :)

    सही है. आगे इन्तजार है.

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  2. कैरियर की शुरूआत जोरदार रही और शुरू में ही आगे सीखने का सबक भी मिल गया। हमारा भी कुछ बकाया है शायद? देखना पड़ेगा।

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  3. छोटी और अर्थहीन समझी जाने वाली बातें जीवन-पथ का निर्धारण कैसेट करती है, यह बताती है पोस्‍ट ।

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  4. जो मेरी दादी होती तो कहती -छोरी काईं छे, बवाळ छे। उळझकोथळी। खुद भी उळझे औराँ ने भी उळझा दे।
    कुछ कुछ ये सब धंधे हम भी आजमा चुके हैं।

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  5. कोचिंग वालों को आपका
    पानी पीने वाला फार्मूला
    ज़रूर सीखना चाहिए !!!
    ===================
    बहुत रोचक...सहज...सरस
    चल रहा है आप बीती का
    यह सिलसिला....!
    ===============
    साभार बधाई
    डॉ.चन्द्रकुमार जैन

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  6. बढ़िया चल रहा है आपकी जिंदगी का ये लेखा जोखा. एक समय जगजीत सिंह की गायिकी के हम भी फैन हुआ करते थे.

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  7. जे ब्बात!
    एक नंबर का दिमाग पाया है आपने मानना पड़ेगा।

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  8. वाह ! लगता है जैसे मैं अपने आस-पास की किसी मेहनत कश और संघर्षशील लड़की की आँखॊं देखी कहानी पढ़ रहा हूँ। निश्चित रूप से आपका यह बक़लमखुद आख्यान बहुतेरी लड़कियों के लिए प्रेरणाश्रोत बनेगा। साधुवाद। पुलिस अफसर बनने की कहानी की प्रतीक्षा है।

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  9. अजीत जी, इस पोस्ट का शीर्षक ठीक है या कुछ गड़बड़ है? बारात, विदाई, और बस के बारे में कुछ नहीं मिला। हाँ, जगजीत जी की ग़जल का जिक्र है। वो शादी की कल्पना...।

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  10. 'दीदी...आप पानी पी आओ, आपको पानी पीने के बाद सवाल का उत्तर बन जाता है' हा हा बढ़िया रहा :-)

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  11. जगजीत सिंह के बहुत बड़े फेन हम भी हैं .:) मजेदार बातें पता चल रही है ..जारी रहे

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  12. मजेदार !!!!!


    अच्छा तो मास्टरी भी कर चुकी हैं आप!!!!

    बधाई!!!!!

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  13. बच्चों-बड़ों सबको पढ़ाने के बाद खुद बेवकूफ बन गईं :)। अब जल्दी बताइ गुरूजी से दारोगाजी बनने कैसे चल पड़ीं ये बताइए।

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  14. achchha lag raha hai paardarshita ke sath aap ko padhana....! aage ki kahani bataye.n

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  15. बहुत अच्छा रहा ये भी ..आगे सुनाएँ

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  16. साले! चालू बच्चे!!!

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